मुद्दा

मोबाइल टॉवर से निकलने वाली रेडिएशन समस्त जैवमण्डल के लिए खतरनाक

 

 अलेक्जेंडर पार्क्स नामक वैज्ञानिक द्वारा सन् 1862 में प्लास्टिक का अविष्कार किया गया, लेकिन पूरी तरह परिष्कृत सिंथेटिक प्लास्टिक का अविष्कार सन् 1907 में बेल्जियम मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक लियो बेकलैंड द्वारा किया गया। तत्कालीन समय में उस समय की मीडिया द्वारा प्लास्टिक के अविष्कार को दुनियाभर में एक महान क्रांतिकारी परिवर्तन करने वाले एक महान अविष्कार की तरह धुँआधार प्रचारित किया गया था!

खुद इसके अविष्कारक लियो बेकलैंड ने अपने इस अविष्कार पर मीडिया में यह वक्तव्य दिया था कि ‘अगर मैं गलत नहीं हूँ तो मेरा यह अविष्कार भविष्य के लिए अहम साबित होगा, यह न जलेगा न पिघलेगा’ लेकिन प्लास्टिक के अविष्कार के 114 वर्षों के बाद ही आज आधुनिक दुनिया प्लास्टिक के दुष्प्रभावों व उसके असीम भयंकरतम् प्रदूषण, उससे उत्पन्न लाइलाज बीमारियों से कितनी त्रस्त और दुःखी है! इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।

वैज्ञानिकों के अनुसार आज इस धरती पर प्रतिवर्ष 10 करोड़ टन प्लास्टिक का उत्पादन होता है, इस पृथ्वी पर इतना प्लास्टिक का बम्पर स्टॉक इकट्ठा हो गया है कि इससे पूरी पृथ्वी को 5 बार पूरी तरह लपेटा जा सकता है। जहाँ तक अब तक वैज्ञानिक शोधों से इसके दुष्प्रभाव की बात है, इससे प्रतिवर्ष लगभग एक लाख जलीय जीवों को अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ जाता है! यह दुनियाभर में मानव प्रजाति सहित समस्त जैवमण्डल के लिए आज जानलेवा व लाइलाज कैंसर, जन्मजात विकलांगता व सभी जीवधारियों के शारीरिक इम्यून सिस्टम को अत्यंत कमजोर करके उन्हें विभिन्न विमारियों से मौत के घाट उतार देने में सबसे बड़ा कारक बन गया है।

विडम्बना यह है कि प्लास्टिक प्रदूषण व इसके जैवमण्डल पर पड़नेवाले गहरे दुष्प्रभाव से मुक्ति के लिए आज दुनियाभर में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सेमिनार व गोष्ठियों का आयोजन करने को बाध्य होना पड़ रहा है ताकि प्लास्टिक प्रदूषण से कैसे मुक्ति पाई जाय, फिलहाल वर्तमान समय में भयंकरतम् प्लास्टिक प्रदूषण से मुक्ति के लिए अभी तक कोई सर्वमान्य हल अभी तक दुनिया के पर्यावरहितैषी वैज्ञानिकों को नहीं मिल पा रहा है।

ठीक प्लास्टिक के दुष्प्रभाव की तर्ज पर आज फिर दुनियाभर में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा व उनकी कठपुतली बनी सरकारों के कर्णधारों, तमाम मीडिया संस्थानों द्वारा सूचना और संचार क्रांति का ढिंढोरा पीटने के मुख्य कारक मोबाइल फोन को नेट प्रदान करने वाले इस देश के महानगरों से लेकर छोटे शहरों, कस्बों और गाँवों तक के सुप्रीमकोर्ट के मोबाइल टॉवर न लगाने के सख्त आदेश के बावजूद आवासीय क्षेत्रों, स्कूलों, अस्पतालों आदि पर लाखों की संख्या में कुकुरमुत्तों की तरह उग आए मोबाइल टॉवरों से निकलने वाली इलेक्ट्रो मैगनेटिक रेडिएशन किरणें मनुष्य प्रजाति सहित, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे या इस धरती के समस्त जैवमण्डल के लिए गर्भपात, नपुंसकता, हार्टअटैक, ब्रेनहैमरेज और सबसे घातक रोग कैंसर के जन्मदाता के रूप में एक यमराज के रूप में अपनी कुख्यात, बदनाम छवि बनाने में सफल हो चुका है! 

 मोबाइल टॉवर से निकलने वाली इलेक्ट्रो मैगनेटिक रेडिएशन किरणें मनुष्यप्रजाति सहित, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे या इस धरती के समस्त जैवमण्डल के लिए कितनी खतरनाक हैं, इस पर भारत सहित दुनियाभर के, पर्यावरणविदों द्वारा और विश्वविद्यालयों, वैज्ञानिक शोध संस्थानों आदि में लगातार शोध हो रहे हैं, आइए आपको कुछ बहुत ही प्रतिष्ठित पर्यावरण वैज्ञानिकों, वैज्ञानिक व मेडिकल संस्थानों द्वारा इस मोबाइल टॉवर से निकलने वाली इलेक्ट्रो मैगनेटिक रेडिएशन किरणों से होनेवाली विभिन्न गंभीर नुकसान को क्रमबद्ध रूप से दृश्यावलोकन या एक आकलन करते हैं।

कोलकाता के सुप्रतिष्ठित संस्थान नेताजी सुभाषचंद्र बोस कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों के शोध के अनुसार मोबाइल टॉवरों से निकलने वाली इलेक्ट्रो मैगनेटिक रेडिएशन किरणें मनुष्य प्रजाति सहित, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे या इस धरती के समस्त जैवमण्डल के सभी जीवों की कोशिकाओं को नष्ट करके उनमें कैंसर पैदा करने में सक्षम हैं, रेडिएशन से हृदयरोग भी होने की शत-प्रतिशत संभावना है, रेडिएशन से प्रभावित होनेवाले लोगों को प्रारम्भ में सिरदर्द, थकावट होती है उसके बाद उन्हें स्मृतिभ्रंश, दिल और फेफड़ों की भयंकर बीमारियों को होने की जबर्दस्त संभावना है।

चितरंजन नेशनल कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक के अनुसार मोबाइल टॉवर के रेडिएशन के आसपास 24 घंटे रहनेवाले लोगों में बहरापन, अंधापन और स्मृतिभ्रंश होने की पूर्ण संभावना है, उनके अनुसार मोबाइल टॉवर आवासीय क्षेत्र में कतई नहीं लगना चाहिए। राष्ट्रीय कैंसर संस्थान की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि मोबाइल टॉवरों से निकलने वाली तीव्र रेडिएशन से ब्रेनट्यूमर और ब्रेनकैंसर का गंभीर खतरा है।

स्टेट कोऑर्डिनेटर, इंडियन बर्ड कंजर्वेशन नेटवर्क के अनुसार निश्चित तौर पर मोबाइल रेडिएशन से छोटे पक्षियों यथा गौरैया, सन बर्ड, बबुना, टेलरबर्ड, प्रिनिया, बुलबुल आदि को अत्यधिक नुकसान हो रहा है, इससे पर्यावरण को गंभीर खतरा है, मोबाइल टॉवर के आसपास 300 मीटर की एरिया में रहनेवाले पक्षियों की चहचहाहट बिल्कुल कम हो गयी है। इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय के सुप्रतिष्ठित वैज्ञानिक डॉक्टर एस एस.शाह के अनुसार मोबाइल रेडिएशन के चलते शहर में मधुमक्खियों की संख्या बहुत कम हो गयी है, अब तो पेड़ों पर उनके छत्ते भी दिखाई नहीं देते।

उनके अनुसार इस रिसर्च को उन्होंने अपने लैब में प्रैक्टिकल करके देखा है। उनके अनुसार मधुमक्खियों में मतिभ्रम की स्थिति पैदा हो रही है, जिसको वैज्ञानिक भाषा में कोलेप्सडिस ऑर्डर कहते हैं, पैदा हो रहा है, इस विकृति में मधुमक्खियां अपने छत्ते को आने के रास्ते को भूलकर मर-खप जातीं हैं!

प्रोफेसर नीलम कुमार, जूलॉजी विभाग, चंडीगढ़ के अनुसार, ‘मोबाइल टॉवर्स से निकली घातक इलेक्ट्रो मैगनेटिक रेडिएशन किरणें न केवल मानव जीवन अपितु सम्पूर्ण प्रकृति पर दुष्प्रभाव डाल रहीं हैं, यथा रानी मधुमक्खी के अंडे देने की क्षमता पर बहुत दुष्प्रभाव पड़ रहा है, नर मधुमक्खी, जिसे ड्रोन भी कहते हैं, उनके सीमेन में बॉयोकेमिकल बदलाव आ रहा है। ‘डीएवी विश्वविद्यालय, जालंधर के पूर्व कुलपति डॉक्टर आर के कोहली के अनुसार मनुष्यों में रेडिएशन के चलते सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, अनिद्रा, याददास्त की कमी, हृदयरोग व कैंसर जैसे रोगों की समस्या उत्पन्न हो रही है। 

 मुंबई की एक सुप्रतिष्ठित रिसर्चर नेहा कुमारी के अनुसार मोबाइल टॉवरों से निकलने वाली रेडिएशन का असर केवल जीव-जंतुओं पर ही नहीं, अपितु फसलों पर भी पड़ रहा है, रेडिएशन क्षेत्र में स्थित खेतों की फसलें भूरे रंग में बदल जातीं हैं, जबकि जहाँ रेडिएशन कम है, वहाँ की फसलें खूब हरी-भरी रहतीं हैं। ‘इंटरनेशनल सेंटर फॉर रेडियो सांइस के वैज्ञानिकों के अनुसार ‘रेडिएशन से दूधारू पशुओं की दूध देने की क्षमता कम हो रही है, चमगादड़ों की संख्या में भी तेजी से गिरावट आ रही है, वे रेडिएशन से मर रहे हैं, वर्तमान समय में इस दुनिया में पक्षियों की कुल ज्ञात प्रजातियों की संख्या 9900 हैं, जिनमें रेडिएशन से 128 प्रजातियों का विलोपन हो चुका है, उनके अनुसार 9 से 18 सौ हर्ट्ज लो फ्रिक्वेंसी में उड़नेवाले पक्षियों का अस्तित्व खतरे में है।

वहीं बर्ड लाइफ इंटरनेशनल के अनुसार ‘एशिया महाद्वीप में पाई जानेवाली पक्षियों की कुल 2700 प्रजातियों में 323 प्रजातियों पर उनकी विलुप्तिकरण का गंभीर खतरा मंडरा रहा है। ‘कुछ दिनों पूर्व भारत के सुप्रतिष्ठित ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल सांइसेज ने अपने शोध के बाद एक रिपोर्ट जारी किया, जिसमें भारत के 48452 लोगों पर पिछले 1996 से 2016 तक मतलब पिछले 20 वर्षों तक वैज्ञानिक शोध किया गया।

इस शोध का यह निष्कर्ष निकाला गया कि मोबाइल रेडिएशन से ब्रैनहेमरेज, हृदयाघात और कैंसर तक होने की पूरी संभावना है! यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ तिरूवनंतपुरम् के जीवविज्ञान के वैज्ञानिकों ने मोबाइल रेडिएशन के दुष्प्रभाव को कॉकरोच पर रिसर्च करके देखा कि मोबाइल टॉवरों से निकलने वाली रेडिएशन से कॉकरोच के शरीर पर क्या असर पड़ता है, उन्होंने अपने अध्ययन में यह पाया कि रेडिएशन कॉकरोच के शरीर में स्थित रसायनों यथा उनकी बॉडीफैट और हीमैटोलॉजिकल प्रोफाइल को तेजी से परिवर्तित कर रहा है यानी इस रेडिएशन से उनके तंत्रिका तंत्र के रसायन में तेजी से बदलाव होता है।

इलेक्ट्रो मैग्नेटिक रेडिएशन बॉडीफैट में मौजूद प्रोटीन को तेजी से घटाने और अमीनो एसिड को बढ़ाने लगता है, इसके अलावा उसके शरीर में ग्लूकोज और यूरिक एसिड तुरंत बढ़ जाता है। अभी कुछ सालों पूर्व अमेरिका जैसे देश में मोबाइल टॉवरों से निकलने वाले घातक रेडिएशन के चलते वहाँ की मधुमक्खियों का ऐसा सत्यानाश हुआ कि वहाँ परागण न होने से फसलों का उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हुआ और पूरे अमेरीकी महाद्वीप में फसलचक्र तक बिगड़ गया, इससे वहाँ के किसानों को भारी नुकसान हुआ!

अमेरिका जैसे महाशक्तिशाली और उन्नतिशील देश में रेडिएशन से मधुमक्खियों को हुई भारी नुकसान की क्षतिपूर्ति के लिए बहुत बड़े पैमाने पर चीन और आस्ट्रेलिया जैसे देशों से मधुमक्खियों को आयात करने पर बाध्य होना पड़ा था! सबसे बड़ी बात अब तो इस दुनिया की सबसे बड़ी और लब्ध प्रतिष्ठित विश्व संस्था विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया के वैज्ञानिक तौर पर सबसे उन्नतशील 14 देशों के 31 वैज्ञानिकों द्वारा मोबाइल टॉवरों से निकलने वाली रेडिएशन के दुष्प्रभावों पर एक शोध कराया, जिसका निष्कर्ष यह निकला कि मोबाइल टॉवरों के रेडिएशन से प्रभावित हर जीव के मस्तिष्क की कोशिकाएं दुष्प्रभावित होतीं हैं, उन्हें दो तरह का कैंसर, पहला ग्लिमा और दूसरा ध्वनिक न्यूरोमॉस होने की प्रबलतम् संभावनाएं हैं।

देश-विदेश में वैज्ञानिकों द्वारा किये गये शोधों के अनुसार रेडिएशन की जद में आने वाले व्यक्तियों की सबसे पहले रोग प्रतिरोधक क्षमता धीरे-धीरे समाप्त होने लगती है, जो लोग पहले से ही बीमार और कमजोर हैं, उन पर रेडिएशन का दुष्प्रभाव सबसे ज्यादे पड़ता है, इसके अतिरिक्त रेडिएशन का सबसे ज्यादे दुष्प्रभाव वृद्ध लोगों, बच्चों व गर्भवती महिलाओं तथा उनके गर्भस्थ शिशुओं पर पड़ता है। मोबाइल टॉवरों से निकलने वाले घातक रेडिएशन से पक्षियों के हार्मोनल बैलेंस और उनके नर्वस सिस्टम पर बहुत अधिक दुष्प्रभाव पड़ने के अलावा जिस क्षेत्र में मोबाइल टॉवर लगे हैं, उस क्षेत्र में लगे पेड़ हरे-भरे और पत्तियों वाले तो रहेंगे, लेकिन उनमें रेडिएशन के दुष्प्रभाव से क्रमशः फल लगने उत्तरोत्तर कम होते जाएंगे!

 मोबाइल टॉवरों से हमें केवल नेटवर्क ही नहीं मिलता, अपितु उसके साथ-साथ हमें कैंसर, ब्रेनट्यूमर, हार्टअटैक, चर्मरोग आदि जैसे रोग भी उपहार में मिलते हैं! इस देश तथा विदेशों में हुए वैज्ञानिक शोधों के अनुसार अब यह बिल्कुल स्पष्ट हो गया है कि मोबाइल टॉवरों से निकलने वाली रेडिएशन किरणें मानव तथा अन्य सभी पशुपक्षियों के स्वास्थ्य पर बहुत ही प्रतिकूल तथा हानिकारक असर डालतीं हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार दुनिया में अब तक कैंसर को सबसे अधिक खतरनाक, लाइलाज व प्राणघातक रोग माना जाता था, परन्तु सच्चाई है कि कैंसर का रोग अपने मरीज की जान लेकर ही उसका पीछा छोड़ देता है लेकिन मोबाइल टॉवर से निकलने वाली रेडिएशन किरणें जानलेवा कैंसर से भी ज्यादे भयावहतम् हैं, क्योंकि कैंसर केवल अपने मरीज को ही मारता है।

लेकिन मोबाइल टॉवरों से निकलने वाली प्राणघातक किरणें हजारों-लाखों लोगों को कैंसरग्रस्त कर उन सभी को सीधे मौत के मुँह में धकेल देने का दुष्कृत्य कर देतीं हैं! आज भारत की अधिकांश आबादी सामूहिक रूप से बीमार है, आश्चर्यजनक बात यह है कि भारत के उच्च शिक्षित लोग भी इन भयावहतम् विभिन्न बीमारियों की वजह विभिन्न प्रकार के प्रदूषण यथा वायु, जल, ध्वनि या स्थलीय प्रदूषण को मानते हैं, लेकिन अब यह वैज्ञानिक आधार पर सिद्ध हो चुका है कि उक्तवर्णित सभी प्रदूषणों से भी ज्यादे भयावहतम् और जानलेवा प्रदूषण एक अदृश्य प्रदूषण, जिसे मोबाइल टॉवर से निकलने वाली इलेक्ट्रो मैगनेटिक रेडिएशन किरणों के रूप में एक नया प्रदूषण अब इस दुनिया में दबे पाँव इस दुनियाभर में अपना वर्चस्व स्थापित कर चुका है!

यह कटुसच्चाई है कि आज अधिकांशतः भारतीय समाज के बीमार और अस्वस्थ्य होने का कारण मानव बस्तियों में कुकुरमुत्तों की तरह उग आए बड़े-बड़े मोबाइल टॉवरों से निकलने वाली रेडिएशन की प्राणघातक व तीव्र बीमें हैं, जिन्हें हमारे ही समाज के कुछ बहुत ही लोभी और लालची लोग अपने घरों, स्कूलों और अस्पतालों की छतों पर लगवाकर समाज के एक बहुत बड़ी आबादी की मौत का पैगाम लिख दे रहे हैं, कितने दुःख और अफसोस की बात है कि सन् 2012 में राजस्थान हाईकोर्ट ने राजस्थान के सभी मोबाइल टॉवर प्रदाता कंपनियों को वहाँ के सभी स्कूलों, अस्पतालों व आवासीय परिक्षेत्रों से अपने मोबाइल टॉवर हटाने का सख्त निर्देश दिया था।

लेकिन आर्थिक तौर पर बहुत ही सुदृढ व सशक्त तथा ताकतवर बहुराष्ट्रीय मोबाइल कंपनियों के कर्णधारों ने भारत के सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाकर भारत के सुप्रीमकोर्ट में बैठे आमजन विरोधी, असंवेदनशील व पर्यावरण के धुर विरोधी विचारधर्मी जजों से राजस्थान हाईकोर्ट के उस जनहिताय आदेश को निरस्त कराकर मोबाइल कंपनियों ने आमजन की सेहत के साथ निर्लज्ज व बेशर्म कुकृत्य करने का खुला लाइसेंस व अधिकार पुनः ले लिया!

हतप्रभ करनेवाली और अत्यंत दुःख की बात यह भी है कि यही सुप्रीम कोर्ट 2014 में भारत के सभी आवासीय क्षेत्रों, स्कूलों और अस्पतालों से मोबाइल टॉवरों को हटाने का सख्त निर्देश दिया था, इस आदेश के बाद बहुत से मोबाइल टॉवर हटे भी, लेकिन भारत में भ्रष्ट नेता-भ्रष्ट ब्यूरोक्रेसी-भ्रष्ट ठेकेदारों की त्रयी ने धीरे-धीरे पुनः मोबाइल टॉवरों की संख्या अप्रत्याशित रूप से सुप्रीमकोर्ट के आदेश के पूर्व लगे टॉवरों की संख्या से भी ज्यादे संख्या में लगा दिए! आज इस देश में करोड़ों की संख्या में जिधर देखो उधर टॉवर ही टॉवर दिखाई दे रहे हैं!

कटुयथार्थ व हकीकत यह है कि आज विदेशी और अति ताकतवर मोबाइल कंपनियों के आगे इस देश के जिला प्रशासन से लेकर राज्य व केन्द्र तक के ब्यूरोक्रेट्स व सत्ता के कर्णधार घुटने टेक दिए हैं! यक्षप्रश्न है ऐसे सूचना क्रांति का क्या फायदा, जिससे इस धरती के सभी जीव-जंतुओं, परिंदों, तितलियों, भृंगों, भौरों, मनुष्यों और समस्त जैवमण्डल के अस्तित्व पर विलोपन का खतरा उत्पन्न हो जाय, अगर इस धरती से समस्त जीव ही बीमार और रूग्ण हो जाएंगे या उनका अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा तो मोबाइल पर बात कौन करेगा?

इसलिए मोबाइल कंपनियों को पैसे के हवस का अब परित्याग कर देना चाहिए, मनुष्य एक-दूसरे से थोड़ी सुस्त गति से ही सही बातचीत करके अगर शारीरिक व मानसिक तौर पर पूर्णतः स्वस्थ्य और दीर्घजीवी रहता है, तो वह आधुनिक सूचना क्रांति के रूग्ण व बीमार जीवन से लाख गुना बेहतर है, जिसमें उसके समेत समस्त जैवमण्डल के जीवन पर अस्तित्व तक का संकट के बादल छा जाए और इस धरती से सदा के लिए विलुप्ति का महासंकट खड़ा हो जाए!

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निर्मल कुमार शर्मा

लेखक गौरैया एवम पर्यावरण संरक्षण से सम्बद्ध हैं तथा पत्र-पत्रिकाओं में सशक्त व निष्पृह लेखन करते हैं। सम्पर्क +919910629632, nirmalkumarsharma3@gmail.com
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