म्हारो प्यारो राजस्थान : ‘राजस्थान दिवस विशेष’
सोने री धरती अठे, चाँदी रो असमाण
रंग रंगीळो रस भर्यो म्हारो प्यारो ‘राजस्थान’
30 मार्च, 1949 में जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर रियासतों का विलय होकर ‘वृहत्तर राजस्थान संघ’ बना और यही कहलाया राजस्थान दिवस यानी की स्थापना का दिन। यूँ तो राजस्थान की स्थापना 18 मार्च, 1948 को शुरू हुई लेकिन राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया कुल सात चरणों में 1 नवम्बर, 1956 को पूरी हुई। इसमें भारत सरकार के तत्कालीन देशी रियासत और गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल और उनके सचिव वी. पी. मेनन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी।
राजस्थान का इतिहास सम्पूर्ण भारत के इतिहास से कहीं ज्यादा विस्तृत है। आप कोई भी प्रतियोगिता देख लीजिए उसमें यदि भारत और राजस्थान का इतिहास शामिल है तो उसमें भी आपको सिलेबस के हिसाब से राजस्थान का इतिहास वाला पार्ट ही ज्यादा बड़ा नजर आएगा। रानी बाघेली, पन्ना धाय, तराइन का प्रथम युद्ध, पृथ्वीराज चौहान, महाराणा प्रताप, राणा सांगा आदि जैसी कई वीर गाथाएं इसकी धरती में समाई हुई है।
राजस्थान शब्द का अर्थ है- ‘राजाओं का स्थान’ क्योंकि यहां गुर्जर, राजपूत, मौर्य, जाट आदि कई राजा राज करके जा चुके हैं। इसलिए भी इसे राजस्थान कहा जा जाता है। ब्रिटिश शासकों ने भारत को आज़ाद करने की घोषणा जब की तो उसके बाद सत्ता-हस्तांतरण की कार्रवाई शुरू की गई उसी समय लग गया था कि आज़ाद भारत का राजस्थान प्रांत बनना और राजपूताना के तत्कालीन हिस्से का भारत में विलय एक दूभर कार्य साबित हो सकता है। यही कारण रहा कि आज़ादी की घोषणा के साथ ही राजपूताना के इस देशी रियासत एवं उनके मुखियाओं में स्वतंत्र राज्य बनाने एवं अपनी सत्ता बरकरार रखने की होड़ मच गयी। उस समय राजपूताना के इस भूभाग में कुल बाईस देशी रियासतें थी।
राजस्थान का प्रसिद्ध नृत्य घूमर है। और प्रसिद्ध मिठाई जलेबी है। इसके अलावा इसे मेलों की धरती भी कहा जाता है साल में कई लोक देवी देवताओं के मेले मसलन बाबा रामदेव, जीण माता, खाटू श्याम जी का मेला आदि यहां आयोजित किए जाते हैं जिसमें बड़े स्तर पर देश-विदेश से श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगता है। इसके अलावा यह महल एवं किलों की नगरी भी है। अकेले राणा कुम्भा के 30 से अधिक किलों का निर्माण इस धरती पर करवाया था। कुल किले तो कभी शायद गिने ही नहीं गए। लेकिन गूगल बाबा की रिपोर्ट की माने तो अकेले 80 से ज्यादा किले मेवाड़ की धरती पर मौजूद हैं। मेहरानगढ़, आमेर, लोहागढ़, अनूपगढ़, कुम्भलगढ़, चित्तौड़ , भटनेर, जूनागढ़ जैसे कई किले आज भी अपनी आन, बान, शान से इस धरती का गौरव बरकरार रखे हुए हैं।
राजस्थान दिवस के दिन राजस्थान प्रांत को अक्षुण्ण बनाए रखने वाले लोगों की वीरता, दृढ़ इच्छाशक्ति तथा बलिदान को नमन किया जाता है, याद किया जाता है। यहां की लोक कलाएं, समृद्ध संस्कृति, महल, व्यंजन आदि पूरी दुनिया में एक विशिष्ट पहचान रखते हैं। इस दिन कई उत्सव और आयोजन होते हैं जिनमें राजस्थान की अनूठी संस्कृति का दर्शन होता है।
हालांकि इसे पहले राजपूताना के नाम से जाना जाता था लेकिन बाद में कुल 22 रियासतों को मिलाकर यह राज्य बना और इसका नाम पड़ा ‘राजस्थान’। लेकिन वर्तमान में करणी सेना टाइप कुछ अति चरमपंथी संगठन भी हैं जो माता करणी के नाम पर बनी तो जरूर हैं लेकिन आए दिन इस प्रांत में अशांति का वातावरण बनाए रखने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ती। इसके अलावा इस प्रान्त के थोड़ा पीछे रहने का कारण यहां की राजनीति भी है। यहां की जनता या तो समझदार है या मूर्ख। तभी हर पांच साल बाद कॉंग्रेस या बीजेपी आती रहती है और उन्हें भी लगता है अगली बार हम आएंगे नहीं तो इस प्रांत में विशेष क्या करना या इसकी उन्नति एवं प्रसिद्धि को बढाने की जद्दोजहद क्यों करना। बेहतर होगा यह स्थिति थोड़ा बदले और कुछ राजनीतिक परिवर्तन आश्चर्यजनक रूप से बदलें और सरकारों को संज्ञान में आए की काम किए बिना जनता उन्हें अपना सिरमौर नहीं बनाएगी। इसके अलावा यहां की सरकार को क्षेत्रीय फिल्मों को बढ़ावा देने के लिए अनुदान भी दिया जाना चाहिए। हालांकि पिछले सात सालों से एक राजस्थान इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल भी आयोजित किया जा रहा है लेकिन यह नाकाफ़ी है।
खैर तमाम असहमति एवं सहमति के साथ आप सभी राजस्थान निवासियों को राजस्थान दिवस की हार्दिक स्वस्तिकामनाएँ। देश के साथ-साथ अपने प्रांत की उन्नति के साधक बनें। जय-जय राजस्थान
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