शिक्षा

सामान्य प्रवेश परीक्षा: सुगम होगी दाखिले की राह

 

पिछले साल दिसंबर में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आर. पी. तिवारी की अध्यक्षता में एक सात सदस्यीय समिति का गठन किया था। इस समिति का गठन सभी 45 केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के स्नातक और स्नातकोत्तर स्तरीय गैर-व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में प्रवेश सम्बन्धी समस्याओं के समाधान के लिए किया गया था। साथ ही, इस समिति को सभी उच्च शिक्षा संस्थानों के पीएच. डी. कार्यक्रमों में प्रवेश हेतु एक स्तरीय और एकसमान प्रक्रिया सुझाने की जिम्मेदारी भी दी गयी थी।

आर. पी. तिवारी समिति ने गत माह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को अपनी रपट सौंपी है। उसने अपनी इस रपट में सभी केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के गैर-पेशेवर स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए सामान्य प्रवेश परीक्षा (सी.ई.टी.) और पीएचडी कार्यक्रमों में प्रवेश के लिए राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) के प्राप्तांकों को आधार बनाने की सिफारिश की है। उच्च शिक्षण संस्थानों की प्रवेश-प्रक्रिया को सरल और समरूप बनाने की दिशा में यह सिफारिश अत्यंत दूरगामी महत्व की है। इस सकारात्मक निर्णय से प्रत्येक वर्ष स्नातक, स्नातकोत्तर और शोध पाठ्यक्रमों के 15-20 लाख अभ्यर्थी और उनके परिजन प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होंगे।

पीएच.डी. पाठ्यक्रमों में प्रवेश हेतु राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) के प्राप्तांकों को आधार बनाने से कई समस्याओं का सहज समाधान हो जायेगा। राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) विभिन्न कॉलेजों और विश्वविद्यालयों आदि उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों की नियुक्ति हेतु आधारभूत और अनिवार्य शर्त है। यह स्तरीय और एकल राष्ट्रव्यापी परीक्षण-पद्धति है। शोध करने और उच्च शिक्षण संस्थानों में अध्यापन के इच्छुक सभी छात्र-छात्रा साल में दो बार आयोजित होने वाली इस परीक्षा में अनिवार्यतः शामिल होते हैं। इसका पाठ्यक्रम भी स्नातकोत्तर स्तरीय होता है। इसमें शोध अभिरुचि, शिक्षण दक्षता, तार्किक क्षमता, सामान्य अध्ययन, विश्लेष्ण क्षमता और विषय विशेष आदि से सम्बंधित प्रश्न होते हैं। यह अपने आप में सम्बंधित अभ्यर्थी की योग्यता और क्षमता का निष्पक्ष और वस्तुपरक मूल्यांकन करती है।

इसलिए विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा अपने शोध-पाठ्यक्रमों में प्रवेश हेतु आयोजित की जाने वाली पृथक परीक्षाओं के स्थान पर राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) के परिणाम को आधार बनाना व्यावहारिक और समीचीन है। इससे छात्र-छात्राओं के समय, संसाधनों और ऊर्जा की बचत होगी और पीएच. डी. पाठ्यक्रमों की प्रवेश-प्रक्रिया में पारदर्शिता, गुणवत्ता और समानता भी सुनिश्चित हो सकेगी। हालाँकि, राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) में अभ्यर्थी की लेखन/भाषा दक्षता, अभिव्यक्ति क्षमता और नैतिक बोध के परीक्षण को शामिल करने पर भी विचार किया जाना चाहिए। एक अच्छे शोधार्थी और शिक्षक में इन तीन गुणों/ क्षमताओं को भी अनिवार्यतः होना चाहिए।

सामान्य प्रवेश परीक्षा के आयोजन संबंधी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का निर्णय ऐसे समय में आया है जबकि दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे प्रमुख संस्थानों में प्रवेश के लिए अवास्तविक और अकल्पनीय कटऑफ ने अन्य विकल्पों की आवश्यकता को रेखांकित किया है। मार्क्स जिहाद विवाद की पृष्ठभूमि में दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा अधिष्ठाता (परीक्षा) प्रोफेसर डी. एस. रावत की अध्यक्षता में गठित नौ सदस्यीय समिति ने भी सामान्य प्रवेश परीक्षा आयोजित करने का सुझाव दिया है।

समिति का विचार है कि जब तक विश्वविद्यालय में स्नातक प्रवेश कट-ऑफ आधारित हैं, तब तक समतापूर्ण और समावेशी प्रवेश संभव नहीं है। समिति ने देश के विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के सभी उच्च माध्यमिक बोर्डों के छात्रों के लिए प्रवेश में ‘पूर्ण समानता’ बनाए रखते हुए प्रवेश-प्रक्रिया में पर्याप्त निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए सामान्य प्रवेश परीक्षा का विकल्प सुझाया है। इस प्रस्ताव को विद्वत परिषद और कार्यकारी परिषद जैसी दिल्ली विश्वविद्यालय की सर्वोच्च विधायी संस्थाओं ने भी अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी है। यह निर्णय न सिर्फ पाठ्यक्रम विशेष में अ-समान और अधि-प्रवेश को रोकेगा, बल्कि यह भी सुनिश्चित करेगा कि प्रत्येक आवेदक की योग्यता के वस्तुनिष्ठ आकलन द्वारा उपलब्ध सीटों का न्यायपूर्ण आवंटन हो।

शिक्षा मंत्रालय भी प्रवेश-प्रक्रिया में व्याप्त अव्यवस्था, अराजकता और असमानता की समाप्ति और एकरूपता, समता, निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए सामान्य प्रवेश परीक्षा (कॉमन एंट्रेंस टेस्ट) लागू करना चाहता है। निश्चित रूप से दिल्ली विश्वविद्यालय सहित सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों की प्रवेश-प्रक्रिया को दुरुस्त करने का एकमात्र विश्वसनीय विकल्प सामान्य प्रवेश परीक्षा ही है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में भी एकल और स्तरीय परीक्षा आयोजित करने का विकल्प सुझाया गया है।

गैर-पेशेवर स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए होने वाली यह परीक्षा संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) और राष्ट्रीय पात्रता और प्रवेश परीक्षा (एनईईटी) के समान एकल और स्तरीय प्रवेश परीक्षा होगी। इस बहुविकल्पीय, कंप्यूटर-आधारित परीक्षा में भाषा प्रवीणता, संख्यात्मक क्षमता आदि को परखने के लिए ‘सामान्य योग्यता परीक्षा’ और विषय ज्ञान का आकलन करने के लिए ‘विषय विशिष्ट परीक्षा’ होगी। जेईई इंजीनियरिंग संस्थानों, नीट मेडिकल संस्थानों और कैट मैनेजमेंट संस्थानों में प्रवेश हेतु देशभर में मान्य है। उसीतरह यह परीक्षा भी होगी।

स्तरीकृत और भेदभावपूर्ण स्कूली शिक्षा वाले घोर असमान समाज में सीमित अवसरों के न्यायपूर्ण वितरण के लिए एक निष्पक्ष और वस्तुपरक सामान्य मूल्यांकन ढांचा ही सर्वोत्तम विकल्प है। कम-से-कम एक इससे एक ऐसे सक्षम और व्यावहारिक समाधान की आशा की जा सकती है जो समाज, स्कूलों, शैक्षणिक संस्थानों और छात्रों की जरूरतों को पूरा करता है। उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए कॉमन एंट्रेंस टेस्ट (सीईटी) की मूल अवधारणा पूरे देश में मूल्यांकन के एक ही मानदंड के माध्यम से छात्रों को अपनी क्षमता के परीक्षण/प्रदर्शन का अवसर प्रदान करना है।

यह नए भारत की जरूरत है। अलग-अलग विश्वविद्यालयों द्वारा पृथक परीक्षाओं के आयोजन की जगह सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए एक परीक्षा विश्वविद्यालयों, सरकार और राष्ट्र के संसाधनों को भी बचाएगी। इससे छात्र-छात्राओं को अलग-अलग विश्वविद्यालयों में प्रवेश के लिए अलग-अलग आवेदन करने और अलग-अलग परीक्षा देने के झंझट से मुक्ति मिलेगी। इससे न केवल सभी बोर्डों के छात्रों के मूल्यांकन में एकरूपता आएगी, बल्कि सभी केन्द्रीय विश्वविद्यालयों की प्रवेश-प्रक्रिया भी एकसमान हो जाएगी। इससे छात्रों को बार-बार परीक्षा देने के अनावश्यक तनाव से निजात मिलेगी और उनके समय, धन और ऊर्जा का सदुपयोग हो सकेगा।

इस नयी व्यवस्था में कोचिंग सेंटरों की भूमिका बढ़ने की आशंका है। कोचिंग केंद्रित प्रणाली में गरीब, दलित, पिछड़े और ग्रामीण छात्रों का पिछड़ जाना स्वाभाविक है। कुछ लोगों का मानना है कि आर्थिक और सामाजिक रूप से वंचित वर्गों के छात्र शीर्ष विश्वविद्यालयों और पाठ्यक्रमों में प्रवेश नहीं पा सकेंगे। उन्हें आरक्षण की समाप्ति का भी डर है। मगर इन आशंकाओं की वजह से सामान्य प्रवेश परीक्षा का विरोध नहीं किया जाना चाहिए।

इस व्यवस्था में आरक्षण यथावत रहेगा। साथ ही, इस परीक्षा की तैयारी हेतु वंचित पृष्ठभूमि के छात्रों के लिए संबंधित स्कूलों द्वारा रेमेडियल कक्षायें आयोजित करने का प्रावधान किया जाना चाहिए। सम्बंधित सरकारों को भीइन बच्चों के लिए तीन-चार महीने की गुणवत्तापूर्ण कोचिंग की मुफ़्त व्यवस्था करनी चाहिए। ऐसा करके ही उपलब्ध सीमित सीटों का योग्यता के अनुसार न्यायपूर्ण वितरण संभव होगा

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रसाल सिंह

लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज में प्रोफेसर हैं। सम्पर्क- +918800886847, rasal_singh@yahoo.co.in
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