तेलांगना का चुनावी समीकरण
के शक्तिराज
राज्य की सरहदों पर पुलिस के अस्थाई टेंट वाले चेक पोस्ट्स बनाए गए हैं, राज्य की सरहदों के अंदर प्रवेश करने वाले प्रत्येक वाहन की जाँच हो रही है, कारों तथा बसों आदि में थैलियाँ लेकर अपने घरों से निकल पड़े लोगों के थैलों आदि को उल्टा पुल्टा कर के कुछ खोजा जा रहा है। प्रमुख राजनेताओं के पुतलों आदि को कपड़ों से ढका जा रहा है। हवा का रुख पल प्रतिपल बदल रहा है। रैलियों, नारों तथा रंग बिरंगे लुभावने पर्चों से राज्य का माहौल सहज से असहज में तब्दील हो रहा है। ऐसे में राहत इंदौरी का यह शेर याद आना भी सहज है -“सरहदों पर बहुत तनाव है क्या/
कुछ पता तो करो चुनाव है क्या।”
जी हाँ, देश के पाँच राज्यों – राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, मिज़ोरम और तेलंगाना – में विधानसभा चुनावों का शंखनाद हो चुका है। 7 नवंबर को मिजोरम से शुरू ये चुनावी मतदान तेलंगाना में 30 नवंबर को समाप्त होंगे। चुनावी नतीजे दिसंबर 3 को आयेंगे। अनुमान लगाया जा रहा है कि वर्षांत के ये चुनाव आगामी लोकसभा चुनावों के लिए रोड मैप तयार करने में जरूर काम आयेंगे।
तेलंगाना, 2 जून, 2014 को आंध्र प्रदेश से अलग होकर बना देश का 28 वाँ राज्य है। वर्तमान में यहाँ बीआरएस (भारत राष्ट्र समिति जो पूर्व में टीआरएस – तेलंगाना राष्ट्र समिति हुआ करती थी।) की सरकार है। लगातार दो पाली अकेले अपनी सरकार स्थापित करने में सफल हुई बीआरएस इस बार भी अपनी चुनावी रणनीति की बानगी पेश कर रही है। याद रहे कि तेलंगाना में कुल 119 निर्वाचन क्षेत्र के लिए चुनाव होने हैं जिनमें 18 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं तो 9 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए। सत्तारूढ़ बीआरएस सरकार कई योजनाएं अमल में लाने का भरकस प्रयास कर रही है, जिनमें रैतु बीमा, आसरा पेंशन योजना, डबल बेड रूम योजना, दलित बंधु, केसीआर न्यूट्रिशन किट, केसीआर किट, मिशन काकतीय, मिशन भगीरथ, हरित हारम, भेड़ वितरण, धरणी पोर्टल, मन ऊरु – मन बड़ी, कंटी वेलुगु, कालेश्वरम परियोजना, शादी मुबारक योजना, कल्याण लक्ष्मी जैसी कल्याणकारी योजनाएं प्रमुख हैं। रैतु बंधु योजना के तहत किसानों को हर साल प्रति एकड़ 10,000 रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।इन्हीं तमाम योजनाओं के बल पर तथा कुछ इनमें परिवर्तन आदि कर के निश्चित रूप से पुनः अपनी सरकार स्थापित करेंगे इस आत्मविश्वास से बीआरएस चुनाव अभियान में जुटी है।
वैसे देखा जाय तो तेलंगाना में राजनीति की दृष्टि से क्षेत्रीय पार्टियों का दबदबा होते हुए भी पिछले विधानसभा चुनाव में बीआरएस और काँग्रेस में सीधी टक्कर थी। लेकिन इस बार समीकरण पूरी तरह से बदल रहा है। जहाँ काँग्रेस फीनिक्स पक्षी की तरह फिर से जीवित हो उठने के लिए तड़प रही है, वहीं बीजेपी साम, दाम और दण्ड भेद से किसी भी तरह, महाराष्ट्र की तर्ज पर , अपनी सरकार स्थापित करने की कोशिश में है। भले ही इस बार चुनावी टक्कर बीआरएस, काँग्रेस तथा बीजेपी में होने वाली हो फिर भी पूर्व आईपीएस अधिकारी रहे आर एस प्रवीण कुमार का राजनीति में प्रवेश कर बीएसपी का दामन थामना भी कहीं न कहीं इस चुनाव में मतदाताओं को प्रभावित कर सकता है। साथ ही साथ स्वतंत्र तेलंगाना राज्य की माँग को लेकर चले आंदोलन में तेलंगाना ज्वाइंट एक्शन कमिटी के चेयरमैन के रूप में अपनी सक्रिय भूमिका निभाने वाले प्रो. एम. कोदंडराम की पार्टी ‘तेलंगाना जन समिति’ भी इस बार सक्रियता बढ़ा सकती है। इधर सीपीआई अपनी हिस्सेदारी को लेकर हमेशा की तरह साँठ गाँठ में जुटी है। इस बार वह काँग्रेस के साथ खड़ी नजर आती है। वह काँग्रेस से अपने लिए कितनी सीटें आवंटित करने की माँग करेगी और काँग्रेस कितनी सीटों से उसे संतुष्ट करेगी यह बहुत जल्द स्पष्ट हो जाएगा। हमेशा की तरह एआईएमआईएम- अपनी सात सीटों पर अपना ही वर्चस्व कायम रहेगा- इसी निश्चिंतता में अपनी इमोशनल राजनीति को आगे बढ़ाने में तत्पर है। टीडीपी की स्थिति इस बार कुछ खास नहीं दिखाई पड़ रही है। पार्टी अधिनेता एम चंद्रबाबू नायडू को सीबीआई कोर्ट ने एक घोटाले के आरोप में जेल भेज देने से तेलंगाना के पार्टी कार्यकर्ताओं में कोई विशेष चहल पहल दिखाई नहीं दे रही है। फिर भी पार्टी चुनाव लड़ेगी ऐसी बातें चर्चा में है।
राज्य की आवाम के लिए चुनाव आयोग द्वारा चुनावी तिथियों की घोषणा करना मात्र एक औपचारिक सी बात हो सकती है क्योंकि विधानसभा चुनाव संबंधी माहौल बहुत पहले से अपना रुख अख्तियार कर चुका था। दलित, आदिवासी, मुस्लिम, बीसी, रेड्डीज, वेल्मास और राव्स जाति विशेष को आधार बनाकर संपन्न होनेवाले इस चुनाव में, चिकन बिरयानी के पैकेट्स, दारू तथा नकद रुपयों का बांटा जाना सहज है। वैसे तो तेलंगाना की जनता बहुत समझदार है फिर भी चुनावी प्रक्रिया को लेकर कुछ लोग एक कॉमन सा वाक्य उद्धृत करते हैं वह यह कि “किसकी सरकार आने से हमारे जिंदगी में क्या फर्क पड़ेगा? रुपए बांट रहे हैं तो ले लो, खाना पीना करा रहे हैं तो जी भर कर खावो पियो। चुनाव के दिन किसी एक को वोट देकर आओ बस्स।” इस बारे में एक प्राइवेट अस्पताल में सैनिटरी डिपार्टमेंट में काम करने वाली 63 वर्षीय लक्ष्मम्मा से जब बात हुई तो उनका कहना था कि “मैं इस बुढ़ापे में भी 8 घंटे काम करने को मजबूर हूं। अब तक कई चुनाव देखे मैंने। जैसे मैं पहले दिहाड़ी मजदूरी किया करती थी आज भी वही कर रही हूं। उनके (विभिन्न पार्टियों) द्वारा बांटे जाने वाले चंद रुपयों से पूरा जीवन तो नहीं चलता। अपने घर तक आकर कोई लक्ष्मी (धन) दे रहा है तो चुप चाप ले लो। फिर दूसरे इलेक्शन तक वो भटकेंगे ही नहीं हमारे मोहल्ले में। ‘आपका वोट किसे देंगीं फिर?’ ऐसा सीधा सवाल पूछने पर उनका तर्क और कुछ ऐसा था – जिसके बारे में मोहल्ले में सहानुभूतिपूर्ण बातें की जा रही हों उसे वोट देने का विचार करूंगी।
बालानगर में एक प्लास्टिक की छोटी सी कंपनी के मालिक राजेंदर जी का कहना है “सरकारें जनता को मुफ्त में जो सुविधा दे रही हैं उस पर विचार करने की जरूरत है। बुजुर्गों को बैठे बैठे पेंशन, खेती बाड़ी वालों को साल में दो बार रुपया, रोजगार योजना के तहत पैसा…! इन सारी सुविधाओं के कारण मजदूर मिलना मुश्किल हो गया है। हर कोई बैठे बैठे पेंशन पा रहा है। मजदूर मजदूरी करना भूल रहे हैं।” डिस्टेंस एजुकेशन से डिग्री फाइनल इयर पढ़ने वाले तथा एक फैक्ट्री में काम करने वाले पवन ने रोजगार को लेकर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि “हमारे जैसे हजारों युवाओं को रोजगार देने के बजाय सरकार बेरोजगारों को पेंशन देने की पहल कर रही है। हम उनकी नजर में पोल्ट्री फार्म के मुर्गे हैं। कोई काम मत करो, सिर्फ बैठे रहो, जो दाना पानी मिले उसे चुगो बस्स!”
पेशे से सरकारी अध्यापक कनिराम जी ने पुरानी पेंशन बहाल करने को लेकर बात कही। उन्होंने कहा “एक विधायक सिर्फ एक टर्म के लिए विधायक बनता है, फिर दूसरी बार चाहे वह जीते या हारे मरने तक लाखों का पेंशन लेता है। हम तो पूरी जिंदगी इसमें झोंक देते हैं। हमारा भी तो हक बनता है पेंशन पाने का। जो पार्टी लिखित रूप से पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने की बात करेगी उसके बारे में ही विचार किया जाएगा।”
धार्मिकता तथा अंधविश्वास से दूर रह कर शिक्षा के क्षेत्र में साइंटिफिक टेंपर लाने, बुनियादी शिक्षा व्यवस्था में आमूल परिवर्तन लाने, सरकारी रोजगार साथ साथ अन्य रोजगार संबंधी बातें किसी भी पार्टी के मैनिफेस्टो में जगह नहीं बना पायीं । इस मामले में कुछ पढ़े लिखे युवक, चंद सरकारी कर्मचारी तथा बौद्धिक वर्ग पूर्व आईपीएस अधिकारी रहे आर एस प्रवीण कुमार पर थोड़ी बहुत उम्मीद लगाए रखे हैं।
इस चुनाव में एक सेंटीमेंट खास चर्चा का विषय बना है। वह यह कि अब तक एनटी रामाराव, चंद्रबाबू नायडू तथा वाई एस राजशेखर रेड्डी को जनता ने सिर्फ दो टर्म के लिए ही चुन लिया था। उस दृष्टि से केसीआर सरकार के भी दो टर्म पूरे हो चुके हैं। क्या जनता इस बार भी अतीत की तरह पेश आती है या बीआरएस हैट्रिक मारकर नया इतिहास लिखेगी? बहरहाल देखना यह होगा कि जनता का झुकाव किस ओर रहेगा। क्या जनता अपनी सूझ बूझ से अपने चेतनामय होने का संकेत देगी या फिर से ‘ढाक के तीन पात’ बनी रहेगी। इसके लिए 3 दिसंबर तक इंतजार करना होगा।
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