छवि चमकाने का अभियान ‘तांडव’
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राजनीति ड्रामा थीम बेस्ड वेब सीरीज ‘तांडव’ अमेजन प्राइम पर तय समय से पहले ही रिलीज की जा चुकी है। अमेजन के साथ पिछली कुछ फिल्मों और वेब सीरीज के साथ यही हुआ है कि उन्हें एक दिन पहले ही रिलीज़ कर दिया जा रहा है। ख़ैर इसके साथ ही लम्बे समय से चल रहा दर्शकों का इंतजार भी खत्म हुआ है, लेकिन उनके द्वारा किए गए सब्र का फल उनके लिए मीठा साबित नहीं हुआ है। कहानी पूरी तरह से राजनीति, हत्या, पद लोलुपता के इर्द-गिर्द घूमती है। कुल 9 एपिसोड में बनी इस सीरीज के पहले ही एपिसोड में तिग्मांशू धूलिया को समेट दिया गया है। शायद उनके लिए कहानी भी इतनी ही लिखी गई थी। दरअसल कहानी ही उनके कैरेक्टर के खत्म होने के बाद शुरू होती है। कहानी का संक्षिप्त रूप यह है कि एक तरफ पीएम की कुर्सी के लिए लड़ाई चल रही है तो दूसरी तरफ विवेकानंद नेशनल यूनिवर्सिटी (दरअसल यह जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय है जिसका नाम बदल कर विवेकानंद विश्वविद्यालय करने की सिफारिश भी की गई थी) जिसके अंदर भेदभाव, जातिवाद, पूंजीवाद से आजादी के लिए लड़ाई लड़ी जा रही है।
वेब सीरीज की विस्तृत कहानी यह है कि लगातार दो बार देश के प्रधानमंत्री रहे देवकी नंदन यानी तिग्मांशु धूलिया चुनाव में अपनी पार्टी को तीसरी बार सत्ता में लाना चाहते हैं। लेकिन अचानक उनकी मौत हो जाती है। इसके बाद सब लोग उनके बेटे समर को इस पद के लिए दावेदार मानते हैं। समर इस पद को ठुकरा देते हैं। जिसका कारण आपको सीरीज देखने पर पता चलेगा। उनके इस फैसले से सभी हैरान भी होते हैं। पार्टी के बीच राजनीतिक उथल-पुथल भी देखने को मिलती है। तीन सीटों से शुरू की गयी यह पार्टी तीसरी बार देश को प्रधानमंत्री दे रही है तो इसके लिए सीधा निशाना आप वर्तमान सत्ता में काबिज़ पार्टी से भी लगा सकते हैं।
खैर सीरीज में जो समानांतर कहानी चल रही है वह पूरी तरह से जेएनयू से प्रभावित दिखाई है बस नाम बदल दिया गया है। लेकिन कथानक जेएनयू के हिसाब से ही बुना गया है। यहां किसान आंदोलन के साथ खड़ा होकर युवा छात्र नेता शिवा शेखर (मोहम्मद जीशान अय्यूब) रातों रात सोशल मीडिया स्टार बन जाता है। उसके भाषण की गूंज प्रधानमंत्री कार्यालय तक भी पहुंचती है। वह राजनीति में नहीं उतरना चाहता, लेकिन न चाहते हुए भी वह इस दलदल में गहरे उतरता जाता है। इसके अलावा कुछ फालतू की कहानी भी है जिस पर बात न की जाए तो ही अच्छा कुलमिलाकर यही है इस राजनीति का तांडव। इस सीरीज के आने के बाद सोशल मीडिया पर एक अलग ही तांडव मचा हुआ है। कारण इसमें एक विवादित विश्वविद्यालय की छवि को चमकाने का अभियान और मर्यादा पुरुषोत्तम राम तथा देवों के देव महादेव पर कटाक्ष या कहें टिप्पणी।
वेब सीरीज की कहानी गौरव सौलंकी ने लिखी है। जिनका लिखा कहानी संग्रह ‘ग्यारहवीं ए के लड़के’ ख़ासा चर्चित हुआ था। लेकिन इस संग्रह की इसी नाम से लिखी गई कहानी मुझे खास तौर पर बेहूदा लगी थी। ख़ैर सीरीज में एक डायलॉग है वक्त सबको बदल देता है। लगता है समय के साथ गौरव सौंलकी को भी लेखन ने बदला है। वैसे भी कहते है न ‘करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान’ हालांकि गौरव को सुजान होने में अभी समय लगेगा लेकिन उनके लेखन में कुछ सुधार हुआ है और सुधार की गुंजाइश भी दिखाई देती है। सीरीज की कहानी भी अधूरी छोड़ी गई है इसके दूसरे सीजन की गुंजाइश साफ-साफ देखी जा सकती है।
बावजूद इसके कहानी में बहुत दम नहीं दिखता है, लेकिन उसे मजबूती देती है इसकी स्टारकास्ट। सैफ अली खान, कुमुद मिश्रा, डिंपल कपाड़िया, सुनील ग्रोवर, कृतिका कामरा, मोहम्मद जीशान अय्यूब अपने किरदार के साथ न्याय करने की भरपूर कोशिश करते हैं लेकिन इसमें भी सबसे सफ़ल डिम्पल कपाड़िया, कृतिका कामरा, मोहम्मद जीशान अयूब और सुनील ग्रोवर ही बाजी मारते दिखाई देते हैं। सुनील ग्रोवर जिन्हें हम अब तक कॉमेडियन के रूप में देखते आ रहे थे, उन्होंने एक सीरियस और गम्भीर रोल करके अपनी अभिनय की प्रतिभा और क्षमता का अच्छे से प्रदर्शन किया है। समर प्रताप सिंह के सबसे भरोसेमंद व्यक्ति गुरपाल चौहान के किरदार में दिखे सुनील ग्रोवर तारीफ़ बटोरते हैं। वहीं दूसरी ओर गौहर खान, सारा जेन डायस, डिनो मोरियो, संध्या मृदुल, परेश पाहुजा, अनूप सोनी, हितेश तेजवानी जैसे कलाकारों ने कहानी को बस आगे बढाने में अपना काम करने की कोशिश की है, वे लोग बस सहज रूप में अपना काम करते दिखाई दिए हैं उन्हें इस सीरीज और इसकी सफलता-विफलता से कोई लेना देना नहीं है ऐसा लगता ही।
बड़ी स्टार कास्ट , वीएफएक्स और भव्य दृश्य के अलावा कुछ मसाले मिलाने के बावजूद सीरीज सियासत और राजनीति की गहराई में नहीं उतर पाती। इसके अलावा इसकी लम्बाई भी बेहद अखरती है और बोर करने लगती है। लेकिन सीरीज़ के सभी एपिसोड में बजने वाला बैकग्राउंड स्कोर कुछ-कुछ जगह असरदार है। सुल्तान, गुंडे और टाइगर ज़िंदा है जैसी फ़िल्में निर्देशित करने वाले अली अब्बास ज़फ़र और आर्टिकल 15 जैसी बेहतरीन फ़िल्म लिखने वाले गौरव सोलंकी से उम्मीद थी कि उनकी यह सीरीज ओटीटी प्लेटफार्म पर तांडव मचाएगी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और न होगा। और जाते-जाते एक बात डिम्पल कपाड़िया को इस सीरीज में लिया गया है वे ठीक ठाक भी लगी हैं लेकिन उनका उम्र दराज होना मतलब उनकी उम्र उनके अभिनय में कहीं भी आड़े नहीं आई है।
कलाकार- डिम्पल कपाड़िया, सैफ़ अली ख़ान, कुमुद मिश्रा, सुनील ग्रोवर, गौहर ख़ान, शोनाली नागरानी, कृतिका कामरा, अनूप सोनी, डीनो मोरिया, संध्या मृदुल आदि।
निर्देशक- अली अब्बास ज़फ़र
निर्माता- अली अब्बास ज़फ़र और हिमांशु किशन मेहरा।
रेटिंग – 2 स्टार
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