राजमहलों में ठाठ बाट के साथ रहने वाले राजघरानों ने रियासत के खत्म होते ही राजशाही छोड़ लोकशाही की डगर पकड़ ली। कभी महलों में खुद की जयकार और रियाया के शीश झुकाने पर प्रसन्न होने वाले राजा महराजाओं को अब रियाया के दरवाजे पर आने को विवश कर रही है। वजह, सत्ता की ललक। हाल ये है कि चुनाव में राजघरानों को बतौर प्रत्याशी खुद रियाया की ड्योढ़ी पर आकर माथा टेकना पड़़ रहा है। देश के सबसे बड़े राज्य यूपी में अभी भी करीब डेढ़ दर्जन राजघराने सियासत में सक्रिय हैं। राजा साहब, कुंवर साहब, महारानी, राजकुमारी के नाम से पहचान रखने वाले इन राजघरानों के लोग पिछले कई दशक से जनता का आर्शीवाद हासिल कर न सिर्फ विधायक, सांसद और मंत्री बने बल्कि मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक की कुर्सी पर विराजमान हुए। सत्रहवीं लोकसभा के चुनाव में भी यह सिलसिला इस बार भी कायम है। पड़रौना, मनकापुर, बरांव, कालाकांकर, बेंती समेत अन्य कई राजघराने फिर से इस बार जनता के सामने हैं।
इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के मांडा राजघराने के वीपी सिंह जो राजा मांडा के नाम से देश भर में जाने गए, लगातार विधायक-सांसद, मंत्री के अलावा यूपी के मुख्यमंत्री से लेकर देश के प्रधानमंत्री तक बने। कुशीनगर जिला बिहार-यूपी का बार्डर है। यहां स्थित पड़रौना राजघराना से सीपीएन सिंह चुनाव जीतकर मंत्री बने। इसके बाद उनके पुत्र कुंवर आरपीएन सिंह सियासत में आए और चुनाव लड़ना शुरू किया। आरपीएन सिंह पंद्रहवीं लोकसभा में सांसद बनने के बाद केंद्र सरकार में गृहराज्य मंत्री बने। 2014 के चुनाव में हार गए। इस बार फिर से बतौर कांग्रेस उम्मीदवार कुशीनगर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। इलाहाबाद संसदीय सीट से भाजपा के कद्दावर नेता की पहचान रखने वाले डॉ. मुरली मनोहर जोशी को हराकर सुर्खियों में आए कुंवर रेवती रमण सिंह इलाहाबाद के यमुनापार में बरांव राजघराना से ताल्लुक रखते हैं।
आठ बार करछना सीट से विधायक और इलाहाबाद से दो बार सांसद रह चुके कुंवर रेवती रमण सिंह का नाम यहां से इस बार भी सपा प्रत्याशी के रूप में सामने आ रहा है। इनके पुत्र कुंवर उज्जवल रमण सिंह भी राजनीति में सक्रिय हैं। करछना से कई बार विधायक रहे। प्रतापगढ़ जिले की कालाकांकर राजघराने से दिनेश सिंह सात बार सांसद और इंदिरा सरकार में विदेश मंत्री तक रहे। इसके बाद उनकी बेटी राजकुमारी रत्ना सिंह सांसद बनीं। इस बार रत्ना सिंह फिर चुनाव लड़ना चाह रही हैं। अमेठी राजघराने के राजा रणंजय सिंह कई बार विधायक चुने जाते रहे। बाद में संजय सिंह ने राजनीति की विरासत संभाली। केंद्र सरकार में मंत्री पद को नवाज चुके संजय सिंह अभी भी सक्रिय हैं।
सुल्तानपुर से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर चुके संजय सिंह को अपनी पहली पत्नी गरिमा सिंह के कड़े विरोध का सामना करना पड़ सकता है। गरिमा सिंह भाजपा की विधायक हैं। संजय सिंह का पहली पत्नी गरिमा सिंह से खुला विरोध जगजाहिर है। बात गोण्डा जिले की मनकापुर रियासत की करें तो राजा आंनन्द सिंह ने प्रदेश से लेकर केंद्र तक की राजनीति की। विधायक और सांसद बने। पिछली बार सपा सरकार में कृषि मंत्री रहे। उनके बेटे कीर्तिवर्धन सिंह ने भाजपा का दामन थामा। इस बार भाजपा से चुनाव प्रत्याशी हैं। प्रतापगढ़ जिले की एक और रियासत भदरी है। यहां की कुण्डा सीट से रघुराज प्रताप सिंह ‘राजा भैया’ 1993 से लगातार निर्दलीय विधायक चुने जाते रहे। आसपास की कई सीटों पर राजा भैया का दखल है। प्रदेश में कई बार मंत्री पद पर रहे। राजा भैया इस बार जनसत्ता नाम से नयी पार्टी बना ली है। बहरहाल, राजमहलों से निकलकर रियाया की ड्योढ़ी तक पहुंची राजघरानों की सियासी ललक की साध कैसे पूरी होगी यह अभी भविष्य के गर्भ में है।
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शिवा शंकर पाण्डेय
लेखक सबलोग के उत्तरप्रदेश ब्यूरोचीफ और भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ के प्रदेश महासचिव हैं| +918840338705, shivas_pandey@rediffmail.com

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