कमलनाथ के लिए चुनौतियां कम नहीं, शिवराज ने ले रखा है बड़ा कर्ज
- आयुष अग्रवाल
पिछले कुछ महीने काफी हलचल वाले रहे. खासकर सत्ता के गलियारों में. बात सत्ता की हो और अमित शाह की न हों, मुनासिब नहीं होगा. देश में एक अलग तरह की राजनीति को जन्म देने वाले का नाम है अमित शाह. नेता अक्सर मेनस्ट्रीम मीडिया के सहयोग से चुनाव लड़ते आये, परंतु शाह ने कुछ और ही किया। मेनस्ट्रीम मीडिया के साथ-साथ कैसे युवाओं को एक तरफ लाना है, उसपर जोर दिया और यही कारण है कि आज चाहे फेसबुक हो या कोई दूसरी सोशल नेटवर्किंग साईट, भाजपा का दबदबा है.
पिछले दिनों एक खास पोस्ट वायरल हो रही थी. इस पोस्ट में कहा गया कि भाजपा शासित राज्यों में सरकार वर्ल्ड बैंक से लिए गये पिछली सरकारों के कर्ज को चुकाने में ही इतना धन खर्च कर देती है कि खजाना खाली ही रहता है. ऐसे में विकास कैसे हो? इतना ही नहीं यह भी पोस्ट भी सामने आई कि मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने अपने कार्यकाल में एक बार भी वर्ल्ड बैंक से लोन नहीं लिया. सभी ने मान लिया. क्योंकि भाजपा की आइटी सेल जिस मजबूती के साथ खड़ी है उसका मुकाबला करना थोड़ा मुश्किल सा लगता है। इन पंक्तियों के लेखक ने इन दोनों ही पोस्ट के बारे में तहकीकात की. थोड़ी सी छानबीन के बाद आम जनता के मोबाइल फोन तक पहुंचे इन दोनों पोस्ट की सच्चाई पता चल गई. इसके लिए आरटीआई के साथ साथ वर्ल्ड बैंक की वेबसाइट से भी सच्चाई समझने की कोशिश की गई.
हर नेता किसी भी चुनाव में पिछली सरकार के किये गये काम को धता बताता है. बुराई करता है. लेकिन आप जानते हैं कि सत्ता बदलने पर चीजें पहले जैसी ही चलती हैं. कर्ज लेना इन दिनों विकास का पैमाना सा बन गया है.
मध्यप्रदेश में भले ही शिवराज सिंह कहते रहें हों कि प्रदेश का खूब विकास किया. खूब चमकाया. आगे बढ़ाया. लेकिन हकीकत ये है कि वे कमलनाथ की सरकार के लिए सिर्फ वर्ल्ड बैंक का 626.20 मिलियन डॉलर का कर्ज छोड़ कर गये हैं.
उदाहरण के लिये देखिये:-
और भी कई ऐसे कर्ज हैं, जो सरकारें लेती रही हैं. सत्ता के गलियारे में हलचल बढ़ती है, सरकार बदलती है और फिर लोन चुकाने वाले भी। अब आप यह तो नहीं सोच रहे कि केन्द्र सरकार वर्ल्ड बैंक को लोन चुकाने की जिम्मेदारी रखती है न कि राज्य सरकार। तो यह भी जान लें। जब मध्य प्रदेश में लोन लिया जा रहा था, उस समय केन्द्र की नुमाईंदगी कर रहे सज्जन के साथ-साथ राज्य की नुमाईंदगी कर रहे सज्जन भी मौजूद रहते हैं और काफी समय केन्द्र सरकार सिर्फ एक गारेन्टर के रूप में मौजूद रहती है। मतलब साफ है। राज्य सरकारें ही पैसा लौटाती है। अब चाहें रास्ता केन्द्र के होते हुए जाता हो या फिर सीधे। इसके साथ साथ हमें यह भी जानना होगा कि लोन केन्द्र के द्वारा प्रारंभ की गयी योजना को मिलता है या फिर राज्य की। अगर राज्य की तो फिर मतलब साफ है कि राज्य सरकार जिम्मेदार होगी।
1947 के बाद आज तक ऐसी कोई सरकार नहीं आई जिसने वर्ल्ड बैंक से लोन नहीं लिया हो. कोई ऐसी सरकार नहीं आयी जिसने पिछले सरकारों द्वारा लिये गये कर्ज को न चुकाया हो. यह लोकतंत्र है और देश की भलाई करने वाले तथाकथित नेताओं की यह जिम्मेदारी है कि वे इसको पूरा करें. यह तो बस आईटी सेल की चाल है पार्टी को उपर दिखाने में, नहीं तो किसी सरकार को वर्ल्ड बैंक की बात पर लड़ते-झगड़ते नहीं देखा होगा.
अब भाजपा के शिवराज सिंह चैहान के नेतृत्व में लिये गये लोन को चुकाने वाले होंगे कांग्रेस के कमलनाथ. मजे की बात तो तब होगी जब कमलनाथ इस लोन के चुकाने की अंतिम तिथि बढ़ा देते हैं और पांच साल के बाद सत्ता के गलियारों में हलचल हो उठती है और सरकार बदल जाती है. यानि गेंद फिर से भाजपा के पाले में. बहरहाल, उम्मीद रखिये और ध्यान से चलिये. पता नही कब, कहां और कौन राजनीतिक पार्टी आपकी आंखों में धूल झोंककर आपका वोट ले ले. वह धूल वर्ल्ड बैंक की गलत जानकारी का भी हो सकता है और धर्म के नाम पर भी.
आयुष अग्रवाल
लेखक इंजीनियरिंग के छात्र हैं. सामाजिक क्षेत्र में काम करने वाली संस्था ‘एक पहल’ के संस्थापक भी हैं.