- कर्ण सिंह
देश में पत्रकार को समाज का आईना समझा जाता है वहीं मीडिया को लोकतन्त्र का चौथा स्तम्भ भी माना जाता है। जैसाकि हम सब जानते है कि भारत में विविधताओं का समावेश है जिसके कारण पत्रकार का आमजन तक पहुँच पाना कहीं ना कहीं बड़ी चुनौती समझा जाता है। दरअसल आजादी से पहले पत्रकारिता को आजादी के हथियार के तौर पर प्रयोग किया गया था जो आज के दौर में विंसगत-सा हो गया है। जिस तेज गति से समय बदला है उतनी ही तेजी से पत्रकारिता ने अपना स्वरुप बदला है।
आज के दौर में पत्रकारिता के सामने तकनीकी चुनौतियाँ भी मुंह खोले खड़ी है वहीं दूसरी तरफ कुछ ऐसे उदाहरण भी हमारे सामने है जो पत्रकार की सुरक्षा पर भी सवालिया निशान लगा देते है। ऐसे अनेकों उदाहरण है जिनमें पत्रकार बिरादरी को संघर्ष का सामना करना पड़ा है जैसे राम रहीम केस को लिया जा सकता है, जब न्यायालय के निर्णय के बाद ढ़ोगी बाबा के अंधभक्त हिंसक हो गए थे और और मीडिया को अपने गुस्से का शिकार बना लिया था। वहीं अगर हम आधुनिकता के तराजू में पत्रकारीय गुणों एवम् कर्तव्य को तोलने की कोशिश करेंगे तो पाएगें कि वह अपना मूल लक्ष्य को भूलकर व्यवसायीकरण की तरफ जा रही है। आज के समय में तो मीडिया जैसे हर राजनीति घराने की गुलाम बन गयी है। ऐसे काफी उदाहरण है जिनसे यह साबित हुआ है कि समय-समय पर सरकारों ने मीडिया की आजादी पर प्रतिबन्ध लगाने का प्रयास किया हैं। वहीं कुछ मीडिया संस्थान अपनी आजादी का हवाला देकर अपनी रिपोर्टिंग करते समय देश की सुरक्षा को भी ताक पर रख देते है। उदाहरण के तौर हमने देखा भी होगा कि 26/11 हमलें के समय मीडिया द्वारा जिस तरह से रिपोर्टिंग की गई थी, वह दुश्मनों की मददगार ही साबित हुई थी, ऐसा ही मामला 2016 में पठानकोट एयरबेस पर हुए आंतकी हमलें के बाद भी मीडिया की भूमिका संदेह के घेरे में आई थी।
यहाँ पर यह भी गौरतलब है कि संविधान में पत्रकार को अलग से किसी भी तरह की आजादी का अधिकार नहीं दिया है, पत्रकारों को भी आम जनता जैसे अधिकार मिल हुए है लेकिन समाज हमेशा पत्रकार को सही मार्गदर्शक के तौर पर देखता है, क्योंकि उसकी लेखनी की ताकत का कोई सानी नहीं है, साथ ही अधिकतर लोग अपनी सोच भी मीडिया रिपोर्ट के हिसाब से विकसित करते हैं। ऐसे में पत्रकार की जिम्मेदारी बहुत ही ज्यादा संवेदनशील बन जाती है। यहाँ पर इस बात पर भी प्रकाश डालना अहम हो जाता है कि युवा पत्रकार को डिजिटल तकनीक के हिसाब से खुद को बदलना होगा परन्तु पत्रकारिता के मूल्यों, नीति को हास होने से भी बचाना होगा तब जाकर कहीं पत्रकार अपने क्षेत्र से न्याय कर पाएगा।
आजकल पत्रकारों के लिए बदलते राजनैतिक माहौल में राष्ट्रवादी और गैर राष्ट्रवादी सोच भी बड़ी समस्या है। इस तरह के आरोप आए दिन पत्रकारों पर लगते रहते है। युवाओं को देश के भविष्य का संचालक कहा जाता है, जिसके बाद युवा पत्रकारों की जिम्मेदारी बन जाती है कि वो अपने क्षेत्र की पुरानी चमक को वापिस लेकर आए। गौरतलब यह भी है कि मीडिया में आजकल बॉयस्ड होने का आरोप भी लगता रहा है जिसके कारण ख़बरों की वास्तविकता पर चोट पहुँची है और समाजिक विश्वास हिल जाता है। दरअसल अब समय की माँग है कि पत्रकारों की बिरादरी, संस्थान को आगे आना होगा जो आधुनिकता के साथ पत्रकारिता के मूल्यों को नष्ट होने से बचाएँ और सामाजिक विश्वास को कायम रखे। तब जाकर इतिहास में पत्रकारिता को जो आदर मिलता था वहीं आधुनिक समय में मिल पाएगा।
लेखक ज्ञानार्थी मीडिया कॉलेज, काशीपुर उत्तराखंड में पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के विभागाध्यक्ष एवं सहायक प्रोफेसर हैं|
सम्पर्क- +918826590040, karan11ksingh@gmail.com
Related articles

मीडिया: मिशन से प्रोफेशन तक का सफर
अमिताAug 14, 2022
कोरोना संकट में संबल बनी पत्रकारिता
संजय द्विवेदीMay 30, 2021
समाचार को अब खुद समाचार बनने की जरूरत
हिमांशु जोशीApr 11, 2021
आपदा की कसौटी पर लोक और तन्त्र
सबलोगJun 13, 2020डोनेट करें
जब समाज चौतरफा संकट से घिरा है, अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं, मीडिया चैनलों की या तो बोलती बन्द है या वे सत्ता के स्वर से अपना सुर मिला रहे हैं। केन्द्रीय परिदृश्य से जनपक्षीय और ईमानदार पत्रकारिता लगभग अनुपस्थित है; ऐसे समय में ‘सबलोग’ देश के जागरूक पाठकों के लिए वैचारिक और बौद्धिक विकल्प के तौर पर मौजूद है।
विज्ञापन
