चोर-महिमा…..
- शंकर नाथ झा
झारखण्ड में एक मॉब लिंचिंग की घटना हुई थी जिसमे एक शख्स की हत्या हो गयी थी| मॉब लिंचिंग इस देश में सदा से होती आई है, चोरों की और पॉकेट मारों की, पर इतनी चर्चा कभी नहीं हुआ करती थी| पुलिस भी कोई कार्रवाई नहीं करती थी| मोबाइल का ज़माना था नहीं और न आधार कार्ड का| शिनाख्त नहीं ही हुआ करती थी| पोस्टमोर्टम भी नहीं होता था| उन दिनों हर मोहल्ले में संवाददाता भी नहीं हुआ करते थे और जो होते थे वे बड़े ही निस्वाद समाचार भेजते थे, कोई मिर्च मसाला उन दिनों नहीं हुआ करता था| लाश को डोम के हवाले कर दिया जाता था| दाह बिन-संस्कार के लिए उसे पैसे दिए जाते थे| जलाने में खर्च ज्यादा होता था इसलिए हिन्दू हो या मुसलमान वह उन्हें दफ़न कर देता था और कुछ पैसे बचा लेता था, दारू पीने के लिए| जमीन खोदना महंगा था और श्रमसाध्य, इसलिए वह उन्हें नदी के बालू में गाड़ देता था| कभी-कभी कुत्ते उस लाश को खोद कर निकाल लेते थे और वह कहावत याद आती थी, “जो होना था हुआ, अब जो बाकी था वह होगा|”बेचारे की दुर्गति पर दुर्गति| हाँ मुस्लिम चोर की वह दुर्गति नहीं होती थी| मस्जिद में पता लगता था कि किसी मुस्लिम की लावारिस लाश है तो वे लोग उसका सम्मान के साथ मिट्टी-कर्म किया करते थे| जो बाकी है उनके साथ वह क़यामत के दिन होगा| हिन्दुओं ने खुद को कर्म-कांड से बाहर धर्म को ले जाने का प्रयास नहीं किया| ठीक ही कहा जाता है कि किसी मुस्लिम की मौत होती है तो सारा मोहल्ला उसके जनाजे के साथ जाता है पर श्राद्ध खाने सिर्फ फ़क़ीर| इधर किसी हिन्दू के श्राद्ध में हजारों लोग जीमने आते हैं पर लाश उठाने में पुकारा–पुकारी होता है| एक नेताजी के पिताजी की मृत्यु सरकारी अस्पताल में एक लावारिस मरीज के रूप में हुई पर जब श्राद्ध हुआ तो पचास हजार लोगों को आमंत्रित किया गया था| प्रधानमन्त्री तक आये थे| उन प्रधानमन्त्री के बारे में यह प्रचलित था कि जहाँ कहीं भी उनकी जाति के किसी नामी या अर्ध-नामी व्यक्ति की मृत्यु होती थी वे श्राद्ध खाने जरूर जाते थे| जवानी में उन्होंने सत्ता के साथ समझौता नहीं किया, पर बुढ़ापे में उन्हें यह दिव्य ज्ञान हुआ कि सत्ता येन- केन प्रकारेण प्राप्तव्यम, एष राजधार्मम| समझौता वह घोड़ा है जो अपने सवार को कभी भी झटक कर अपनी पीठ पर से गिरा देता है|
हाँ तो बात लिंचिंग की हो रही थी| बात बढ़ गयी जब मीडिया को मालूम हुआ कि वह एक मुस्लिम युवा था| गोरक्षकों ने लिंचिंग को इतना मशहूर कर दिया कि समस्त हिन्दू धर्म ही बदनाम हो गया| इस्लाम में जिहाद, इसाई धर्म में क्रूसेड की तरह बजरंग सेना को गोरक्षा में ही धर्म-युद्ध नजर आने लगा| बुद्धिमान लोगों की भी बुद्धि को भ्रष्ट होने में समय नहीं लगता है| हिन्दू धर्म का जितना नुक्सान इन लोगों ने किया है उतना तो कापालिकों ने भी नहीं किया|
कहते हैं कि यह देश धर्म निरपेक्ष है पर धार्मिक विभेद यहाँ हर जगह नजर आएगा| किसी हिन्दू की लिंचिंग महज एक छोटा समाचार बन कर रह जाता है, पर किसी मुस्लिम की लिंचिंग हो तो वाकया राष्ट्रीय डिबेट बन जाता है| फिर सहानुभूति की बरसात के साथ नोटों की बरसात होने लगती है| अख़लाक़ की मृत्यु पर उसके घरवालों को लाखों रूपये मिलते हैं और डा. नारंग की मृत्यु पर एक फूटी कौड़ी भी नहीं देने को आते हैं, न तो सेक्युलर जमात और न हिन्दू वोट बैंक वाली पार्टी ही|
हाँ तो जिस सफ़दर की मृत्यु पर इतना हंगामा हुआ पता चला कि उसकी लिंचिंग इस लिए नहीं हुई कि वह एक गो-तस्कर था बल्कि इसलिए हुई थी कि वह एक बाइक चोर था| यहाँ तो एक पोकेटमार को भी लोग पीट –पीट कर मार देते हैं, यहाँ तो मामला आधे लाख का था|
चोर, बड़ा ही बदनाम शब्द है यह और हमलोग बचपन से ही इस शब्द को सुनते आ रहे हैं और इनके आतंक से बर्बाद होते रहे हैं| एक बार तो मेरे पूरे घर की चल सम्पदा को इन्होंने झाड़-फूँक कर साफ़ कर दिया था और अपने घर को सजा लिया था| संपत्ति का गैर कानूनी हस्तांतरण ही चोरी है|
चोरी कोई प्राकृतिक विकृति नहीं है| यह मानव सभ्यता के विकास की एक घुसपैठ है, प्रकृति की उदात्त्तता पर| श्रृष्टि की रचना पर हर एक मनुष्य का अधिकार था| हर जमीन का टुकड़ा उसका था, हर पेड़ का फल उसका था और हर नदी का पानी उसका था| समाज के नियम- क़ानून ने उसकी इस स्वतंत्रता से उसे महरूम कर दिया पर कुछ लोगों ने अपने इस मौलिक अधिकार के हनन को स्वीकार नहीं किया और अपनी प्राकृतिक प्रकृति को तिलांजलि नहीं दी| सर्वप्रथम राजाओं ने इस विधान को नहीं माना| जो राजा जितना बड़ा चोर होता था वह उतना बड़ा सम्राट होता था|
खैर छोडिये इन बातों को| जिस बात की मैं चर्चा करने जा रहा हूँ वह कुछ और है| आज बेरोजगारी की समस्या से देश जूझ रहा है| सरकार कहती है हमने अप्रत्यक्ष रोजगार बढाए हैं, गली –गली में पकौडे की दूकानें खुलवाई हैं, तो विरोधी कहते हैं कि लुका-छिपी की बात नहीं, हमें प्रत्यक्ष रोजगार के डेटा दिखलायें| इस प्रत्यक्ष-परोक्ष के बखेड़े में पूरा संसद उलझा रहा और माल्या पचास हजार करोड़ की चोरी कर परियों के देश पहुँच गया| इस पर भी बहस| एक कहता है तुम्हारे समय में चोरी हुई है, दूसरा कहता है कि वह भागा तो तुम्हारे समय में है| एक का गुनाह चोरी करवाने का है तो दूसरे का गुनाह चोर को भगाने का है या भागने देने का है|
हाँ एक तरफ चोर और दूसरी तरफ बेरोजगारी; क्या दोनों के बीच भी कोई सम्बन्ध हो सकता है और है तो कैसा है| चलिए इस नए अनुसंधान पर कुछ फोकस करें| विशेषज्ञों का कहना है कि रेलवे सबसे बड़ा एम्प्लायर है इस देश में तो कोई कहता है कि शिक्षा सबसे बड़ा है| मैं तो कहता हूँ चोरों का सबसे बड़ा योगदान है रोजगार के बाजार में| राष्ट्रीय डेटा के अनुसार पूरे देश में चोर, डाकू और पोकेटमार मिलकर कुल चार लाख हैं| यह तो टिप ऑफ़ आइस बर्ग है| वास्तव संख्या तो इससे कई गुना ज्यादा है| यदि चोर इतने हैं तो सिपाही कितने होंगे| पूरे देश में कुल सात लाख राजकीय पुलिस हैं, तीन लाख केन्द्रीय रिज़र्व फ़ोर्स हैं| कुल चौकीदारों की संख्या पंद्रह लाख है तो दफादार भी तीन लाख से ज्यादा हैं| कुल आईपीएस ऑफिसरों की संख्या चार सौ है| ये तो देसी चोरों से सुरक्षा के लिए हैं| विदेशी चोरों से बचाव के लिए दस लाख फौज हैं तो बीएसऍफ़ के तीन लाख जवान तैनात हैं| इतने पुलिस वाले हैं तो इनकी वर्दी बनाने वाले दरजी और बुनकर की भी जरूरत है| वर्दी को ढोने और धोने वालों की भी जरूरत है| वे भी लाखों की संख्या में होंगे| इतने सुरक्षा कर्मियों के भोजन बनाने वाले भी हजारों हैं तो इनकी स्वास्थ्य-जांच के लिए हजारों डॉक्टर भी नौकरी पर हैं| इतने लोगों के यातायात के लिए हजारों गाड़ियां हैं तो उन गाड़ियों के निर्माण में भी हजारों आदमी लगे होंगे| गाड़ी के रख–रखाव में भी कम से कम एक लाख लोग रहे होंगे| गाड़ी के साथ बन्दूक और टीअर गैस भी बनाने पड़ते हैं| उनमे भी हजारों लोग लगे होंगे| इतने फौजियों के जूते भी तो बनते हैं जिसमे हजारों लोग कार्यरत हैं|
रेलवे में चौदह लाख कर्मचारी हैं जिनमे एक लाख लोग टीटीई और आरपीऍफ़ के रूप में हैं जो चोरों को पकड़ने के लिए हैं चाहे वह बिना टिकट यात्री हों या रेलवे के सामानों की चोरी करने वाले चोर हों| रेलवे लाखों लोगों को उठाईगीर और नशा खुरानी गिरोह के सदस्य के रूप में नहीं चाहते हुए भी रोजगार मुहय्या करता है| चोर प्रत्येक साल चवालीस हजार कार और दो लाख मोटर साइकिल चुराते हैं| उनके रिप्लेसमेंट के लिए उतनी ही गाड़ियां बिकती हैं जिसके लिए प्रत्यक्ष और परोक्ष नौकरियों में इजाफा होता है| अधिकतर चोरी की गाड़ियों के पुर्जे- पुर्जे खोल कर ये बेच देते हैं या साबूत भी| अनेकों लोग और गेराज इस नेक काम में इनका साथ देते हैं, अतिरिक्त रोजगार सृजन| इधर सरकारी नौकरी को छोड़ कर प्राइवेट में पाँच लाख लोग सिक्यूरिटी के रूप में तैनात हैं, अस्पतालों में, प्राइवेट स्कूलों में, शौपिंग मॉल में या फिर सिनेमा घरों में| आज कल डॉक्टर भी प्राइवेट सिक्यूरिटी रखने लगे हैं जिनकी संख्या भी हजारों में होगी| जिस देश में डॉक्टर असुरक्षित हों वहाँ का कहना ही क्या| सरकार भी इस मामले में उदासीन है| एक अस्पताल में तोड़-फोड़ की गयी और कुछ लोगों पर केस हुआ तो दूसरे ही दिन स्थानीय विधायक ने औचक निरीक्षण किया और वहाँ के स्टाफ पर ऍफ़आईआर कर दिया|
आज कल साइबर चोरी हो रही है जिसके लिए साइबर पुलिस स्टेशन बन रहे हैं| नए कंप्यूटर आ रहे हैं, नए लोगों की नियुक्ति हो रही है, रोजगार के नए साधन तैयार हो रहे हैं| एटीएम मोहल्ले-मोहल्ले लगे हैं तो उनकी सुरक्षा के लिए भी गार्ड तैनात हैं| चोरों की शिनाख्त के लिए हर जगह सीसीटीवी लग रहे हैं कम से कम एक करोड़ की संख्या में होंगे| उनके निर्माण और रिपेयर में करोड़ों लोग लगे हैं| चोर हैं तो उन्हें पकड़ने के लिए पुलिस है और सजा दिलाने के लिए कोर्ट हैं और उन्हें बचाने के लिए वकील हैं| कुल वकीलों की संख्या इस देश में बीस लाख है और उन वकीलों के मुन्सी भी कई लाख में हैं| कुल उन्नीस हजार लोगों को जज के रूप में नौकरी मिली हुई है| कोर्ट हैं तो लाखों लोग उन परिसरों में या उनके बाहर चाय की दूकान खोले हैं या फ़ोटोस्टेट करते हैं| हर कोर्ट परिसर में एक मंदिर अपने आप बन जाता है और एक पुजारी की नियुक्ति पक्की| बिचौलियों और प्रोफेशनल गवाह के लिए भी दाना-पानी का इंतजाम है यहाँ| एक ही व्यक्ति अलग-अलग केस में गवाह का काम करता है और कोई विधान नहीं है कि उस पर कोई ऊँगली उठाये| कानून की देवी आँखों पर काली पट्टी बांधे हैं और निर्भया के हत्यारे बार-बार अपनी फांसी की तारीख बढवाने में सफल हो रहे हैं| गुनाहगार की सफलता कानून की असफलता नहीं तो और क्या है|
कुल मिलाकर इस निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है कि चोर, डकैत, लुटेरे और हत्यारों का यह देश आभारी है जिसने इतने रोजगार मुहैया कराये हैं| आज सारे के सारे चोर यदि साधू बन जाएँ तो इस देश पर बेरोजगारी की जो मार पड़ेगी उससे कोई भी सरकार उबर नहीं पाएगी|
लेखक प्रसिद्द चिकित्सक और लेखक हैं|
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