केयूर पाठक
-
May- 2021 -4 Mayसामयिक
पूँजी के भंवर में मनुष्यता की संभावनाओं का अन्त
प्रत्येक आदमी संभावनाओं का समुच्चय है। और ये संभावनाएं उसके भीतर की बहुआयामिकता से निकलती है। उसकी बहुआयामिकता उसकी प्रकृति के साथ-साथ उसके जीवन की सार्थकता भी है। यूँ समझे कि हर आदमी अपने आप में एक छोटा-मोटा लियोनार्दो…
Read More » -
Aug- 2020 -25 Augustसामयिक
दंडकारण्य के द्वन्द
जंगल के बाहर रहकर उसके भीतर की बेचैनी को नहीं समझा जा सकता। जीवन के बनने-बिखड़ने की प्रक्रिया वहाँ भी उतनी ही सामान्य होती है जितना कि तथाकथित सभ्य और विकसित दुनिया में। यह लघु आलेख जंगल में रहने…
Read More » -
Jul- 2020 -19 Julyशिक्षा
पास होते बच्चे और फेल होता तन्त्र
मैट्रिक-इन्टर आदि की परीक्षाओं के परिणाम निकलने प्रारम्भ हो गये हैं। उत्साह है, आशा है तो दूसरी तरफ निराशा और हताशा भी है। बच्चे तो बच्चे, इनके माता-पिता की मनोदशाएँ भी घोर चकित करने वाली हैं। इन…
Read More » -
10 Julyधर्म
पीरला-पांडुगा: भारतीयता का उत्सव
ताजुद्दीन, केयूर धर्म और संस्कृति के मध्य इतनी पतली रेखा है कि कई बार धार्मिक दुराग्रहों की टकराहट में सांस्कृतिक मूल्यों और धरोहरों का भी गम्भीर नुकसान हो जाता और हम समझ भी नहीं पाते। आजकल यह प्रवृति…
Read More » -
May- 2020 -25 Mayस्त्रीकाल
प्रतिरोध की चेतना और तेलंगाना की विस्मृत गाथाई स्त्रियाँ
सामाजिक और राजनीतिक न्याय के लिए जन-संघर्षों की कहानियाँ अक्सर इतिहास के अँधेरे कोने में दबा दी जाती है और जो कुछ भी हमारे सामने प्रकट और प्रभावी रूप में आता है वह राजसत्ता के इर्द-गिर्द के लोगों की…
Read More »