कोरोना से भी बड़ा रोना है उसे कौमी रंग देना
- कमल किशोर मिश्र
दुनिया के बड़े चिकित्सकों की सलाह पर ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ की बात हुई है| विभिन्न देश की सरकारों ने इसे सलाह और आदेश के रूप में जारी किया है| यह सही है| इस समय कोरोना ने वैश्विक महामारी का रूप ले लिया है| इस संक्रमण से बचने का यही एक मात्र रास्ता है|
किसी भी प्रकार की जमायत इसी समय अपराध है| सरकार को इसे सख्ती से रोकना चाहिये| लेकिन किसी जमायत को कमजोर कड़ी के रूप में सामने लाकर इसे कौमी रंग देना इससे भी बड़ा अपराध है|
हम निजामउद्दीन की कौमी जमायत को अपराध मानते हैं| कोरोना का यह संकट किसी अल्लाह या ईश्वर की आफत नहीं हैं| बल्कि यह एक वायरस का संक्रमण है| इसने महाशक्तियों के होश उड़ा रखे हैं| अभी तक जो उपाय विज्ञान ने हमें बताया है वह है सोशल डिस्टेंसिंग|
इस हिसाब से निजामउद्दीन की जमायत अपराध है| लेकिन इसे मजहबी रंग नहीं दिया जाना चाहिये| भाजपा के कुछ नेता, उनके आई.टी.सेल के लोग, गोदी मीडिया निरन्तर हिन्दुओं के दिमाग में जहर भर रहे हैं| मानों मुसलमानों की वजह से कोरोना फैला है|
इस समय ‘मक्का और मदीना’ बन्द है| इस्लामिक देशों में भी मस्जिदों में जाने पर रोक है| जुम्मे की नमाज घरों से अदा हो रही है| भारत में भी यह लागू है|
दुनिया साझे संघर्षों के जरीये कोरोना पर फतह की कोशिश कर रही है| चिकित्सा विज्ञानी दूसरे देशों में जाकर खुद की जान जोखिम में डालकर संसार की रक्षा में लगे हुए हैं| यह शर्मनाक है कि किसी कौम के किसी कमजोर कड़ी को सामने कर उसे अपराधी ठहराया जाये| यह कोरोना से भी घातक है|
ऐसे बेशर्मों से पूछना चाहिये कि यह बात सिर्फ निजामुद्दीन पर लागू होती है या उनके कौमों पर भी| देश को यह याद रखना चाहिये कि 16 मार्च तक सिद्धी विनायक मंदिर और उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर, 17 मार्च तक श्री डी का सांई मंदिर और शनि सिंहनापुर मंदिर, 20 मार्च तक काशी विश्वनाथ के मंदिर खुले थे| यह भी घातक था|
23 मार्च को देश का संसद चला, जिसमें कोरोना पाजिटिव कनिका के साथ पार्टी में मौजूद संसद सदस्य भी मौजूद थे| इसे दूसरे तरीकों से भी चलाया जा सकता था| इसी दिन मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी थी| शपथ ग्रहण का कार्यक्रम हुआ था| लाव-लश्कर के साथ योगी ने ‘रामलला’ की पूजा भी की थी| 22 मार्च को ताली और थाली बजाकर सड़को पर हुजूम निकला था| प्रशासनिक अधिकारियों ने उत्तरप्रदेश में हिस्सा लिया था| सोशल डिस्टेंसिंग का इसमें कत्ल हुआ है| यह भी गुनाह है|
सरकारों की नीतियों की वजह से देश के हर बड़े नगरों और महानगरों में मजबूर एवं बेहाल मजदूरों का हजारों-हजार किलोमीटर चलकर अपने घरों को लौटने की मजबूरी की वजह से टूटते सोशल डिस्टेंसिंग भी सरकारों की नीतियों पर सवाल है| वे नंगे हो चुके हैं – इस महामारी ने उनकी गंभीरता पर भयंकर सवाल खड़ा कर दिया|
इसे छिपाने के लिये वे और उनकी गोदी मीडिया, सोशल मीडिया कौमी रंग दे रही है| जनता को इससे सावधान रहना चाहिये| महामारी जाति, धर्म, राजा-रंक, देशी-परदेशी, गोरे-काले, लम्बे-नाटे, स्त्री-पुरूष का विचार नहीं करती है|
लेखक मुहिम पत्रिका के सम्पादक मण्डल के सदस्य हैं|
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