
जरूरी है चौथे स्तम्भ की मजबूती
विश्व के लगभग सभी लोकतांत्रिक देशों में कार्यपालिका विधायिका और न्यायपालिका के साथ मीडिया को भी शासन व्यवस्था का चौथा स्तम्भ माना जाता है और मीडिया इन सभी को जोड़ने का कार्य करती है प्रेस की स्वतन्त्रता के द्वारा ही जनमानस की भावनाओं को अभिव्यक्त करने का अवसर प्रेस को हासिल होता है परन्तु वर्तमान में पत्रकारों पर लगातार हमले और पत्रकारों को प्रताड़ित किए जाने के मामलों में बहुत अधिक वृद्धि हुई है आज वर्तमान मीडिया की बात करें तो सोशल मीडिया में ट्विटर, फेसबुक, पोर्टल, ब्लॉग में भी पत्रकारिता सक्रिय दिखती है।
“महात्मा गाँधी के अनुसार पत्रकारिता के तीन उद्देश्य हैं पहला जनता की इच्छाओं विचारों को समझना और उन्हें व्यक्त करना, दूसरा जनता में माननीय भावनाएँ जागृत करना और तीसरा सार्वजनिक दोषों को नष्ट करना”।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार मिशन 2018 में पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर पत्रकार सुरक्षा कानून की बात को लेकर सक्रिय रही पत्रकार सुरक्षा कानून के लिए पहल भी शुरू हुई थी पर अभी पत्रकार सुरक्षा कानून गर्भ में है?
आज 30 मई को हिन्दी पत्रकारिता दिवस है इस दिन हिन्दी पत्रकारों की पत्रकारिता और उनकी अभिव्यक्ति पर चर्चा हो न तो हिन्दी पत्रकारिता दिवस अधूरा लगता है। पत्रकारों की सुरक्षा हमेशा केन्द्र और राज्य दोनों सरकारों के लिए एक चुनौती का विषय रहा है पत्रकार संगठन लम्बे समय से इस तरह के कानून की मांग करते चले आ रहे हैं। जब तक पत्रकार भयमुक्त नहीं होगा वह पत्रकारिता कैसे कर सकता है?
समाज में अच्छाई और बुराई होते हैं वह दोनों पहलुओं पर लिखता है पर उनकी पत्रकारिता पर उंगली उठती रहती है। समय रहते पत्रकारों को सजग रहने की जरूरत है और पत्रकार अपनी स्वयं लक्ष्मणरेखा बनाएँ। मैं नहीं कहता कि पत्रकारिता का ह्रास नहीं हुआ है पत्रकारिता में भी बदलाव आए हैं पत्रकारिता के मूल धर्म को युवा वर्ग को बचाना होगा नई पीढ़ी को पत्रकारिता की सीख लेनी होगी तभी पत्रकारिता अपनी दशा दिशा तय कर पायेगी।
30 मई को इसलिए मनाते हैं हम हिन्दी पत्रकारिता दिवस
हिन्दी भाषा में ‘उदन्त मार्तण्ड’ के नाम से पहला समाचार पत्र 30 मई 1826 में निकाला गया था। इसलिए इस दिन को हिन्दी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है। पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने इसे कलकत्ता से एक साप्ताहिक समाचार पत्र के तौर पर शुरू किया था। इसके प्रकाशक और संपादक भी वे खुद थे। इस तरह हिन्दी पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले पंडित जुगल किशोर शुक्ल का हिन्दी पत्रकारिता की जगत में विशेष सम्मान है।
जुगल किशोर शुक्ल वकील भी थे और कानपुर के रहने वाले थे। लेकिन उस समय औपनिवेशिक ब्रिटिश भारत में उन्होंने कलकत्ता को अपनी कर्मस्थली बनाया। परतन्त्र भारत में हिंदुस्तानियों के हक की बात करना बहुत बड़ी चुनौती बन चुका था। इसी के लिए उन्होंने कलकत्ता के बड़ा बाजार इलाके में अमर तल्ला लेन, कोलूटोला से साप्ताहिक ‘उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन शुरू किया। यह साप्ताहिक अखबार हर हफ्ते मंगलवार को पाठकों तक पहुंचता था।
परतन्त्र भारत की राजधानी कलकत्ता में अंग्रेजी शासकों की भाषा अंग्रेजी के बाद बांग्ला और उर्दू का प्रभाव था। इसलिए उस समय अंग्रेजी, बांग्ला और फारसी में कई समाचार पत्र निकलते थे। हिन्दी भाषा का एक भी समाचार पत्र मौजूद नहीं था। हाँ, यह जरूर है कि 1818-19 में कलकत्ता स्कूल बुक के बांग्ला समाचार पत्र ‘समाचार दर्पण’ में कुछ हिस्से हिन्दी में भी होते थे।
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हालाँकि ‘उदन्त मार्तण्ड’ एक साहसिक प्रयोग था, लेकिन पैसों के अभाव में यह एक साल भी नहीं प्रकाशित हो पाया। इस साप्ताहिक समाचार पत्र के पहले अंक की 500 प्रतियाँ छपी। हिन्दी भाषी पाठकों की कमी की वजह से उसे ज्यादा पाठक नहीं मिल सके। दूसरी बात की हिन्दी भाषी राज्यों से दूर होने के कारण उन्हें समाचार पत्र डाक द्वारा भेजना पड़ता था। डाक दरें बहुत ज्यादा होने की वजह से इसे हिन्दी भाषी राज्यों में भेजना भी आर्थिक रूप से महंगा सौदा हो गया था।
पंडित जुगल किशोर ने सरकार ने बहुत अनुरोध किया कि वे डाक दरों में कुछ रियायत दें जिससे हिन्दी भाषी प्रदेशों में पाठकों तक समाचार पत्र भेजा जा सके, लेकिन ब्रिटिश सरकार इसके लिए राजी नहीं हुई। अलबत्ता, किसी भी सरकारी विभाग ने ‘उदन्त मार्तण्ड’ की एक भी प्रति खरीदने पर भी रजामन्दी नहीं दी।
पैसों की तंगी की वजह से ‘उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन बहुत दिनों तक नहीं हो सका और आखिरकार 4 दिसम्बर 1826 को इसका प्रकाशन बन्द कर दिया गया। आज का दौर बिलकुल बदल चुका है। पत्रकारिता में बहुत ज्यादा आर्थिक निवेश हुआ है और इसे उद्योग का दर्जा हासिल हो चुका है। हिन्दी के पाठकों की संख्या बढ़ी है और इसमें लगातार इजाफा हो रहा है।