arun maheshwari
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अंतरराष्ट्रीय
प्रतिवाद को क्या शब्दों का अभाव!
एक युग हुआ। सन् 2010 के बसंत का महीना था। तब अरब देशों में ‘सदियों’ की तानाशाहियों की घुटन में बसंत की एक नई बहार आई थी। ‘अरब स्प्रिंग’। कहते हैं कि वह इस अरब जगत के लोगों के…
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साहित्य
विमर्श के लिए शब्द ज़रूरी नहीं होते हैं
अभी चंद रोज़ पहले कोलकाता में गीतांजलि श्री जी आई थी। प्रश्नोत्तर के एक उथले से सत्र के उस कार्यक्रम में घुमा-फिरा कर वे यही कहती रही कि उन्हें इस बात की परवाह नहीं है कि कोई उनके उपन्यास…
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सामयिक
फासीवाद के खिलाफ जनसंघर्ष का नायाब उदाहरण ‘भारत जोड़ो यात्रा’
आज के दमघोटू, डर और नफ़रत से भरे राजनीतिक वातावरण में कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में भारी भीड़ के जोश और उत्साह के जो अभूतपूर्व नज़ारे दिखाई दे रहे हैं वे सारी दुनिया के सामने फासीवाद के खिलाफ…
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चर्चा में
मोदी जी आख़िर इतनी बेतुकी बातें क्यों कर रहे हैं?
सब लोग अब यह गौर करने लगे हैं कि यूपी के चुनाव में मोदी के भाषण कुछ अजीबोग़रीब हो रहे हैं। सिवाय कुछ सचेत सांप्रदायिक विभाजनकारी बातों के किसी को उनके भाषणों में कोई तुक नज़र नहीं आ रहा…
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पुस्तक-समीक्षा
‘जीते जी इलाहाबाद’ : जहाँ सत्य से आँखें दो-चार होती हैं!
दो दिन पहले ही ममता कालिया जी की किताब ‘जीते जी इलाहाबाद’ हासिल हुई और पूरी किताब लगभग एक साँस में पढ़ गया। इलाहाबाद का 370 रानी मंडी का मकान। नीचे प्रेस और ऊपर रवीन्द्र कालिया-ममता कालिया का घर…
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पुस्तक-समीक्षा
हिन्दी के बेडौल अपराध साहित्य की एक नजीर ‘पिशाच’
पिछली 29 अगस्त को वीडियो पत्रकार अजित अंजुम ने अपने यूपी चुनाव और किसान आन्दोलन सम्बन्धी कवरेज के बीच अचानक ही हिन्दी के हाल में प्रकाशित एक ‘क्राइम थ्रिलर’ ‘पिशाच’ पर चर्चा की। इसके लेखक संदीप पालीवाल के साथ…
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देश
‘भारत बदल गया है’ पर एक नोट
जो अपने विषाद के क्षण में कहते पाए जाते हैं कि ‘भारत बदल गया है’, वे हमारे जीवन के यथार्थ के विश्लेषण में बड़ी चूक करते हैं। सच यह है कि भारत नहीं, भारत का शासन बदल गया है…
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समाज
वर्ग और जाति
वीरेन्द्र यादव की फेसबुक वॉल पर जाति और वर्ग के बारे में डॉ. राममनोहर लोहिया के विचार के एक उद्धरण* के संदर्भ में : जाति हो या वर्ग, दोनों ही सामाजिक संरचना की प्रतीकात्मक श्रेणियाँ (Symbolic categories) हैं। भले…
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राजनीति
बंगाल की पराजय के साथ ही मोदी काल का अन्त
सच कहा जाए तो बंगाल के चुनाव के साथ ही भारत की राजनीति का पट-परिवर्तन हो चुका है। दार्शनिकों की भाषा में जिसे संक्रमण का बिंदु, event कहते हैं, जो किसी आकस्मिक अघटन की तरह प्रकट हो कर अचानक…
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सामयिक
योगेन्द्र यादव की राजनीति और किसान आन्दोलन के हित!
संयुक्त किसान आन्दोलन के नेतृत्व में योगेन्द्र यादव एक ऐसा प्रमुख नाम है जिनके साथ कोई महत्वपूर्ण किसान संगठन नहीं होने पर भी वे आन्दोलन में अपनी मेहनत और एक सधे हुए बौद्धिक के नाते आन्दोलन के प्रवक्ता बने…
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