18 वीं लोकसभा में गाँधी परिवार से मुक्ति
चुनाव आयोग की घोषणा के पहले ही राजनीतिक दलों की तरफ से 18 वीं लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। राजनीतिक दलों ने राजनीतिक दाँव-पेंच के साथ ही अपने प्रत्याशी भी मैदान में उतारना शुरू कर दिये हैं। इन सबके बीच चौंकाने वाला तथ्य यह है कि लोकसभा 2024 का चुनाव यानी 18वीं संसद इंदिरा गाँधी परिवार से मुक्त होने जा रही है। उत्तर प्रदेश में काँग्रेस को लेकर परिस्थितियां दिनों-दिन काफी टेढ़ी होती जा रही हैं। पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी तक बहुत ही प्रभावी और लोकप्रिय प्रधानमंत्री रहे। उत्तर प्रदेश काँग्रेस का गढ़ हुआ करता था। राजनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण इस राज्य में काँग्रेस कई दशक तक सत्तासीन रही। राजीव गाँधी के बाद सोनिया गाँधी का युग आया। सोनिया गाँधी के बाद उनके बेटे-बेटी राहुल और प्रियंका गाँधी वाड्रा सक्रिय तो हुए पर लगातार कमजोर होती काँग्रेस को ताकत न मिल सकी।
उधर, बगावत करके भारतीय जनता पार्टी के खेमे में जाने वाली इंदिरा गाँधी की पुत्रवधू मेनका गाँधी और पौत्र वरुण गाँधी भी दिनों-दिन कमजोर ही साबित हुए। हालांकि इंदिरा गाँधी की पुत्रवधू मेनका गाँधी को भारतीय जनता पार्टी ने लगातार कई बार टिकट देकर सांसद बनाया। वो मंत्री भी रहीं। मेनका गाँधी के पुत्र वरुण गाँधी भी कई बार सांसद रहे पर राजनीति में ये दोनों कोई खास कद नहीं हासिल कर सके। इधर तीन चार साल से पार्टी लाइन से अलग हटकर भाजपा के विरोध में वरुण गाँधी द्वारा दिया जाने वाला बयान भी पार्टी को कई बार असहज करता रहा। बीच में कई बार लगा कि वरुण गाँधी को पार्टी बाहर का रास्ता दिखा सकती है। इस बार वरुण गाँधी और मेनका गाँधी दोनों ही टिकट की दौड़ से बाहर नजर आ रहे हैं। कयास लगाया जा रहा है कि वरुण और मेनका की राजनीतिक नैया की खेवनहार रही भाजपा इस बार इन दोनों से किनारा कसने की तैयारी में है। भाजपा के पूर्व मंडल अध्यक्ष उमेश शुक्ला चंदन तर्क देते हैं – आखिरकार, भारतीय जनता पार्टी के लिए इंदिरा परिवार के ये दोनों सदस्य बोझ ही तो साबित हुए हैं।
पिछले कई दशक से अमेठी और रायबरेली काँग्रेस की मजबूत गढ़ रहीं, पर इन दोनों सीटों पर काँग्रेस अपना अस्तित्व तेजी से खोती गई। वरिष्ठ पत्रकार बृजेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं – ‘काँग्रेस ने यहाँ दमदार नेता या कार्यकर्ता ही तैयार नहीं किये केवल राहुल गाँधी और प्रियंका की गणेश परिक्रमा करने वालों की ही भीड़ डेवलप हुई है।’
बहरहाल, मौजूदा समय में गाँधी परिवार के पाँच लोग सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गाँधी वाड्रा, मेनका गांधी, वरुण गाँधी शामिल हैं। खास बात यह कि इनमें राहुल गांधी, मेनका गाँधी और वरुण गाँधी लोकसभा सदस्य हैं। सांसद सोनिया गाँधी के हालिया राज्यसभा सदस्य के रूप चुन लिए जाने के बाद इस बार इनका लोकसभा चुनाव न लड़ना तय है। मौजूदा समय में गाँधी परिवार के चार लोग लोकसभा सदस्य हैं। अभी हाल में हुए राज्यसभा चुनाव में जमकर क्रास वोटिंग हुई। भारतीय जनता पार्टी ने सात की बजाय आठ प्रत्याशी मैदान में उतारे। संजय सेठ आठवें उम्मीदवार के रूप में आए और सपा के सात विधायकों का वोट हासिल कर राज्यसभा सदस्य बन गये। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सपा मुखिया अखिलेश यादव अपनी पार्टी-प्रत्याशियों के पक्ष में वोट मैनेज नहीं कर पाए और जमकर बिखराव हुआ।
जनसत्ता दल लोकतांत्रिक पार्टी के मुखिया रघुराज प्रताप सिंह राजा भइया समेत दो विधायकों का वोट भी सपा के बजाय भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में गया। राजा भइया ज्यादातर समय समाजवादी समर्थक रहे हैं। हालात देखते हुए सियासी गलियारों में नई चर्चा शुरू हो गई है कि क्या 18 वीं लोकसभा इस बार समूचे गाँधी परिवार से मुक्त रहेगी? अमेठी और रायबरेली दो सीटें अभी तक काँग्रेस की परंपरागत सीट मानी जाती रही हैं। इस बार यहाँ चुनावी राह पर कदम कदम पर काँटे बिछे हैं। अमेठी लोकसभा सीट से संजय गांधी, राजीव गाँधी और सोनिया गाँधी सांसद होते रहे। राजीव गाँधी यहाँ से सांसद चुने जाने के बाद देश के प्रधानमंत्री तक बने। इसी सीट से काँग्रेस के कैप्टन सतीश शर्मा, राहुल गाँधी भी सांसद चुने गए। हालांकि एक बार बीच में गैर कांग्रेसी सांसद के रूप में डॉ. संजय सिंह चुने गए, बाकी ज्यादातर समय यहाँ से काँग्रेस ही जीतती रही है।
पिछली बार 17 वीं लोकसभा का चुनाव राहुल गाँधी दो सीट अमेठी और वायनाड से लड़े। अमेठी में भारतीय जनता पार्टी की स्मृति ईरानी ने उनको बुरी तरह चुनाव हराया। केरल की वायनाड सीट से राहुल गाँधी आठ लाख वोट पाकर सांसद बने। इस बार राहुल गाँधी के लिए वायनाड सीट पर बड़ा संकट सामने खड़ा हो गया है। यहाँ से मुस्लिम लीग ने खुद अपना प्रत्याशी उतारने का ऐलान कर दिया है। वायनाड सीट पर चालीस प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं जो मुस्लिम लीग पार्टी का खुलकर समर्थन कर रहे हैं।वायनाड में अचानक इस नए संकट के आ जाने के बाद राहुल गाँधी के चुनाव लड़ने तक का गंभीर संकट है। अमेठी लोकसभा क्षेत्र की विधानसभा गौरीगंज के विधायक राकेश प्रताप सिंह राज्यसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के साथ खुलकर नजर आए।
उधर, सपा की एक अन्य विधायक महराजी देवी ने वोटिंग में कोई रुचि नहीं ली। विधायक महराजी देवी सपा के कद्दावर नेता रहे पूर्व मंत्री गायत्री प्रजापति की पत्नी हैं। काँग्रेस के दूसरे गढ़ रही रायबरेली सीट की चर्चा करें तो यह सीट भी काँग्रेस की परंपरागत सीट मानी जाती रही है। काँग्रेस की कद्दावर नेता रहीं इंदिरा गाँधी यहाँ की सांसद चुनी जाती रहीं। इसके बाद भी काँग्रेस प्रत्याशी के रूप में शीला कौल, अरुण नेहरू यहाँ के सांसद चुने गए। सोनिया गाँधी खुद यहाँ से चार बार सांसद रहीं। पाँच विधानसभा वाली रायबरेली लोकसभा सीट में अदिति सिंह भाजपा की घोषित विधायक हैं। ऊंचाहार के विधायक मनोज पाण्डेय सपा के मजबूत नेता माने जाते रहे। सपा के मुख्य सचेतक मनोज पाण्डेय ने राज्यसभा चुनाव के दिन सचेतक पद से अचानक इस्तीफा दे दिया और खुलकर भारतीय जनता पार्टी के साथ आ गए। राकेश प्रताप सिंह, अदिति सिंह और मनोज पाण्डेय खुलकर भारतीय जनता पार्टी के खेमे में हैं। माने कि रायबरेली में भी काँग्रेस पार्टी के प्रत्याशी के लिए गंभीर संकट है। ऐसे में काँग्रेस की एक और बड़ी नेता प्रियंका गाँधी वाड्रा के लिए भी सीट चयन को लेकर कम बड़ा संकट नहीं है।
राज्य सभा सदस्य बनने से सोनिया गाँधी और वायनाड से मुस्लिम लीग के खुद अपना प्रत्याशी उतारने की घोषणा से राहुल गाँधी जिसे अमेठी पिछले चुनाव में पहले ही नकार चुकी है, मेनका और वरुण गाँधी भाजपा के लिए अप्रासंगिक बन चुके हैं, रही सही थोड़ा उम्मीद प्रियंका गाँधी वाड्रा बची हैं परंतु हालात उनके भी पक्ष में ज्यादा बेहतर नहीं दिखते। भरोसेमंद सूत्रों की मानें तो प्रियंका की भी जबरदस्त घेराबंदी की अभी से तैयारी कर ली गई है।
हालांकि, काँग्रेस के प्रमुख नेता राहुल गाँधी की न्याय यात्रा ने सत्तासीन एनडीए के खिलाफ माहौल बनाना शुरू किया था। यात्रा के जरिए काँग्रेस ने एक बार फिर अपने को मजबूत दिखाने की कोशिश की पर राज्यसभा के चुनाव ने इनकी मंशा पर जबरदस्त पलीता लगाने का काम किया। सपा के सात विधायक भारतीय जनता पार्टी के साथ आ गए। 21 फरवरी को एक बार फिर समाजवादी पार्टी और काँग्रेस एक मंच पर आए। लखनऊ में साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सीटों के बंटवारे का ऐलान किया। दावा किया कि काँग्रेस को 17 सीटें दी गई हैं। इसमें रायबरेली, अमेठी, कानपुर, फतेहपुर सीकरी, बांसगांव, सहारनपुर, प्रयागराज, महाराजगंज, वाराणसी, अमरोहा, झांसी, बुलंदशहर, गाजियाबाद, मथुरा, सीतापुर, बाराबंकी और देवरिया की लोकसभा सीट शामिल हैं। इसके अलावा 63 सीटों पर इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी चुनाव मैदान में होंगे। यहाँ लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं।
उधर,ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने इंडिया गठबंधन से अलग रखते हुए संभल, मुरादाबाद, अमरोहा, मेरठ जैसी मुस्लिम बाहुल्य सात सीट से प्रत्याशी उतारने का ऐलान किया है। इनमें सपा मुखिया अखिलेश यादव की संभावित सीट आजमगढ़, अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव की बदायूं, प्रोफेसर राम गोपाल यादव के बेटे की सीट फिरोजाबाद शामिल हैं। दो मार्च की देर शाम भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश से 51 सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर दिया है।
बहरहाल, यह लोकसभा चुनाव उत्तर प्रदेश में इस बार कई नई इबारत लिखने जा रहा है।