रसखान छुपाकर क्या रखना
- अनुज लुगुन
मुरलीधर की धरती में
रसखान छुपाकर क्या रखना
यह शेर गया में एक स्कूल की छोटी बच्ची ने पढ़ा था| नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में दिल्ली के शाहीन बाग़ की तरह ही गया के शांति बाग़ में भी महिलाओं के नेतृत्व में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन चल रहा है| यहाँ हर रोज सांस्कृतिक कार्यक्रम हो रहे हैं| यहाँ से जो चिंता उठ रही है उसमें साझा संस्कृति की बुनियाद बहुत गहरी है|
नागरिकता संशोधन कानून, एनआरसी, एनपीआर जैसे कानूनों और नीतियों के जरिए मोदी-शाह नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने यह अंदाजा लगया थी कि वह इसके जरिये अपने हिन्दुत्ववादी अहं को राजनैतिक तरीके से संतुष्ट कर लेगी| उसे यह भी लगा था कि धारा 370 और बाबरी मस्जिद के फैसले के बाद उसके रथ को रोकने वाला अब कोई नहीं रहा गया है| क्योंकि बाबरी मस्जिद विवाद के फैसले के बाद शांतिपूर्ण माहौल बना रहा और धारा 370 हटाए जाने पर कश्मीर को छोड़कर बड़े व्यापक स्तर पर देश भर में कोई विरोध नहीं दिखा|
दिल्ली के शाहीन बाग़ के आन्दोलन की तर्ज पर पटना, गया, राँची सहित देश के विभिन्न हिस्सों में मुस्लिम महिलाओं के नेतृत्व में नागरिकता संशोधन कानून, एनआरसी और एनपीआर का विरोध होने लगा| इन सबके बीच ही आरएसएस – भाजपा के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात यह उभर कर सामने आई कि इन आन्दोलनों में बड़े पैमाने पर हिन्दू एवं गैर मुसलमान जनता शामिल है और इसे किसी जाति या धर्म विशेष में चिन्हित नहीं किया जा सकता है| आरएसएस – भाजपा और सरकारी तंत्र ने पूरी कोशिश कि इन आन्दोलनों को हिन्दू विरोधी मुस्लिम आन्दोलन के रूप में प्रचारित करे| इसके लिए वे लगातार कोशिश कर रहे हैं| पर जो जनता विरोध प्रदर्शन में शामिल है, वह न तो मुसलमान है, न हिन्दू न अन्य, वह तो भारतीय है| उसके विरोध प्रदर्शन के प्रतीक न सांप्रदायिक हैं, न नही जातीय और न ही धार्मिक| वे भारतीय हैं| आरएसएस-भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह बन गयी है कि प्रदर्शनकारियों के हाथ में राष्ट्रीय ध्वज है, वे जय हिन्द बोल रहे हैं| उनके हाथों में संविधान है| वे गाँधी और अम्बेडकर के साथ बैठे हैं| वे शहीदों के गीत गा रहे हैं| सरकार के लिए यह बताना मुश्किल हो रहा है कि ये पाकिस्तानी हैं या जिहादी या आंतकी|
शाहीन बाग़ से उठा यह आन्दोलन भारतीय साझा संस्कृति के विचार को फिर से सामने ले आया है| लोग फिर से अपनी स्मृतियों में मौजूद साझेपन को सामने ला रहे हैं| वे कवितायों में, गीतों में, इतिहास में साझापन के विचार को ला रहे हैं| कहा जा सकता है कि जो कट्टर आक्रामक हिन्दुत्ववादी सांप्रदायिकता मोदी-शाह के नेतृत्व में आया है उसका प्रतिरोध शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के विचार के साथ किया जा रहा है| सांप्रदायिक शक्तियों के लिए हमेशा सह-अस्तित्व का विचार बाधक रहा है| इस आन्दोलन में बड़ी संख्या में गैर मुस्लिम जनता शामिल है| केवल मुसलमान के लिए ही नहीं गैर मुसलमान जनता की स्मृतियों में भी साझेपन का विचार बहुत गहरा है| आन्दोलन में लगे पोस्टर, स्लोगन, बैनर आदि में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे देश विरोधी कहा जा सका| इसलिए अब भाजपा के प्रतिनिधि इसके सह-अस्तित्व के विचार को तोड़ने के लिए लोगों में डर पैदा कर रहे हैं| दिल्ली में भाजपा नेता प्रवेश वर्मा ने भड़काऊ भाषण देते हुए कहा कि ‘शाहीन बाग़ के लोग हमारे घरों में घुस कर रेप करेंगे तब मोदी और शाह बचाने नहीं आएंगे|’ भाजपा के सांसद अनुराग ठाकुर ने भी सभा को संबोधित करते हुए कहा कि ‘देश के गद्दारों को गोली मारो सालों को|’ यह भाजपा के नेताओं का विचार नहीं है बल्कि यह उनकी पूरी विचारधारा की ट्रेनिंग का हिस्सा है जो अब व्यवाहर में दिखने लगा है| जनता के मन में सांप्रदायिकता का डर, हिन्दुओं के अस्तित्व के ख़त्म होने का डर, यही सरकार की ताकत है और वह जानती है कि यह बहुत समय तक नहीं बना रह सकता है| इसलिए समय-समय पर डर का नया माहौल बनाया जा रहा है|
दिल्ली, राँची, पटना, गया हर जगह महिलाएँ आन्दोलन में खुलकर भागीदारी कर रही हैं| विभिन्न समुदायों के बच्चे बड़ी संख्या में शामिल हो रहे हैं| राँची में गणतन्त्र दिवस के दिन ही नागरिकता संशोधन कानून, एनआरसी, एनपीआर को लेकर ‘एक शाम संविधान के नाम’ से सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था| इस तरह भारतीयता के साझापन के कार्यक्रम देश भर में हो रहे हैं| इसने ‘मुरलीधर’ की धरती में ‘रसखान’ की भावना को उभार कर सामने ला दिया है| सह-अस्तित्व का विचार सांप्रदायिक शक्तियों के लिए इसलिए हमेशा से डरावना रहा है क्योंकि वे विचारों में मुरलीधर को रसखान से लग नहीं कर सकते हैं| वे औरंगजेब को शिवाजी से अलग कर सकते हैं| महाराणा प्रताप को अकबर से अलग कर सकते हैं| लेकिन न तो कृष्ण को रसखान से अलग कर सकते हैं और न ही पद्मावत को जायसी से अलग कर सकते हैं| वे न नजीर अकबराबादी को अलग कर सकते हैं, न ही आलम को| यही इस आन्दोलन की ताकत है और आन्दोलन का विचार उसी सांस्कृतिक दिशा में बढ़ गया है|
लेखक कवि और केन्द्रीय विश्वविद्यालय, गया में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर हैं|
सम्पर्क- +917677570764, anujlugun@cub.ac.in
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