सिनेमा

एक्शन, इमोशन, रोमांच का ओवरडोज ‘मरजाने’ में

 

{Featured in IMDb Critics Reviews}

 

पंजाब के सिनेमा में उम्दा फिल्में कम ही बन पाती हैं। ज्यादातर फिल्में कॉमेडी के साथ-साथ कमाई करने के इरादे से कमर्शियल सिनेमा बनाया जाता है। हालांकि ‘मरजाने’ भी कमर्शियल सिनेमा से अछूती नहीं है। बावजूद इसके यह सार्थक सिनेमा के खाते में ही ज्यादा फिट बैठ पाती है। पंजाब नशे का कारोबार, ड्रग्स, लड़कियां, नेतागिरी, हीरोगिरी, हथियार, माफ़िया, तस्करी आदि जैसी कई बीमारियां आज पंजाब में हद से ज्यादा दिखाई देती हैं।

पंजाबी फ़िल्म ‘मरजाने’ 10 दिसंबर को सिनेमाघरों में और उसके कुछ समय बाद जी5 ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हुई। कहानी पंजाब के ही एक कॉलेज में पढ़ रहे लड़के उसकी गर्लफ्रेंड से शुरू होती है। लेकिन फिर धीरे-धीरे उसके कई बार हल्के ड्रग्स लेने के साथ ही हीरोगिरी की बातें भी हवा में उड़ने लगती हैं। इसी का फायदा उठा उस गुग्गु गिल को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करता है चरना घोघड़। कहानी तेजी से पलटियां खाती जाती है और गुग्गु गिल आखिरकार राजनीति और दूसरों के फायदे का सौदा बनकर रह जाता है। भले-चंगे इंसान को पंजाब ही नहीं यह दुनिया किस तरह तबाह कर सकती है उसकी पूरी कहानी आपको इसमें मिलेगी।

कहानी की कसावट देखते हुए कुछ एक जगह इसके ढेर सारे पात्र होने के चलते आपको पूरा ध्यान फ़िल्म पर ही लगाना पड़ता है। यह फ़िल्म की सबसे बड़ी खासियत भी है कि फ़िल्म आपको एक पल के लिए भी नजरें फेरने का मौका नहीं देती। बल्कि इसके बीच में आने वाला इंटरवल भी थियेटर में देखने वालों को अखरा होगा निश्चित रूप से।

फ़िल्म में एक शेर इस्तेमाल किया गया है डायलॉग के तौर पर कि ….

सिर्फ एक कदम उठा था गलत राह ए शौक में
मंजिल तमाम उम्र मुझे ढूंढती रही।

अब यह गुग्गु गिल का एक गलत कदम उसे कहाँ ले आता है उसे जानने के लिए अब आपको जी5 का सब्क्रिप्शन लेना होगा। एक्टिंग के मामले में तमाम कलाकार उम्दा रहे हैं। लेकिन फिर भी गुग्गु गिल ग्रुप तारीफों का हकदार है।

‘आशीष दुग्गल’,’सिप्पी गिल’, ‘प्रीत कमल’, ‘कुल सिद्धू’, ‘प्रीत भुल्लर’, ‘तरसेम पॉल’,’बख्तावर’ सभी रंग जमाते हैं। साथ ही बीच-बीच में आने वाले जीत सिंह इस फ़िल्म के माध्यम से यह जता जाते हैं कि उन पर भरोसा करना चाहिए, निर्देशकों को।

डायरेक्टर ‘अमरदीप सिंह गिल’ की विशेष तारीफें की जानी चाहिए। बतौर लेखक एवं निर्देशक उन्होंने उम्दा काम किया है। इससे पहले वे पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री में एक्टिंग के अलावा म्यूजिक का डिपार्टमेंट भी सम्भाल चुके हैं। डायरेक्टिंग के मामले में उन्होंने इससे पहले ‘जोरा दस नम्बरिया’, ‘द सैकेंड चैप्टर’, ‘खून’, ‘रात’ जैसी चर्चित फिल्मों का तो कुछ नामालूम सी फिल्मों का निर्देशन भी किया है।

कास्टिंग हो या फ़िल्म का लुक, सिनेमैटोग्राफी, बैकग्राउंड स्कोर, कलरिंग सब तारीफें पाते हैं। बस गाने एक,दो ही अच्छे लगते हैं बाकी कहानी के साथ उनके लिरिक्स मिसफिट से बैठे नजर आते हैं। लेकिन सबकुछ अच्छा होने के बाद भी यह फ़िल्म कोई हल आपको नहीं देती। न ही उस जुर्म को रोकने का, न नशे की खिलाफत करती हुई पुरजोर कोशिश करने की बात कहती है। हाँ बस सब अपने फायदे में लगे हैं। लेकिन ऐसा करके भी अगर नशा, माफियागिरी, डॉन, तस्करी आदि पंजाब नहीं रोक पा रहा है तो फ़िल्मकार कैसे सब अच्छा दिखा सकते हैं। पंजाबी सिनेमा चाहे तो क्या कुछ अपनी सार्थकता के बलबूते नहीं बदल सकता?

फ़िल्म में भरपूर एक्शन, इमोशनल सीन, रोमांस, रोमांच देखने वालों को यह फ़िल्म जरूर भगाएगी। साथ ही इसके हर सीन खास करके अंत तक आते-आते आपकी मुठ्ठियाँ भींचने लगें, उनमें पसीना आने लगे या फ़िर कहीं खुले मुंह को एकदम से आप हथेलियों से बन्द कर लें तो समझिएगा ऐसा सिनेमा आप जैसे दर्शक और दर्शक ऐसा सिनेमा पाकर अपनी मंजिल को पूरा कर गया।

अपनी रेटिंग – 3.5  स्टार

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तेजस पूनियां

लेखक स्वतन्त्र आलोचक एवं फिल्म समीक्षक हैं। सम्पर्क +919166373652 tejaspoonia@gmail.com
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