साहित्य

हिन्दी आख़िर क्यों? : संवाद की समरूपता में निहित है राष्ट्र की प्रगति

 

भाषा किसी दो सजीव में संवाद स्थापित करने का माध्यम है। जीव-जन्तु, पशु-पक्षियों और मनुष्य के अस्तित्व से ही संवाद का आरम्भ माना जाता है। प्रत्येक सजीव अपनी प्रजाति से किसी ने किसी भाषा में संवाद करते हैं। कोयल की कुहुक से लेकर मनुष्य की बोली तक संवाद की सजीवता ही उसके अस्तित्व को बनाए रखती है। मनुष्यता पर संवाद का सीधा असर देश, काल और परिस्थिति के साथ-साथ मातृकुल परिवेश पर निर्भर करता है। प्रत्येक राष्ट्र में संवाद के लिए अपनी बोली, अपनी भाषा और अपना अस्तित्व है। भारत भी उन्हीं देशों की तरह अपनी भाषा और बोली पर निर्भर है। भारत का इतिहास इस बात की सुन्दर गवाही देता है कि हमारे यहाँ विभिन्न भूभागों पर विभिन्न नेतृत्वकर्ताओं का साम्राज्य रहा है।

एक देश के अंदर सैंकड़ो राज्य और राजा राज करते थे, और इसी कारण से वहाँ का समाज अपने राजा और राज के अनुसार रहना-खाना, बोलना-चलना करते थे। इसीलिए स्वाधीनता के बाद भी भारत बहुभाषीय राष्ट्र है, क्योंकि विभिन्न रियासतों को मिलकर एक राष्ट्र की संकल्पना को तैयार कर भारत के तात्कालिक नेतृत्वकर्ताओं ने एक गणतंत्र की स्थापना की है। किन्तु इसी के साथ, आज़ादी के तराने गाने और उसे अनुपालन करने वालों ने अपनी धरती-अपनी भाषा की प्रस्तावना भी आज़ादी के बाद बनाए जाने वाले संविधान में भी रखी थी।

जिस राष्ट्र इंग्लैंड ने भारत पर वर्षों तक राज किया, उसके संविधान से प्रेरणा प्राप्त करके भारतीय संविधान की अंगरचना करने वाले संविधान निर्माताओं ने भी तात्कालिक स्थितियों के मद्देनज़र, जिसमें विभिन्न रियासतों को एकीकृत कर बनने वाले राष्ट्र की एक भाषा होने की समस्या को भी समझते हुए कुछ समय प्रदान कर एक देश – एक भाषा की परिकल्पना को रखा था। उसके बाद परिस्थितियों में बदलवा आया और एक भाषा की स्थापना की आवश्यकता इसलिए भी महसूस होने लगी क्योंकि राष्ट्र की आंतरिक संवाद की क्षमताएँ भी प्रभावित होने लग गयीं।

भारत में व्याप्त विभिन्न भाषाओं और बोलियों के बीच हिन्दी भाषा ही एकमात्र ऐसी भाषा रही जिसका प्रभाव भारत के अधिकांश राज्यों और भूभागों पर निर्विवाद रूप से उपस्थित रहा है और इसी प्रभाव के चलते हिन्दी की स्वीकार्यता आज तक हो रही है। आज भी जब वर्ष 2011 की जनगणना को आधार मानकर भाषा की स्थिति का अवलोकन करें तो उस बात की पुष्टि होती है कि हिन्दी भारत में सबसे ज़्यादा बोली-समझी और कार्यव्यवहार में प्रयुक्त भाषा है।

भारत को मुख्यतः छह क्षेत्रों में बाँटा जाता है, पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, उत्तरपूर्व  और मध्य क्षेत्र। इन छह में चार क्षेत्रों में तो हिन्दी का गहरा प्रभाव है। दक्षिण और उत्तर पूर्व में हिन्दी भाषा समझी तो जाती है किन्तु क्षेत्रीय भाषाओं का प्रभाव अत्यधिक होने से भाषाई सामांजस्य्ता का अभाव है। किन्तु जब बात समरसता और सार्वभौमिक प्रगति की आती है तो कई कारणों को नज़रअंदाज़ करते हुए एक रूपता की स्थापना की जाती है। भारत की एक प्रतिनिधि भाषा का होना राष्ट्रव्यापी कार्यों और शासकीय क्रिया कलापों में भी समरूपता के लिए नितांत आवश्यक है। भारत का सुगठित वर्तमान इस बात का पुरज़ोर समर्थन करता है कि हिन्दी भाषा भारत का परिचय है।

इतिहासों के कालखण्डों से हमने राष्ट्र के वैभव का अध्ययन तो कर लिया पर संवैधानिक रूप से भाषाई एकरूपता के सहारे अन्य बोलियों और भाषाओं के अस्तित्व को भी मातृभाषा के रूप में स्वीकार्यता देते हुए राष्ट्रीय स्तर पर एकसमानता होगी। दक्षिण का व्यक्ति उत्तर या मध्यभारत से कार्य व्यव्हार करना चाहता है तो उसे उत्तर की भाषा सीखनी होगी और इसी तरह मध्य के व्यक्ति को दक्षिण के साथ कार्य-व्यापार करना है तो उसे दक्षिण की भाषा सीखनी होगी जोकि प्रायोगिक रूप से सफल प्रयोग नहीं है।

सम्भवतः इसी कारण से दक्षिण भारत पर्यटन और सम्पदा संपन्न राज्य होने के बावजूद भी अधिक प्रगतिशील राज्य नहीं बन पाया क्योंकि संवाद की कमी और भाषा असमानता दक्षिण की प्रगति में बाधक भी है। इसी तरह, भारत के अन्य राज्यों की स्थिति का आँकलन करें तो यह बात स्पष्ट होती है कि जिन राज्यों में भाषा और संवाद सरलतापूर्वक होता हैं अथवा संवाद स्थापित करने में जटिलता नहीं है, उन राज्यों की प्रगति की गति तीव्र है।

भाषाई समरूपता के मानक इस बात का समर्थन करते हैं कि प्रत्येक राष्ट्र की एक भाषा होती है, जो सभी के बीच सामंजस्य बैठा कर भाषाई एकरूपता स्थापित करती है और यही राष्ट्र की प्रगति का आधार है। विषय विवेचन की गहराई में जाएँ तो इस तथ्य से भी इंकार किया जा सकता कि विभिन्न भाषाओं-बोलियों के अस्तित्व से संस्कृति में विभिन्नता बनी रहती है, जो संस्कृति के वृहद स्वरूप का परिचय करवाती है। किन्तु इसी तथ्य के आलोक में इस बात को भी स्वीकारना होगा कि एक देश में एक राष्ट्र भाषा के होने से संवाद का आधार स्पष्ट और सुनियोजित हो जाता है।

वर्तमान कालखण्ड में भारत विभिन्न समस्याओं से घिरा हुआ राष्ट्र तो बन रहा है किन्तु उन्हीं समस्याओं के बीच एक उजास इस बात का भी है कि विपरीत परिस्थितियों में भी हम राष्ट्रवासी एक जुट हैं। इस एकजुटता का मूलभूत कारण हमारी सांस्कृतिक विरासत है। यजुर्वेद के नौवें अध्याय की 23 वीं कंडिका में लिखा है, ‘वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः’। इसका अर्थ है, ‘हम पुरोहित राष्ट्र को जीवंत और जाग्रत बनाए रखेंगे’, अर्थात जो इस पुर का हित करता है।

प्राचीन भारत में ऐसे व्यक्तियों को पुरोहित कहते थे, जो राष्ट्र का दूरगामी हित समझकर उसकी प्राप्ति की व्यवस्था करते थे। पुरोहित में चिन्तक और साधक दोनों के गुण होते हैं, जो सही परामर्श दे सकें। यजुर्वेद में लोक व्यवहार से पूर्ण उपदेश वर्णित किए गए हैं। इसी से स्पष्ट होता है कि भारत की संस्कृति दूरगामी हितार्थ चिंतन को पोषित और पल्लवित करने वाली संस्कृति है। हमारे धर्मग्रंथों में लोकव्यवहार को बल दिया है, उसी कारण से हम विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता और संस्कृति के प्रतिनिधि माने जाते हैं।

राष्ट्र की समरसता और एक समानता का मूल आधार हमारी भाषाई एकरूपता को भी माना जाता है और इस आलोक में देश के वर्तमान गृहमन्त्री अमित शाह ने ‘एक राष्ट्र-एक भाषा’ की अवधारणा को रखा था। देश के विभिन्न भूभागों में एक भाषा की स्वीकार्यता राष्ट्रभाषा के रूप में होने से लोकव्यवहार में सहजता और स्पष्टता आयेगी और शासकीय रूप से भी कर्त्तव्य निर्वहन आसान होगा।

भारत में आधी से अधिक आबादी हिन्दी को अपनी मातृभाषा अथवा प्रथम भाषा के तौर पर स्वीकार करती है। एक और तथ्य यह भी है कि लगभग पूरी आबादी हिन्दी बोलने, सुनने और समझने में सहज है। इसी को आधार मानकर यदि शासकीय रूप से भी जनभाषा अथवा संपर्क भाषा के रूप में हिन्दी को प्रामाणिक कर दिया जाए तो भारत में व्याप्त भाषाई समस्याओं का सरल हल निकल जाएगा।

जनभाषा के अस्तित्व को अपनाते हुए राष्ट्र की वैश्विक प्रगति भी नितांत अनिवार्य आवश्यकता है। इसके लिए 1964 से 1969 तक दौलत सिंह कोठारी आयोग की अनुशंसाओं का अनुपालन आवश्यक है जिसमें त्रिभाषा फॉर्मूला महत्त्वपूर्ण है। स्थानीय यानी क्षेत्रीय भाषा, हिन्दी और अंग्रेज़ी की अनिवार्यता को कोठारी आयोग महत्त्वपूर्ण मानता है, इस फार्मूले में थोड़ा-सा संशोधन आवश्यक है जोकि मातृभाषा, राष्ट्रभाषा हिन्दी और अंतर्राष्ट्रीय भाषा जिसमें अंग्रेज़ी, फ़्रेंच या अन्य विदेशी भाषा, जिसका प्रभाव वैश्विक रूप से अधिक हो उस भाषा को अनिवार्यतः पढ़ाया जाना चाहिए।

इसी आधार पर राष्ट्र की उत्तरोत्तर उन्नति तय हो सकती है। भाषा का अपना स्थान है, जो संवाद और समन्वयक दोनों की भूमिका को बख़ूबी निभाना जानती है। इसीलिए राष्ट्रीयता की परिचायक हिन्दी भाषा को भारत की मुख्य संपर्क भाषा अथवा राष्ट्र भाषा के रूप में मान्यता प्रदान करके देश में एकरूपता का प्रसार किया जा सकता है। हिन्दी का शब्दकोश वैसे समृद्ध है किन्तु इसमें भी अन्य भाषा के वे शब्द जो अब आम जनमानस के मस्तिष्क में उसी तरह घुल गए हैं जैसे पानी में नमक अथवा शक्कर, उन शब्दों को भी हिन्दी में सम्मिलित करना चाहिए।


यह भी पढ़ें – हिन्दी लेखन में पञ्चामक्षर के अर्धस्वरूप की उपेक्षा


भाषा किसी राष्ट्र का प्रतिनिधित्व तब कर सकती है, जब प्रत्येक भारतवासी उस भाषा को सहजता से अपनाए और उसे अपने सामान्य जनजीवन में पर्याप्त स्थान प्रदान करें। हिन्दी इन्हीं गुणों से युक्त है और अधिकांश भारतवासी हिन्दी को आज भी अपनी मातृभाषा अथवा प्रथम भाषा रूप में स्वीकार करता है।

हिन्दी भाषा का वैज्ञानिक आधार है, सामाजिक ताने-बाने में रची बसी हुई है। वर्तमान में न्यायिक और शासकीय कार्यालयीन हिन्दी और जन प्रचलित हिन्दी के अंतर को ख़त्म कर दिया जाए तो निश्चित तौर पर हिन्दी का शब्द सामर्थ्य अन्य भाषाओं की अपेक्षाकृत सरल और सहज है। इसी आधार पर भारत की जनभाषा के रूप में यानी राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी को स्थापित कर भारत देश की प्रतिनिधि भाषा के रूप में अपनाना होगा और इसके साथ ही, भारत की भाषा समस्या का हल भी निकल जाएगा। सभी प्रांतों की अपनी बोलियों और भाषाओं को प्रथम मातृभाषा के रूप में स्थान मिले, अनुवादकों और दुभाषियों की नियुक्ति से शासकीय कार्यों में भाषा के कारण आने वाली बाधाओं से भी निजात मिलेगी। हिन्दी वैश्विक रूप से भी बहुप्रचलित भाषा है और यही भाषा भारत की भाग्य विधाता भी है।

.

कमेंट बॉक्स में इस लेख पर आप राय अवश्य दें। आप हमारे महत्वपूर्ण पाठक हैं। आप की राय हमारे लिए मायने रखती है। आप शेयर करेंगे तो हमें अच्छा लगेगा।
Show More

अर्पण जैन 'अविचल'

लेखक पत्रकार, स्तंभकार एवं राजनैतिक विश्लेषक हैं एवं मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। सम्पर्क +919893877455, arpan455@gmail.com
5 1 vote
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x