सामयिक

महामारी के दुष्प्रभावों से उबरने का मनोवैज्ञानिक उपचार

 

  • मिथिलेश कुमार तिवारी

 

कोविड 19 ने आज महामारी के रूप में पूरे विश्व को प्रभावित कर रखा है। विश्व के लगभग सभी शक्तिमान देश इसके सामने संघर्ष करते दिख रहे हैं। भारत इस संघर्ष में शामिल है और साथ ही विश्व के दूसरे देशों की मदद में भी लगा हुआ है। भारत में अगले 3 मई तक लॉक डाउन घोषित है और नागरिकों से लगातार अपील की जा रही है कि वे अनावश्यक घर से बाहर ना निकलें। कोविड 19 ने दुनिया की सारी व्यवस्थाओं को तहस नहस कर दिया है। आर्थिक, राजनैतिक, वैज्ञानिक तथा स्वास्थ्य सेवाएं सब लगभग ध्वस्त हैं। इन पर पड़ने वाले प्रभावों का आकलन आने वाला समय करेगा।

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फिलहाल, लॉक डाउन के चलते घरों में परोक्ष रूप से कैद लोगों पर पड़ने वाले मनोसामाजिक प्रभावों का समय रहते अध्ययन किया जाना चाहिए तथा ससमय यथोचित उपाय किये जाने चाहिए। लॉक डाउन के चलते पड़ने वाले कुछ प्रमुख मनोवैज्ञानिक प्रभाव जिनकी सम्भावना ज्यादा है, का विवरण निम्नलिखित है:
1. सीखी गयी असह्यता: सेलीगमैंन ने अधिगम पर अपने शोध के दौरान इसकी अवधारणा को प्रस्तुत किया जिसमें प्राणी ज्यादा देर (घंटे या दिन कुछ भी हो सकता है) तक किसी ऐसी परिस्थिति मे रहा हो जिससे बाहर निकलने का कोई उपाय न रहा हो तो उसमें एक विशेष प्रकार की असह्यता विकसित हो जाती है जिसके कारण बाद में अगर उसको किसी दूसरी परिस्थिति में जहाँ से उस कष्टकारक परिस्थिति को नजरअन्दाज किया जा सकता है, प्राणी अपनी सीखी गयी असह्यता के कारण कोई प्रयास नही करता है।

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इस लॉक डाउन में जिसके और बढ़ने की प्रबल सम्भावना है, जहाँ पर लोग अपने घरों में कैद हैं, चाह कर भी बाहर जाना या अपनी मर्जी से कुछ भी कर पाना सम्भव नही हो पा रहा है, उनमे ऐसी स्थिति उत्पन्न होने की सम्भावना से इनकार नही किया जा सकता। लॉक डाउन खुलने के बाद कुछ दिनों तक इसकी वजह से उन लोगो को फिर से सामंजस्य स्थापित करने में कठिनाई हो सकती है।

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2. संक्रमण होने का डर: कोविड 19 से होने वाले संक्रमण का स्वरूप कुछ ऐसा है कि लोगो को संक्रमण होने का एक डर लगा रहता है। संक्रमण से बचाव के लिए सरकार की तरफ से मीडिया, सोशल मीडिया इत्यादि में बार बार हाथ धोने, मास्क पहनने इत्यादि की सलाह दी जा रही है जिससे संक्रमण से बचा जा सकता है। घरो में कैद लोगो के मन मे यह बात बैठ सकती है कि उनको संक्रमण हो सकता है। जब तक यह डर उनके दैनिक दिनचर्या को प्रभावित ना करे तब तक तो ठीक है, लेकिन जब इस डर का स्तर इतना अधिक हो जाए कि वह व्यक्ति की आम दैनिक दिनचर्या को प्रभावित करने लगे वहीं से समस्या उत्पन्न होने लगेगी।

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3. मनोग्रस्तता-बाध्यता: कोविड 19 से होने वाले संक्रमण के स्वरूप के कारण विश्व भर में हाथ को साबुन तथा सैनिटाइजर से साफ रखने, सफाई का विशेष ध्यान रखने, बाहर आने जाने पर हाथ को मुँह या चेहरे पे लगाने से पहले साबुन या सैनिटाइजर से साफ करने के लिए बार-बार सन्देश प्रसारित किया जा रहा है। जिसके फलस्वरूप लोग अपनी आदतों के अलावा हाथ धोने तथा सफाई पर विशेष ध्यान दे रहे हैं जिसके कारण लोगो में मनोग्रस्तता-बाध्यता के लक्षण उत्पन्न हो सकते है, जिसमें व्यक्ति ना चाह कर भी मन मे सफाई और गन्दगी सम्बन्धित विचारो को रोक नही पाता और उन विचारों के कारण विशेष प्रकार का व्यवहार करने को बाध्य हो जाता है।

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4. अवसाद: ऐसे समय मे अवसाद के लक्षणों की तीव्रता तथा आवृत्ति दोनो के बढ़ने की सम्भावना अधिक हो सकती है। लोग अपने घरों में कैद हैं, परिस्थितियों पर उनका नियन्त्रण नहीं है, सामाजिक अन्तःक्रिया की सम्भावना और न्यून हो गयी है, जिन सब के कारण अवसाद सम्बन्धित शिकायतें बढ़ सकती हैं।

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5. न्यून सामाजिक अन्तःक्रिया: कोविड 19 की वजह से सबसे ज़्यादा प्रभावित होने वाली है लोगो की सामाजिक अन्तः क्रिया जो कि संक्रमण को ले कर होने वाले डर से प्रभावित होने वाली है। लॉक डाउन के चलते लोग पहले से ही सोशल डिस्टेंसिंग का अनुकरण कर रहे हैं, लॉक डाउन खत्म होने के बाद भी लोगों के मन मे एक डर बना रह सकता है जिससे लोगों की सामाजिक अन्तः क्रिया प्रभावित हो सकती है। लोगो के मन मे शंका/डर लम्बे समय तक बना रह सकता है जो उनकी सामाजिकता को प्रभावित कर सकता है।
लॉक डाउन के चलते विभिन्न प्रकार के मनोसामाजिक प्रभाव देखने को मिल सकते हैं। ऊपर लिखित प्रभाव कुछ उदाहरण के लिए प्रस्तुत हैं जिनकी सम्भावना ज्यादा है। इनके अलावा भी बहुत प्रकार के लक्षण दिख सकते है जैसे दुश्चिन्ता, फोबिया इत्यादि।

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इन सब के अलावा, जो लोग पहले से किसी प्रकार के मनोवैज्ञानिक व्याधियो से ग्रसित हैं उन लोगो के स्वास्थ्य का मैनेजमेंट भी बहुत महत्वपूर्ण है। चूँकि वे लोग पहले से प्रभावित हैं और इस समय उन लोगो को मिलने वाली चिकित्सकीय सलाह और उपचार भी प्रभावित हो रहै हैं। अधिकतर निजी हॉस्पिटल बन्द है, सरकारी हॉस्पिटल युद्ध स्तर पर कोरोना से प्रभावित लोगों के उपचार में लगे हुए हैं ऐसे हालात में मनोवैज्ञानिक समस्याओं से प्रभावित लोगों के उपचार एवं सलाह में दिक्कतें आ रही हैं, जिनका कुछ हल खोजा जाना चाहिए।

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लॉक डाउन के चलते मनोसामाजिक प्रभावो से खुद को बचाने के लिए कुछ उपाय व्यक्तिगत स्तर पर अपनाये जा सकते हैं। ऐसे समय का उपयोग परिवार में गुणवत्तापूर्ण समय देकर बिताया जा सकता है। बच्चों के साथ खेल कर, उनको कुछ नया नया चीज सीखने में मदद करके समय को व्यतीत किया जा सकता है। अपनी रुचि और योग्यता के अनुरूप कोई सृजनात्मक कार्य अपनाया जा सकता है जैसे संगीत, पेंटिंग, क्राफ्ट, कुकिंग, बागबानी इत्यादि । बाहर जाने की इच्छाओं पर नियंत्रण रख कर उनको किसी दूसरी इच्छा से प्रतिस्थापित किया जा सकता है जिससे असह्यता जैसे नकारात्मक प्रभावो से बचा जा सकता है। सोशल डिस्टेंसिंग के समय मे अपने सोशल सम्बन्धों को दरकिनार नही करना है बल्कि तकनीकी का इस्तेमाल करके अपने सगे सम्बन्धियों से जुड़कर रहा जा सकता है।

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योग और प्राणायाम का नियमित अभ्यास ऐसे समय मे स्वास्थ्य को अच्छा रखने में बहुत महत्वपूर्ण हो सकता है। योग और प्राणायाम से मन तथा शरीर दोनो को स्वस्थ रखा जा सकता है। आज का समय सूचना एवं प्रौद्योगिकी का है जहाँ पर सूचनाओं का अम्बार है। हमे किसी भी सूचना को बिना जांचे उसको ग्रहण नही करना चाहिए। बहुत सारी गलत सूचनाएं भी मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म पर चल रही होती है। हमे ऐसी सूचनाओं से खुद को बचाना है।

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कोविड 19 के इस संकट भरे समय मे मानसिक समस्याओ को कम से कम रखने में बौद्ध दर्शन के कुछ महत्वपूर्ण तत्व बहुत काम आ सकते हैं अगर उनको अपनी दिनचर्या में शामिल करने का प्रयास किया जाए तो। बौद्ध दर्शन के अनुसार स्थिति की स्वीकार्यता, इस कठिन परिस्थिति से उचित सामंजस्य स्थापित करने में काफी मददगार हो सकती है। बहुत सारी परेशानियाँ वर्तमान परिस्थिति को स्वीकार नही करने से उत्पन्न होती है। अतः परिस्थिति की स्वीकार्यता जितनी होगी, होने वाली परेशानियाँ कम होगीं। बौद्ध दर्शन में माइंडफुलनेस नाम से एक पद्धत्ति भी काफी प्रचलित है।

माइंडफुलनेस का एक तात्पर्य वर्तमान में बने रहना एवं केंद्रित रहना होता है। चूंकि इस समय मे भविष्य को लेकर बहुत सारी चिन्ताएँ हैं जैसे नौकरी की, व्यवसाय की, लॉक डाउन कब तक रहेगा, किसी को संक्रमण हो गया तो क्या होगा इत्यादि। ऐसी तमाम चिंताओं को दूर करने में माइंडफुलनेस काफी मददगार हो सकता है।

लेखक सुन्दरवती महिला महाविद्यालय, भागलपुर में मनोविज्ञान विभाग में सहायक प्राध्यापक हैं|

सम्पर्क- +917408807646, mithilesh303318@gmail.com

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लोक चेतना का राष्ट्रीय मासिक सम्पादक- किशन कालजयी
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