क्या महिला दिवस सिर्फ दिखावा मात्र नही है?
- मोनिका अग्रवाल
क्या दिन भर वाट्सअप और फेसबुक पर रंगबिरंगी तस्वीरें और नारी सशक्तिकरण की पंक्तियाँ, पोस्ट कर देने मात्र से नारी सशक्तिकरण होता है? क्या नारी सम्मान के लिए केवल एक तय तारीख बहुत है? जबकि बाकी 364 दिन, उसी नारी का शारीरिक और मानसिक शोषण, बलात्कार किया जाता है ।
यह तो वही बात हो गई कि, “हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और”। मतलब ऐसे बहुत से लोग हैं, जो बाते बड़ी करते हैं। पर जब अपने खुद के ऊपर आती है, तो वे स्त्री के दमन से नहीं चूकते। एक लड़की को बलात्कार की धमकी, विश्वविद्यालय की छात्राओं का टू फ़िंगर टेस्ट, बस्तर की लड़कियों के स्तन दबा कर चेक करना कि, शादी शुदा है या नहीं और बंगलौर में महिला को खींच कर जबरदस्ती हमबिस्तर होने के लिऐ कहना या चुम्बन लेना। ऐसी न जाने कितनी घटनाये रोज घटित हो रही हैं। काफी घटनायें (जो हुई होंगी); शायद हमें मालूम भी नहीं हों। कई बार तो राजनेताओ की भी स्टेटमेंट बहुत शर्मनाक होती है जैसे, “औरते या लड़कियां रात में, घर में रहें; बाहर इतनी देर से निकलती क्यों हैं? लड़कियों को जींस टी शर्ट की जगह साड़ियाँ पहननी चाहिए ताकि रेप नहीं हो। या किसी भी महिला के लिए, साली या ससुरी जैसे अभद्र शब्दों का प्रयोग”। क्या निर्भया कांड के बाद, ऐसे कांड रूक गये? बल्कि आज भी निर्भया कांड जैसे कांड कर देने की धमकी खुले तौर पर दी जाती है। किसी का सम्मान करने के लिए किसी खास दिन की जरूरत नहीं होती। सम्मान दिल से होता है। उसके लिए किसी शोबाजी की जरूरत नहीं। नारी का सम्मान ना उसे सर पर बिठाकर होगा और न ही बिस्तर पर रौंदकर। उसका सम्मान होगा उसे समानता का अधिकार देकर। आज की नारी इतनी सशक्त है कि उसे आपके रहम या सहारे की जरुरत नहीं। नारी के कई रूप हैं और हर रूप में सशक्त है। बस जरूरत है उसका अधिकार उसको देने की, समानता का अधिकार। औपचारिकता वश सम्मान नहीं दीजिए। हर महिला, हर रोज उतने ही सम्मान की हक़दार है जितना कि, उसे सिर्फ उस एक दिन (वो भी दिखावा मात्र) दिया जाता है। जिस समाज में नारी का सम्मान नहीं, वो समाज कभी प्रगति नहीं कर पायेगा। जरुरत है तो सिर्फ नारी में आत्मविश्वास पैदा करने की, मानसिक क्रांति की, ना कि इन अंग्रेजी चोंचलों की। सोच बदलो, तो समाज खुद बदलेगा। सारा आसमान औरतों का है , इन्हें पंख तो फैलाने दो।
लेखिका स्वतन्त्र पत्रकार हैं|
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