ढह गया विश्वप्रसिद्ध डार्विन आर्क
प्रशांत महासागर में इक्वाडोर का गैलापागोस द्वीप समूह स्थित है। इस द्वीप समूह में स्थित पत्थर की एक प्रसिद्ध संरचना ‘डार्विन आर्क’ का ऊपरी हिस्सा टूटकर समुद्र में समा गया है। यह पत्थर का बना प्राकृतिक मेहराब था जिसके आसपास व्हेल शार्क और हैमरहेड शार्क अक्सर देखी जाती हैं। यह आर्क पर्यटकों के लिए एक खास आकर्षण का केंद्र था। यह प्रशांत महासागर में स्थित द्वीपसमूह का सबसे अच्छे डाइविंग स्पॉट में से एक माना जाता है। डार्विन आइलैंड पर कोई रहता नहीं है। यह 2.33 वर्ग किलोमीटर में फैला द्वीप है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 551 फीट है। डार्विन आर्क एक ब्रिज जैसा दिखता था। आर्क की ऊंचाई 141 फीट थी। यह 230 लम्बा और 75 फीट चौड़ा था। लेकिन अब इसका ऊपरी हिस्सा गिर गया है। यहाँ पर जो शार्क और व्हेल मछलियाँ आती हैं, वो आकार में 45 फीट तक बड़ी हो सकती है। गैलापागोस द्वीप समूह इक्वाडोर का हिस्सा है, जो देश के तट से सैकड़ों किमी दूर प्रशांत महासागर में स्थित है।
इक्वाडोर के पर्यावरण मंत्रालय ने बताया है कि द्वीप समूह के उत्तरी हिस्से में स्थित डारविन आर्क प्राकृतिक कटाव के परिणामस्वरूप ढह गया। इक्वाडोर के पर्यावरण मंत्रालय ने इस संचरना की तस्वीरों को अपने ट्विटर अकाउंट पर साझा किया है, जिसमें अब आर्क की जगह अब सिर्फ दो स्तंभों को देखा जा सकता है। मंत्रालय के द्वारा जारी किए गए बयान में कहा गया है, ‘डारविन आर्क के टूटने की जानकारी मिली है।
डार्विन आर्क के मोनोलिथ का ऊपरी हिस्सा समुद्र में गिर गया है। अब यहाँ पर यह ऐतिहासिक समुद्री द्वार खत्म हो चुका है। असल में डार्विन आइलैंड एक ज्वालामुखीय द्वीप है जहाँ पत्थर समुद्र के अंदर 32 फीट की गहराई तक हैं। समुद्र के अंदर यह पथरीला प्लेटफॉर्म गैलापैगौस द्वीप समूह के उत्तर से दक्षिण-पूर्व तक फैला हुआ है। इसी प्लेटफॉर्म के ऊपर डार्विन आर्क बना हुआ था। वैज्ञानिक ऐसा मानते हैं कि यह आर्क किसी समय डार्विन आइलैंड का ही हिस्सा था, जो समुद्री जलस्तर बढ़ने, प्राकृतिक कटाव की वजह से एक गेट जैसे ढांचे में तब्दील हो गया। इस आर्क के नीचे का हिस्सा समुद्र के अंदर 328 फीट की गहराई तक धंसा हुआ है। डार्विन आइलैंड पर्यटकों के लिए काफी समय से बंद है द्वीप से इस आर्क को देखना मुश्किल और खतरनाक है।
इसलिए लोग इसे देखने के लिए क्रूज शिप्स का सहारा लेते आए हैं। डार्विन आर्क के आसपास अक्सर मादा व्हेल शार्क अपने गर्भवस्था में सबसे ज्यादा देखी गई हैं। इस आर्क के नीचे समुद्र में शार्क के अलावा कई रीफ्स है। यहाँ पर पेलेजिक मछलियाँ बहुतायत में पाई जाती हैं। ये खुले सागरों में घूमने वाली मछलियाँ होती हैं। शार्क और बड़ी मछलियाँ इन्हें अपना भोजन बनाती हैं। इसके अलावा यहाँ पर समुद्री कछुए, मांटा रे, डॉल्फिन आदि भी देखकर जाते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार डार्विन आइलैंड समुद्री जीवों के विस्थापन मार्क का एक मिडवे था। यानी लंबी दूरी की यात्रा करने वाली मछलियाँ यहाँ पर रुक कर प्रजनन करती थीं। गैलापैगोस मरीन रिजर्व समुद्री जीवों को बचाने के लिए है। यहाँ पर करीब 19 द्वीपों का समूह है जिसे वर्ल्ड हेरिटेज साइट का तमगा मिला हुआ है लेकिन अब यह द्वीप बिना डार्विन आर्क के वीरान सा दिखेगा। क्योंकि यह आर्क ही इस द्वीप की पहचान थी।
अंग्रेजी जीव विज्ञानी चार्ल्स डार्विन के नाम पर इस आर्क का नाम रखा गया है। इसी आर्क के आसपास डार्विन ने इवोल्यूश की थ्योरी देने के लिए अध्ययन किया था। चार्ल्स डार्विन ने उत्तरी गैलापैगोस द्वीप समूह के आसपास 1830 में अध्ययन किया था। वह एच एम एस बीगल नामक जहाज से यहाँ आए थे। अपनी पुस्तक ‘द ओरिजिन आफ स्पेशीज’ (1859) में चार्ल्स डार्विन वैज्ञानिक दृष्टि के माध्यम से यह स्थापित करते हैं कि जैविक विकास वंशानुगत लक्षणों में पीढ़ी दर पीढ़ी परिवर्तन के माध्यम से होता है। परिवर्तन की यह प्रक्रिया जीवों में प्राकृतिक चयन के जरिए घटित होती है। चार्ल्स डार्विन का मत था कि प्रकृति क्रमिक परिवर्तन द्वारा अपना विकास करती है। विकासवाद कहलाने वाला यही सिद्धांत आधुनिक जीवविज्ञान की नींव बना।
डार्विन को इसीलिए मानव इतिहास का सबसे बड़ा वैज्ञानिक माना जाता है। एडवर्ड ऑसबर्न विल्सन आजकल के सबसे जानेमाने विकासवादी वैज्ञानिकों में गिने जाते हैं और वे भी डार्विन के आगे सिर झुकाते हैं। “हर युग का अपना एक मील का पत्थर होता है। पिछले 200 वर्षों के आधुनिक जीवविज्ञान का मेरी दृष्टि में मील का पत्थर है-1859, जब जैविक प्रजातियों की उत्पत्ति के बारे में डार्विन की पुस्तक प्रकाशित हुई थी। दूसरा मील का पत्थर है 1953, जब डीएनए की बनावट के बारे में वॉटसन और क्रिक की खोज प्रकाशित हुई”। जेम्स वॉटसन और फ्रांसिस क्रिक ने 1953 मे एक ऐसी खोज की, जिससे चार्ल्स डार्विन द्वारा प्रतिपादित अधिकतर सिद्धांतों की पुष्टि होती है। उन्होंने जीवधारियों के भावी विकास के उस नक्शे को पढ़ने का रासायनिक कोड जान लिया था, जो हर जीवधारी अपनी हर कोषिका में लिये घूमता है। यह नक्शा केवल चार अक्षरों वाले डीएनए-कोड के रूप में होता है। अपनी खोज के लिए 1962 में दोनो को चिकित्सा विज्ञान का नोबेल पुरस्कार मिला।
वैज्ञानिक अब यह भी जानते हैं कि विकासवाद जीनों में परिवर्तन से नहीं, बल्कि उनके सक्रिय या निष्क्रिय होने के बल पर चलता है। इसीलिए कोई ऐसा जीन भी नहीं होता, जो ठेठ मानवीय जीन कहा जा सके। हमारी हर कोषिका में क़रीब 21 हज़ार जीन होते हैं।
इस बीच वैज्ञानिक जानते हैं कि डीएनए को न केवल पढ़ा जा सकता है, बल्कि देखा भी जा सकता है कि जीवधारियों का रूप-रंग, आकार-प्रकार किस तरह बदलता है। जब भी कोई जीन सक्रिय होता है, वह कोशिका के भीतर अपने ढंग का कोई विशेष प्रोटीन पैदा करता है।