शख्सियत

राजीव दीक्षित : स्वदेशी आन्दोलन के असाधारण प्रवक्ता

 

आजाद भारत के असली सितारे – 58

हमारे देश में स्वदेशी को देशप्रेम से जोड़कर देखने वालों की संख्या बहुत हैं। लोग स्वदेशी कंपनियों के उत्पाद को अपनाना प्रकारान्तर से देश की सेवा के रूप में देखते हैं। उनका तर्क है कि अपने देश की कंपनियों द्वारा अपने ही देश में उत्पादित वस्तुओं का यदि हम इस्तेमाल करेंगे तो उसका मुनाफा अपने ही देश में रहेगा और उससे अपने देश की प्रगति होगी। यह बात आँशिक रूप से ही सही है और इस धारणा के बहाने देश की भोली भाली जनता को गुमराह अधिक किया गया है। गुमराह होने वालों में अनेक प्रतिष्ठित राष्ट्रभक्त और ईमानदार बुद्धिजीवी भी हैं। उन्हीं में से एक हैं राजीव दीक्षित।

राजीव दीक्षित( 30.11.1967—30.11.2010) ने हमारे देश को लूटने वाली हजारों विदेशी कंपनियों के खिलाफ स्वदेशी आन्दोलन की शुरुआत की। देश में स्वदेशी-विदेशी वस्तुओं की विस्तृत सूची तैयार करके स्वदेशी अपनाने का आग्रह किया। 1991 में डंकल प्रस्ताव के खिलाफ घूम- घूम कर जन जाग्रति अभियान चलाया।  कोका कोला और पेप्सी जैसे पेयों के खिलाफ अभियान चलाया और कानूनी कार्यवाही की। पिछली सदी के अन्तिम दशक में राजस्थान के अलवर जिले में केडिया कंपनी के शराब कारखानों को बंद करवाने में भूमिका निभाई। टिहरी बाँध के खिलाफ ऐतिहासिक संघर्ष किया और भयंकर लाठीचार्ज में चोटें खाईं। स्वदेशी जनरल स्टोर की एक श्रृंखला खोलने के आंदोलन का समर्थन किया। स्वदेशी आंदोलन और आजादी बचाओ आंदोलन जैसे आंदोलनों की शुरुआत की और बाबा रामदेव के साथ मिलकर उन्होंने भारत स्वाभिमान न्यास की स्थापना की।

दरअसल पूँजी कभी देशी या विदेशी नहीं होती। वह तभी तक देशी होती है जबतक उसके पास विदेश से भी मुनाफा कमाने की क्षमता नहीं होती। पूँजी का सिर्फ एक ही चरित्र होता है मुनाफा कमाना। वह मुनाफा चाहे कहीं से भी मिले। जबतक उसके पास अपने उत्पाद विदेश में भेजने, विदेश में निर्मित करने और विदेश के बाजार में बेचने की क्षमता नहीं होती तभी तक वह अपने देश के बाजार पर निर्भर रहती है, किन्तु उसका उद्देश्य हमेशा विदेशी बाजार तक पाँव पसारना होता है। स्वदेशी का सबसे मुखर आवाज लगाने वाले बाबा रामदेव अब अपने पतंजलि के उत्पाद दुनिया के बहुत से दूसरे देशों में बेंच रहे हैं और खूब मुनाफा कमा रहे हैं।

 दरअसल बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कोई अपना देश नहीं होता। उनका वही देश होता है जहाँ से मुनाफा मिलता है। विजय माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चौकसी आदि न जाने कितने स्वदेशी व्यापारी आज अपनी पूँजी के साथ विदेश की धरती पर मौज कर रहे हैं और हमें ठेंगा दिखा रहे हैं। उनके लिए स्वदेश का कोई अर्थ नहीं। जहाँ वे रह रहे हैं वही उनका स्वदेश है। हमारे देश के ग्राहकों से रिलाएंस भी उसी तरह अपने उत्पाद का लाभ लेता है जैसे सैमसंग, जबकि सैमसंग विदेशी कंपनी है।

कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने आजादी की लड़ाई के दौरान एक बार कहा था कि हमें ऐसी आजादी नहीं चाहिए जिसमें ‘जॉन’ की जगह ‘गोविन्द’ कुर्सी पर बैठ जायँ। किन्तु हुआ वही जिसकी प्रेमचंद को आशंका थी। गोरी चमड़ी वाले अंग्रेजों की जगह सत्ता काली चमड़ी वाले ‘अंग्रेजों’ के हाथ में आ गई। सच यह है कि सन् 1947 में सिर्फ सत्ता का हस्तांतरण हुआ था। हमारे देश की आम जनता तब भी शोषित थी और आज भी शोषित है। शोषण चाहे जो भी करे, वह शोषण ही होता है। अंग्रेजों के जमाने में हमारे देश के जमींदार लोग अपने आसामियों का खूब शोषण करते थे तो क्या हम उनके शोषण को इसलिए जायज ठहराएंगे क्योंकि वे जमींदार हमारे देश के निवासी थे ?   

राजीव दीक्षित अत्यंत प्रतिभाशाली राष्ट्रभक्त थे। उनकी वाणी में जादू था। उनकी स्मरण शक्ति भी अद्भुत थी। देश की सेवा को ही उन्होंने अपने जीवन का एकमात्र उद्देश्य बना लिया। वे अविवाहित रहे और पूरी तरह देश के प्रति समर्पित। उनकी दृष्टि में स्वदेशी अपनाना ही सच्ची देशसेवा है। बाबा रामदेव द्वारा स्थापित भारत स्वाभिमान न्यास के वे महासचिव थे। वे उस समय हमें छोड़कर चले गए जब वे अपना सर्वोत्तम हमें दे सकते थे।

राजीव दीक्षित का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जनपद की अतरौली तहसील के ‘नाह’ नामक गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम राधेश्याम दीक्षित एवं माँ का नाम मिथिलेश कुमारी था। उन्होंने फिरोजाबाद जिले के पी.डी.जैन इंटर कॉलेज से इण्टरमीडिएट तक की शिक्षा प्राप्त की और फिर 1984 में के.के.एम. कालेज, जामूई, बिहार से इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार में बी.टेक की डिग्री के लिये दाखिला लिया।  कहा जाता है कि अपनी बी.टेक. की पढ़ाई के दौरान एक शोध पत्र पढ़ने के लिए वे नीदरलैंड गए। वहाँ एम्सटर्डम में उन्हें अपना शोध पत्र पढ़ना था। जब उन्होंने अंग्रेजी में अपना शोध पत्र पढ़ना शुरू किया तो एक डच वैज्ञानिक ने उन्हें रोकते हुए कहा कि, “तुम अपनी मातृभाषा हिन्दी में शोध पत्र क्यों नहीं पढ़ते ?” इसपर राजीव दीक्षित ने जवाब दिया कि, “अगर मैं हिन्दी में पेपर पढ़ूँगा तो यहाँ पर किसी को समझ में नहीं आएगा।” इसपर उस डच वैज्ञानिक ने कहा कि, “हमारे समझने या न समझने की चिन्ता आप क्यों करते हैं ? और आप से पहले आए हुए कई वैज्ञानिकों ने अपनी मातृभाषा में रिसर्च पेपर पढ़ा है जबकि वे भी चाहते तो अंग्रेजी में पढ़ सकते थे। इसके अलावा यहाँ पर भाषा के अनुवाद की सुविधा उपलब्ध है जिससे आपकी बात लोगों तक पहुँच जाएगी।”  

इसके बाद राजीव दीक्षित ने मातृभाषा का महत्व समझा। उन्होंने हिन्दी पर अपनी पकड़ बनानी  शुरू की क्योकि बचपन से अंग्रेजी विद्यालयों में पढ़ने की वजह से उनकी आदत अंग्रेजी भाषा की बनी हुई थी। वहीं पर उन्होंने अन्य देशों के वैज्ञानिकों से उनकी शिक्षा के माध्यम के बारे में प्रश्न किया तो उन्हें पता चला कि उनकी शिक्षा का माध्यम उनकी अपनी मातृभाषाएं हैं। तब राजीव दीक्षित ने सोचा कि अगर दूसरे देश अपनी मातृभाषा में उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं तो भारत में शिक्षा अंग्रेजी माध्यम से क्यों है?  इसके बाद मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने के वे कट्टर समर्थक हो गए।

लेकिन मातृभूमि की सेवा के जुनून ने उन्हें स्वदेशी आंदोलन के लिए बीच में ही शिक्षा छोड़ने को बाध्य कर दिया। 1991 में उन्होंने आजादी बचाओ आंदोलन शुरू किया। उन्होंने भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों के जीवन से देशप्रेम का पाठ सीखा। बाद में जब उन्होंने महात्मा गाँधी को पढ़ा तो उनसे भी प्रभावित हुए। 

राजीव का मानना था कि भारत का मौजूदा समूचा सिस्टम पश्चिम की नकल है और इसे बदलने की जरूरत है। भारत की शिक्षा पद्धति को मैकाले की देन बताने वाले राजीव दीक्षित के अनुसार शिक्षा के लिए आज भी हमारे यहाँ की पुरानी गुरुकुल प्रणाली ही उत्तम है। उनके अनुसार हमारे यहाँ की न्याय व्यवस्था अंग्रेजों के बनाए हुए कानून की फोटोकॉपी जैसी है, जिसके कई कानून भारतीयों को अपमानित करने वाले हैं और इन्हें बदला जाना चाहिए।  उनका दावा था कि देश का 80% टैक्स रेवेन्यू नेताओं और नौकरशाहों के हिस्से में चला जाता है। उनके अनुसार लिबरलाइजेशन, प्राइवेटाइजेशन और ग्लोबलाइजेशन भारत के सबसे बड़े दुश्मन हैं, जो भारत को आत्मघाती स्थिति में ले जा रहे हैं। राजीव कहते थे कि देश के विचारकों ने खेती के क्षेत्र में पर्याप्त काम नहीं किया, जिसकी वजह से आज किसान खुदकुशी करने को मजबूर हैं।

सन 1999 में राजीव दीक्षित की मुलाक़ात योग गुरु स्वामी रामदेव से हुई। उस समय स्वामी रामदेव योग को देश-विदेश में फ़ैलाने की मुहिम पर थे। स्वामी रामदेव से मुलाकात के बाद उन्होंने भारत को स्वावलम्बी और स्वदेशी बनाने के लिए दस वर्ष तक अथक प्रयास किया। दोनों ने मिलकर 2009 में “भारत स्वाभिमान ट्रस्ट” की स्थापना की। “भारत स्वाभिमान ट्रस्ट” के महासचिव राजीव दीक्षित बनाए गए।  स्वामी रामदेव भी राजीव दीक्षित जी के व्याख्यानों से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने कई व्याख्यान अपने पतंजलि योगपीठ में करवाए ताकि उनकी बात टीवी के माध्यम से पूरे देश की जनता तक पहुँच जाए।

 1 अप्रैल 2009 को भारत स्वाभिमान ट्रस्ट का उद्घाटन हुआ जिसे आस्था टीवी चैनल पर सीधा प्रसारित किया गया था। अब राजीव दीक्षित की लोकप्रियता तेजी से बढ़ने लगी और देश के करोड़ो लोग उनके व्याख्यान सुनने लगे।  उनके व्याख्यान अत्यंत सरल भाषा में और रोचक होते थे। उन्होंने भारत स्वाभिमान ट्रस्ट के मंच से तमाम विदेशी कंपनियों द्वारा वर्षों से भारत को लूटने की कहानी का प्रभावशाली ढंग से वर्णन किया। उन्हें भारत की राजीनीतिक पार्टियों से भी आपत्ति थी और उनपर वे खुलकर प्रहार करते थे। इसी के साथ उन्होंने अंग्रेजी शिक्षा पद्धति, देश के सविधान, कानून प्रणाली जैसे मुद्दों की भी आलोचना की और तथ्यों के साथ उनपर प्रहार किए।

वे अपने व्याख्यानों में बताते थे कि अँगरेज़ भारत क्यों आये थे, उन्होंने हमें गुलाम क्यों बनाया, अंग्रेजों ने भारतीय संस्कृति और सभ्यता को, हमारी शिक्षा को, उद्योगों को क्यों और किस तरह नष्ट किया ? उन्होंने देश भर में घूम- घूम कर 12000 से अधिक व्याख्यान दिए। उनके व्याख्यान के प्रमुख विषय हैं, ‘मौत का व्यापार’, ‘स्वदेशी से स्वावलंबन’, ‘व्यवस्था परिवर्तन’, ‘भारत के सामाजिक एवं चारित्रिक पतन का षड्यंत्र’, ‘अँग्रेजी भाषा की गुलामी’, ‘अंतराष्ट्रीय संधियो मेँ फँसा भारत’, ‘विष- मुक्त खेती’, ‘ऐतिहासिक भूलें’, ‘भारत का सांस्कृतिक पतन’, ‘विदेशी कंपनियो की लूट एवं स्वदेशी का दर्शन’, ‘भारत का स्वर्णिम अतीत’, ‘संस्कृत भाषा की वैज्ञानिकता’, ‘भारत की विश्व को देन’, ‘मांसाहार से हानियाँ’, ‘संगठन की मर्यादा एवं सिद्धान्त’, ‘गुजरात व्याख्यान’, ‘अर्थव्यवस्था को सुधारने के उपाय’, ‘अर्थव्यवस्था मे मंदी के कारण और निवारण’, ‘भारतीय आजादी का इतिहास’, ‘प्रतिभा पलायन’ आदि।

इस तरह राजीव दीक्षित ने राजनीतिक प्रश्नों के अलावा घरेलू आरोग्य पद्धतियों और स्वदेशी चिकित्सा का भी प्रसार किया जिससे देश के लाखों लोग लाभान्वित हुए। उन्हें  खुलकर बोलना पसंद था और वे किसी नेता से नही डरते थे। वे सदा भारत के नेताओ की असलियत को देश की जनता तक पहुंचाते रहे।

भारत के सोये हुए स्वाभिमान को जगाना तथा भ्रष्टाचार, गरीबी, भूख, अपराध और शोषण मुक्त भारत का निर्माण करना भारत स्वाभिमान ट्रस्ट का उद्देश्य है। इसके लिये अखिल भारतीय स्तर पर एक राष्ट्रव्यापी आन्दोलन खड़ा करना इसकी अनिवार्यता। राजीव दीक्षित ने विदेश से कालेधन की वापसी, स्वदेशी तथा भ्रष्टाचार-मुक्त भारत के लिए जी तोड़ मेहनत की। भारत स्वाभिमान ट्रस्ट का देश की जनता से आह्वान था कि “हम केवल देशभक्त ईमानदार, बहादुर, दूरदर्शी और कुशल लोगों के लिए ही मतदान करेंगे। हम अपने आप को 100% वोट करने के साथ दूसरों को भी मतदान के लिए प्रेरित करेंगे।“ उसका यह भी लक्ष्य था कि “हम देशभक्त, ईमानदार, जागरूक, संवेदनशील, बुद्धिमान और ईमानदार लोगों को एकजुट करेंगे और राष्ट्र की शक्तियों को एकजुट करने का प्रयास करेंगे। हमें भारत को दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति बनाना है।“

भारत में रामराज्य स्थापित करने के पक्के समर्थक राजीव दीक्षित के अनुसार भारत के मेडिकल सिस्टम को आयुर्वेद आधारित किए जाने की जरूरत है, क्योंकि एलोपैथी शरीर को नुकसान पहुँचाती है और इससे पैसा विदेश चला जाता है। उनके अनुसार विदेशी कंपनियों को भारत में व्यवसाय करने का अधिकार नहीं होना चाहिए, क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था कमजोर होती है, देश का पैसा बाहर जाता है, विदेशी कंपनियाँ घटिया माल बनाकर भारतीयों को बेचती हैं और इससे भारत का पश्चिमीकरण हो रहा है।

गाय के गोबर से ईंधन बनाने और गोहत्या पर प्रतिबंध के लिये आजीवन लड़ने वाले राजीव दीक्षित के राष्ट्रवाद की अवधारणा बहुत कुछ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के राष्ट्रवाद से मिलती-जुलती है। वे कहते थे कि गाय के गोबर से बने साबुन से नहाने के 10 मिनट बाद शरीर से खुशबू आने लगती है। पुराने समय में राजा यज्ञ से पहले गोबर से नहाते थे और राम को भी ऐसा ही करना पड़ा था। राजीव के मुताबिक यूनीलीवर कंपनी का नाम बदलकर हिंदुस्तान लीवर इसलिए कर दिया गया, ताकि भारतीयों को बेवकूफ बनाया जा सके। नए नाम की वजह से भारतीयों को लगेगा कि ये एक भारतीय कंपनी है और वे इसका सामान खरीदने में हिचकेंगे नहीं। उनका दावा था कि नेस्ले कंपनी के प्रोडक्ट मैगी में सुअर के मांस का रस मिलाया जाता है और उनकी चर्बी का इस्तेमाल होता है। कोका कोला में तेजाब होने की बात भी राजीव कहते थे। 1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी पर राजीव दीक्षित का मानना था कि ये कोई हादसा नहीं, बल्कि अमेरिका द्वारा किया गया एक परीक्षण था, जिसमें भारत के गरीब लोगों को शिकार बनाया गया। राजीव लंबे समय तक इस हादसे की जिम्मेदार कंपनी यूनियन कार्बाइड के खिलाफ प्रदर्शन करते रहे। चट्टान से मज़बूत इरादे रखने वाले देश भक्त कर्मयोगी राजीव दीक्षित नें अपने 43 वर्ष के अल्प जीवन में समाजसेवा और लोक-कल्याण कार्यों के द्वारा ऐसी ख्याति प्राप्त की थी जिसे याद कर के आज भी हम गौरवान्वित महसूस करते हैं।

 

स्वामी रामदेव और राजीव दीक्षित दोनो ने काफी दिन तक एक साथ मिलकर काम किया। आस्था और संस्कार जैसे चैनलों पर दोनो एक साथ आते थे, किन्तु कहा जाता है कि बाद में दोनों में विवाद हो गया। 30 नवंबर, 2010 को राजीव दीक्षित की मौत हो गई, जो विवादास्पद है।

नवंबर के आखिरी सप्ताह में राजीव दीक्षित छत्तीसगढ़ दौरे पर थे। 26 से 29 नवंबर तक अलग-अलग जगहों पर व्याख्यान देने के बाद जब वे 30 नवंबर को भिलाई पहुँचे, तो वहाँ उनकी तबीयत खराब हो गई। वहाँ से दुर्ग जाने के दौरान कार में उनकी हालत बहुत खराब हो गई और उन्हें दुर्ग में रोका गया। दिल का दौरा पड़ने पर उन्हें भिलाई के सरकारी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया और फिर वहाँ से अपोलो बीएसआर हॉस्पिटल में शिफ्ट किया गया, जहाँ डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

राजीव दीक्षित के समर्थकों का दावा है कि मौत के बाद उनका शव नीला पड़ गया था। ऐसा लगता था कि उन्हें जहर दिया गया हो। उनके समर्थकों ने पोस्टमॉर्टम कराए जाने की भी जिद की, लेकिन उनकी नहीं सुनी गई। राजीव का शव हरिद्वार में स्वामी रामदेव के पतंजलि आश्रम ले जाया गया और वहीं उनकी अंत्येष्टि कर दी गई

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अमरनाथ

लेखक कलकत्ता विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर और हिन्दी विभागाध्यक्ष हैं। +919433009898, amarnath.cu@gmail.com
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