वंदे भारत होप टू सर्वाइवल
सिनेमा

जरूरी सवाल करती ‘वंदे भारत होप टू सर्वाइवल’

 

{Featured in IMDb Critics Reviews}

 

कोरोना वायरस अटैक मार्च 2020 का समय, लॉकडाउन लगे हुए दो महीने हो चले हैं। ऐसे में विदेशों में फंसे सैंकड़ों भारतीयों को लाने की कवायद शुरू की गई। जिसे नाम दिया गया ‘वंदे भारत’ अब तक उड़ रहे बोइंग विमानों को सभी देशों की सीमाओं को पार करने पर प्रतिबंध लगा हुआ था। लेकिन उन लोगों को तो लाना ही था। अब उन उड़ानों में से एयर इंडिया की उड़ान संख्या आईएक्स 1344 दुबई से उड़ी और इस हवाई जहाज को उतरना था केरल के कोझिकोड में कालीकट अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा। कोरोना के डर के चलते 184 यात्रियों और 4 हवाई कर्मियों को लेकर दो पायलटों ने उड़ान भरी।

पायलट अनुभवी जिनमें से एक कैप्टन दीपक साठे तो वायुसेना में भी सेवाएं दे चुके थे। कोझिकोड पहुंचे तो देर रात में मूसलाधार बारिश और बेहद खराब मौसम के चलते हवाई अड्डे के टेबल-टॉप पर विमान उतारने की कोशिशें असफल हुई। तीसरी कोशिश में विमान रनवे पर उतर तो गया लेकिन वह अपने नियत स्थान पर रुक न पाया और जा गिरा गीले रनवे से फिसलता हुआ पहाड़ी के किनारे से नीचे। दोनों पायलट के साथ 19 यात्री मारे गए। अब ये किसकी गलती थी?

ओ.टी.टी. प्लेटफॉर्म डिस्कवरी प्लस पर रिलीज़ हुई करीब पौने घंटे की यह ‘वंदे भारत होप टू सर्वाइवल’ डॉक्यूमेंट्री इस हवाई यात्रा में बच गए लोगों के साथ-साथ मारे गए लोगों के परिवारवालों को भी दिखाती है। साथ ही उन सवालों के जवाब तलाश करती है जो ऐसे हादसों के बाद उठते रहे हैं। इस क्षेत्र के कुछ अनुभवी लोगों से हुई बातचीत में यह डॉक्यूमेंट्री दिखाती है कि भारत में होने वाले हवाई हादसों में से 85 प्रतिशत मामलों में इंसानों की ही गलती बताई जाती है। जबकि सच कुछ और ही होता है।

यह डॉक्यूमेंट्री यह भी बताती है कि देश के व्यस्ततम हवाई अड्डों में गिने जाने वाले इस एयरपोर्ट के टेबल-टॉप रनवे के बारे में विशेषज्ञ कई बार चिंता जता चुके हैं। पर कोई कार्यवाही नहीं की गई आज तक। फिल्म ‘वंदे भारत होप टू सर्वाइवल’ में जिन्होंने ने अपनों को खोया है उनके लिए तो यह दर्दनाक है ही। बल्कि बाकी संवेदनशील इंसानों के लिए भी ग़मज़दा करने वाली बातें हैं। यह डॉक्यूमेंट्री एकदम सपाटबयानी करती है इसलिए फ़िल्म के लिहाज से उतना गहरे नहीं उतर पाती। फिर इसके ग्राफिक्स भी कुछ-कुछ ठीक नहीं लगते। बावजूद इन सबके यह जरूरी सवालों को उठाती है। जो जायज लगते हैं। इस हादसे में एक दो साल की बच्ची का भी कोई अता-पता न चला आज तक।

डॉक्यूमेंट्रीज को किसी भी रेटिंग में रखना सिनेमा के नजरिये से ठीक नहीं होगा। इसलिए इसे रेटिंग फ्री ही पढ़िए

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लेखक स्वतन्त्र आलोचक एवं फिल्म समीक्षक हैं। सम्पर्क +919166373652 tejaspoonia@gmail.com

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