भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति प्रारम्भ से ही हाशिए पर रही है। शोषण, अत्याचार तो जन्म के साथ ही इनके नसीब में जुड़ जाता है। महिलाओं के साथ बलात्कार की बढ़ती घटनाएँ और हिंसा भी कोई नयी बात नहीं है। प्राचीन काल से लेकर वर्तमान समय तक ऐसी घटनाएँ होती आ रही हैं। किन्तु विडम्बना यह है कि इन घटनाओं के लिए महिलाओं को ही जिम्मेदार माना जाता रहा है। भारतीय समाज की ऐसी मानसिकता लिंगभेद को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करती है। किन्तु जब यह अत्याचार चरम पर पहुँच जाता है, तब फूलन देवी जैसी महिलाओं का जन्म होता है। फूलन देवी भारतीय समाज में एक ऐसी शख्सियत के रूप में उभरीं जिनके नाम मात्र से ही महिलाओं और पुरूषों दोनों की परिभाषा बदल जाती है।
1963 में जालौन जिले के कालपी क्षेत्र के शेखपुर गुढ़ा गाँव में जन्मी फूलन देवी पर बचपन से ही अत्याचार होता रहा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। फूलन देवी का 11 साल की उम्र में विवाह बिना उनकी मर्जी के 30 साल के पुत्तीलाल नामक व्यक्ति से कर दिया गया। पति के ने ही लगातार उनका यौन उत्पीड़न किया। कुछ दबंगों ने बेहमई गाँव में फूलन देवी को निर्वस्त्र कर सबके सामने घुमाया और उनके साथ सामूहिक बलात्कार भी किया। जब मजदूरी करने गई फूलन देवी ने गाँव के मुखिया के लड़के द्वारा छेड़छाड़ का विरोध किया, तो गाँव के पंचायत में उन्हें कुलटा साबित कर दिया गया।
उसके बाद गाँव के दबंगों ने फिर से उनके साथ बलात्कार किया और अपहरण करवा लिया। फूलन देवी को अधिकांश लोगों ने एक भोग की वस्तु समझा। उनकी भावनाओं और इच्छाओं की शायद ही किसी ने परवाह की। पुरूषों की यह मानसिकता सोचने पर विवश करती है कि “इस समाज में स्त्री की न अपनी कोई जाति है, न नाम और न अपनी इच्छा। हर जाति या नस्ल ने एक-दूसरे की स्त्रियों को लूटा-छीना या अपनाया है।” (राजेन्द्र यादव- आदमी की निगाह में औरत, पृ.सं.-23)
रामायण की सीता हो या महाभारत की द्रौपदी या फिर फूलन देवी सभी पुरूषों की गन्दी मानसिकता की शिकार हुई, किन्तु दुर्भाग्य यह है कि सजा इन्हें ही भुगतनी पड़ी। सवाल इनके चरित्र पर ही उठाया गया। सीता खामोश रही, किन्तु द्रौपदी ने इस व्यवस्था पर सवाल उठाया, जो आज भी प्रासंगिक है। द्रौपदी को जब जबरन खींचते हुए राजसभा में लाया गया तो भवन तक पहुँचते-पहुँचते द्रौपदी के सारे केश बिखर गये और उसके आधे शरीर से वस्त्र भी हट गए। अपनी यह दुर्दशा देख कर द्रौपदी ने क्रोध में आकर उच्च स्वर में कहा, “रे दुष्ट! सभा में बैठे हुए इन प्रतिष्ठित गुरुजनों की लज्जा तो कर। एक अबला नारी के ऊपर यह अत्याचार करते हुए तुझे तनिक भी लज्जा नहीं आती?
धिक्कार है तुझ पर और तेरे भरतवंश पर!” फिर द्रौपदी ने पूछा “क्या वयोवृद्ध भीष्म, द्रोण, धृतराष्ट्र, विदुर इस अत्याचार को देख नहीं रहे हैं? कहाँ हैं मेरे बलवान पति? उनके समक्ष एक गीदड़ मुझे अपमानित कर रहा है।” द्रौपदी फिर बोली, “सभासदो! मैं आपसे पूछना चाहती हूँ कि धर्मराज को मुझे दाँव पर लगाने का क्या अधिकार था?” द्रौपदी अपनी पूरी शक्ति से अपनी साड़ी को खींचने से बचाती हुई वहाँ पर उपस्थित जनों से विनती करते हुए कहती है, “आप लोगों के समक्ष मुझे निर्वसन किया जा रहा है किन्तु मुझे इस संकट से उबारने वाला कोई नहीं है।
धिक्कार है आप लोगों के कुल और आत्मबल को। मेरे पति जो मेरी इस दुर्दशा को देख कर भी चुप हैं उन्हें भी धिक्कार है।” महाभारत के चीरहरण का यह द्रष्टांत महाभारत ग्रंथ का एक बहुत आवश्यक अध्याय है। द्रौपदी के इन सवालों का जवाब आज तक नहीं मिल पाया। राजा से लेकर समस्त सभागण उस प्रश्न का जवाब देने में असमर्थ प्रतीत हुए।
द्रौपदी के उन सवालों को आज भी खंगालें तो यह नहीं स्पष्ट हो पाता कि एक महिला को कोई वस्तु के रूप में कैसे देख सकता है? किसी महिला के पति का उस पर मालिकाना हक कैसे हो सकता है? आज भी महिलाओं को कोई दांव पर कैसे लगा देता है? महिलाओं को सिर्फ देह के रूप में क्यों देखा जाता है? जब भी महिला की कोई बात बुरी लगे या फिर उसकी तरफ से कभी न कहा जाए तो उसकी अस्मत को ही लूटने का प्रयास क्यों किया जाता है? ये सारे सवाल महाभारत काल से लेकर आज भी मुझे लगता है अधिकांश महिलाओं के जहन में निरन्तर दौड़ते रहते हैं।
इतिहास की इन घटनाओं की पुनरावृत्ति फूलन देवी के भी सन्दर्भ में हुआ। किन्तु कई बार यौन हिंसा की शिकार हुई फूलन देवी ने अपनी लाचारी को ही अपनी ताकत बना ली। द्रौपदी की तरह असहाय होकर मदद माँगने की बजाय उन्होंने अपने ऊपर हुए अत्याचार का बदला खुद ही लिया। उन्होंने उत्तरी और मध्य भारत में उच्च जातियों को निशाना बनाते हुए हिंसा की और डकैतियाँ डालीं। भारतीय नारियों को जहाँ कोमलता का पर्याय समझा जाता है, वहीं फूलन देवी ने इस परिभाषा को बदलकर रख दिया और यह साबित कर दिया कि अगर औरत अपने रौद्र रुप में आ जाएँ तो दुर्गा जैसी हो जाती हैं। “इस समाज में औरत को हमेशा उन्हीं अपराधों की सजा दी गई है जिनकी जिम्मेदार वह खुद नहीं है।” (राजेन्द्र यादव- आदमी की निगाह में औरत, राजकमल प्रकाशन, पृ.सं.-23)
फूलन देवी के साथ भी ऐसा ही हुआ और इसके लिए उनकी माँ तक ने भी उन्हें ही जिम्मेदार माना। “आदमी ने यह मान लिया है कि औरत शरीर है, सेक्स है, वहीं से उसकी स्वतन्त्रता की चेतना और स्वच्छन्द व्यवहार पैदा होते हैं। इसलिए वह हर तरफ से उसके सेक्स को नियन्त्रित करना चाहता है। सामाजिक आचार-संहिताओं, यानी मनु और याज्ञवल्क्य स्मृतियों से लेकर व्यक्तिगत कामसूत्र तक औरत को बांधने और जीतने की कलाएँ हैं।”(राजेन्द्र यादव- आदमी की निगाह में औरत, राजकमल प्रकाशन, पृ.सं.-21) यही कारण है कि फूलन देवी के साथ भी लगातार यौन उत्पीड़न किया गया और आज भी यौन उत्पीड़न, महिलाओं को नियन्त्रित करने का एक महत्त्वपूर्ण हथकण्डा मान लिया गया है।
जीवन के अन्तिम क्षण तक फूलन देवी के नसीब में प्रताड़ना ही लिखा था। बिना मुकदमा चलाये ग्यारह साल तक जेल में रहने के बाद फूलन को 1994 में मुलायम सिंह यादव की सरकार ने रिहा कर दिया। ऐसा उस समय हुआ, जब दलित लोग फूलन के समर्थन में गोलबन्द हो रहे थे और फूलन इस समुदाय के प्रतीक के रूप में देखी जाने लगी थी। 1996 में फूलन देवी ने उत्तर प्रदेश के भदोही सीट से चुनाव (लोकसभा) जीता और वह संसद तक पहुँची।
25 जुलाई सन 2001 को दिल्ली में उनके आवास पर फूलन की हत्या कर दी गयी। दिल्ली के तिहाड़ जेल में कैद अपराधी शेर सिंह राणा ने फूलन की हत्या की। “आत्म समर्पण, फिर ग्यारह वर्षों की जेल यातना, दो बार सांसद बन जाने के उपरांत भी सही सामाजिक स्वीकृति का अभाव और फिर फूलन की नृशंस हत्या के बाद हत्यारा शेरसिंह राणा तिहाड़ जेल के अधिकारियों की आँखों में धूल झोंककर जिस षड्यन्त्र के तहत भाग निकला और आज तक नहीं पकड़ा गया, वह भी हमारे प्रशासन तन्त्र पर एक दुखद टिप्पणी ही मानी जाएगी। फूलन एक प्रतीक है, पुरूष वर्ग की उस पैशाचिक प्रवृति से बदला लेने का, जो औरत को मात्र भोग्या मानकर, मात्र जिंस मानकर, मात्र मन-बहलाव की कठपुतली मानकर चलती है।”(भविष्य का स्त्री विमर्श, ममता कालिया, वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली, पृ.सं.-31)
फूलन देवी एक मात्र नहीं थी, जिनके साथ कम उम्र में ही अत्याचार और यौन उत्पीड़न प्रारम्भ कर दिया गया था। आज भी न जाने कितनी बच्चियों को फूलन देवी की तरह किसी-न-किसी रूप में अत्याचार झेलना पड़ता है और जिसके साथ कभी न्याय नहीं किया जाता।
“न्याय की देवी तो अन्धी है, पर समय भी तो धृतराष्ट्र बना हुआ है। क्या हमे पता नहीं कि दुनिया-भर में 15 साल तक की 20 लाख किशोरियों को देह व्यापार में झोंक दिया गया है? लोगों को ज्यों-ज्यों एड्स के परिणामों का ज्ञान होने लगा है, त्यों-त्यों देह व्यापार में कमसिन लड़कियों की माँग बढ़ने लगी है। ऐसा माना जाता है कि अवस्यक लड़कियों के साथ यौनाचार से एड्स का खतरा नहीं रहता। शील-भंग या बलात्कार का यह क्रम दुनिया भर में चलता जा रहा है। देश छोटा हो या बड़ा इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।” (आख्यान महिला-विवशता का, हरिशचन्द्र व्यास, आर्य प्रकाशन मंडल, पृ.सं.-13)
भविष्य में ऐसी लड़कियाँ हो सकता फूलन का रूप अख्तियार कर ले। आजीवन दुख झेलने वाली फूलन देवी को अन्त तक वे सामाजिक स्वीकृति नहीं मिल पायी, जिसकी वो हकदार थीं। सांसद के रूप में उनके चयन को भी एक त्रासदी के रूप में देखा गया। व्यवस्था की मारी इस महिला ने आजीवन संघर्ष किया, किन्तु सुख का क्षण इनके जीवन में नाममात्र ही आया। एक छोटी सी मासूम बच्ची को दस्यु सुन्दरी अथवा खूँखार डकैत फूलन देवी का रूप किसी और ने नहीं बल्कि हमारी व्यवस्था ने ही दिया है।
इस देश की सामाजिक व्यवस्था हो या न्यायिक व्यवस्था, यहाँ दोषियों को आश्रय मिलता रहा है और पीडि़ता न्याय की गुहार लगाते-लगाते दम तोड़ देती है। यही कारण है कि आज भी फूलन देवी के तर्ज पर महिलाओं के साथ बलात्कार और अन्याय का सिलसिला जारी है, जो ना जाने कितने फूलन को पैदा होने के लिए बाध्य कर रहा है। महिलाओं पर बढ़ रहे अत्याचार में यदि थोड़ी भी कमी आ जाए और लोग अपनी मानसिकता को बदलने का प्रयास करें तो वह फूलन देवी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। इस प्रकार द्रौपदी के उन अनुत्तरित सवालों के जवाब भी दिए जा सकेंगे, जिसकी तलाश भारत की अधिकांश महिलाओं को आज भी है।