चर्चा में

विज्ञान और कला का समन्वय – डॉ सोहिल मकवाना

 

पिछले दिनों ट्विटर पर वायरल हुई डॉक्टर सोहिल मकवाना की पसीने से तरबतर तस्वीर। तो सोशल मीडिया और न्यूज चैनलों में बाढ़ आ गई। उनकी तस्वीर को खूब शेयर किया गया, खूब सराहा गया। आज हमारे एक लेखक तेजस पूनियां ने उनसे टेलीफोन पर इंटरव्यू किया हमारी पत्रिका के लिए। डॉक्टर सोहिल एक चिकित्सक होने के साथ ही लेखक, फ़िल्म निर्देशक भी हैं। आईए पढ़ते हैं उनके साथ हुई अंतरंग बातचीत के अंश। तेजस पूनियां हमारी पत्रिका के क्रिएटिव राइटर हैं और लगातार फिल्मों, किताबों पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानियां आदि लिखते रहते हैं और डॉक्टर सोहिल मकवाना फिलहाल गुजरात में कोविड विभाग में देश सेवा कर रहे हैं। 

(-सबलोग)

प्रश्न : कोरोना महामारी को आप किस नजरिये से देखते हैं। एक चिकित्सक होने के नाते।

उत्तर : अभी तो देखिए यह महामारी जाने वाली नहीं है। ऐसा लग रहा है यह अभी रहेगी, आसानी से जाने वाली तो नहीं है। सम्भवतः एक,दो साल तो इस महामारी को ध्यान में रखकर ही हमें अपना जीवन जीने का तरीका बदलना होगा। इसे अपनाकर ही चलना पड़ेगा, मास्क पहनना पड़ेगा, सेनेटाइज करना होगा। थोड़ा सावधानी रखनी ही पड़ेगी, सामाजिक दूरी भी बनानी पड़ेगी।, वैक्सीनेशन करवाएंगे तो चीजें थोड़ा आसान हो जाएंगी। बिना इन सबके तो जाना यह मुश्किल है। ऐसा भी नहीं होने वाला कि एक दिन आया और कोरोना पूरा गायब।

प्रश्न : आप कला, साहित्य के जगत से भी जुड़े हुए हैं तो ऐसे में मीडिया की भूमिका इस महामारी के समय में कितनी सकारात्मक और नकारात्मक है। दोनों पहलू पर अपने विचार दीजिए।

उत्तर : सकारात्मक तो यही कहूंगा कि आराम से घर में रहें, घर में बैठकर ओटीटी पर फिल्मों का आनंद ले ही रहे हैं लोग, मनोरंजन भी हो रहा है क्योंकि इसके अलावा कोई चारा भी नहीं है। न बाहर जाने लिए कुछ है तो एक यह अच्छी चीज भी है। नकारात्मक तो ज्यादा कुछ नहीं है। अगर थियेटर (सिनेमाघरों) में जाएंगे दर्शक तो वायरस फैलेगा। लेकिन मीडिया ने एक दबाव भी बनाया है जनता पर। उसने लोगों को घर में रखा है। अगर वो नहीं होता तो सब लोग ऐसे ही घूमते, किसी को कुछ पता ही नहीं चलता। मीडिया की भूमिका तो इसमें अच्छी रही है। नकारात्मक तो नहीं कहा जा सकता। लोगों को जागरूक किया, मनोरंजन किया, खबरें भी पहुंचाई हम सब तक। नकारात्मक तो यही है कि कोई पूरे दिन वही देखता रहेगा तो फिर वह वैसा ही सोचेगा लेकिन अभी इस साल तो मैं कहूंगा घर में ही रहो।

प्रश्न : सोशल मीडिया मसलन व्हाट्सएप आदि पर तैर रहे घरेलू उपचार जिन्हें पढ़कर लगता है जैसे मुँह में हवन करना हो। तो ऐसी माहमारी के समय में इनको अपनाना कितना सही है।

उत्तर : नहीं मैं ये सब नहीं करता और एक डॉक्टर होने के नाते मैं ये सब करने के लिए नहीं कहता। हालांकि थोड़ा बहुत चलता है लेकिन बिना जांचे कुछ नहीं लेना चाहिए वैसे भी। मैं मजबूती के साथ इन सबको नकारता हूँ। हाँ घरेलू चीजें हैं – हल्दी आदि ठीक है। लेकिन कोई किसी तरह का चूर्ण, काढ़ा जो पता नहीं कैसे-कैसे बनाते हैं और ये दावा करते हैं कि कोरोना को ये जड़ से मिटा देगा। तो इन सब अफवाहों में विश्वास नहीं करना चाहिए। वैसे भी आजकल हर कोई घर में डॉक्टर बनकर बैठा है।

तो यही है कुछ लबोलुआब कि डॉक्टर से बात करें उनके दिशा निर्देशों पर चलें और अगर आपको इम्युनिटी (रोग-प्रतिरोधक क्षमता) बढ़ानी है तो उसके लिए कोई दवा नहीं है। ये है कि मल्टी विटामिन लो, अच्छा खाना खाओ, एक्सरसाइज (कसरत) करो यही सब है। बाकी चवनप्राश वगैरह ये सब वैज्ञानिकों द्वारा प्रमाणित नहीं है।

प्रश्न : कुछ लोग ऐसे भी देखे गए हैं जिन्हें कोरोना नहीं था, साधारण मृत्यु होने पर भी कोरोना घोषित करके आंकड़ें बढ़ाना कितना सही है।

उत्तर : गलत बात बिल्कुल। मैंने ऐसा तो देखा नहीं कहीं जिन लोगों कि बिना कोरोना के मौत हुई है या जिनकी कोरोना की वजह से मौत हुई है। अब तक तो ऐसा मैंने देखा नहीं। क्योंकि कोविड के आंकड़ें क्यों बढ़ाएंगे। बढ़ाने का मतलब ही नहीं है। मृत्यु प्रमाण पत्र (डेथ सर्टिफिकेट) में साफ-साफ लिखा होता है। जिसकी वजह से मृत्यु हुई होती है। कोविड से हुआ तो कोविड या हार्ट अटैक (दिल का दौरा) से हुआ तो हार्ट अटैक ही लिखेंगे। गुजरात में तो ऐसा मैंने यहां यहां हमारे देखा नहीं है। ये सब अफवाहें हैं सरकारें भी चाहती हैं कि कम से कम आंकड़ें बाहर आएं क्योंकि अगर साधारण डैथ (मृत्यु) वालों को कोविड के कारण हुई मौत मान लिया जाएगा तो आंकड़ें कितने बढ़ जाएंगे। ये सब सरासर गलत है।

प्रश्न : साहित्य, कला के क्षेत्र में आप अपने योगदान को किस तरह देखते हैं और अपने किए कार्यों के बारे में बता सकें तो बेहतर।

उत्तर : लगभग साल 2017 में मैंने ये सब शुरू किया। लेखन (राइटिंग) का मुझे शौक था। फिल्मों में भी दिलचस्पी काफी है। तो मुझे निर्देशक बनना है। लेकिन मैं अपनी जॉब भी नहीं छोड़ सकता मैं यही सोचता हूँ कि लेखन करेंगे साथ में सेट पर रहने को मिलेगा, जॉब नहीं छोड़ सकता। लेखन तो कहीं से भी किया जा सकता है। तो रात-रात भर लिखता हूँ। बहुत सारी फिल्में लिख चुका हूं। बीच में मुंबई भी जाता था। सप्ताहंत (वीकेंड) में कई बार गया, वहां कई लोगों से मिला, बिना परिचय तो कुछ नहीं होता वैसे भी। एक,दो प्रोजेक्ट शुरू भी हुए लेकिन फिर बंद हो गए। एक फ़िल्म में बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम भी किया। मेरे जानकार मित्र ही थे। उन्हें मेरी स्क्रिप्ट भी पसन्द आई लेकिन उनके काम करने के तरीके अलग हैं। उन्हें दूसरा जॉनर पसन्द है। तो वो बोले हमें ऐसा डॉक्टर चाहिए जो लेखक हो। अभी जो फ़िल्म की वो एक अस्पताल में हॉरर थीम पर आधारित (बेस्ड) है।

लेखक तो हूँ लेकिन सिनेमा का टेक्निकल (तकनीकी) ज्ञान नहीं था। तो उसे सीखा कुछ-कुछ। ‘बल्ली’ (Balli) फ़िल्म जो कि एक मराठी फिल्म है, में बतौर सह-निर्देशक काम किया। उसका शूट खत्म करते ही एक-दो सप्ताह बाद लॉक डाउन शुरू हो गया। इसको रिलीज भी करना था 16 अप्रैल को लेकिन तारीख आगे बढ़ा दी। तो इस बीच मैंने उपन्यास लिखना शुरु किया। उपन्यास लिख चुका हूं एक तरह से। अलग-अलग दो भागों में एक ही उपन्यास के दो हिस्से हैं उसमें। बड़ी जल्दी पहला भाग आएगा उसका अमेजन, फ्लिपकार्ट आदि पर।

प्रश्न : महामारी के कारण चारों और फैली नकारात्मकता को क्या साहित्य और कला, फ़िल्म आदि के माध्यम से दूर किया जा सकता है।

उत्तर : हां लेकिन इन सबको दूर करने के लिए शूटिंग होना भी बहुत जरूरी है। बिना उसके तो कैसे संभव है। जब शूटिंग शुरू होगी तो तब तक तो ऐसा सोचो महामारी निकल गई होगी। अभी तो जो है उसी से काम चलाना पड़ेगा। बाकी लेखन में भी लोग लिखते रहें। लिखेगा कोई तो ही लोग पढ़ेंगे भी। वो तो इंडिविजुअल (व्यक्तिगत) लोगों पर निर्भर करता है। बाकि कोई भी क्रिया करके नकारात्मकता तो दूर होगी ही। दिमाग खाली रहता है तो फ्रस्टेट (चिढ़चिढ़ा) हो ही जाता है। कुछ पढ़ेंगे तो कुछ सीखेंगे। कुछ लिखो, पढ़ो, देखो अपने आपको व्यस्त रखो।

प्रश्न : चिकित्सक होने के साथ-साथ कला, साहित्य के साथ तालमेल किस तरह बैठाते हैं क्या कभी समस्या नहीं होती इसमें।

उत्तर : नहीं ऐसा नहीं रात को अपनी ड्यूटी पूरी होने के बाद लिखा, या सप्ताहंत में लिखा। बाकी दिन तो नहीं हो पाता इतना। हां नोट्स बनाता रहता हूँ। बाकी दिमाग में कहानी तो चलती ही रहती है। काम करते समय भी चलता रहता है। कला का जो विज्ञान है या विज्ञान की जो कला है। उन दोनों को जोड़ता हूँ। क्योंकि विज्ञान की भी कला होती है और कला का भी विज्ञान होता है। मसलन पेंटिंग कोई बनाता है तो वो उसका आर्ट (कला) है। लेकिन उस आर्ट में भी विज्ञान (साइंस) छुपा हुआ है। कौन सा रंग इस्तेमाल होगा आदि-आदि। तो मैं इन सबको जोड़ता हूँ।

प्रश्न : चिकित्सक और लेखक होने के नाते एक संदेश देश के नाम दोनों नजरिये से।

उत्तर : एक डॉक्टर होने के नाते तो मैं यही कहूंगा कि घर में रहो। वैक्सीनेशन लो और इस महामारी को दूर करने में सबकी मदद करो। बाकी लेखक होने के नाते जैसे मैं अपनी कहानियां आपको कहना चाहता हूं, आपको देना चाहूँगा। कुछ ऐसा जो आपने न सुना हो, न देखा हो कहीं। मेरी मेडिकल (चिकित्सा) की कहानियां, उपन्यास आदि। प्रेम कहानियां तो बहुत देख ली कुछ नया देखने का समय है। बाकी इसके अलावा कई अच्छी-अच्छी कहानियां , नाटक आदि हैं उन्हें पढ़ो देखना नहीं चाहते तो। कुछ सीखने को मिलता ही है। बाकी लेखकों के लिए अच्छा समय है। घर में रहते हुए लिखें, जो लिखना चाहते हैं। उनके लिए अच्छा समय है। इससे अच्छा समय तो मिलेगा नहीं। जिस विषय पर लिखना चाहें उससे सम्बंधित पढ़ो और मैं यही कहता हूं जो लेखक बनाना चाहते हैं। उसे लेखन कभी नहीं छोड़ना चाहिए। बहुत से लोग लिखना चाहते हैं लेकिन कलम नहीं उठा पाते लिखने के लिए। बनना है लेखक लेकिन शुरुआत नहीं हो पाती। शुरुआत तो करो, पहले एक पैराग्राफ (अनुच्छेद) लिखो फिर ही दूसरा बनेगा। दिमाग में रखने से तो कुछ नहीं होगा।

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तेजस पूनियां

लेखक स्वतन्त्र आलोचक एवं फिल्म समीक्षक हैं। सम्पर्क +919166373652 tejaspoonia@gmail.com
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