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निर्देशक – काशवी नायर
लेखक – अनुजा चौहान, काशवी नायर
स्टार कास्ट – नीना गुप्ता, जॉन अब्राहम, अदिति राव हैदरी, अर्जुन कपूर, रकुल प्रीत सिंह, कंवलजीत सिंह, सोनी राजदान आदि
रिलीजिंग प्लेटफार्म – नेटफ्लिक्स
एक बुढ़िया है नब्बे साल की जो कभी पाकिस्तान के लाहौर की छत्तीस कबूतरवाली गली में रहा करती थी। बंटवारा हुआ उसका पति उस बंटवारे की मार काट में मारा गया। अब वह अमृतसर रहती है उसका पोता अमेरिका रहता है। वह अमेरिका से अमृतसर आया दादी की तबियत खराब होने के कारण। अब यहां दादी अपनी आखरी इच्छा जाहिर करने लगी कि उसे लाहौर जाकर अपना घर देखना है। पोता लग गया उसे लाहौर भेजने की कवायद करने। लाहौर वह दादी को तो नहीं ले जा पाया किसी कारण से लेकिन खुद चला गया। अब इससे पहले उसने कुछ वीडियो देखे और अपनी गर्लफ्रैंड के काम की तारीफ को खबर में सुना जिसमें उसने एक सौ साल पुराने पेड़ को उखाड़कर दूसरी जगह लगाया था। इसी तरह आजकल तकनीक की मदद से घर भी इधर-उधर ले जाए जाने लगे हैं तो पोता भी वही कोशिश करता है कई अड़चने आती हैं लेकिन वो घर ट्रक पर उठाकर ले आता है। इस बीच वसीयत भी आती है जिसके लिए सब रोना रोते हैं उस वसीयत का बंटवारा किस तरह किया दादी ने और मरने की कगार पर खड़ी दादी पाकिस्तानी देसी ठर्रा पीकर सात साल और ज्यादा कैसे जी ली ये सब फ़िल्म के अंत में पता चलेगा।
कहानी दिल को जरूर छूती है और जिस तरह से इसे दिखाया गया है उस समय का सेटअप, लोकेशन सब ठीक लगता है लेकिन फिर गड़बड़ कहाँ है? चूकते कहाँ है निर्देशक? इसका जवाब आपको फ़िल्म देखने के बाद पता चले उससे पहले मैं बता दूँ। दरअसल घर को पाकिस्तान से उठाकर हिंदुस्तान लाना कोई आसान काम तो है नहीं। और जब हमारे आपस में मुल्कों के बीच रिश्ते इस कदर खराब हो कि अगर वहां का कोई बंदा हमारे क्रिकेटर जैसे कि हरभजन का इसमें इस्तेमाल हुआ है उसे बंदर कह दे तो गुस्सा आएगा ही। उस गुस्से में मैच के दौरान कोई हिंदुस्तानी पाकिस्तानी के सिर पर बोतल दे मारे कांच की, उस मियां की दाढ़ी नोच ले तो ऐसे में वह मियां जब मेयर निकले तो घर क्यों उठाकर लाने देगा भला। इस पर भी फ़िल्म बात करती है कि पाकिस्तान के वजीरे आजम ने परमिशन दे दी। चलो मान लेते हैं लेकिन ये बीच-बीच में पंजाबियों का पूरा ढबर तोड़-फोड़ करता है वो इतनी दूर ट्रक पर घर कैसे उठा लाया बिना उसकी एक भी ईंट को गिराए। इसके अलावा भी कई जगह अगर आप सवाल जवाब करेंगे तो फ़िल्म आपको बिल्कुल अच्छी नहीं लगेगी।
शोले के अंदाज में फ़िल्म के लिए अमितोष नागपाल के लिखे डायलॉग हो या फिलॉसफी झाड़ती हुई बातें ये सब आपको गुदगुदाती हैं और पूरी फिल्म खत्म होने तक एक हल्की सी मुस्कान आपके चेहरे पर बराबर बनाए रखती है। पाकिस्तान की आम जनता का इसमें सहयोग करना यह दिखाता है कि आपसी रिश्ते तो राजनीति के चलते खराब हुए हैं। वरना आम जनता न यहां की खराब है न वहां की। और एक बात लॉजिक न लगाना इस फ़िल्म को देखते हुए। जैसे कि कोई दुश्मन देश अपने वहां बना हुआ बरसों पुराना मकान उठाकर आपको क्यों लाने देगा भला। ऐसे तो कल को हमारे और उनके दोनों देश के बूढ़े लोग झंडा उठा लेंगे की हमारे हमारे मकान वापस करो। ये सब बचकानी बातें छोड़कर फ़िल्म को देखें तो असल मनोरंजन का मजा ले सकते हैं।
फ़िल्म में काशवी नायर और अनुजा चौहान की कहानी में तर्क भले न हो लेकिन आपको हंसाने के, आपकी आंखों में पानी लाने के , बीच-बीच में गुस्सा करने के भी मौके जरूर देती है। महेंद्र शेट्टी की सिनेमेटोग्राफी अच्छी रही कुलमिलाकर। एक्टिंग में नीना गुप्ता दिल जीत लेती हैं एक बार फिर से। वहीं अर्जुन कपूर, अदिति राव हैदरी, सोनी राजदान, जॉन अब्राहम भी जंचे हैं। खास करके छोटे पाकिस्तानी बच्चे का रोल मीर मेहरूस ने बड़ी ही खूबसूरती से अदा किया है। यह लड़का जरूर आगे जाएगा अगर इसे मौके मिलते रहे तो। फ़िल्म में तनिष्क बागची का संगीत आपको कहीं-कहीं झुमाता भी है, हिलाता भी है, नचाता भी है।
फ़िल्म की शुरुआत में अर्जुन कपूर दादी की बात बताता है कि दादी कहती है दुनिया में चीजें बड़ी बेस्वाद है। खाना बिना अचार के और जिंदगी बिना प्यार के। जिस चीज से प्यार करो उसे यादों में संभाल कर रखो और यादों को दिल में। तो बस ऐसा ही फ़िल्म के साथ है अपने दिमाग के तर्कों को दरकिनार करते हुए यह फ़िल्म देखोगे तो मनोरंजन भरपूर मिलेगा। आपके खानदान में भी आपके दादी-दादा या किसी बूढ़े बुजुर्ग की यादें पाकिस्तान में बसी हैं तो उन्हें यह फ़िल्म जरूर दिखाएं। बिना अचार के जैसे खाना अच्छा नहीं लगता कभी-कभी वैसे ही इस फ़िल्म में जो जरूरी अचार के मसाले यानी फ़िल्म के मसाले हैं उन्हें जरूर मिक्स करके आपके लिए इस हफ्ते अच्छा परोसा गया है। बाकी कमियां तो कदम -कदम पर है ही।
विशेष नोट – फ़िल्म में बताए गए के० पी० एंटिक्विटीज एक्ट 1997 जैसा कोई एक्ट पाकिस्तान में नहीं बना हुआ है। हां कानून जरूर बना हुआ है। इस तरह के फैक्ट फ़िल्म में मनोरंजन के उद्देश्य से तो ठीक है लेकिन तर्कशील और तर्कणा व्यक्ति को जरूर परेशान करने वाले तथ्य हैं।
अपनी रेटिंग – 2.5 स्टार
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तेजस पूनियां
लेखक स्वतन्त्र आलोचक एवं फिल्म समीक्षक हैं। सम्पर्क +919166373652 tejaspoonia@gmail.com
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