वरवर राव : कविता से क्रान्ति
आजाद भारत के असली सितारे – 59
मुंशी प्रेमचंद ने साहित्य को राजनीति के आगे मशाल दिखाती हुई चलने वाली सचाई कहा है और लिखा है, कि हमारी कसौटी पर वही साहित्य खरा उतरेगा “जो हममें गति और बेचैनी पैदा करे, सुलाए नहीं; क्योंकि अब और ज्यादा सोना मृत्यु का लक्षण है।“
और फैज अहमद फैज के मशहूर नज्म की पंक्तियाँ हैं,
“यूँही हमेशा उलझती रही है जुल्म से खल्क/ न उनकी रस्म नई है न अपनी रीत नई।
यूँही हमेशा खिलाए हैं हमने आग में फूल/ न उनकी हार नई है न अपनी जीत नई।“
जुल्म के खिलाफ लड़ने वालों में साहित्य की दुनिया का हमारे समय का सबसे बड़ा नाम है वरवर राव ( जन्म-03.12.1940)। वरवर राव की कविताएं ही नहीं, उनका पूरा जीवन ही प्रेमचंद के आदर्श पर पूरी तरह खरा उतरता है। उनका समूचा जीवन ही संघर्ष का पर्याय है। वे महान कवि हैं, किन्तु उन्होंने पाठकों को सुकून पहुँचाने और सुलाने के लिए कविताएं नहीं लिखी हैं अपितु सोये हुए को जगाने के लिए और उन्हें जुल्म के खिलाफ लामबंद होने के लिए लिखी हैं। समाज को बदलने के लिए साहित्य को वे एक हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं। यही कारण है कि उनके जीवन का बड़ा हिस्सा जेल में रहते हुए कटा है। सरकारें बदलती रही हैं किन्तु उनके प्रति सभी सरकारों का रवैया एक जैसा ही रहा है।
वरवर राव का जन्म आंध्र प्रदेश के वारंगल जिले के चिन्ना पेंड्याला गाँव में एक तेलुगु ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने अपनी स्कूली पढ़ाई तेलुगु माध्यम से की थी। बाद में उन्होंने उस्मानिया विश्वविद्यालय से तेलुगु साहित्य में एम.ए. किया और तेलुगु कविता में शोध के लिए भी पंजीकरण करा लिया किन्तु बीच में ही उन्हें एक प्राइवेट कॉलेज में शिक्षक की नौकरी मिल गई। उसके बाद से विभिन्न कालेजों में लगभग चालीस साल तक उन्होंने अध्यापन कार्य किया।
वरवर राव ने 17 साल की उम्र से ही कविता लिखना शुरू कर दिया था। अपने छात्र जीवन में ही वरवर राव तेलुगु के प्रसिद्ध कवि श्रीश्री ( श्रीरंगम श्रीनिवास राव ) के संपर्क में आ गए। उनके ऊपर मार्क्सवादी दर्शन का गहरा प्रभाव पड़ा और उनका झुकाव प्रगतिशील साहित्य की ओर हो गया।
आंध्र प्रदेश में सातवाँ दशक काफी उथल पुथल का था। उन दिनों श्रीकाकुलम सशस्त्र किसान संघर्ष का आन्दोलन चल रहा था और उसी के साथ 1969 में तेलंगाना राज्य आन्दोलन भी शुरू हो गया। वरवर राव इन जनान्दोलनों से अपने को भला कैसे अलग रख सकते थे ?
इसी वर्ष वारंगल में ‘तिरुगुबातु कवुलु’ ( विद्रोही कवियों का संघ) का गठन हुआ जिसके गठन में वरवर राव की प्रमुख भूमिका थी। इसके एक साल बाद ही 1970 में ‘विरसम’ (विप्लव रचियतालु संघम अर्थात क्रान्तिकारी लेखक संघ) का गठन हुआ जिसके निर्माण में तिरुगुबातु कवुलु के सदस्यों के साथ वरवर राव ने मुख्य भूमिका निभायी। इसके बाद साहित्य, संस्कृति, दर्शन और राजनीति ही उनकी दुनिया हो गई। ‘विरसम’ के प्रथम अध्यक्ष तेलुगु के महान क्रन्तिकारी कवि श्रीश्री ही थे। इसके बाद ‘विरसम’ और वरवर राव ने तेलुगु साहित्य को एक नई ऊँचाई दी। कला और साहित्य के प्रति वरवर राव और उनके साथियों की वर्गीय दृष्टि ने जनान्दोलनों के साथ साहित्य के व्यापक सरोकार को अमली जामा पहनाया। उनकी प्रतिष्ठा एक क्रान्तिकारी कवि और आलोचक के रूप में होने लगी। वरवर राव ने 1966 में ही ‘सृजन’ नाम से त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका का संपादन शुरू किया था जो बाद में मासिक हो गया। इसका प्रकाशन 1992 तक सफलतापूर्वक होता रहा।
अपने लेखन से समाज में हिंसा भड़काने का आरोप लगाकर वरवर राव को आंध्र प्रदेश की सरकार ने सबसे पहले अक्टूबर 1973 में मीसा ( मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट ) के अंतर्गत गिरफ्तार किया। आंध्र प्रदेश के उच्च न्यायालय ने डेढ़ माह बाद उन्हें निर्दोष बताते हुए रिहा कर दिया। न्यायालय ने अपने फैसले में सरकार को निर्देश भी दिया कि किसी भी लेखक को तबतक न गिरफ्तार किया जाय जबतक कि उसके लेखन के प्रभाव के नाते तत्काल किसी तरह की हिंसा की घटना न हुई हो।
इंदिरा गाँधी द्वारा आपातकाल लगाने के समय 26 जून 1975 को वरवर राव फिर से मीसा के अंतर्गत गिरफ्तार कर लिए गए। वे ऐसे बहुत थोड़े से बंदियों में से थे जिनसे उनके संबंधियों के मिलने पर भी प्रतिबंध था। उस दौरान उनके पत्रों की भी विधिवत जाँच होती थी। जब आपातकाल हटा तो लगभग सभी बंदी रिहा कर दिए गए किन्तु वरवर राव रिहा होने के बाद बाहर आते ही, जेल के दरवाजे पर ही, दुबारा 1977 में मीसा के अंतर्गत गिरफ्तार कर लिए गए। उनकी रिहाई तभी हुई जब चुनाव के बाद जनता पार्टी की नयी सरकार बनी और उसने उस कानून को ही निरस्त कर दिया।
आपातकाल के बाद उत्तरी तेलंगाना में फैले अनेक जनान्दोलनों में वरवर राव ने जनतांत्रिक तरीके से सहयोग किया और कई बार नेतृत्वकारी दस्ते की भूमिका का निर्वाह किया। उन्हें इसके लिए मानसिक और शारीरिक तौर पर प्रताड़ित किया गया। उस क्षेत्र के भूस्वामियों और असामाजिक तत्वों द्वारा वरवर राव के ऊपर अनेक बार जानलेवा हमले हुए।
वरवर राव ने 1985 में विरसम तथा अन्य जनसंगठनों के साथियों के साथ देश भर की यात्रा की। इसका उद्देश्य था देश की जनता को आन्दोलन कर रहे लोगों की माँगों के बारे में बताना। अपने साथियों के साथ वे महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, बिहार, बंगाल, दिल्ली से तमिलनाडु होते हुए आन्ध्र प्रदेश लौटे। इस बीच उनके एक अत्यंत प्रिय सहयोगी डॉ. रामनाथम की हत्या कर दी गई। कई बार पुलिस ने उनके घर पर भी छापा मारा था। उस दौर में वरवर राव का वारंगल में निकलना खतरे से खाली नहीं था। साथियों के सुझाव पर वरवर राव ने सिकंदराबाद षड्यंत्र केस में जमानत की अर्जी नहीं दी और 26 दिसंबर 1985 को उन्हें जेल भेज दिया गया। सिकंदराबाद षड्यंत्र केस में लगभग 50 लोगों पर आंध्र प्रदेश सरकार को उखाड़ फेंकने का आरोप था। इसके एक साल बाद उनपर रामनगर षड्यंत्र केस भी लगाया गया। इस केस में उनपर आरोप था कि वे आंध्र प्रदेश के एक पुलिस कांस्टेबिल और एक पुलिस इंस्पेक्टर की हत्या की योजना में हुई मीटिंग में शामिल थे। 17 साल बाद 2003 में जाकर वरवर राव इन सभी केसों से बरी हुए। इन्हीं दिनों उनके महत्वपूर्ण काव्य-संग्रह ‘भविष्यातु चित्रपटम’ पर भी राज्य सरकार ने पाबंदी लगा दी थी।
इस दौरान 2001 में तेलुगु देशम पार्टी की सरकार ने तथा 2004 में कांग्रेस की सरकार ने वरवर राव को पीपुल्स वार ग्रुप तथा अन्य जनसंगठनों से शान्ति वार्ता के लिए मध्यस्थ बनाया। वरवर राव ने निष्ठापूर्वक इस शान्ति वार्ता में मध्यस्थ की भूमिका का निर्वाह भी किया किन्तु दोनो बार विभिन्न कारणों से शान्ति वार्ता पूरी तरह सफल नहीं हो सकी। इसके बाद 18 अगस्त 2005 को पीपुल्स वार ग्रुप तथा दूसरे जनसंगठनों सहित ‘विरसम’ पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया। इतना ही नहीं, ‘विरसम’ पर प्रतिबंध लगने के 24 घंटे के भीतर ही वरवर राव और कल्यान राव को 19 अगस्त 2005 को आंध्र प्रदेश पब्लिक सेक्योरिटी एक्ट के अंतर्गत गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें हैदराबाद चंचलगुडा सेन्ट्रल जेल में भेज दिया गया। उसके बाद उनपर 7 नए केस लगा दिए गए। अंतत: 31 मार्च 2006 को वरवर राव के ऊपर से पब्लिक सेक्योरिटी एक्ट का केस हटा और वे रिहा हुए।
सिकंदराबाद षड्यंत्र केस से बरी होने के बाद वरवर राव हैदराबाद में रहने लगे थे। महाराष्ट्र में पुणे से सटे भीमा कोरेगाँव में वर्ष 2018 की शुरुआत में भड़की हिंसा के मामले में पुलिस ने देश के विभिन्न हिस्सों में छापेमारी की। पुलिस ने इस दौरान माओवादियों से संबंध रखने के शक में और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश में कथित भागीदारी के लिए कई अन्य बुद्धिजीवियों सहित वरवर राव को 17 नवंबर 2018 को हैदराबाद स्थित उनके आवास से गिरफ्तार कर लिया। हालांकि, राव ने मीडिया से कहा था कि उनका उस पत्र से कोई लेना देना नहीं है जिसमें प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की साजिश का उल्लेख है।
वरवर राव के अबतक पंद्रह काव्य संकलन प्रकाशित हो चुके हैं। जिनके नाम हैं, ‘चालि नेगालु’ ( शिविर की आग,1968), ‘जीवनाड़ि’( नब्ज,1977), ’वुरेगिम्पु’ ( जुलूस, 1973 )’स्वेच्छा’ ( स्वाधीनता,1978), ‘समुद्रम’ ( समुद्र,1983), ’भविष्यातु चित्रपटम’ ( भविष्य का चित्रपट,1986), ‘मुक्तकान्तम’ ( मुक्त कंठ,1990), ’आ रोजुलु’ ( वे दिन,1998), ‘उन्नाडेडो उन्नतु’ ( जैसा यह है, 2000), ‘दग्धमौतुन्ना बगदाद’ ( जलता हुआ बगदाद, 2003), ’मौनम ओका युद्धनेरम’ ( चुप्पी एक युद्ध अपराध है,2003 ),’ अंतसूत्रम’ ( अंत:प्रवाह, 2006 ), ’तेलंगाना वीरगाथा’ ( तेलंगाना वीरगाथा, 2007), ‘पालपित्ता पाता’ (पालपित्ता के गीत,2007) और ‘बीजभूमि’ ( बीजभूमि,2014)।
वरवर राव की कविताएं भारत की लगभग सभी प्रमुख भाषाओं में अनूदित हो चुकी हैं। हिन्दी, मलयालम, कन्नड़ और बांग्ला पत्र- पत्रिकाओं में उनकी कविताएं अनूदित होकर प्रकाशित होती रहती हैं। ‘तेलंगाना मुक्ति संघर्ष और तेलुगु उपन्यास – साहित्य और समाज के अंतर्संबंध का अध्ययन’ शीर्षक उनका शोधकार्य तेलुगु मार्क्सवादी साहित्यालोचना के क्षेत्र में मील का पत्थर माना जाता है। साहित्य की आलोचना पर भी उनकी आधा दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हैं और उनकी पत्रिका ‘सृजन’ के संपादकीयों का भी एक संकलन प्रकाशित हो चुका है। जेल में रहते हुए उन्होंने कीनिया के प्रख्यात लेखक न्गुगी वा थ्योंगो की जेल डायरी ‘डीटेन्ड’ तथा उनके उपन्यास ‘डेविल आन द क्रास’, तथा अलेक्स हेली के ‘रूट्स’ का तेलुगु में अनुवाद किया। उन्होंने अपनी भी जेल डायरी ‘सहचरालु’ (1990) नाम से लिखी है जो अंग्रेजी में भी ‘कैप्टिव इमैजिनेशन’ नाम से पैंग्विन प्रकाशन से प्रकाशित है। नवें दशक में वरवर राव जेल में रहते हुए अंग्रेजी अखबार ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के तत्कालीन संपादक अरुण शौरी के कहने पर ‘आंध्र प्रभा’ के लिए कॉलम लिखे जो ‘इंडियन एक्सप्रेस’ का तेलुगु संस्करण था। तेलुगु से अनूदित कर इसे अंग्रेजी संस्करण में भी छापा जाता था। तेलुगु में उनकी संपूर्ण रचनावली प्रकाशित हो चुकी है।
वस्तुतः वरवर राव आधुनिक तेलुगु जनवादी कविता के प्रतिनिधि कवि हैं। वे जनता के अधिकारों के लिए लड़ने वाले और उन्हें राह दिखाने वाले साहित्यकार हैं। वे जब देखते हैं कि आज़ादी के बाद देश के संविधान में आम आदमी को जो अधिकार प्राप्त हैं वे सिर्फ कागजी हैं, देश भर में अधिकारों के लिए जगह जगह किसान आंदोलन, छात्र आंदोलन, जल-जंगल-जमीन के लिए आदिवासी आंदोलन, स्त्री मुक्ति आंदोलन आदि हो रहे हैं और उनका दमन किया जा रहा है तो वरवर का कवि मन आक्रोश से भर उठता है।
वरवर राव का मानना है कि कोई भी देश तब तक पूर्ण रूप से आजाद नहीं हो सकता जब तक वहाँ हिंसा, शोषण, अत्याचार, भ्रष्टाचार एवं वर्ग-संघर्ष जैसी स्थितियाँ मौजूद हैं। आज़ादी के बाद नेताओं व पूँजीपतियों के आपसी गँठजोड़ की वजह से हमारे देश में भ्रष्टाचार, धर्मान्धता, भुखमरी, बेरोजगारी और गरीबों की लूट बढ़ती ही चली गयी। वरवर राव आजादी के मूल्यों की खोज में लगे रहे। वरवर राव ने देखा कि जिस आजादी को पाने के लिए किसानों ने देश के अन्य वर्गों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आजादी की लड़ाई में अपना खून बहाया, उन्हीं किसानों की जमीन को आज़ादी के बाद कभी विकास के नाम पर तो कभी भूमि अधिग्रहण के नाम पर उनसे छीना गया। आज देश भर में दिन प्रति दिन किसानों द्वारा की जाने वाली अत्महत्याएं बढ़ती जा रही हैं।
वरवर राव किसानों के लिए सरकार द्वारा बनाई जाने वाली पंचवर्षीय योजनाओं पर व्यंग्य करते हुए उन्हें किसी कागज पर नहीं, बल्कि देश के अति दरिद्र नागरिकों की अंतडियों पर लिखे जाने की बात करते हैं।
“इतने बड़े देश की आधी जनता
की छाती पर बैठक कर रहे दस लोग
इस बार कागज पर नहीं
अति दरिद्र की अतिड़ियों पर
आयकर मंत्री लिख रहे हैं बजट।”
वरवर राव के अनुसार पूँजीवादी व्यवस्था की विकृतियाँ, सामाजिक व धार्मिक संकीर्णताएँ एवं अंधविश्वास जबतक समाज में बने रहेंगे तब तक शोषित वर्ग का उद्धार नहीं हो सकेगा। क्योंकि पूँजीवादी वर्ग कभी नहीं चाहता कि मौजूदा व्यवस्था में कोई बदलाव हो। वह अपनी अपारजेयता का भ्रम फैला कर यह साबित करने का प्रयास करता है कि वर्तमान समय में समाज का भविष्य सिर्फ उसी के हाथों में है। साम्यवाद जैसी विचारधारा की मौत के फतवे जारी कर वर्तमान अमानवीय व्यवस्था से मुक्ति की प्रत्येक संभावना को ध्वस्त किया जा रहा है। ऐसी परिस्थितियों में वरवर राव अपनी कविताओं से पूँजीवाद के द्वारा फैलाए जा रहे भ्रम को तोड़कर उन्हें बदलने की राह दिखाते हैं।
वरवर राव यथार्थ और अनुभव के कवि हैं। उन्होंने जो जीवन जिया वही अपनी कविताओं में रचा। उन्हें अभिव्यक्ति के सारे खतरे उठाने पड़े। जेल की चहारदीवारी में कैद रहना पड़ा। जनता के साथ जुड़कर, जनता की आवाज बनकर, आंदोलनों और जुलूसों में भाग लेते हुए उनकी कविताओं ने आकार ग्रहण किया है। वे सही अर्थों में जन कवि हैं।
आज की मीडिया की भूमिका बारे में एक बातचीत में उन्होंने बताया कि, “क्योंकि एक पूँजीपति ही अख़बार शुरू करता है तो वह आपको या लेखकों को ‘लोकतांत्रिक क्रिया-कलापों’ के लिए कितनी जगह देगा? वह उतनी ही जगह देगा जहाँ तक उसकी स्वार्थ-सिद्धि का अतिक्रमण न हो। ….. जैसा कि मार्क्स ने कहा है “आज काम करने के लिए रोटी, कल के मजदूर को पैदा करने के लिए भी रोटी, उससे ज्यादा क्या? और आजादी भी उतनी ही कि कल आकर वह फैक्ट्री में काम कर सके, जी सके।” उतनी ही आजादी आपको भी दे सकता है। हम यह भी देखते हैं कि एक फैक्ट्री-मालिक दूसरों, खासकर कम्युनिस्ट लोगों द्वारा ट्रेड यूनियन नहीं बनाए जाने पर खुद एक ट्रेड यूनियन बनाता है। तो जिस प्रकार एक पूँजीपति अपने लाभ का अतिक्रमण न होने तक ही आजादी देता है, वैसी ही आजादी अख़बारों में भी होती है।
वैसे तो हिन्दी के साहित्यकारों में भी जेल जाने की परंपरा बहुत पुरानी है। 1857 के विद्रोह के वक्त अजीमुल्ला खाँ की ‘पयामे आजादी’ की प्रतियाँ भी जिसके घर मिल जाती थीं उसे मौत की सजा दे दी जाती थी। “सरफरोसी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजु-ए-कातिल में है।“ गाते हुए रामप्रसाद बिस्मिल ने फाँसी का फंदा चूम लिया था। माखनलाल चतुर्वेदी के बारे में कहा जाता है कि वे बारह बार जेल गए थे और 69 बार उनके घर की तलाशी ली गई थी। उनकी प्रसिद्ध कविता ‘पुष्प की अभिलाषा’ ने न जाने कितने आजादी के दीवानों में प्रेरणा जगाई थी। राहुल सांकृत्यायन चार बार जेल गए थे और उन्होंने जेल में अपनी कई महत्वपूर्ण किताबें लिखीं। यशपाल की तो बरेली जेल में ही शादी हुई थी। यह भारतीय जेल में अपने किस्म की पहली घटना थी। सुभद्रा कुमारी चौहान 17 साल की उम्र में ही अपने नाटककार पति लक्ष्मण सिंह के साथ जेल गईं थीं। किन्तु वरवर राव इन सबसे अलग हैं क्योंकि वे आजाद भारत में जेल काट रहे हैं।
वरवर राव जेल में गंभीर रूप से बीमार थे। पूरा देश कोविड-19 से जूझ रहा था। वरवर राव मुंबई के ही तलोजा जेल में बंद थे। उन्हें रिहा करने के लिए दुनियाभर से साहित्यकारों-संस्कृतिकर्मियों और मानवाधिकारकर्ताओं की ओर से माँग की जा रही थी। विश्व के 98 बुद्धिजावियों ने कोविड-19 के समय वरवर राव और साई बाबा की रिहाई के लिए भारत के राष्ट्रपति और सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश से माँग की थी। इन बुद्धिजीवियों में नॉम चॉम्स्की, पार्थ चटर्जी, होमी के भाभा, न्गुगी वा थ्योंगो, फ्रेडरिक आर जेम्सन जैसे लोग सम्मिलित थे। भारत के विभिन्न शहरों में उनकी रिहाई के लिए प्रदर्शन हुए। न्यू सोशलिस्ट इनिशिएटिव, जनवादी लेखक संघ, जन संस्कृति मंच, दलित लेखक संघ, जन नाट्य मंच, इप्टा, प्रतिरोध का सिनेमा और संगवारी द्वारा संयुक्त रूप से रिहाई की अपील की गई। मुंबई जनवादी लेखक संघ के हिन्दी –उर्दू लेखकों की ओर से 18 जुलाई 2020 को माननीय उच्च न्यायालय, भारत सरकार और महाराष्ट्र सरकार से अपील करते हुए कहा गया कि,
“तेलुगु के प्रख्यात कवि, समाज सुधारक व संस्कृति कर्मी वरवर राव के चिन्ताजनक स्वास्थ्य को देखते हुए मानवीय आधार पर उन्हें तत्काल रिहा किया जाय। जैसा कि विदित है, उन्हें पिछले दो साल से जाँच के नाम पर जेल में बंद किया गया है। अस्सी वर्ष की आयु में वे कई शारीरिक व्याधियों से ग्रस्त हैं। मूत्राशय संबंधी बीमारी से वे लंबे अरसे से पीड़ित हैं। पिछले दो वर्षों से उनका समुचित इलाज नहीं हो पाया, अस्तु उनकी बीमारी उग्र रूप धारण कर चुकी है। इस बीच शारीरिक दूरी के नियमों की जेल अधिकारियों द्वारा अवहेलना करने की वजह से कोविड-19 के संक्रमण की वरवर राव के परिवार वालों ने पहले से ही आशंका जताई थी, जो जेल की अव्यवस्था के कारण सच साबित हुई। शुक्रवार दिनांक 17.7.2020 को जब वरवर राव की पत्नी व बेटी पवना उनसे मिलने पहुँचीं तो वे अपने विस्तर पर अचेतावस्था में मिले। पेशाब से उनका पूरा वस्त्र गीला हो चुका था। कोई भी परिचारिका या नर्स या वार्ड ब्वाय वहाँ नही था, जिस तरह से उन्हें सघन चिकित्सा व निजी देख रेख की आवश्यकता है। इस मानवीय आधार पर हम माननीय उच्चतम न्यायालय से निवेदन करते हैं कि उन्हें संविधान के अनुच्छेद 21 के जीवन के अधिकार के तहत तत्काल रिहा किया जाय।“ फिलहाल, इस समय वरवर राव सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जमानत पर रिहा होकर स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं।
वरवर राव की इस संघर्ष यात्रा में उनकी पत्नी हेमलता उनके हर कदम के साथ रहीं। अपनी जेल डायरी के हिन्दी संस्करण को उन्होंने अपनी पत्नी को इन शब्दों में समर्पित किया है, “मेरे चालीस वर्षों के संघर्षो के साथ रही सहयात्री हेमा के लिए, जो मेरी राजनीतिक विचारधारा के प्रति अडिग विश्वास लिए आज स्वयं प्रतीक्षा की पर्याय बन गई है।“
हम वरवर राव की एक कविता ‘स्टील प्लांट’ यहाँ दे रहे है। ‘प्लांट’ यानी ‘पौधा’ या ‘पेड़’ और बांग्ला में ‘गाछ’।
स्टील प्लान्ट
हमें पता है
कोई भी गाछ वटवृक्ष के नीचे बच नहीं सकता।
सुगंधित केवड़े की झाड़ियाँ
कटहल के गर्भ के तार
काजू बादाम नारियल ताड़
धान के खेतों, नहरों के पानी
रूसी कुल्पा नदी की मछलियाँ
और समुद्रों में मछुआरों के मछली मार अभियान को
तबाह करते हुए
एक इस्पाती वृक्ष स्टील प्लांट आ रहा है।
उस प्लांट की छाया में आदमी भी बच नहीं पाएंगे
झुर्रियाँ झुलाए बग़ैर
शाखाएँ-पत्तियाँ निकाले बग़ैर ही
वह घातक वृक्ष हज़ारों एकड़ में फैल जाएगा।
गरुड़ की तरह डैनों वाले
तिमिगल की तरह बुलडोजर
उस प्लांट के लिए
मकानों को ढहाने और गाँवों को खाली कराने के लिए
आगे बढ़ रहे हैं।
खै़र, तुम्हारे सामने वाली झील के पत्थर पर
सफ़ेद चूने पर लौह-लाल अक्षरों में लिखा है
“यह गाँव हमारा है, यह धरती हमारी है–
यह जगह छोड़ने की बजाय
हम यहाँ मरना पसन्द करेंगे”।
आज अपने संघर्षमय जीवन के 83 वर्ष पूरे कर चुके वरवर राव को हम जन्मदिन की बधाई देते हैं और उनके सुस्वास्थ्य व सतत सक्रियता की कामना करते हैं।