सहानुभूति बटोरती ‘पीरियड चार्ट’
निर्देशक – एम तौफ़ीक़
स्टार कास्ट – विवेक सिन्हा, ऋषिधा कतना, राहुल कुमार, सरिता शर्मा
रिलीजिंग प्लेटफॉर्म – डिज़्नी प्लस हॉटस्टार
पीरियड्स को लेकर जब से ‘पैडमैन’ फ़िल्म बनी है उसके बाद में निर्माता, निर्देशकों को कई कहानियां मिलने लगी हैं। और सभी गाहे-बगाहे अपने-अपने तरीके से उसे फिल्माने में लगे हैं। हालांकि जव पैडमैन फ़िल्म आई थी तब विश्वविद्यालय में पढ़ते हुए मेरी जूनियर लड़कियों ने कहा – भईया पैड चैलेंज करोगे। मैंने तुरन्त हामी भरी। लेकिन साथ ही कहा कि मेरे पास तो पैड नहीं है। तब वे बोलीं हम हैं न भईया। पूरे विश्वविद्यालय में उन लड़कियों का साथ देने में मैं सबसे आगे रहा उसके बाद कुछ साथी मित्रों को अनुरोध किया। कुछ शर्म के मारे नहीं आए।
ख़ैर फ़िल्म पैडमैन हिट हुई और हमें उसके बाद कई कहानियां देखने को मिली। 22 मिनट की फ़िल्म ‘पीरियड चार्ट’ एक ऐसी लड़की की कहानी है जो कोठे पर लाई गई है। उसके जीवन में अभी तक यौवन का वह स्तर नहीं आया है जहां से कहा जा सके कि वह अब बच्ची से बड़ी हो गई है। इसलिए कुछ समय उसे नाच, गाना सिखाया जाता है। लौंडा नाच भी फ़िल्म में है जो आजकल कई बार देखा जा रहा है फिल्मों में। इसी बीच एक आदमी की नजर उस पर पड़ती है और जब वह उसके साथ सम्बन्ध बनाना चाहता है तो उसकी महावारी का रक्त उसके लग जाता है। एक लड़के को बुलाकर जब वह आदमी उसे मारता है तो यह देख बच्ची डर जाती है। वहां से निकलकर वह अचानक भाग जाती है। स्टेशन पर एक लड़का उसे मिलता है। वह लड़की तीन दिन उसके साथ रहती है।
अब क्या होगा उस लड़की का? जबरन लाई गई यह लड़की घर लौट पाएगी या नहीं? या स्टेशन पर जिस पापड़ बेचने वाले ने मदद की उसके साथ ही रहने लगेगी? या पीरियड्स पर कुछ बातें होंगी और फ़िल्म में इस विषय की इति श्री कर ली जाएगी? इन सब सवालों के जवाब जानने के लिए आपको यह फ़िल्म देखनी होगी।
फ़िल्म में बच्ची के किरदार में ऋषिधा कतना बेहद शानदार तरीके से अपना अभिनय करती नजर आईं। लोहा सिंह बने विवेक सिन्हा इससे पहले भी कई फिल्मों में देखे और सराहे जा चुके हैं। पी के फ़िल्म में खास तौर पर ‘हैंगिंग बाबा’ वाले किरदार से वे खासे लाइम लाइट में आये थे। उसके अलावा वे हॉलीवुड की फ़िल्म ‘बेस्ट चांस’ में भी अभिनय कर चुके हैं। साथी किरदार में लेडी बॉस कम समय नजर आई लेकिन प्रभाव जमा गई। लेखन, निर्देशन के एक, दो चूक को छोड़ दें तो एम तौफ़ीक़ का काम अच्छा रहा। ईश्वर तिवारी का गीत-संगीत भी फ़िल्म के स्तर को ऊंचा उठाता है। बैकग्राउंड , सिनेमेटोग्राफी के नजरिए से भी फ़िल्म देखने में अच्छी लगती है।
सेल्फ़ी विद डॉटर फाउंडेशन तथा काला चश्मा के सहयोग से बनी यह फिल्म कुछ समय के लिए ही सोच बदलने में कारगर हो सकती है। जिम्मेदार पिता, भाई और साथी की भूमिका निभाएं। आओ हम सब मिलकर महिलाओं के लिए पीरियड चार्ट लगाएं। जैसे संदेश फ़िल्म में जो दिखाए गए हैं वे काश बड़े तथा छोटे शहरों की बजाए छोटे गांव, कस्बों इत्यादि में भी नजर आने लगें तो बदलाव की बयार दिखाने वाली इन फिल्मों का असल में योगदान सम्भव हो सकेगा। यहाँ क्लिक कर फिल्म देख सकते हैं।