प्रसंगवश

फटा नोट और ठगी की तड़प!

 

एक फटा हुआ नोट अच्छे-भले आदमी को बेईमान बना देता है। केवल बेईमान ही नहीं, धोखेबाज और ठग की श्रेणी में खड़ा कर देता है। हर वक्त दिमाग में ये ही ख्याल रहता है कि फटे हुए नोट को किस तरह दूसरों को थमाकर मुक्त होने का अहसास किया जाए, लेकिन ये सब इतना आसान नहीं होता। ईमानदारी तो ये ही कहती है कि सच को सच की तरह प्रस्तुत करके जिया जाए, लेकिन फटे हुए नोट की कहानी ऐसी किसी ईमानदारी को स्वीकार नहीं करती। धोखा देकर ही इस कहानी को मंजिल तक पहुंचाया जा सकता है।

मई का महीना और लगातार बारिश की आमद। ये वैसा ही विरोधाभास है जैसे कि जिंदगी खुद विरोधाभासों से भरी हुई है। शाम को घर लौटते वक्त उस निम्नवर्गीय सोच ने दबोच लिया कि रास्ते से कुछ लेकर चला जाए। फल खरीदने को रुका और ठीक उसी वक्त लाइट चली गई। इस बीच खुले पैसों की समस्या आन खड़ी हुई। बेचने वाले ने काफी टटोला-टटोली के बार हिसाब पूरा किया। घर आकर देखा तो पुरानी सीरीज का सौ का नोट दो टुकड़ों को जोड़कर चलने लायक बनाया गया था। बारिश के कारण इतनी हिम्मत न हुई कि दोबारा घर से निकलूं और नोट बदलकर आऊं! खुद को दिलासा दी कि चल ही जाएगा। वैसे भी नोटों में अक्सर पांव और पंख लगे होते हैं, जो धारक को दिखते नहीं हैं। जब बाजार की चमक या किसी आकस्मिक मजबूरी के वक्त अचानक निकल भागते हैं या उड़ जाते हैं, तब अहसास होता है।

इससे भी बड़ी दिलासा महान अर्थशास्त्री ग्रेशम का नियम देता है, जो कहता है कि बुरी मुद्रा अच्छी मुद्रा को प्रचलन से बाहर कर देती है। इसी उम्मीद पर नोट को रख लिया कि यहां-वहां चल ही जाएगा। और क्यों न चलेगा, इस पर भारत के रिजर्व बैंक के गर्वनर ने हस्ताक्षर किए हैं। उन्होंने धारक यानि मुझे सौ रूपये का वचन दिया है। लेकिन, जब भी फटे हुए नोट मिले, तब ये वचन एक बार नहीं, कई बार झूठा साबित हुआ। इस नोट को पेट्रोल डलवाते हुए दूसरे नोटों के बीच में रखकर दिया तो भी कर्मचारी ने ताड़ लिया और नोट वापस थमा दिया। गुजारिश भी की कि इसे रख लीजिए, आपके यहां से तो बैंक में जमा हो जाएगा, लेकिन उसने ये कहते हुए मना कर दिया कि नई सीरीज का होता तो किसी गड्डी में रखकर चला देते, लेकिन पुरानी सीरीज के नोट ही कम आ रहे हैं। चल नहीं पाएगा। कहीं और चला लीजिएगा।

बात यहीं नहीं रुकी। देहरादून से हरिद्वार जाते हुए इस नोट की तह बनाकर कंडक्टर को दिया तो उसने सबसे पहला काम इसे खोलकर देखने का किया और फिर मुस्कुराते हुए वापस कर दिया। कई दिन की कोशिश के बावजूद मामला सिरे नहीं चढ़ा। ऐसा नहीं है कि इस नोट के बिना काम नहीं चल रहा है, लेकिन ये पर्स से ज्यादा दिमाग में चुभता रहता है। एक पल को सवाल उठा कि दुकानदार ने ये ठगी क्यों की होगी! इसका जवाब ये मिला कि वो भी ठगी का शिकार हुआ। उसने मेरे साथ ठगी कर ली और ठीक ये ही मैं भी करने की कोशिश कर रहा हूं। कुल मिलाकर ठगी की एक चेन बन गई है, जो इस नोट के काल-कवलित होने तक जारी रहेगी।

फिर अचानक आरबीआई का वो विज्ञापन ध्यान में आया जिसमें अमिताभ बच्चन सलाह देते हैं कि कोई भी बैंक फटे-पुराने नोटों को वापस लेने से मना नहीं कर सकता। पर, इस नोट को बैंक वालों ने भी नहीं लिया। कह दिया कि उस बैंक में जाइये, जहां आपका खाता है। अब जब से ई-बैंकिंग शुरू हुई, तब से बैंक ब्रांच जाना भी न के बराबर ही हो गया, लेकिन ये नोट मजबूर कर रहा है कि इसका निस्तारण किया जाए। वैसे, जिसने भी इस नोट के दो हिस्सों को जोड़ा है, वो भी कम कलाकार नहीं रहा होगा, ट्रांसपेरेंट टेप इस तरह लगाई है कि उसे जरा भी हटाने पर, नोट पर लिखे रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया शब्दों में से बैंक टेप के साथ ही चिपककर हटने को तैयार है। फिलहाल, नोट की तह बनाकर पर्स में रख लिया है। चूंकि ये नोट पुरानी सीरीज का है इसलिए मोदी जी को भी जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते कि नए नोट इतने घटिया हैं, उन्हें टेप लगाकर चलाना पड़ रहा है! देखते हैं, कब मौका मिलेगा!

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सुशील उपाध्याय

लेखक प्रोफेसर और समसामयिक मुद्दों के टिप्पणीकार हैं। सम्पर्क +919997998050, gurujisushil@gmail.com
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