Rajesh kumar
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तीसरी घंटी
लोक नाटकों में दलित अभिव्यक्ति
नाटक चाहे शास्त्रीय हो या लोक आज अगर इसमें दलित अभिव्यक्ति को ढूंढा जा रहा है तो किसी को भी शंका हो सकती है कि क्या पूर्व में इसको नजरअंदाज किया गया है? नजरअंदाज भी किया गया है तो…
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तीसरी घंटी
नुक्कड़ पर ‘अस्मिता’ की दस्तक
आज के समय में सत्ता के दुर्ग द्वार के सम्मुख जहां रंगकर्मियों की एक बड़ी फौज लगभग आत्मसमर्पण कर चुकी है … रंगकर्मियों का एक ऐसा भी ग्रुप है, जो रोज नियम से अपने घरों से निकलकर, बसों –…
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तीसरी घंटी
रंगमंच पर मंडराती ख़ौफ़ की परछाइयाँ
राजेश कुमार मंडी हाउस के आस-पास के इलाकों में चेहरे पर लगाये मास्क को देखकर अगर आपको रंगमंच की दुनिया में ख़ौफ़ की परछाइयाँ पसरती हुई दिख रही हैं तो माफ कीजियेगा मेरा मकसद कोरोना वायरस की तरफ…
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शख्सियत
राधा बाबू का कहना है ..
राजेश कुमार वैसे अकादमिक नाम तो डॉ. राधाकृष्ण सहाय है पर रंगकर्म से जुड़े लोग उन्हें राधा बाबू के नाम से ही संबोधन करते हैं। वो भी सामने नहीं, उनके पीछे। क्योंकि एक तो उनसे उमर में कम है, दूसरे…
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हाशिये के समाज का रंगमंच
राजेश कुमार हाशिये के लोगों पर चाहे उसके साहित्य पर बातचीत हो या संस्कृति पर, घुमा फिरा कर बहस का कोई न कोई मुद्दा आ ही जाता है। आखिर ये हाशिया है क्या? लोगों को इस शब्द से पाला स्कूल…
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