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लम्बे समय से देखने के लिए पैंडिंग पड़ी कुलदीप रुहिल निर्देशित ‘चीर हरण’ डॉक्यूमेंट्री को कल रात देखा। बेसब्री से इंतजार था इसे देखने का। ‘आश्रम’ जैसी सुपरहिट वेब सीरीज के पहले दो सीजन लिखने वाले लेखक, निर्देशक, एक्टर, डायरेक्टर कुलदीप रुहिल की इस डॉक्यूमेंट्री में जो बातें हजम नहीं होती वो पहले बता दूं फिर इसकी खूबसूरती की बात करूंगा।
देश में आजादी के बाद जब संविधान बना तो बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने आरक्षण का प्रावधान भी बनाया। जिसमें दलित व पिछड़े वर्ग को स्वर्ण समुदाय के साथ बराबरी पर लाकर खड़ा करना था। लेकिन बाद में सरकारों ने इसे अपने वोट बैंक के रुप में इस्तेमाल किया हमेशा।
जाट आन्दोलन साल 2016 में जब हरियाणा में हुआ तो उसके बारे में डॉक्यूमेंट्री शुरुआत में 20-25 मिनट तक तो परेशान करती है। कुछ बातें गलत रुप में पेश की जाती हैं। लेकिन उसके बाद जब इंसानियत और मानवीयता की बात इसमें आती है तो आप बरबस रो पड़ते हैं। दिल भीतर तक व्यथित हो उठता है। चहुँ और आगजनी, दर्जनों महिलाओं को सरेआम खेतों में ले जाकर बलात्कार, गैंगरेप की घटनाएं मीडिया के माध्यम से जब आई तो बहुत से लोग पैसे लेकर इस काम को करके आग में घी डालने का काम करने लगे।
विदेशी महिला के साथ बलात्कार की झूठी खबर हो, जाटों को सेंट्रल गर्वमेंट जॉब्स में आरक्षण मिलने, न मिलने की बातें हों, कई सारे चश्मदीद गवाहों, मंत्रियों के बयान, समाजशास्त्रियों की बातें हों या झूठी तस्वीरें फिर से सोशल मीडिया पर वायरल करके मुख्यधारा के प्रेस मीडिया ने भी एक समय तक इसे फैलाकर ईमानदारी का परिचय नहीं दिया।
यह डॉक्यूमेंट्री कई सारे चैप्टर्स में बंटी हुई सैनी समुदाय, जाट समुदाय का आईना दिखाते हुए जाट समुदाय की बहादुरी, गौरव देने वाले क्षण, खिलाड़ियों, फौजियों, जाट आर्मी आदि की बहादुरी के किस्से सुनाते हुए, खाप पंचायत का नर्म पहलू दिखाते हुए जब यह सुनने को मिलता है कि आज जाट आरक्षण की भीख मांग रहे हैं तो यह सरासर गलत रूप बयानी नजर आती है।
ऐसे तथ्य शामिल करके कुलदीप रुहिल इस डॉक्यूमेंट्री के माध्यम से एक दूसरा नजरिया भी पेश करती है। कि सिक्के के दो पहलू होते हैं। असल मायनों में यह डॉक्यूमेंट्री जाट समुदाय के साथ साल 2016 में हुई घटनाओं को काफी कुछ हद तक निष्पक्ष तरीके से पेश करती है।
‘चीर हरण’ डॉक्यूमेंट्री को हरियाणा सरकार द्वारा बैन कर देने की खबरें भी आईं थी। कुछ फ़िल्म फेस्टिवल में ईनाम और प्रशंसा पा चुकी डॉक्यूमेंट्री को देखा अवश्य जाना चाहिए। जाटों को तालिबानी, कठोर दिल कह कर भ्रांतियां जो फैलाई गईं हैं और जो इसका समर्थन करते हैं खास करके उन लोगों को तो जरूर देखना चाहिए।
चौधरी छोटू राम के वंशज जाट समुदाय के लिए यह डॉक्यूमेंट्री एक ऐसा गहरा दर्द दे जाती है जिसे किसी बड़े न्यूज चैनल ने बाहर नहीं आने दिया। अपने हकों की बात करना और दूसरों के हितों का प्रतिकार करने की बात करने वाली इस डॉक्यूमेंट्री को अगर आप इसके शुरुआत के 25 मिनट को देखते हुए बीच में छोड़ देंगे तो यह अजीमे गुनाह होगा।
मैं आरक्षण के समर्थन में तो नहीं हूं लेकिन फिर चाहे दलित हों, अल्पसंख्यक हों फिर वो किसी भी समुदाय के हों उन्हें आरक्षण दिया जाना चाहिए ताकि समाज में एक बराबरी का भाव पैदा हो।
क्या जाट गरीब नहीं होते? क्या सवर्ण गरीब नहीं होते? क्या सवर्ण पिछड़े नहीं होते आर्थिक रूप से? ऐसे कई सवाल भी अपने से पूछिएगा। 35 समुदाय को एक साथ लाने और एक विशेष समुदाय को छोड़ देने की बात भी इसमें जायज लगती है। (ऐसा मैं इसलिए नहीं कह रहा कि मैं खुद जाट हूँ)
लेकिन “हरियाणा से 21 में से 11 राज्य जाट आन्दोलन की चपेट में” जैसी बेसिर पैर की खबर तथा सेंट्रल गर्वमेंट में जाटों को आरक्षण न मिलने की बात को छोड़ दिया जाए तो यह डॉक्यूमेंट्री अपने आप में उमड़ा मुकाम बनाती है सिनेमा के मंदिर में कुलदीप रुहिल का।
इतिहास के नजरिये से महाभारत काल से जुड़े हुए हरियाणा की जड़ों को, सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़े, तीन बड़े युद्धों की गवाही देते हरियाणा का स्थान देश में विशिष्ट था है और रहेगा। फिर चाहे देश के मुख्यधारा के प्रेस में उस समय जाटों के प्रति दुर्भावना रखते हुए गलत बयान बाजियां हुई हों या गलत तस्वीरों को दिखाकर दंगा भड़काने की बातें की गई हों या फिर जाटों के नाश की कामनाएं की जा रही हों। ये सब भी उस जाट कौम के इतिहास को धूमिल नहीं कर सकेगी कभी जो जाटों के आरंभिक इतिहास से आम जनता पढ़ती आ रही है।
बैकग्राउंड स्कोर, गीत तथा हर सीन में आपकी आंखों को नम करने वाली ऐसी डॉक्यूमेंट्री के लिए स्टार रेटिंग न देकर उन्हें बस देखना, आगे शेयर करना, दूसरों से इसके बारे में चर्चा करना ज्यादा बेहतर होता है। अफसोस और गुस्सा आता है ऐसी डॉक्यूमेंट्री को देखकर उन पर जिन्हें केवल मुख्यधारा का सिनेमा ही पसन्द आता है या फिर शाहरुख, सलमान ही उन्हें पसन्द आता है फिर चाहे वे जितना मर्जी गोबर बड़े पर्दे पर करते रहें।
‘चीर हरण’ डॉक्यूमेंट्री को यहाँ क्लिक कर देखा जा सकता है।
तेजस पूनियां
लेखक स्वतन्त्र आलोचक एवं फिल्म समीक्षक हैं। सम्पर्क +919166373652 tejaspoonia@gmail.com
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जब समाज चौतरफा संकट से घिरा है, अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं, मीडिया चैनलों की या तो बोलती बन्द है या वे सत्ता के स्वर से अपना सुर मिला रहे हैं। केन्द्रीय परिदृश्य से जनपक्षीय और ईमानदार पत्रकारिता लगभग अनुपस्थित है; ऐसे समय में ‘सबलोग’ देश के जागरूक पाठकों के लिए वैचारिक और बौद्धिक विकल्प के तौर पर मौजूद है।
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