sablog.in डेस्क/ हिन्दी पट्टी के तीन भाजपा शासित राज्यों में चुनाव के परिणामों को लेकर राजनीति के बड़े-बड़े विश्लेषक उलझन में हैं। कई बार अनुमान ग़लत हो जाने के कारण लोग दबी ज़ुबान में ही कर रहे हैं कि परिणाम कुछ भी हो सकता है। अबतक के सामान्य ज्ञान के अनुसार राजस्थान में सत्ता पलटने की परम्परा रही है। पिछली बार कांग्रेस के मुख्यमंत्री के काम को लेकर जनता ख़ुश थी फिर भी सत्ता बदल गई। इस बार तो मुख्यमंत्री से लोग नाख़ुश हैं, तो सत्ता का बदल जाना लगभग तय है।
छत्तीसगढ़ में लोग कहते हैं कि रमन सिंह को फिर एक बार चुना जा सकता है, क्योंकि उनका काम अच्छा है और विपक्ष बँटा हुआ है। सबसे मुश्किल है मध्यप्रदेश के बारे में अनुमान लगाना।
लगातार तीसरी बार जीतने वाले शिवराज सिंह किसी न किसी तरह से हर तबके के साथ सम्पर्क बनाए रहते हैं। कभी बाबाओं को ख़ुश करते हैं तो कभी किसानों को। लेकिन इन सबके बावजूद ख़बर गरम है कि इस बार उनकी लुटिया डूबने वाली है।
इन ख़बरों के बारे में कुछ निश्चित कहना मुश्किल इसीलिए है कि भारतीय जनता का स्वभाव ही पंडितों को चकमा देने का है। आइये इस अनुमान की गहराई में गोते लगाकर हम भी देखें कि हाथ क्या आता है?
एग्ज़िट पोल तो मतदान के बाद ही आएगा लेकिन चुनाव परिणाम को लेकर मन में खुदबुदी बनी रहती है। इसीलिये अनुमान का आनंद लेने का कोई और तरीक़ा खोजते हैं।
भारत में एक प्रचलित तरीक़ा है सट्टा बाज़ार। कहना कठिन है कि यह कारोबार कहाँ और कैसे चलता है लेकिन इतना तो ज़रूर है कि इसमें अरबों रुपए का कारोबार होता है। सर्वे करने वाले और मीडिया चैनलों में भी इसकी ख़ूब चर्चा होती है। बहुतों का मानना है कि सबसे सटीक आकलन इनका ही होता है, क्योंकि इसमें पैसे का व्यापार है। बिहार विधानसभा के पिछले चुनाव में चर्चा थी कि प्रसिद्ध चैनलों ने भी इसमें पैसा लगा रखा था और इसीलिए शुरू के कुछ घंटों तक किसी ख़ास पार्टी को पूर्ण बहुमत दिखाया जा रहा था, लेकिन बाद में उस पार्टी की हालत खराब हो गई।
इस बार के चुनाव में सट्टा बाज़ार क्या कह रहा है? एक अनुमान के अनुसार इस बार का परिणाम कुछ इस तरह होने की सम्भावना है: राजस्थान में कांग्रेस 127-129, भाजपा 54-56; मध्यप्रदेश में कांग्रेस 114-116, भाजपा-103-106, छत्तीसगढ़ में कोंग्रेस-38-43, भाजपा-43-45; अनुमान कितना सही होगा कहना कठिन है।
चुनाव के रिज़ल्ट का आकलन कठिन इसीलिए भी है कि लगभग 25% जनता आख़िरी दो दिनों में तय करती है कि वोट किसे देगी। इसीलिए राजनीतिक पंडितों का अनुमान अक्सर ग़लत हो जाता है। ट्रेंड को पकड़ने का एक तरीक़ा है, यह समझना कि लोग बातचीत क्या कर रहे हैं। और इस बार की बातचीत का महत्वपूर्ण शब्द है ‘बदलाव’।
हर तबके में बदलाव की चर्चा है। सीटों का अनुमान छोड़ भी दें तो इतना तो तय है कि लोगों को बदलाव की चाहत है. इसीलिए सत्तारूढ़ पार्टी को झटका तो लगेगा। देखना है कि सट्टा बाज़ार कितना सही आकलन कर पा रहा है।