मैं और महाराज : स्मृतियों से एक कथांश
कथा कहूँ या इतिहास, नहीं पता! हाँ, संभवतः बचपन की कथा-स्मृतियों से एक अमूल्य विचार-रत्न कहूँ तो अधिक संगत एवं स्वीकार्य हो!
अपने पहले ही अभियान में आततायी मुगल सल्तनत को शिकस्त देने के पश्चात छत्रपति शिवाजी महाराज जब धर्मार्थ (अधर्म के विलोमार्थ में) ‘हिंद स्वराज्य’ की स्थापना करने निकले तो उन्होंने गोलकोंड़ा के सुल्तान अबदुल्ला कुतुब शाह को साथ मिला कर चलने का विचार किया और उनके सामने मित्रता का प्रस्ताव रखने स्वयं उनके पास गोलकोंड़ा पहुँचे। सुल्तान ने कहा, “मैं तुमसे मित्रता क्यों करुँ? मित्रता शक्तिशालियों से की जाती है और फिर तुम्हारे पास वैसा साम्राज्य भी तो नहीं है! चलो फिर भी यदि मित्रता करनी ही हो तो मेरी एक शर्त है – भीतर किले में एक ‘पागल हाथी’ है। उसे वश में करके या मार कर अपनी शक्ति का अंदाज़ा दो तो जानें।”
महाराज अपने आठ (08) मावलों के साथ गोलकोंड़ा पहुँचे थे। महाराज ने सुल्तान से कहा – “आप अपनी इच्छानुसार इनमें से कोई एक मनचाहा मावला चुन लीजिए। आपके द्वारा चुने हुए मावला हम सबकी ओर से अकेले ही लड़ेंगे।” यह जान कर सुल्तान बहुत खुश हुआ और उसने सबसे ‘दुबले-पतले’ मावला को ‘पागल हाथी’ के साथ लड़ने के लिए चुन लिया।
‘पागल हाथी’ के साथ भीतर भीषण भिडंत चल रही थी और सुल्तान के सारे सैनिक मज़ा लेते हुए चीख रहे थे, चिल्ला रहे थे। इधर बाहर महाराज पसीने से बदहाल हुए जा रहे थे। उनकी साँसे तेज़ चल रही थीं।आख़िरकार भीतर गये मावला ने उस ‘पागल हाथी’ को मार गिराया तो सुल्तान और उसके सैनिक दंग रह गये। उस ‘पागल हाथी’ के साथ भीड़ते हुए कई बलशाली योद्धा धूल में मिल गये थे। अल्लाह को प्यारे हो गये थे। सुल्तान ने महाराज से पूछा, “भीतर लड़ तो वह रहा था लेकिन आप यहाँ बाहर क्यों बदहाल हुए जा रहे थे?”
महाराज ने जो कहा वह आज भी कइयों की आँखें खोलने वाला है (यदि आँखें हो तो!)। महाराज बोले, “उनके भीतर चले जाने के बाद मुझे इस बात की अनुभूति हुई कि आपकी मित्रता से अधिक मेरे लिए वे प्यारे हैं और अनमोल भी। मैं बड़े-से-बड़े साम्राज्य के लिए भी अपने होनहार (हो न हार) मावलों को नहीं खो सकता!”
आत्मीय मित्रों, महाराज के ‘स्वराज्य’ की नींव यों ही विशाल, दृढ़ और सुस्थिर नहीं थी! उस समय की सबसे बड़ी मुगल सल्तनत भी महाराज के ‘स्वराज्य’ को क्षति नहीं पहुँचा सकी। इसके विपरीत महाराज और मावलों ने मुगल सल्तनत को उत्तरोत्तर क्षीण कर दिया।
उपरोक्त घटना इतिहास के किसी-न-किसी पृष्ठ पर निश्चित ही अंकित होगी। महाराष्ट्र में, लोक में महाराज की ऐसी अनेकानेक कथाएँ प्रचलित हैं। महाराष्ट्र का बच्चा-बच्चा महाराज, मावला और स्वराज्य पर आज भी गर्व करता है। यह कथा मेरे बचपन की कथा-स्मृतियों में अमिट अंकित रह गयी है। सोचा, आज जब सूर्य उत्तरायण में प्रवेश कर रहा है, क्या पता इस कथा को पढ़ कर किसी में जाग्रति (चेतना) आ जाए। धन्य थे महाराज, मावला और धन्य होंगे वे सभी जो महाराज के विचारों का अनुसरण करेंगे।