सिनेमास्त्रीकाल

वेब शृंखला की संस्कृति और राजनीति में स्त्री

 

“मनुष्य जन्म से स्वतन्त्र है, परन्तु बेड़ियों में जकड़ा है’’ यह कथन कहीं न कहीं सत्य प्रतीत होता है, क्योंकि समाज नैतिकता की राजनीति में जकड़ा है अर्थात नैतिकता जहाँ आपको बताया जाता है कि आपको कैसे जीवन व्यतीत करना है, आपका व्यक्तित्व राज्य के नियमों पर निर्भर करता है, जहाँ आप स्वयं को सिर्फ आईने के सामने स्वतन्त्र अनुभव कर सकते है, परन्तु वास्तविकता में आप राजनीति की बेड़ियों में जकड़े हुए है, जिसमें मानदण्ड और मूल्य शामिल है जिनका प्रयोग केवल व्यक्तिगत जीवन के लिए किया जाना चाहिए न कि जीवन के सामाजिक पहलुओं के लिए।

नैतिकता की राजनीति को हर मोड़, हर क्षेत्र में देखा जा सकता है, जिसका सबसे अधिक प्रभाव लैंगिकता अर्थात स्त्री पर पड़ता है या यों कहिए कि लैंगिकता को इस नैतिकता की राजनीति के पैमाने से नापकर अन्य चीजो का स्थान तय किया जाता है, फिर चाहे वे घरेलू कार्य हो या नौकरी, स्त्री-पुरुष का पहनावा हो, या बोलचाल व तौर तरीको का रहन-सहन, जिसमें वर्तमान युग ने नये तत्व को जन्म दिया जिसे वेब सीरिज के नाम से जाना जाता है, जिसने आधुनिक काल में लैंगिकता के प्रति विमर्श में वृद्धि की है, क्योंकि लैंगिकता के सांस्कृतिक प्रतिक अनेकार्थी होते है, जो प्राथमिक रूप को शक्ति, सत्ता या क्षमता के साथ जोड़कर प्रस्तुत करते है।

शक्ति को मर्दानगी अर्थात पुरुष से सम्बन्धित कर इसकी अपेक्षा कमजोरी, निर्भरता, अराजक, परायापन, के रूप में स्त्रीत्व को दर्शाया जाता रहा है, क्योंकि जेंडर, मर्दानगी अर्थात पुरुष और स्त्रीत्व अर्थात स्त्री के बीच अन्तर और अन्तर करने वाली विशेषताओं की श्रेणी है, जिसे वेब सीरीज के माध्यम से दर्शा कर पितृसत्ता को तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है।OTT platforms in India – कौन से Best OTT platforms हैं ...

हाल ही में इसके दर्शकों की संख्या में वृद्धि हुई है, कई एप्लिकेशन बनाए गये हैं जैसे- नेटफ्लिक्स, अमेजॅन प्राइम, हॉटस्टार, उल्लू, वूट, आदि। दिलचस्प बात यह है की वे दैनिक सोप ओपेरा संस्कृति द्वारा निर्धारित मानकों से दूर होते जा रहे हैं। पश्चिमी मूल्यों से इसके सभी सरोकार जुड़े हुए है जो हमारी संस्कृति पर बड़ा आघात है, क्योंकि इसके परिणाम सकारात्मक और नकारात्मक दोनों हैं। “पश्चिमी नाटकों से भारतीय वेब शृंखला में नग्नता को सम्भव बनाने का भरपूर प्रयास किया है। जिस पर किसी प्रकार का कोई टैबू नहीं हैं।

यह सत्य है कि भारत में बनाई जा रही वेब शृंखला में सेक्स को जिस तरह से परोसा गया है, वह भारतीय संस्कृति से बहुत भिन्न है, और यह पश्चिमी शो का एक प्रभाव है जिसने इस प्रकार की चीजों के लिए बाजार को खोल लिया है। जैसे स्त्री सशक्तिकरण पर बल देते हुए “केबल गर्ल्स, कोरोनावायरस लॉकडाउन, डेडविंड, देवी, फोर मोर शॉट्स प्लीज, किलिंग ईव, ऑरेंज इज द न्यू ब्लैक, लिटिल फायर्स, एवरीवेयर, हण्ड्रेड” जैसी वेब शृंखला को रचा गया परन्तु इसका एक ऐसा पक्ष भी है जो सकारात्मकता के साथ समाज में नकारात्मक सन्देश भी देने का साधन है जिसमें कुछ वेब शृंखला इस प्रकार है- “लस्ट स्टोरीज, मार्गरीता विद अ स्ट्रॉ, मिर्जापुर, फोर मोर शॉट्स प्लीज, पांचाली, मस्तराम, मेड इन हेवन”  इस प्रकार की वेब शृंखला स्त्रियों की कामुकता को दर्शाती है परन्तु इस प्रकार के दृष्य देखने के लिए सेक्स शिक्षा का होना अति आवश्यक है।

इस प्रकार के वेब शृंखला ने उद्योग में क्रान्ति लाने और खुद को एक ऐसे माध्यम से बाजार में उतारने का एक सकारात्मक मोड़ ले लिया है, जिसे पहले कभी भी प्रस्तुत करने योग्य नहीं माना जाता था, वे भी, कुछ मायनों में, गलत माध्यमों से चीजों की वास्तविकता दिखाने वाले हैं। वहीं भारतीय शो आमतौर पर यौन संकीर्णता और कार्यात्मक शराब के साथ ‘गतिशील सोच को भ्रमित करते हैं’ जो आजकल सिर्फ एक विषय प्रतीत होता है।

“मार्गरीटा विद अ स्ट्रॉ’’ जिसमें शारीरिक रूप से डिसेबल्ड लोगों में भी सेक्शुअल इच्छाएँ होती हैं, इस बारे में इस फिल्म से पहले किसी ने नहीं दिखाया था। कल्कि केकलां ने इस किरदार को बेहद खूबसूरती से निभाया था। प्यार, सेक्शुएलिटी और जिन्दगी को तलाशती इस फिल्म के सेंटर में एक औरत का होना बहुत ताजगी देता है, वहीं “लस्ट स्टोरीज’’ के केन्द्र में 4 अलग-अलग स्त्रियाँ हैं, जिसमें शादी में धोखा, अपने से कम उम्र के लड़के से प्यार, मास्टरबेशन और सेक्स टॉयज जैसे विषयों को केन्द्रित किया गया, दूसरी ओर “मिर्जापुर के माध्यम से लाइब्रेरी में इरोटिका पढ़कर मास्टरबेट करती लड़की और पति से असंतुष्ट रह जाने वाली स्त्री इस सीरीज के मजबूत किरदार के साथ, “फोर मोर शॉर्ट्स प्लीज’’ शो को पसन्द किया जाए या नहीं, लेकिन ये बात तो तय है, इस शो ने स्त्री को एक इंसान के रूप में दर्शाया है।

अपने डॉक्टर के बारे में फैंटसी रखने वाली स्त्री और अपनी वर्जिनिटी खोने के लिए एक पुरुष प्रॉस्टिट्यूट बुलाने वाली एक लड़की भी इसी समाज का भाग हैं, जिसे इस शो के माध्यम से बहुत अच्छे से दर्शाया गया है इत्यादि प्रकार की अन्य सीरीज भी देखी जा सकती है। इनके चलते समाज में आये और आ रहे बदलावों के बारे में दर्शाया गया है, जहाँ स्त्रियों के लिए अब विकल्प अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के लिए खोल दिए गए है जिसके लिए आज की स्त्री अब जागरूक हो रही है,स्त्री को समर्थता के साथ सशक्तिकरण को बढावा दिया जा रहा है।

यह समाज की यर्थाथता को दर्शाने का एक प्रयास है जो कहीं न कहीं दबी हुई है। परन्तु सेंसर बार्ड से उन्हे हटा दिया जाता है, जहाँ स्त्रियों के लिए शक्ति की धारणा को दर्शाने का और स्त्रियों की कामुकता को प्रधानता दी जाती है, परन्तु यह बात भी सत्य है कि इस शक्ति की परिभाषा का पूर्ण रूप से सही प्रस्तुतीकरण नहीं किया जा रहा है। जिसका कारण वर्तमान और आने वाली पीढ़ी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, और कारण सेक्स को अधिक परोसना रहा है।Take A Look At 10 Extremely Engaging Adult Web Series - भारत ...

क्योंकि हर पाबन्दी से दूर, सेंसर से परे और बेहिसाब बेरोक-टोक के वेबसीरीज हमारे पास हमारा ही अंधेरा उस रौशनी के साथ परोस रही है जिसे देखकर हम कभी उसके बदलाव के प्रति चिन्तित हुआ करते थे। खून-खराबे की घटनाएँ, बलात्कार, शोषण, गालियों और हिंसा के दृश्यों से अटी पड़ी ये वेबसीरीज सिनेमा का नया स्वरूप है। जहाँ रचनात्मक उड़ान के लिए कोई पाबन्दी नहीं है और दृश्यांकन के लिए कोई सेंसर नहीं है। वेबसीरीज की नई दुनिया ने हमारे समाज के यथार्थ को मनोरंजन बना दिया है। दमन, शोषण, बेचैनी, डर, भय, कुंठाओं, मानवीय त्रासदियों, विद्रुपताओं, जीवन के विभत्स के हिस्से को कंटेंट और प्रोडक्ट में बदल दिया गया है।

साहित्य के सामानांतर फिल्में और सिनेमा सामाजिक बदलावा का माध्यम तो बना है, लेकिन सेंसर की मर्यादा के साथ। उसने अपने समाज और समय के सवालों को उसके हल, संशोधनों और अपेक्षित आग्रहों के साथ प्रस्तुत किया है। फिल्में सीमाओं में रही हैं और समाज के बीच हद में भी। फिल्मों की तुलना में तीसरे पर्दे यानी की वेबसीरीज में सबकुछ कंटेंट है और प्रॉडक्ट का हिस्सा। यथार्थ यहाँ बदलाव के आग्रह के साथ नहीं आया है बल्कि व्यूअरशिप और मनोरंजन के साथ मौजूदगी है।

दरअसल, वेबसीरीज में गालियों से भरपूर, हिंसा से लबरेज और बेहद विभत्स तरीके से दर्शाए सेक्स के दृश्यों ने उसे सॉफ्ट पॉर्न के बीच घटती कथाओं से मनोरंजित किया है। हाथ में मोबाइल, हिंसा, गालियों और सेक्स में डूबे दृश्यों के बीच बह रही एक कहानी से चाश्नी सा चस्का। यह कंटेंट हमारे ही परिवेश से उठाकर तड़के और मसाले के साथ बेचने की कला का तरीका है जो एक समय तक तो आकर्षित कर चुका है लेकिन अब विद्रुपताओं, हिंसा, पॉर्न कंटेंट के कारण सवालों के घेरे में है।

सिनेमा में सेंसर बोर्ड है लेकिन टेली सीरियल्स उनके प्रिव्यू के अन्तर्गत नहीं आते हैं। सीरियल निर्माता समाज को कई बुरे संदेश दे रहे हैं, बता रहे हैं और चित्रित कर रहे हैं, यह पूरी तरह से नकारात्मक और बुरी चीजों को प्रेरित करता है, और लोगों के दिमाग में नये बुरे विचारों को नया रूप देता है। वहीं नैतिकता की राजनीति केवल स्त्रियों के लिए ही क्यों होती है? जहाँ अच्छा और बुरे का निर्णय सिर्फ सत्ताधारी हाथों में ही क्यों होता है?

दूसरी ओर पुरानी परम्पराओं पर यह आघात का स्रोत भी है, जिसका कारण एक ओपन सोर्स का बिना सीमाओं के होना है। इसी कारण इसपर सेंसरशिप नहीं लगाया जा सकता। इस प्रकार की नकारात्मकता को निषेध करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में 100 से अधिक की संख्या मे पिटीशन उाली गयी है जिस पर कोई कार्यवाही न होने और किसी प्रकार की रोक न लगा पाने के कारण यह घातक सिद्ध हो सकता है।

वहीं इसका अन्य कारण इसका अत्यधिक काल्पनिक होना भी है जिसे वास्तविक जीवनशैली में न के बराबर ही देखने को मिलता है, क्योंकि यह सिर्फ एक उघोग मात्र है, जहाँ महिला को बस अपने उघोग में बढ़ोतरी का साधन मात्र के रूप में देखने का प्रयास किया गया है। परन्तु ऐसी रूढ़ियों को भी तोड़ा है जहाँ फिल्मों, सीरीयलो में पुरुषों को बाहुबली के रूप में दर्शाया जाता है परन्तु वेब सीरीज में इसके विपरित दर्शाया गया है जहाँ एक स्त्री को बाहुबली होने की आवश्यकता नहीं वह बिना इसके भी सब पर नियन्त्रण कर सकती है। समाज इसी से प्रभावित होकर अब उसी प्रकार के जीवन जीने की अग्रसर है।

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रजनी

लेखिका दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग में पीएच. डी. शोधार्थी हैं। सम्पर्क- riya7116@gmail.com
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