- राजीव कुमार झा
हिन्दी कविता के पिछले अनेक कालों पर अगर हम गौर करें और उसमें वर्तमान दौर में लिखी गयी कविताओं पर भी अगर दृष्टिपात करें तो हमारी कविता की विषयवस्तु के केन्द्र में समाज के सामान्य वर्ग के लोग सदैव मौजूद दिखायी देते हैं। समाज के सामान्य वर्ग के लोगों में श्रमिक तबके के लोगों की मौजूदगी खास तौर पर शामिल है और इस सामाजिक वर्ग के लोगों के जीवन के प्रति संवेदना का भाव हिन्दी कविता में सदैव प्रवाहित होता रहा है। इस प्रसंग में सबसे पहले कबीर की चर्चा समीचीन है। उनका पालन पोषण जुलाहा नामक एक बुनकर दंपती के घर पर हुआ और अपनी कविताओं में उन्होंने समाज के प्रभुत्वशाली तबकों के लोगों के द्वारा जाति-धर्म और अन्य दूसरी सामाजिक संस्थाओं के द्वारा स्थापित और प्रचारित झूठ और पाखण्ड के जाल से अपने समाज के इस तबके के लोगों को खास तौर पर आगाह किया है।
“तुलसीदास के रामचरितमानस में भी राम के वनगमन प्रसंग में केवट को नाव से नदी के पार उतराई कराने के बाद वनवासी रूप में अकिंचन बने राम का केवट के समक्ष उसके पारिश्रमिक की राशि के भुगतान में खुद को असमर्थ पाना और इस विकट परिस्थिति में सीता के द्वारा अपनी रत्नजड़ित अँगूठी को निकालकर केवट की ओर बढाना, इसके बाद केवट का भावविह्वल हो जाना, यह प्रसंग हिन्दी काव्य में देश में श्रम संस्कृति और इसकी गरिमा के अनेक पक्षों से अवगत कराता है”।
यह भी पढ़ें- अपने समय को रच रहे हैं श्री कैलाश सत्यार्थी
“हिन्दी कविता में आधुनिक काल में रामधारी सिंह दिनकर ने भी अपने काव्य में ब्रिटिश काल के दौरान ग्रामीण कृषि श्रमिकों की मार्मिक जीवन दशा की ओर सबका ध्यान आकृष्ट किया – “जेठ हो या पूस हमारे कृषकों को आराम नहीं है। छूटे संग कभी बैलों का ऐसा कोई याम नहीं है”। दिनकर की अनेकानेक कविताओं में प्रकट होने वाला यथार्थ श्रमिकों के जीवन के प्रति कवि की सच्ची संवेदना को व्यक्त करता है।“
हिन्दी कविता के महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविता तोड़ती पत्थर को हिन्दी कविता में आधुनिक यथार्थवादी चेतना की अभिव्यक्ति के रूप में देखा जाता है। इसी प्रकार गोरख पाण्डेय और उदय प्रकाश की कविताओं में भी श्रमिक जीवन के संदर्भ उनके जीवंत काव्य प्रतीकों और बिंबों में मौजूदा व्यवस्था की अमानवीयता से निरन्तर संवाद करती हैं। इस दृष्टि से उदय प्रकाश की कविता “सुनो कारीगर” और गोरख पाण्डेय की कविता “स्वर्ग से विदाई” उल्लेखनीय है। अरुण प्रकाश की कहानी “भैया एक्सप्रेस” में भी बिहार के प्रवासी मजदूरों की पीड़ा समायी है।
लेखक शिक्षक और स्वतन्त्र टिप्पणीकार हैं।
सम्पर्क- +918102180299
.
Related articles

महात्मा बुद्ध और उनका जीवन संदेश
सबलोगMay 07, 2020
ऋषि कपूर का जाना
सबलोगApr 30, 2020
महाकवि सूरदास
सबलोगApr 28, 2020
वर्तमान सन्दर्भ में परशुराम
सबलोगApr 25, 2020डोनेट करें
जब समाज चौतरफा संकट से घिरा है, अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं, मीडिया चैनलों की या तो बोलती बन्द है या वे सत्ता के स्वर से अपना सुर मिला रहे हैं। केन्द्रीय परिदृश्य से जनपक्षीय और ईमानदार पत्रकारिता लगभग अनुपस्थित है; ऐसे समय में ‘सबलोग’ देश के जागरूक पाठकों के लिए वैचारिक और बौद्धिक विकल्प के तौर पर मौजूद है।
विज्ञापन
