अंतरराष्ट्रीय

भारत और पड़ोसी देशों का एक दशक

 

कहते हैं कि अपने आप को मजबूत करना है तो घर से बाहर की ताकत को समृद्ध करें लेकिन साल 2014के बाद से भारत सरकार ने घर के अंदर अपनी क्षमताओं को एकत्रित और समृद्ध करने की कोशिश की है। भारत ने अब स्वयं को सॉफ्ट पावर पर केंद्रित किया है। एक जमाना था जब अन्तरराष्ट्रीय राजनीति में राज्य अपनी बाहरी क्षमताओं को बढ़ाने में लगा था लेकिन जी-20 की बैठक ने एक नया अध्याय लिखा है।

एशिया महाद्वीप में चल रही शक्ति-राजनीति की प्रतिस्पर्धा में चीन को टक्कर देने के साथ-साथ भारत को अपनी पहचान एक महाशक्ति की भी बनानी होगी। विश्व जगत में भारत ने अपने सॉफ्ट पावर-पॉलिटिक्स का नया चित्र पेश किया है। संस्कृति, आर्थिक योगदान से लेकर भारत ने मानवीय कल्याण (कोरोना महामारी) तक के नए अध्याय को अन्तरराष्ट्रीय पटल पर रखा है। अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्ध में राज्य हमेशा अपनी सौदेबाजी की ताकत को स्थायी करने की कोशिश में लगा रहता है चाहे वो व्यापार, संस्कृति के जरिये हो हो या फिर दान के जरिये।

साउथ एशिया का महत्वपूर्ण सदस्य होने के कारण भारत को अब अनदेखा करना बहुत मुश्किल है। उसी तरह ‘नजदीकी पड़ोसी नीति’ को महत्व न देना भी एक गलती होगी। भारत को ‘वायस ऑफ ग्लोबल साउथ’ (दक्षिण भू-मंडलीय स्वर) की उपाधि देना एक कारगर कदम है। यह इसी दिशा में एक पहल है। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में पड़ोसी मुल्क के सरकारों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति इसी बात का प्रमाण है।

जब भी पड़ोसी राज्य किसी संकट के शिकार हुए हैं तब भारत अपने पड़ोसी राज्यों के लिए बड़े भाई या रक्षा करने वाले राज्य की तरह खड़ा रहा है; चाहे वो भूटान की संविधान संरचना हो, श्रीलंका में नस्लीय लड़ाई हो या बांग्लादेश की आजादी का मसला हो या फिर नेपाल में आई बाढ़ ही क्यों न हो! भारत ने हमेशा ऐसे समय में अधिकतम सुरक्षा और सुविधा प्रदान की है। शांति, और विकास को प्रााथमिकता दी है। ‘पड़ोसी प्रथम’ नीति इन्ही बिन्दुओं को चिह्नित करती है। प्रधानमत्री के “पंचामृत” के तत्व भी यही घोषित करते हैं- सम्मान, समृद्धि, सहयोग, संवाद और शांति।

भारत की अन्तरराष्ट्रीय स्थिति को देखा जाए तो इसे वैश्विक दक्षिण का नायक कहना सही होगा जहाँ वह विशेषतः एशिया महाद्वीप में अपनी भूमिका को लगातार बेहतर करने की कोशिश कर रहा है। विश्वबन्धुत्व, वसुधैव कुटुम्बकम, ‘इंडिया मिडिल ईस्ट यूरोप कॉरिडोर’ और ‘अन्तरराष्ट्रीय सौर संधि’ जैसे कार्य को अंजाम दे रहा है। यह सब भारत को वैश्विक राजनीति में बढ़त दिलाता है और उसकी भूमिका को महत्वपूर्ण बनाता है।

भारत के विदेश मन्त्री एस. जयशंकर के दौरे में नेपाल द्वारा भारत को 10000 मेगावाट पावर अगले 10 साल तक में बेचने का करार हो या अरुणा हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट या अपर करनाली प्रोजेक्ट- ये सब दोनों राज्यों के करीबी सुखद रिश्ते के ही प्रमाण हैं। 2021-22 तक दोनों राज्य के बीच 11 बिलियन डॉलर की ऊर्जा का व्यवसाय होना है और भारत द्वारा नेपाल को 700 बिलियन डॉलर का विकास सहयोग दिया जाना है। नेपाल में आए भूकंप में भारत सबसे पहले सहयोग राशि और सहानुभूति देकर अपने मानवीय चरित्र को विश्व के सामने पेश कर चुका है। अफगानिस्तान के साथ ऊर्जा के क्षेत्र में 500 अलग-अलग प्रोजेक्ट और भारत द्वारा वहाँ की संसद का निर्माण भारत की पहलकदमी को स्पष्ट करता है।

भूटान के साथ जल संधि और प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी का दौरा भारत की प्राथमिकता को बताता है। भूटान द्वारा प्रधानमन्त्री मोदी को सर्वोच्च नागरिक सम्मान देना दोनों राज्य के नजदीकी रिश्ते का प्रतीक बन गया है। भले ही आज बांग्लादेश में राजनैतिक अस्थिरता चल रही हो लेकिन उसकी आजादी में भूमिका निभाने से लेकर गंगा जल संधि, तीस्ता जल संधि तक भारत ने बांग्लादेश को काफी सहयोग दिया है। भारत अपने पड़ोस में लोकतन्त्र की सुरक्षा देनेवाले राज्य के रूप में देखा जाता है। भारत बांग्लादेश और श्रीलंका को चीन के ऋण-जाल में फंसने से बचाने हेतु लगातार उन्हें अवगत कराता रहा है और सहयोग देता रहा है।

प्रवासी मुद्दों पर भी भारत ने ऑपरेशन इंसानियत जैसे कार्यों को अंजाम देकर म्यांमार में चल रही जटिल समस्यायों का निदान खोजने की भूमिका निभायी है। इसके अलावा म्यांमार के साथ कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट और कलादान प्रोजेक्ट पड़ोसी देश के विकास में भारत के सहयोग को चरितार्थ करता है। श्रीलंका से भारत के गहरे रिश्ते का प्रमाण भारत के सहयोग में है। भारत ने श्रीलंका को 4 बिलियन डॉलर की सहयोग राशि दी है ताकि श्रीलंका अपनी स्थिति को ठीक करने में सहयोग पा सके। ‘जॉइंट विजन फॉर कनेक्टिविटी’ और आर्थिक तथा तकनीकी सहयोग संधि दोनों राज्य के नजदीकी समीकरण को एक बल देता है।

सबको साथ लेकर चलना और सभी को एक सम्मानित सदस्य का दर्जा देने का सिद्धांत भारत हमेशा याद रखता है। पंचशील संधि हो या फिर वेस्टफेलिया ट्रीटी, इतिहास में उन्हीं राष्ट्रों का नाम दर्ज हैं जिन्होंने वैश्विक स्तर पर लोकतांत्रिक और मानवीय तरीकों को तरजीह दी है। भारत ग्लोबल साउथ के सबसे महत्वपूर्ण देश के रूप में अपने पड़ोसी राज्यों के साथ अपने सम्बन्ध को एक नयी पहचान देने की इसी कोशिश में लगा है। यह भी तथ्य है कि आने वालों दिनों में भारत सुरक्षा परिषद में अपना नाम दर्ज करवा लेगा।

भू-कूटनीति के इस दौड़ में भारत एशिया महाद्वीप ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना चुका है और चीन जैसे राज्य को एक कारगर प्रतिस्पर्धा दे रहा है। हम उस भारत की नयी सुबह से रूबरू हो रहे हैं जो अपने नजदीकी पड़ोसी राज्यों की चिन्ता करता है, उन्हें सहयोग, सुरक्षा और विकास का मानवीय विकल्प उपलब्ध कराता है। यह बढ़ते हुए भारत का, उभरते हुए भारत का और अन्ततः एक नए भारत का चित्र है, जिसे दुनिया देख रही है और इसकी नयी वैश्विक भूमिका को रेखांकित कर रही है

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संजीव रंजन

लेखक मोतीलाल नेहरू कॉलेज (संध्या), दिल्ली विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। सम्पर्क +919911659791, sanjivranjan@mlne.du.ac.in
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