जय प्रकाश

जय प्रकाश

लेखक साहित्य-संस्कृति से सम्बन्धित विभिन्न विषयों पर पिछले 25 वर्षों से लेखन कर रहे हैं। सम्पर्क +919981064205, jaiprakash.shabdsetu@gmail.com
  • Jul- 2024 -
    16 July
    यत्र-तत्रराजेश्वर सक्सेना

    राजेश्वर सक्सेना: एकाग्र तपश्चर्या में एक ऋषिवत साधक

      डॉ. राजेश्वर सक्सेना हिन्दी के वरिष्ठ आलोचक और चिन्तक हैं। उनके चिन्तन की परिधि साहित्य तक सीमित नहीं है, बल्कि उसे अतिक्रमित कर वह सामाजिक विज्ञान और दर्शन के दुर्गम इलाकों तक जाते हैं और एक व्यापक वैचारिक परिसर…

    Read More »
  • 9 July
    यत्र-तत्रहरिशंकर परसाई का व्यंग्य

    हरिशंकर परसाई: व्यंग्य-दृष्टि और वर्ग-बोध

      हिंदी-व्यंग्य के शीर्ष-पुरुष हरिशंकर परसाई के जन्म-शताब्दी-वर्ष में जिज्ञासा होती है कि उनकी कहानियों में व्यंग्य की चेतना प्रारंभ से थी, या वह धीरे-धीरे समय के साथ विकसित हुई। परसाई जबलपुर आने के बाद समाजवादियों के संपर्क में आए।…

    Read More »
  • Apr- 2024 -
    22 April
    एतिहासिकठाकुर जगमोहन सिंह

    भारतेन्दु-युग में स्वच्छंद चेतना का प्रवेश

      हिंदी प्रदेश में नवजागरण के रूप में उन्नीसवीं सदी के बौद्धिक उन्मेष की पहचान करते हुए प्रायः उस दौर की प्रबल यथार्थ-चेतना और समकालीन बोध को रेखांकित किया जाता है, लेकिन यह तथ्य अलक्षित रह गया है कि उसके…

    Read More »
  • 5 April
    यत्र-तत्र

    छत्तीसगढ़ी नाचा, मँदराजी और हबीब तनवीर

      लोकनाट्य ‘नाचा’ छत्तीसगढ़ की विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान है। आज भी यह अत्यंत लोकप्रिय विधा है। उसके स्वरूप में समय के अनुसार क्रमशः बदलाव आया है लेकिन अब भी वह जीवंत और सक्रिय है। यह जीवनी-शक्ति उसे समाज और लोक-जीवन…

    Read More »
  • Dec- 2022 -
    7 December
    यत्र-तत्रमुक्तिबोध

    स्मारक में मुक्तिबोध

      मुक्तिबोध की स्मृतियों को सँजोने के लिये राजनांदगाँव में 2005 में एक स्मारक बनाने की योजना पर तत्कालीन छत्तीसगढ़ सरकार ने महत्त्वपूर्ण पहल की। कलेक्टर की अगुवाई में एक समिति गठित हुई जिसमें मुक्तिबोध के मित्र शरद कोठारी, प्राध्यापक…

    Read More »
  • Aug- 2022 -
    8 August
    शख्सियतमुक्तिबोध का

    मुक्तिबोध का आख़िरी ठिकाना

        उन्नीसवीं सदी में बैरागी शासकों ने राजनांदगाँव रियासत क़ायम की थी। देश की आज़ादी के बाद भारतीय संघ में उसका विलीनीकरण हुआ और शहर के गणमान्य नागरिकों के आग्रह पर राजा दिग्विजय दास ने महाविद्यालय की स्थापना के…

    Read More »
  • Jul- 2022 -
    4 July
    यत्र-तत्रडिजिटल कविता का

    डिजिटल कविता का उभार

      सूचना और संचार की उच्चतर तकनीक आज जिस शिखर पर पहुँच गयी है, उसमें डिजिटल कविता का आविर्भाव आकस्मिक नहीं है। सच पूछा जाए तो डिजिटल कविता आज के समय के द्वारा रची गयी और स्वयं समय की अपरिहार्य…

    Read More »
  • May- 2022 -
    19 May
    यत्र-तत्रडिजिटल कविता

    डिजिटल युग में कविता

      बीसवीं शताब्दी तक आकर मानव-सभ्यता जिस मुकाम पर पहुँची, वहाँ अभिव्यक्ति के दो माध्यम पूरी तरह विकसित हो चुके थे– वाचिक माध्यम और मुद्रित माध्यम। वाचिक या उच्चरित शब्द सदियों पहले से श्रुति-परंपरा के रूप में मौजूद था। फिर…

    Read More »
  • Apr- 2022 -
    10 April
    यत्र-तत्रकवि की कहानी

    कवि की कहानी

      तीन दशक से भी ज़्यादा समय हुआ है जब ‘पूर्वग्रह’ में प्रकाशित एक बातचीत में डॉ. नामवर सिंह का ध्यान उन कहानीकारों की ओर आकृष्ट किया गया जो मूलतः कवि हैं,  उनकी ख्याति भी मुख्यतः कवि के रूप में…

    Read More »
Back to top button