हिम्मत नहीं हारते ये ‘एसपिरेन्ट्स’
{Featured in IMDb Critics Reviews}
निर्देशक – अपूर्व सिंह कार्की
लेखक – दीपेश सुमित्रा जगदीश
कलाकार – नवीन कस्तूरिया, शिवांकित सिंह परिहार, अभिलाष, सन्नी हिंदूजा, नमिता दुबे आदि
क्रियेटर – अरुणाभ कुमार, श्रेयांश पांडेय
अपनी रेटिंग – 3 स्टार
दिल्ली का राजेन्द्र नगर इलाक़ा। जो बस्ती है इन एसपिरेन्ट्स की, कहा जाए तो गलत नहीं। कौन हैं ये ‘एसपिरेन्ट्स’? दरअसल यह अंग्रेजी भाषा का शब्द है जिसका हिंदी अर्थ है – उम्मीदवार। दिल्ली के राजेन्द्र नगर के इलाके में उम्मीदवार किस चीज के। पागल न बनो ये उम्मीदवार हैं देश की सबसे बड़ी और कठिन परीक्षा यूपीएससी यानी की कलेक्टरी के इम्तिहान के। हर साल लाखों की संख्या में पूरे देश भर से छात्र इस परीक्षा में अपनी उम्मीदवारी ठोकते हैं लेकिन सफलता मिलती है महज चंद लोगों को। भाई इतनी बड़ी परीक्षा है तो कठिन भी होगी और जाहिर है मेहनत भी उतनी ही करनी होगी। इसके लिए हम हर साल सुनते हैं सफल विद्यार्थियों के मुंह से की उन्होंने सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं किया। घर वालों की ठीक से शक्ल तक नहीं देखी। कब दिन हुआ कब रात हुई नहीं पता। हफ्तों नहाए नहीं ठीक से। कई तरह की कहानियां निकलकर हमारे सामने आती हैं।
अब उसी कहानी को सिरे से और कायदे से दिखाने की कोशिश करती है यह टी वी एफ यूट्यूब चैनल पर पिछले एक महीने से चल रही 5 एपिसोड की सीरीज। हर हफ्ते नया एपिसोड लोगों की उत्सुकता को बढ़ा जाता है। अब कई सिने शैदाईयों के दिलों को राहत पहुंची है जब कहानी पूरी तरह से खुलकर सामने आई है।
कहानी है तीन दोस्तों की कहानी है, जो कलेक्टरी की परीक्षा पास करने का सपना लेकर दिल्ली के राजेंद्र नगर इलाके में आते हैं और कोचिंग लेते हैं। तीनों दोस्तों की अपनी-अपनी कहानी है, इतिहास है। जिन कमरों में ये रहते हैं वहां इनके साथ बसते हैं इनके अपने संघर्ष, अपने एक से सपने, अपनी प्रेम कहानियां, अपनी मेहनत, देश के विभिन्न मुद्दों पर बातें। इन तीन मुख्य किरदारों के आस-पास ही कहानी घूमती है। साथी किरदार बीच-बीच में आकर अपना-अपना काम ठीक से करके चले जाते हैं। खैर उन तीनों में से सिर्फ एक ही सफल हो पाता है वह भी किस तरह उसका कारण आपको सीरीज के अंत में पता चलता है।
सीरीज की कहानी सीधी और सरल सी है। बस उसे जब ये किरदार जीने लगते हैं तो वह आपके साथ जुड़ती चली जाती है। खास करके उन लोगों को यह ज्यादा प्रभावित करेगी जो इस परीक्षा को दे चुके हैं, सफल हो चुके हैं या असफल होकर निराश लौटे हैं या फिर इस ओर कदम बढ़ाना चाहते हैं। युवाओं की कहानियां आजकल जिस तरह वेब सीरीज में नशे, धर्म, सेक्स वगैरह- वगैरह के आस-पास घूमती रहती है उन स्टीरियो टाइप्स को भी तोड़ती है।
कैमरामैन अपना काम स्वाभाविक करते नजर आते हैं हालांकि ज्यादा बड़ा नहीं लेकिन एक सुधार जरूर हो सकता था कि जब अभिलाष कहता है कि वह आईएएस के भाषण की रिकॉर्डिंग सुन लेगा तो दरअसल जब आईएएस वहां भाषण दे रही होती है तो वहां रिकॉडिंग के लिए कोई कैमरा नजर नहीं आता। आपको नजर आया तो बताना। बाकी बैकग्राउंड स्कोर , सिनेमेटोग्राफी अच्छी रही काफी हद तक। बारिश वाला सीन सबसे बेहतर नजर आया जिसमें आंसू भी धूल जाते हैं और आप भी उस बारिश में अपने को भीगा हुआ महसूस करने लगते हैं। वैसे इस यूट्यूब चैनल की सामग्री भी कुछ इस तरह की ही होती है जो आपको प्रभावित करती ही है।
अभिलाश बने नवीन कस्तूरिया, गुरी बने शिवंकित सिंह परिहार जंचे लेकिन विशेष तारीफ बटोरते हैं संदीप भईया बने सन्नी हिंदुजा। सीरीज के अंत में कुंवर नारायण की किताब ‘अपने सामने’ का अंश सुनना सुकून देता है। इसके अलावा ‘धागा’ गाना आपको भावुकता में डुबोता है तो वहीं ‘दे मौका ज़िंदगी’ गाना आपको थिरकने पर मजबूर करता है।
कितना आसान होता है यदि केवल हम चलते बाकी सब रुका होता। मैंने अक्सर इस उल जुलूल दुनिया को दस सिरों से सोचने और बीस हाथों से पाने की कोशिश में अपने लिए बेहद मुश्किल बना दिया। शुरु-शुरु में तो सब यही चाहते हैं कि सबकुछ शुरु से शुरु हो लेकिन पहुंचते-पहुंचते हिम्मत हार जाते हैं। हमें कोई दिलचस्पी नहीं रहती कि वो सब कैसे समाप्त होता है। जो इतनी धूमधाम से शुरु हुआ था। ये ज्ञान देने वाली सीरीज खुद भूल जाती है कि वह सब्क्राइबर बटोरने की चाहत में इसे इतना लंबा खींच ले जाती है। इस वजह से हम कई बार उससे जल्दी से कनेक्ट नहीं हो पाते। बेहतर होता इसे एक साथ रिलीज करके दर्शकों का इंतजार खत्म किया जाता। आपने इसे नहीं देखा है तो देखिए अब तो एक साथ देखने में जो मजा आएगा उससे इस सीरीज का स्वाद और रंग भी आपकी जुबान पर उतना ही गहरा चढ़ जाएगा। साथ ही आप अपनी जिंदगी को भी शायद एक मौका और देना चाहेंगे।
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