एक और समझदारी की आवश्यकता
तबलीगी जमात के मामले ने देश को एक संकटपूर्ण स्थिति में ला खड़ा कर दिया है। अभी का संघर्ष मौत से संघर्ष है। सारा देश इसका सामना करने को लगभग एकजुट है। हर के सिर पर महामारी का साया मँडरा रहा है। सतर्क और सुविधा सम्पन्न लोग अपने को सुरक्षित मानते भी हों, तो भी वे देश मे सैकड़ो या हज़ारों मौत की आशंका से काँप काँप जा रहे हैं। नतीजा है कि देश का हर इंसान ‘जनता कर्फ्यू’ और 21 दिनों के लॉक आउट के लिए मिले निर्देशों का पूरे तौर पर पालन कर रहा है। लोग अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के उपाय भी कर ले रहे हैं, पर सतर्कता और सावधानी के साथ। 29, 30 मार्च तक कोरोना संक्रमित और कोरोना से मौतों के जो आँकड़े आ रहे थे, उससे यह उम्मीद बंधने लगी थी कि शायद भारत इस लड़ाई में बिना ज्यादा क्षतिग्रस्त हुए, विजय पा लेगा।
हालाँकि दिल्ली से मजदूरों के अपने अपने राज्य में पलायन की भीड़ ने सोशल डिस्टेंसिग’ के सारी सीखों और हिदायतों का मखौल उड़ा दिया। इसने केन्द्रीय प्रशासन और व्यवस्था में दूरदृष्टि के अभाव को उजागर कर दिया। इसने इस बात को भी स्थापित किया कि इस राष्ट्रीय विपदा के समय भी केन्द्र और राज्य दिलोंजान से एक नहीं हुए, जिसकी ऐसे समय में अपेक्षा की जाती है। ऐसा भी लगा कि इस देश का एक बड़ा हिस्सा जो निचले तबके का है और अपने घरों से दूर रहकर रोज कमाता,रोज खाता है, उसकी ओर व्यवस्था के किसी भी हिस्से की नज़र ही नहीं गयी, चाहे वह केन्द्र सरकार की व्यवस्था का नेटवर्क हो या राज्य सरकार की। हज़ारों, बल्कि लाखों की भीड़ को इस तरह सड़कों पर उमड़ता देख पूरा देश दहशत में आ गया। देर से ही सही सरकारें जागीं, विशेषकर दिल्ली सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार, (जबकि बिहार सरकार को सोने के लिये यही उपयुक्त समय मिला, जिसने शायद उठने के लिये उस समय का अलार्म लगाया, जब बिहारी मरते खपते बिहार की सीमा पर पहुंचेंगे..इस बीच यदि उनकी भीड़ देश को कोरोना से संक्रमित कर भी दे, तो उनका क्या?)। मरता क्या न करता की तर्ज पर पर हम उम्मीद कर रहे थे कि चूंकि भीड़ के इस वर्ग का साबका विदेशों से आने वाले वर्ग या उनके सम्पर्क में आने वाले वर्ग से न के बराबर होता होगा, तो शायद इनका कोरोना संक्रमित व्यक्ति/व्यक्तियों से सम्पर्क न हुआ हो, और अन्ततः यह पलायन उतनी क्षति न करे।
अभी उम्मीदी और नाउम्मीदी के बीच देश था ही कि सारी उम्मीदों और प्रयासों पर पानी फेरता तबलीगी जमात का सच आ धमका। इस जमात और मौलाना साद की कट्टरता, मूर्खता और रूढ़िवादिता आतंक और मौत के कहर में कितना इजाफा करेगा, कहना मुश्किल है। देशी और विदेशी हजारों लोगों ने मार्च के महीने में दक्षिण दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित मरकज़ में तबलीगी जमात के धार्मिक जलसे में शिरकत की, जिनमें चीन, इंग्लैंड, सऊदी अरब, कुवैत सहित मलेशिया, इन्डोनेशिया, श्रीलंका, म्यांमार, बांग्लादेश, नेपाल, थाईलैंड, फ़िजी, सिंगापुर, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, कीर्गिस्तान, अल्जीरिया तथा जिबूती के एवं देश के 19 राज्यों के लोग शामिल थे। एक ओर देश के प्रधानमंत्री लोगों को हाथ जोड़कर ‘सोशल डिस्टेंसिग’ के लिये अनुरोध कर रहे थे, तो दूसरी ओर मरकज़ के प्रमुख मौलाना साद मरकज़ की इस जमात को यह कह रहे थे कि ये अल्लाह की ज़ात पर यकीन न रखने वालों की चालें हैं और उनकी स्कीमें हैं। बीमारी से बचाने के बहाने से उन्हें तरकीब नज़र आ गयी कि ये मौका है मुसलमानों को रोकने और बिखेरने का। जब पूरा देश किसी भी जगह पर, चाहे वह धार्मिक स्थल ही क्यों न हो, लोगों के जमा होने को नकार रहा था उस समय मो साद यह कह रहे थे कि इस वक़्त की ज़रूरत है कि मस्जिदों को आबाद करो, इनकी बातों में आकर क्या हम नमाज़ करना छोड़ दें, मिलना जुलना छोड़ दें, मुलाकातें छोड़ दें। यह वह भीड़ थी जिनमें कितने कोरोना से ग्रसित थे, पता नहीं। इसमें से निकले लोग भिन्न भिन्न राज्यों में गये, जहाँ कोरोना से इनकी मौतें हुईं। जाहिर है, इन मौतों के पहले ये जिन जिन लोगों से मिले होंगे, उनके कोरोना से संक्रमित होने की पूरी संभावना है और फिर वे जिनसे मिले होंगे, उनमें भी।
प्रशासन इस समय देश के विभिन्न राज्यों में जमात से वापस गए लोगों की खोज कर रहा है, कोरोना को लेकर उनकी जाँच की जा रही है और लोगों को क्वारंटाइन मे रखा जा रहा है। सबसे ज्यादा चिन्ता की बात है कि हर राज्य में जो कोरोना के मामले पाये जा रहे हैं, उनमें ज़्यादातर तबलीगी जमात के ही लोग हैं। जाहिर है, इन आंकड़ों ने इस जमात के लोगों द्वारा पूरे देश में कोरोना के संक्रमण की आशंका बढ़ा दी है।
जहाँ एक ओर इस स्थिति से आने वाले दिनों में घातक कोरोना के भयंकर परिणाम की आशंका से देश भयभीत है, वहीं दूसरी ओर एक विशेष समुदाय की मूर्खता और रूढ़िवादिता के प्रति देश में रोष फैलता जा रहा है। यह रोष कोई गलत रूप न ले, इसके प्रति सतर्कता समय की माँग है। इस देश में लगभग 20 करोड़ मुस्लिम हैं। मो. साद जैसे किसी एक व्यक्ति की और जमात से जुड़े लोगों की वजह से पूरे समुदाय के प्रति दुर्भावना का माहौल एक नए रोग का रूप न ले, यह सोचने, समझने की जरूरत है। अल्पसंख्यक समुदाय के कई बुद्धिजीवी तबलीगी जमात के इस कदम की निन्दा कर रहे हैं और समुदाय के लोगों को स्थिति की गंभीरता को समझने का संदेश दे रहे हैं। यह अच्छी बात है कि मो साद ने भी लोगों से इस घातक वायरस के प्रति सरकार के निर्देशों के पालन की बात की है। देश के सभी नागरिकों ने इस वायरस का सामना करने में जिस दृढ़ता, एकजुटता और सरकारी निर्देशों के पालन में समझदारी का परिचय दिया है, वैसी ही समझदारी वे किसी एक समुदाय के प्रति बनती दुर्भावना को न पनपने में दें, यही समय की माँग है।
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