anand patil
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प्रसंगवश
प्रभु! तेरे ‘रामलिंगम’ के देस में ‘कितनी शांति कितनी शांति!’
यह कहानी नहीं है। इसे लेख कहना भी कितना युक्तियुक्त होगा मैं नहीं जानता। वैसे यह पूरी तरह से संस्मरण भी नहीं है। इसमें विरोधाभासों से युक्त जीवन की आलोचना भी है और वर्तमान समय–संदर्भ में जीवन को देखने…
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एतिहासिक
मैं और महाराज : स्मृतियों से एक कथांश
कथा कहूँ या इतिहास, नहीं पता! हाँ, संभवतः बचपन की कथा-स्मृतियों से एक अमूल्य विचार-रत्न कहूँ तो अधिक संगत एवं स्वीकार्य हो! अपने पहले ही अभियान में आततायी मुगल सल्तनत को शिकस्त देने के पश्चात छत्रपति शिवाजी महाराज जब…
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देश
भारतीय ज्ञान–परम्परा : जनहित–राष्ट्रहित की सिद्धि
(युवाओं के नाम एक और जागरण संदेश) अस्तबल में बंधे–बंधे घोड़ा बिगड़ता है। बिना सैन्य अभ्यास के जवान बिगड़ता है। बिना भाँजे म्यान में रखी तलवार धार खो देती है। बिना सफ़ाई के बंदूक अवरुध्द हो जाती है। बिना…
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देश
‘पार्टनर, तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है?’ : धूमिल नहीं है, अब यह मुक्ति–बोध देश समझ रहा है
[शाहीन बाग़ में एकत्रित भीड़ के मद्देनज़र उठते सवालों की पड़ताल : ‘जिन्ना वाली आज़ादी’ के मायने क्या हैं? फैजुल हसन ने क्यों कहा – “हम वो कौम से हैं, अगर बर्बाद करने पर आयेंगे तो छोड़ेंगे नहीं।…
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देश
‘नैरेटिव’ गढ़ता नया दौर और वामपंथ समर्थकों की मानसिकता का सच
(जेएनयू में हिंसा के हवाले से हिंसात्मक होते ‘दिग्भ्रमित’ युवाओं पर विशेष) भारत का एकमात्र ‘सर्वोच्च’ विश्वविद्यालय (जैसा कि सर्वत्र प्रचारित है!) – ‘जेएनयू’ में हुई हिंसा पर हर कोई अपना ‘अनुकूल’ (favourable) पक्ष रख रहा है। मैं नहीं…
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