चर्चा मेंहरियाणा

इनेलो में सियासी विरासत की जंग

सियासत में किसी का किसी से कोई रिश्ता नहीं होता. पिछले कुछ सालों में देश के अलग-अलग राज्यों में घटी एक जैसी घटनाओं ने साबित कर दिया है कि पिता-पुत्र, चाचा-भतीजा, भाई-भाई…ये सब रिश्ते सियासी फायदों तक ही सीमित होते हैं और जब ये हितों में अड़चन हों या फिर महत्वाकांक्षाओं के आड़े आने लगें तो रिश्ते टूटते वक्त नहीं लगता.
उत्तर प्रदेश की राजनीति का सबसे हिट एपिसोड कहा जाने वाला शिवपाल-अखिलेश विवाद सामने आया तो सबको अचरज हुआ. जमकर उठापटक हुई और आखिरकार इसका नतीजा हुआ समाजवादियों की करारी हार और अब पार्टी टूटकर हिस्सों में बंट चुकी है. सब समाजवादी हैं लेकिन कोई पार्टी चला रहा है कोई मोर्चा बना रहा है.
यूपी-हरियाणा पड़ोसी जिले हैं. मौसमी प्रभाव एक दूसरे पर पड़ता है लेकिन अब सियासी हवाओं ने भी हरियाणा की सियासत की तासीर बदल सी दी है.
इंडियन नेशनल लोकदल में भी समाजवादियों के संघर्ष जैसा ही कुछ दिख रहा है. यहां भी क्षेत्रीय पार्टी है. मजबूत चाचा है. जनाधार बना चुका युवा भतीजा है और दोनों के बीच है अनकहा सत्ता का संघर्ष. और सत्ता भी वो जो चौदह साल पहले इस पार्टी से छिनी थी और अभी ऐसे कोई संकेत नहीं है कि ये इसे हासिल कर भी सकेंगे या नहीं.
ये लड़ाई कोई नयी नहीं है. पिछले कई वर्षों से चल रही इस उठापटक के असली किरदार हैं अजय सिंह चौटाला और अभय सिंह चौटाला. जब तक ओम प्रकाश चौटाला जेल में नहीं गए थे तब तक उन्होंने इस विवाद को बाहर नहीं आने दिया। अब इस लड़ाई का मोहरा दुष्यंत चौटाला और दिग्विजय चौटाला बने तो इनेलो की साख दाव पर लग गई है. जिस वक्त पार्टी को एकजुट होकर विपक्ष का मुकाबला करना चाहिए था शीर्ष नेता अपनी फूट से कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा रहे हैं।
इस संघर्ष को हवा एक बार फिर उस वक्त मिली जब खबर आयी कि  उठापटक और पारिवारिक कलह के बीच पार्टी सुप्रीमो ओम प्रकाश चौटाला ने हिसार सांसद दुष्यंत सिंह चौटाला को पार्टी से निलंबित कर दिया है.
खबरें तेजी से फैली कि दुष्यंत को लिखित में नोटिस भेजकर एक सप्ताह में जवाब देने को कहा गया है. और चौटाला ने अपने पोते को पार्टी के सभी पदों से भी हटा दिया है. दुष्यंत सामने आये और समर्थकों के बीच संदेश दिया कि एकजुट रहें. इससे पहले चौटाला ने पार्टी की युवा इकाई और छात्र संगठन इनसो की राष्ट्रीय और प्रदेश कार्यकारिणी को भंग करने का फैसला लिया था। दरअसल इस पूरे विवाद के पीछे है सात अक्तूबर को गोहाना की सम्मान दिवस रैली में अभय सिंह चौटाला के खिलाफ हुई हूटिंग. जिसके बाद अभय चौटाला ने पार्टी में अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने की गुप्त रणनीति पर अमल शुरू किया. खैर पार्टी का एक धड़ा दुष्यंत चौटाला को सीएम पद के उम्मीदवार के तौर पर देखना चाहता है तो वहीं अभय चौटाला भी पार्टी को पिछले लंबे वक्त तक एकजुट रखने का मेहनताना मांगने के हकदार हैं. हालांकि अभी ओपी चौटाला सुप्रीमो हैं इसका फैसला वहीं करेंगे.
लेकिन इनेलो के शीर्ष नेतृत्व में छिड़ी आपसी जंग से पार्टी का कॉडर ना केवल मायूस है बल्कि कई जिलों में कार्यकर्ताओं ने पार्टी के दोनों गुटों से दूरी बना ली है. पंचकूला से पलवल तक और सिरसा से मेवात तक इन दिनों इनेलो के बीच छिड़े गृहयुद्ध की चर्चा हो रही है. प्रदेश में सक्रिय कांग्रेस, बीजेपी और आम आदमी पार्टी ने इनेलो के पुराने और संगठन के वफादारों पर नजर डालनी शुरू कर दी है. ऐसे में इनेलो कार्यकर्ता अपने लिए सुरक्षित राजनीतिक ठिकाना तलाशने की कवायद में लग गए हैं. और साफ है कि इसका खामियाजा इनेलो को आने वाले चुनाव में भुगतना पड़ सकता है जैसे समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में भुगता था.

दीपक तोमर

लेखक पत्रकार हैं.

dpktmr08@gmail.com

+91 78383 55887

Show More

सबलोग

लोक चेतना का राष्ट्रीय मासिक सम्पादक- किशन कालजयी
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments

Related Articles

Back to top button
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x