मॉब लिंचिंग की बढ़ती घटनाएँ !
झारखण्ड विधानसभा के शीतकालीन सत्र के चौथे दिन 21 दिसम्बर को मॉब लिंचिंग रोकने के लिए झारखण्ड सरकार ने ‘भीड़ हिंसा रोकथाम और मॉब लिंचिंग निवारण विधेयक, 2021’ पास किया। भाजपा ने इसे कई कारणों से काला कानून बताया और आरोप लगाया है कि यह पार्टी विशेष को टारगेट करने के लिए कानून बनाया गया है। हालाँकि, संसदीय कार्य मन्त्री ने कानून बनाने के मकसद को साझा करते हुए आरोपों को खारिज कर दिया। विधेयक को सदन से पारित कराने वाला झारखण्ड देश का चौथा राज्य बन गया। इससे पहले राजस्थान, मणिपुर और पश्चिम बंगाल में भी मॉब लिंचिंग के खिलाफ कानून बन चुका है।
विधेयक के अनुसार मॉब लिंचिंग से किसी की मौत हो जाती है तो दोषियों को सश्रम आजीवन कारावास के अलावा 25 लाख रुपए जुर्माना देना होगा। वहीं अगर लिंचिंग में किसी को गम्भीर चोट आती है तो दोषियों को 10 साल तक की सजा और 5 लाख रुपये तक का दण्ड दिया जाएगा। इसके साथ ही लिंचिंग में किसी को हल्की चोट आती है तो दोषी को तीन साल तक की सजा और 3 लाख रुपए तक का दण्ड दिया जाएगा। बिल के मुताबिक, किसी ऐसी भीड़ द्वारा धार्मिक, रंग भेद, जाति, लिंग, जन्मस्थान या किसी अन्य आधार पर हिंसा करना मॉब लिंचिंग कहलाएगा।
इन सबके बावजूद झारखण्ड में मॉब लिंचिंग की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रहीं। बीते 6 फरवरी को सरस्वती प्रतिमा के विसर्जन जुलूस के दौरान हजारीबाग जिले के बरही के लखना दुलमहा में दो समुदाय से जुड़े लोगों के बीच झड़प में रूपेश पाण्डेय (17) की पिटाई से मौत हो गई। वहीं इस मामले में 5 लोगों की गिरफ्तारी हुई है। साथ ही घटना के बाद पुलिस ने पूरे 37 घंटे तक इंटरनेट सेवा बन्द कर दी थी ताकि किसी तरह की कोई अफवाह न फैले। इस दौरान आगजनी, सड़क जाम और तोड़फोड़ हुई जिसमें पुलिस ने 10 लोगों को गिरफ्तार किया।
भाजपा नेता कपिल मिश्रा 16 फरवरी को मृतक रूपेश के परिजनों से मिलने दिल्ली से राँची आए लेकिन उन्हें झारखण्ड पुलिस ने राँची एयरपोर्ट पर ही रोक दिया। इसके बाद कपिल मिश्रा ने ट्वीट कर कहा ‘झारखण्ड पुलिस द्वारा मुझे राँची एयरपोर्ट से बाहर नहीं निकलने दिया जा रहा। मेरी बात स्पष्ट है, रूपेश पाण्डेय जी के शोक संतप्त परिवार से मिलने आया हूँ, पुलिस के वाहन में चन्द लोगों के साथ रूपेश जी के घर जाने को तैयार हूँ। मुझे रोकना झारखण्ड सरकार की नीयत पर सवाल खड़े करता है।’
रूपेश के पिता सिकंदर पाण्डेय पेशे से किसान हैं। उनका कहना है कि, ‘पांच साल पहले उनके छोटे बेटे की मौत साँप काटने से हो गई थी। ये उनका बड़ा बेटा था, जो परिवार का सहारा बनता। फिलहाल वह साइंस से 12वीं का छात्र था। उनकी पत्नी उर्मिला देवी भी घटना के बाद से कुछ भी नहीं खा रही हैं। केवल जूस पीकर रह रही हैं। वो कह रही हैं कि अगर उन्हें न्याय नहीं मिला तो वो आत्मदाह कर लेंगी।
मृतक के परिजनों की तरफ से दर्ज एफआईआर में कुल 27 नामजद लोगों को आरोपी बनाया गया है। वहीं 100 अज्ञात लोगों पर इसमें शामिल होने के आरोप लगाए गए हैं। इन सभी पर आईपीसी की धारा 109ए (अपराध के लिए उकसाना), 120बी (अपराधिक षडयन्त्र रचना), 147ए (उपद्रव करना), 148ए (उपद्रव के दौरान घातक हथियार से लैस होना), 149ए (जनसमूह के द्वारा हमला और उपद्रव), 302ए (हत्या), 323ए (मारपीट), 341ए (किसी व्यक्ति को गलत तरीके से रोकना) के तहत मामला दर्ज किया गया है।
द प्रिंट में छपी आनन्द दत्त की रिपोर्ट के अनुसार “पोस्टमार्टम रिपोर्ट देखने के बाद डॉ सिद्धार्थ सिन्हा (न्यूरो साइकेट्रिस्ट, राँची) ने बताया कि रुपेश पाण्डेय के पूरे शरीर में चोट के निशान हैं। शरीर के अन्दर खून जमा हुआ था, जिससे ये पता चलता है कि किसी मजबूत, भारी सामान से उस पर हमला किया गया है। दोनों कानों में चाकू से वार किया गया होगा, गले में दस बाई सात का निशान पाया गया है। बाईं तरफ छाती के निचले हिस्से में कट के निशान हैं। चोट की वजह से स्प्लीन फट गई जिससे पूरे शरीर में खून के थक्के जम गए। इसके अलावा गला दबाने की कोशिश की गई। यह एक हत्या है। मारपीट के चार से आठ घंटे बाद बॉडी को डॉक्टरों के सामने लाया गया।”
हजारीबाग के एसपी मनोज रतन चौथे के मुताबिक पूरे मामले में कुल सात एफआईआर दर्ज की गई है जिनमें चार सरकारी एफआईआर हैं। हत्याकांड में जिन पाँच लोगों को जेल भेजा गया है, शुरूआती जाँच में उनकी सीधी भूमिका नजर आ रही है। उन्होंने कहा कि इस काण्ड में भीड़ के शामिल होने की बात आगामी जाँच के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा। एसपी ने कहा कि फिलहाल इसे मॉब लिंचिंग कहना गलत होगा। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि दो चश्मदीदों के बयान भी कोर्ट में दर्ज कराए गए हैं।
द प्रिंट में आनन्द दत्त की रिपोर्ट के अनुसार इस पूरे घटनाक्रम में 6 फरवरी की शाम जैसे ही लोगों को पता चला, भीड़ सीधे घटनास्थल पर चली गई। यहाँ दो घरों में आग लगाई। तीन कार, तीन ऑटो, दो बाइक में आग लगा दी। ये सभी मुसलमानों के थे। यहाँ से आगे बढ़ने पर लगभग एक किलोमीटर दूर करियातपुर गांव में मुस्लिमों के तीन दुकान जिसमें टेंट के सामान और सिलाई मशीन थे, उसमें भी आग लगाई गई। इसके साथ ही 7 फरवरी को रोड जाम किया गया और 13 की शाम को कैंडल जुलूस निकाला गया। इस दौरान सड़क किनारे लगे परिवहन विभाग के बोर्ड और पहले से टंगे इस्लामी झंडे को जलाया और वहाँ भगवा झंडा टांग दिया गया। बरही चौक से 500 मीटर दूर तिलैया रोड स्थित एक हनुमान मंदिर में मूर्ति टूटने की घटना भी घटी। प्रदर्शनकारियों ने मुस्लिमों की दुकानें बंद कराईं। हिन्दुओं ने दुकान बंद कर दिया, लेकिन मुस्लिमों ने दुकानें बंद करने का विरोध किया और रोड जाम लगा दिया।
अब इस घटना में कई तरह की बातें हो रही हैं। पहली तो ये है कि रूपेश पढ़ाई के साथ एक मोबाइल की दुकान पर काम करता था। घटना के दिन वह दुकान पर ही था। उसके दोस्तों ने उसे फोन कर सरस्वती पूजा के मूर्ति विसर्जन में बुलाया। पूजा स्थल पर पहुँचने से पहले दुलमाहा गाँव में ही मुस्लिम बस्ती में लोगों ने उसे रोक लिया। किसी बात को लेकर कहा-सुनी हुई। इसके बाद भीड़ ने उसे घेर लिया और मारपीट शुरू हुई। वहीं मौके से रूपेश के चारो दोस्त भागने में सफल रहे। जबकि रूपेश भीड़ का शिकार हो गया।
इस घटना का दूसरा पक्ष यह है कि मृतक रुपेश का दुलमाहा गाँव की एक मुस्लिम युवती के साथ प्रेम-प्रसंग था। शायद ये घटना इसी का परिणाम हो। वहीं तीसरे पक्ष में यह बात सामने आ रही है कि क्रिकेट में हार-जीत को लेकर दोनों पक्षों के लड़कों में पहले से कहासुनी होती रही थी और ये घटना उसी की प्रतिक्रिया का परिणाम है। जबकि पुलिस के मुताबिक भीड़ नहीं, केवल पांच लोगों ने इस घटना को अंजाम दिया।
विधानसभा के शीतकालीन सत्र में बिल्कुल शॉर्ट नोटिस पर सरकार ने इस बिल को पेश कर पारित करवा लिया। दरअसल, बिल का ड्राफ्ट कम से कम पांच दिन पहले विधायकों को देने का प्रावधान है और विशेष परिस्थितियों में सरकार तीन दिन पहले किसी बिल के बारे में बता देती है लेकिन यहाँ सबकुछ अचानक हुआ।
वहीं इस कानून के पारित होने के बाद राज्य में पहली मॉब लिंचिंग की घटना पलामू जिले में घटी। जहाँ लेस्लीगंज इलाके में एक युवक को प्रेम प्रसंग के आरोप में भीड़ ने पेड़ से उल्टा लटका कर पीटा। वहीं इसके बाद दूसरी घटना 4 जनवरी को सिमडेगा जिले में घटी। जहाँ लकड़ी चोरी के आरोप में संजू प्रधान नामक व्यक्ति को गाँव वालों ने पहले पीट कर अधमरा कर दिया। फिर उसे जिन्दा ही आग के हवाले कर दिया। नवभारत टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीणों ने युवक संजू प्रधान पर खूँटकटी कानून के उल्लंघन का आरोप लगाया। ग्रामीणों का कहना था कि युवक पेड़ों को काटकर बेचता था, जिससे इस कानून का उल्लंघन हो रहा था। वहीं मृतक के परिजनों और प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि ग्रामीणों ने युवक को घर से बाहर निकाला और उसकी पिटाई की फिर जिन्दाजला दिया।
गौर करनेवाली बात है कि इन दोनों मामलों में मॉब लिचिंग की धाराएँ नहीं लगाई गई हैं। पलामू की घटना पर पुलिस ने 5 नामजद समेत 17 लोगों पर एफआईआर दर्ज की। वहीं सिमडेगा में हुई घटना के बाद 13 नामजद लोगों और 100 अज्ञात पर एफआईआर दर्ज की गई।
मीडिया आंकड़ों के अनुसार बीते 17 मार्च 2016 से 4 जनवरी 2022 तक लिंचिंग के कुल 58 मामले सामने आए हैं। इस दौरान कुल 35 लोग मारे गए। मरने वालों में 15 मुस्लिम, 11 हिन्दू, 5 आदिवासी, 4 ईसाई शामिल हैं। वहीं इस दौरान कुल 24 लोग घायल भी हुए हैं। घायल होने वालों में 13 ईसाई, 5 आदिवासी, 3 मुस्लिम, 3 हिन्दू शामिल हैं।
सरकार बदल गई, लेकिन मॉब लिंचिंग की घटनाएँ थमने का नाम नहीं ले रही। ऐसी घटनाएँ, फिर उससे जुड़ी तरह तरह की अफवाहें, सब मिलाकर माहौल को विषाक्त करने में आग में घी जैसा काम करती हैं। सिर्फ खानापूर्ति न कर इसे सख्ती से दबाना सरकार और प्रशासन का दायित्व है।