युगांतर की घोषणा करती ‘रामयुग’
{Featured in IMDb Critics Reviews}
निर्देशक – कुणाल कोहली
स्टार कास्ट – दिगंथ मनचले, अक्षय डोगरा, ऐश्वर्या ओझा, कबीर सिंह दोहन, विवान भाटेना , अनूप सोनी, नवदीप पल्लपुलु, अनीश जॉन कोकेन, शिशिर मोहन शर्मा, दिलीप ताहिल, जतिन शैल, टिस्का चोपड़ा, सुपर्णा मारवाह आदि
अपनी रेटिंग – 3 स्टार
भारत देश में जब जब धर्म की हानि हुई किसी न किसी व्यक्ति ने युगपुरुष के रूप में जन्म लिया। ऐसे ही एक युगपुरुष हुए मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जिन्हें विष्णु भगवान का अवतार माना गया। सत्य और प्रकाश की खोज में निरन्तर लगे हुए भारत में जब कभी तामसिक या राक्षसी प्रवृतियों ने अधर्म के रास्ते अपना प्रभुत्व स्थापित करने की कोशिश की तो उन्हें धर्म का सहारा लेकर अहिंसा के सिद्धांत को जीवित रखने के लिए हिंसा का मार्ग भी अपनाना पड़ा।
भगवान राम की कथा से आज पूरी दुनिया वाकिफ है। उसे बार बार कहने की आवश्यकता फिर क्यों पड़ती है। तो जवाब मिलता है वही अधर्म को बढ़ते देख या धर्म के सहारे शांति, मानवता, सौहार्द का संदेश देना। एमएक्स प्लयेर पर आई रामयुग उन्हीं राम की कहानी को कहती है लेकिन संक्षिप्त और एक अलग नजरिए से। सीरीज का आरम्भ होता है राम द्वारा शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाए जाने से उसके बाद वेब सीरीज बीच-बीच में पीछे भी जाती है ताकि आगे जो हो रही घटनाएं हैं उनका संक्षिप्त और मूल दर्शकों को पता चल सके। इसके बाद राम के राजतिलक की घोषणा और फिर उन्हें वनवास मिलना, दशरथ का देवलोक गमन और भरत द्वारा अपने अग्रज भ्राता राम की चरण पादुकाओं को रखकर राज्य चलाना। राम द्वारा वनवास के समय राक्षसों का विनाश करना। सीता हरण होना और फिर एक एक करके रावण के सभी सैनिक और स्वयं उसका मारा जाना। बस इतनी सी कहानी है जो इन आठ एपिसोड में दिखाई गई है।
हर युग में पाप और पुण्य , अच्छाई और बुराई का युद्ध हुआ है। लेकिन सवाल यह उठता है कि किसकी दृष्टि से आप पाप को पाप कह रहे हैं। क्या एक आदमी की सोच दूसरे आदमी की बुराई हो सकती है कतई नहीं। और अगर हां तो फिर सोच किसकी गलत है। रावण एक व्यक्ति नहीं विचार है। जो आज भी हमारे आस पास भटकता दिखाई दे जाता है। जब सीरीज के अंत में रावण कहता है कि राम तुमने मुझे तो मार दिया लेकिन एक समय आएगा जब स्त्री अपने युग के रावणों से सुरक्षित नहीं रहेगी, कोई मर्यादा नहीं बचेगी। लोग स्वर्ग,नरक का लोभ दिखाकर शोषण करेंगे। तो यह एक नई दृष्टि भी रावण के माध्यम से सीरीज हमें प्रदान करती है और आज की वास्तविकता से भी रूबरू करवाती है।
इसके अलावा जब राम रावण का युद्ध हुआ होता है तब राम को विभीषण कहते हैं कि आपको यदि रावण को परास्त करना है तो उसी की तरह सोचना पड़ेगा। ठीक ऐसा ही रावण का पुत्र भी अपने पिता दशानन से कहता है। तब राम और रावण दोनों एक जैसी बातें कहते हैं किन्तु अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम किस ओर जाते हैं। राम कहते हैं – रावण की तरह सोचूंगा तो मैं भी रावण हो जाऊँगा। रावण की कुटिलता, रावण की महत्वकांक्षा, रावण की दुष्टता, रावण की रक्त पिपासा, रावण का अत्याचार, रावण का दम्भ, रावण का छल-कपट, रावण का अधर्म सबकुछ मुझे आत्मसात करना पड़ेगा। फिर मैं सीता के योग्य नहीं रहूँगा।
वहीं रावण कहता है – राम का रूप लूँगा तो मुझे राम की तरह सोचना भी पड़ेगा और अगर राम की तरह सोचूंगा तो मैं भी राम हो जाऊँगा। राम के आदर्श, राम के मूल्य, राम का शील, राम की क्षमा, राम का न्याय,राम की पवित्रता, राम का अनुशासन, राम की सेवा, राम की सच्चाई। ये सबकुछ मुझे आत्मसात करना पड़ेगा फिर मैं सीता से झूठ कैसे बोलूँगा कि मैं ही राम हूँ।
सीता को पाने के लिए सबकुछ करने वाला रावण मात्र राम के विचार भी अपने भीतर लाने से डरता है इसका मतलब कहीं न कहीं उसे भी लगता है कि राम सही व्यक्ति है और असल मायने में मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। हालांकि तर्क के आधार पर कई बार इस वेब सीरीज ही महीन अपितु सम्पूर्ण रामायण में बहुधा रावण भी सही प्रतीत होता है। अपनी बहन की रक्षा करने का वचन आज के समय में कौन निभा रहा है। भले ही हम न राम न बन पाए लेकिन क्या हम सही मायने में रावण भी बम पाए हैं। अगर हम राम नहीं बन सकते तो कम से कम रावण के इस गुण को ही अगर आत्मसात कर लें तो बहुत हद तक इस पृथ्वी पर पुनः राम युग लाया जा सकता है।
अब विशेष क्या है इसे क्यों देखा जाए तो यह इसलिए कि यह आपको कई जगह तर्क के साथ-साथ धर्म का पाठ तो पढ़ाती ही है साथ ही इस समय जो महामारी दुनियाभर में फैली हुई है उस कष्टों की घड़ी में जब हर कोई किसी न किसी रूप में अपने ईश्वर को याद कर रहा है तो ऐसे में यह वेब सीरीज आपकी आस्थाओं को और दृढ़ करती है। हालांकि इसके निर्देशन की बात करें तो कई जगह निर्देशन के मामले में निर्देशक कुणाल कोहली के हाथों से रेत की भांति फिसलती भी नजर आती है। वीएफएक्स का अतिशयता से इस्तेमाल करना इसकी कहानी पर असर तो नहीं डालता लेकिन इतनी सुंदर कहानी होने के बावजूद एक कृत्रिमता जरूर पेश करता है।
अभिनय के मामले में राम बने दिगंथ मनचले , लक्ष्मण बने अक्षय डोगरा, कैकेयी बनी टिस्का चोपड़ा, मंदोदरी बनी ममता वर्मा ही ज्यादा असरदार अभिनय करते नजर आते हैं। राम के रूप में दिगंथ पूरी सीरीज में छाए रहे कहा जाए तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। राम के हर पल की मनःस्थिति को उन्होंने पर्दे पर भरपूर जिया है। उनके भीतर एक प्यास भी नजर आती है अभिनय की। गीत-संगीत प्रभावी है कुछ जगह छिट पुट अंश में यह जरूर निराश भी करता है, फीका सा लगता है। लेकिन जब कहानी दमदार हो तो फिर इन सबको नजर अंदाज किया जा सकता है। वैसे भी हर धर्म की अपनी एक कहानी है। हर धर्म में अच्छाई बुराई का भेद बताया गया है। बेहतर कहानी होने के बावजूद फ़िल्म और वेब सीरीज के नजरिए से यह कुछ हद तक कमजोर नजर आती है। स्क्रिप्ट में, एडिटिंग में तथा सहायक कलाकारों के अभिनय में कमजोरी होने के बावजूद यह कहानी आपको छूती है।
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