लॉक डाउन में उपजी कहानियाँ
पूर्ण बन्दी को अभी जैसे तैसे महीना भर हुआ है। लेकिन इस बीच में एकल परिवार, नशाखोरी और महानगरीय जीवन के कई रूप देखने को मिले हैं। जैसे कि परिवार के करीब होना कैसा लगता है? अकेले रहना किसे पसन्द है? आप कितने दिनों तक अकेले रह सकते हैं? बिना नशा के जीवन कैसा होता है? इस तरह के बहुत सारे ऐसे सवाल और कहानियाँ हैं, जिन्होंने बन्द कमरों में जन्म लिया।
इन दिनों चल रही वैश्विक महामारी के चलते तमाम देशों की सरकारों ने सैर-सपाटे और नशीले पदार्थों पर पाबंदियाँ लगा रखी हैं। लोग अपने-अपने घरों में कैद हैं। इससे जहाँ कुछ लोग खुश हैं तो कुछ बहुत ही ज्यादा दुखी हैं। कुछ परिवारों के लिए यह साथ रहने का सुनहरा पल है जो जीवन की भागमभाग के कारण शायद ही कभी इस तरह से आता होगा।
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इस दौरान कई लोग खुद को बदल रहे हैं। आत्म मूल्यांकन कर रहे हैं। वहीं कुछ के लिए यह वक़्त बड़ी मुसीबत भरा हो गया है। उनकी निजता छीन रही है और जिन्दगी बदल रही है। खासकर रोजगार और भोजन के आभाव में लाखों की संख्या में लोग हजारों किलोमीटर पैदल चलकर अपने गाँव जाने को विवश हैं। वहीं महानगर में रह रहे परिवारों के लिए ये एक अलग अनुभव साबित हुआ। खासकर स्त्रियों के लिए यह सबसे अधिक मिलाजुला वक़्त है। कहीं काम का बोझ बढ़ गया है तो कहीं जीवन की एकरसता ख़त्म हो गयी है। सभी सदस्यों के घर में रहने के कारण किसी का एकान्त छीन गया है तो कहीं पति-पत्नी में टकराहटें बढ़ गयी हैं।
किसी का प्रेमी टाईम पास चैट पर बात करके बेवफा होने की कगार पर है तो किसी की प्रेमिका प्रेमी द्वारा समय न दे पाने के कारण छोड़ने की धमकियाँ दे रही है। इस पर मैंने अलग-अलग प्रेमी जोड़ों और परिवारों से बात कर के उनके अनुभवों को जानने का प्रयास किया।
मेरा परिवार अब मेरे पास है।
42 साल की अनिता बताती हैं कि वे जीवन में ज्यादातर घर में अकेली ही रही हैं। उनके दो बच्चे हैं। दोनों नौकरी करते हैं। बेटा सुबह 9 बजे चला जाता था और देर रात ही आता था। क्योंकि शाम को उसे अपने दोस्तों के साथ रहना ज्यादा पसन्द है। बेटी कॉलेज के साथ-साथ इंटर्नशिप कर रही है। वह भी सुबह 10 बजे जाती है और रात तक आती है। मेरे पति नाईट ड्यूटी करते हैं। इसलिए दिन भर सोते हैं। कितने सालों से हमारे परिवार को एक साथ बैठने का मौका ही नहीं मिला। घर में चार लोग होने के बावजूद भी मैं अकेली ही थी। लेकिन जब से लॉक डाउन हुआ है। मुझे खुशी है। क्योंकि अब सब लोग पूरा दिन घर रहते हैं।
दिन कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता। मेरी बेटी मेरे साथ रसोई में काम करवाती है। हम हर दिन कुछ न कुछ नया बनाते हैं। सब घर में एक दूसरे की मदद करते हैं। हम सब घण्टों बैठ कर लूडो और ताश खेलते हैं। मुझे बहुत मज़ा आता है। मेरे पति घर की सफाई में मेरी मदद करते हैं, तो बेटा बाहर से खुद ही सब सामान ले आता है। थोड़े दिन के लिए ही सही, लेकिन हम सब साथ हैं।
पहले से ज्यादा खुश रहती हूँ।
21 साल की सिमरन बताती हैं कि मैं अकेली संतान हूँ। मेरे माता-पिता नौकरी करते हैं। इसलिए शुरू से ही अकेली रही हूँ। मैं स्कूल टाइम में हॉस्टल में रहती थी। मेरे पैरेंट्स के पास मेरे लिए वक़्त नहीं था। कॉलेज के दौरान अकेलापन दूर करने के लिए मैं बहुत सारी डेंटिंग एप्स का प्रयोग करती थी। लेकिन वहाँ बहुत कुछ उल्टा हो रहा था, जिस वज़ह से मैं मानसिक तनाव में रहने लगी थी। हालात ऐसे हो गये कि नींद की दवाइयाँ लेने की नौबत आ गयी थी। मुझे दूसरे बच्चों को अपने पैरेंट्स के साथ देख कर जलन होती थी। कई बार तो मरने का दिल भी करता था। पर जब से लॉक डाउन हुआ है मेरे पैरेंट्स घर पर रहते हैं।
हमेशा मुझे सुनते हैं। मेरी परेशानियों के हल देते हैं। मेरे साथ फ़ोटो लेते हैं। मम्मी मुझे नई-नई चीज़ें बना कर अपने हाथ से खिलाती हैं। पापा मेरे साथ चेस खेलते हैं। मैं रात को अपनी मम्मी के पास सोती हूँ और वो भी दवाइयों के बिना ही। मुझे खुशी है इन दिनों मैं खुद को जी रही हूँ।
आजकल बेटे को वक़्त दे रहा हूँ।
पेशे से अध्यापक 35 वर्षीय आकाश कहते हैं कि मेरा अब तक के जीवन का बहुत बड़ा हिस्सा भविष्य सँवारने में निकल गया। ऐसे में परिवार को वक़्त ही नहीं दे पाता था। मेरा 5 साल का बेटा है। मेरी पत्नी ने शुरू से ही बेटे को और खुद को अकेले सम्भाला है। मैं जब भी काम से घर आता था तब तक मेरा बेटा सो जाता था। मैं जब सुबह जगता तो उसको स्कूल जाना होता या फिर मुझे जल्दी निकलना होता था।
मेरी पत्नी ने कभी इस बात की शिकायत नहीं की कि आप हमें समय नहीं देते। लेकिन जब से लॉक डाउन हुआ है, मैं घर पर हूँ और बेटे के साथ खेलता हूँ। उसके साथ फिर से अपना बचपन जी रहा हूँ। बहुत सारे ऐसे खेल जो हम गाँव में बचपन में खेलते थे, आज उसे सिखा रहा हूँ। हम साथ में किताबें पढ़ते हैं। नाटक देखते हैं। बच्चे की बहुत सारी ऐसी गतिविधियाँ होती हैं जिन्हें हर माँ-बाप को पास से महसूस करना अच्छा लगता है। अभी तक मैं उससे वंचित था। लेकिन अब उसका भरपूर आनन्द ले रहा हूँ।
काम बढ़ गया, प्राइवेसी खत्म हो गयी।
भारत एक ऐसा देश है जहाँ आज भी संयुक्त परिवारों की संख्या ठीकठाक है। सीमा बताती हैं कि जब से देशव्यापी लॉक डाउन लगा है परिवार के सभी लोग अब घर में रहते हैं। हमारे परिवार में कुल 16 लोग हैं। घर का काम इतना बढ़ गया है कि दिन भर में एक मिनट का आराम नहीं मिलता। इतनी मेहनत के बाद भी सब शिकायत करते रहते हैं। ये नहीं हुआ और वो नहीं बना। चार-पाँच बार तो चाय बनानी पड़ती है। सबसे छोटी हूँ इसलिए और दिक्कत है। सबकी फरमाइशों को पूरा करना पड़ता है। सबकी ज़ुबान पर जैसे मेरा ही नाम रटा हुआ है। सीमा का कहना था कि अब हमारी निजता छिनने लगी है। जब से सब लोग पूरा दिन घर पर हैं, मैं अपने पति के साथ बैठ कर दो बात भी नहीं कर पाती। दिन भर हमें कोई न कोई घेरे रहता है।
बहुत परेशान हूँ।
काजल के पति निजी कम्पनी में नौकरी करते हैं। पूर्णबन्दी के चलते वह घर पर हैं। हमारी शादी को 15 साल हो गये हैं। मेरे पति को शराब पीने की आदत है लेकिन इस वक़्त वो मिल नहीं रही। इसकी वज़ह से उनके स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ गया है। इस कारण वह बच्चों पर हाथ उठाते हैं और रोज रात में मुझे शारीरिक सम्बन्ध बनाने की जिद करते हैं। ये सब बहुत ज्यादा बढ़ गया है। रोज़-रोज़ घर में झगड़े होते हैं। बच्चें भी इस माहौल से सहमने लगे हैं। पहले वह काम पर जाते थे तो रात में घर आने के बाद खाना खा कर सो जाते थे। लेकिन अब मैं और मेरे बच्चे बहुत ज्यादा परेशान हैं और दुआ कर रहे कि पूर्ण बन्दी जल्दी ख़त्म हो।
अब हम दोनों अलग हो गये हैं।
आराध्या का कहना था कि मेरा 2 साल से बॉयफ्रेंड था। हम दोनों साथ पढ़ते थे। पूर्णबन्दी के कारण कॉलेज बन्द हो गया। हम दोनों में कुछ दिनों से ही नोक झोंक चल रही थी। मैं परेशान रहने लगी थी क्योंकि घर पर उससे ठीक से बात नहीं कर पा रही। वो भी कुछ दिनों से मेरी दोस्त से बात कर रहा है। मुझे मेरे दोस्त से पता लगा कि वो किसी और के साथ रिलेशन में आ गया है। उसे लगता है मैं बोरिंग हो गयी हूँ। इसलिए अब मैं कुछ नहीं कर सकती।
मैं उसे खोना नहीं चाहता।
पेशे से फोटोग्राफर आलिश बताते हैं कि लॉक डाउन के कारण काम बन्द हो गया है। घर-परिवार आपसी रिश्ते सब बदलने लग गये हैं। मेरी गर्लफ्रैंड और मैं 6 महीने से साथ काम करते थे। लॉक डाउन के बाद से उसने मुझे अवॉयड करना शुरू कर दिया। हम दोनों में झगड़े होने लगे थे। मैं उसे बहुत समझता हूँ लेकिन फिर भी उसका कहना है कि मैं उसे टाइम नहीं देता। जबकि असल में वह कहीं और उलझने लगी है। वे मुझे हर रोज़ अलग होने को कहती है। हम में रिश्ते बदल गये है। पूर्णबन्दी के वज़ह से मैं उससे मिल भी नहीं पा रहा और उसे खोना भी नहीं चाहता।
इन परिवारों की और प्रेमियों की अलग-अलग कहानियों से पता चलता है कि जिस तरह हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, यह लॉक डाउन भी वैसा ही साबित हुआ है। जहाँ अनिता, सिमरन और आकाश अपनी ख़ुशहाल ज़िन्दगी में वापिस आकर खुश हैं वहीं सीमा और काजल के लिए ये सब मुसीबत के दिन हो गये हैं। हर्ष और आराध्या इन दिनों में अपने नए रिश्तों को खो रहे हैं।
अब ये तो नहीं पता कि ये लॉक डाउन कब खत्म हो, और कब इन लोगों की खुशियों और दुखों में बदलाव हो जाए। सिर्फ इतना कह सकते हैं कि जिसे जैसा चल रहा है उसे अभी वैसा ही जीना होगा
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