भारत वह देश है जो अपनी सभ्यता और संस्कृति के नाम पर पूरी दुनिया में एक अमिट छाप छोड़ता है. यह अपनी समृद्धि के कारण सोने की चिड़िया कहलाता आया है. इसे शांति और अहिंसा के लिए जाना जाता रहा है. लेकिन अब परिदृश्य बिल्कुल विपरित धारा में बह रहा है। पिछले कुछ दिनों से देश में जिस तरह की हिंसा फैल रही है, वह भारत के इतिहास को धूमिल करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही. ‘पद्मावत’ फिल्म के निर्माण से लेकर रिलीज होने तक अनवरत हिंसा का दौर जारी रहा. लेकिन इस हिंसा को मात देते हुये, संजय लीला भंसाली के निरंतर प्रयासों के कारण फिल्म ‘पद्मावत’ 25 जनवरी को पर्दे पर आ ही गई. इस फिल्म को लेकर विभिन्न स्थानों पर जिस तरह से प्रदर्शन हुआ, खासतौर पर राजपूत समाज की ओर से विशेषकर करणी सेना ने फिल्म का बहुत ही हिंसक तरीके से विरोध किया है, वह देश और देशवासियों दोनों के लिए खतरा तथा चिंता का विषय है.
राजस्थान, हरियाणा, बिहार, जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में थियेटर्स के भीतर तो तोड़फोड़ की ही गई, सड़कों पर भी हिंसक प्रदर्शन हुआ। हद तो तब हो गयी जब गुरुग्राम के सोहना रोड पर प्रदर्शनकारियों ने बस फूंक दी और पत्थरबाजी की। हरियाणा के मंत्री राम बिलास शर्मा ने गुरुगाम में स्कूली बस पर पथराव की घटना को ‘चिंताजनक’ बताया है। उन्होंने कहा कि ‘हमें ऐसी घटना का अंदेशा नहीं था.’
हरियाणा के मंत्री ने जो अंदेशा व्यक्त किया, वह अंदेशा कमोवेश सभी के मन में आ रहा होगा कि ऐसी दरिंदगी कोई कैसे कर सकता है? लेकिन ये बिल्कुल सच है कि ऐसी दरिंदगी का सामना हमें लगातार करना पड़ रहा है। ‘पद्मावत’ एक ऐसी गाथा है, जिसे कई रूपों में व्याख्यायित किया गया है. कुछ लोगों ने तो इस कहानी को पूरी तरीके से नकार भी दिया है। रानी पद्मावति की इतिहास में मौजूदगी और गैर-मौजूदगी पर लगातार कई तरह की बातें होती रही है, मैं यहां उसपर बात नहीं करूंगी। मेरे मन में देश में हो रही इन हिंसक झड़पों से जो बात उभर रही है, वह सिर्फ यह है कि मासूम बच्चों और इंसान की जिंदगी से बढ़कर है, किसी देश का इतिहास और गौरव गाथा?
धर्म, आस्था के नाम पर देश में चल रहे खौफनाक खूनी खेल ने लोगों को अंदर तक झकझोर दिया है. कहीं गौ हत्या के नाम पर इंसानों को मौत के घाट उतार दिया जा रहा है, तो कहीं धर्म, आस्था और संस्कृति के नाम पर. एक तरफ जहां ‘पद्मावत’ को रिलीज होने से इसलिए रोका जा रहा था क्योंकि लोगों का, खासतौर पर राजपूत समुदाय के लोगों का यह मानना था कि इसमें रानी पद्मावती का गलत तरीके से प्रस्तुतीकरण किया जा रहा है, जो इतिहास से खिलवाड़ है और राजपूतों की गरिमा पर प्रहार है.
‘पद्मावत’ जैसी फिल्मों पर तो धर्म, आस्था और परंपरा के नाम पर सेंसरशिप की कैंची खूब चलती है लेकिन बॉलीवुड की कई ऐसी फिल्में हैं जिसे देखकर हॉलीवुड की फिल्में भी पीछे छूट जाये। अभी हाल ही में रिलीज हुई ‘जुड़वा’ फिल्म की ही बात कर लें तो इस फिल्म में अभिनेता अपनी प्रेमिका की मां को ही चुंबन देता है और कहता है कि यह सब पता ही नहीं मुझसे कैसे हो गया। अपनी प्रेमिका की मां को चुंबन देना एक बहुत ही आपत्तिजनक दृश्य था, जो हमारी भारतीय संस्कृति के दायरे के बाहर था.
हमारे देश की सभ्यता-संस्कृति ने औरतों की पूजा करना, रिश्तों के दायरे को बनाये रखना और बड़े-छोटे की इज्जत करना मुख्य रूप से सिखाती है. ऐसे में जुड़वा जैसी अनवरत फिल्मों का बनना जिसमें सभ्यता-संस्कृति के तमाम बंधनों को तोड़कर बेहद ही फूहड़ तरीके से पेश किया जा रहा है. महिलाओं का बेहद अश्लील चित्रण किया जा रहा है, लेकिन अफसोस पद्मावती का विरोध करने वाले लोगों को ऐसी चीजों और दृश्यों से कोई फर्क नहीं पड़ता। उनके लिये ऐसे दृश्य सभ्यता-संस्कृति को नुकसान नहीं पहुंचाती। इससे न तो देशवासियों की गरिमा को ठेस पहुंचती है और ना हीं किसी खास समुदाय की भावना को। सिर्फ इतना ही नहीं सेंसरशिप की कैंची भी जुड़वा और रागिनी एमएमएस जैसी फिल्मों को हरी झंडी दिखा देती है.
अगर पद्मावती जैसी फिल्में देश की गरिमा पर चोट है तो फिर कंडोम के विज्ञापन में औरतों का अर्धनग्न प्रदर्शन क्या है?
पैडमन के रूप में प्रदर्शित होने वाली फिल्म तो औरतों के उस चीज को उजागर करने के तरफ पुरजोर कदम है, जिसे भारतीय संस्कृति के अनुसार सदियों से छुपाया जाता रहा है, जिसपर सार्वजनिक रूप से बात करना नामुमकिन सा रहा है, जिसे सीधे-सीधे तोड़ा जा रहा है.
महिलाओं को हिंदी फिल्मों में सेक्सी, माल और आयटम कहकर संबोधित किया जाता है और इसे आधुनिकता की संज्ञा दी जाती है, लेकिन इससे भी हमारी सभ्यता-संस्कृति को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है। सिर्फ यही नहीं हिंदी सिनेमा में बेडरूम के दृश्य का प्रदर्शन तो आम बात हो गयी है और रही-सही कसर तो इमरान हाशमी की फिल्मों के चुंबन दृश्य पूरा कर देता है, पर इससे भी कोई प्रहार नहीं होता देश की सभ्यता-संस्कृति और गरिमा पर.
हमारे देश की उस परंपरा की ओर लोग क्यों ध्यान नहीं देते, जहां एक तरफ तो बौद्ध, महावीर जैसे लोगों का समावेश है, जिन्होंने अहिंसा का संदेश देकर पूरी दुनिया में एक मिसाल पेश की. वहीं दूसरी ओर गांधी जी की मौजूदगी भी है, जिन्होंने अहिंसा के बल पर पूरे देश को आजादी दिलायी. खूनी खेल की हिंसात्मक गरिमा अहिंसात्मक देश की संस्कृति का हिस्सा कभी हो ही नहीं सकता है. गौरव गाथा और इतिहास के नाम पर मासूम बच्चों की जिंदगी से खेलना और चारों ओर हिंसात्मक तनाव पैदा करना हमारे देश की सभ्यता-संस्कृति को पतन की ओर धकेलने के बराबर है.
हमारे देश में कई ऐसी कुरीतियां मौजूद हैं, कई ऐसे ज्वलंत मुद्दे हैं, गरीबी, भ्रष्टाचार, शोषण आदि जड़ जमायी हई है लेकिन गौरक्षा और पद्मावती जैसे मुद्दे के नाम पर हिंसा और प्रदर्शन करने वाले लोग ऐसे मुद्दों पर कभी न तो प्रदर्शन करते दिखते हैं और ना ही अपना मौन तोड़ते हैं. हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था लगातार शर्मसार हो रही है। बेरोजगारी इतनी बढ़ गई है कि पीएच.डी. करने के बाद भी लोग सफाईकर्मी की नौकरी करने के लिए तैयार हैं. हर तरफ अपराध का जन्म हो रहा है. बच्चियों के साथ दरिंदगी हो रही है. छोटे-छोटे बच्चे खून-खराबे पर उतारू हो गये हैं लेकिन इस ओर ध्यान देने वाला हमारे बीच में बहुत कम हैं. अगर वास्तव में हमे देश की सभ्यता-संस्कृति और गरिमा को बचाना है तो पद्मावती और गौरक्षा जैसे मुद्दों से निकलकर देश में व्याप्त ऐसे मुद्दों पर सोचना होगा, जिससे सबके साथ, सब का विकास संभव हो सके.
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अमिता
लेखिका गुरू घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय, बिलासपुर (छ.ग.) में सहायक प्राध्यापक हैं | सम्पर्क- +919406009605, [email protected]
4 responses to “फिल्मों से मनोरंजन करें या इतिहास पढ़ें?”
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Excellent surgery done on the current burning issues. It might be a reality behind the scenario that is presented before our society.
I salute the interpretation & philosophy of the author. Excellent article as per my views.
My best wishes for all success….
Dr SK Lanjhiyana
Bilaspur, Chhattisgarh
9826252991
बहुत सटीक टिप्पणी है मैम,यह पोस्ट समाज में जो सोच है उसकी सच्चाई को उजागर करती है ।और आपका यह एक पोस्ट बहुत सारे विषयों की जानकारी देता है। धन्यवाद मैम
बेबाक राय। कटु सत्य। आपको इस हिम्मती लेख के लिये बधाई। यह लेख हमारे झूठे अहंकार को आइना दिखाने का काम कर रहा है। कुछ इसपर भी कुतर्क कर सकते हैं। आपसे निवेदन है ऐसे ही बेबाकी से कलम को जिंदा रखें। कोटिशः बधाई
साभार
अमित, शोधार्थी
दिल्ली
बहुत ही बेबाक एवं स्पष्ट विचार। वर्तमान सामाजिक व्यवस्था एवं विसंगतियों पर तर्कयुक्त प्रहार के लिए साधुवाद। अभिनंदन।