किंग साइज बेड पर लगभग 15 करोड़ रूपयों के नोटों की तस्वीर ने पूरे देश का ध्यान झारखण्ड की राजनीति की तरफ खींच लिया है। प्रवर्तन निदेशालय को ये पैसे राज्य की खान सचिव पूजा सिंघल के सीए सुमन कुमार के घर से मिले थे। कोर्ट के आदेश के बाद सीए सुमन को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है और आईएएस पूजा सिंघल से ईडी की पूछताछ जारी है। इस प्रकरण ने नौकरशाहों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों को बल दिया है। छोटे कर्मचारियों द्वारा लिया जा रहा घूस का पैसा कहां तक पहुंचता है, कौन-कौन से लोग इसमें शामिल होते हैं और क्यों इन पर कभी अंकुश नहीं लग पाता है, इनके जवाब लोग नोटों की वायरल तस्वीर में ढूंढ रहे हैं। हालांकि ये पैसे वास्तव में कहां से आए हैं, इसे लेकर ईडी का आधिकारिक जवाब नहीं आया है। मीडिया रिपोर्ट में इसे मनरेगा घोटाले से जोड़ा गया है। वसूली के कई स्वरूप हैं, उतने, जितने संभव हैं।
मीडिया में चर्चाएं यह भी है कि ईडी को जो पैसे सीए के घर से मिले हैं यह सिर्फ आधे दिन की वसूली है। दरअसल इतने पैसे हर रोज रांची प्रमंडल से कहीं और ट्रांसफर किये जाते हैं। इसी तरह राज्य के पांचो प्रमंडल से हर रोज लगभग इतने ही पैसे भेजे जाते हैं। हालांकि इसपर किसी ने कोई रिपोर्ट नहीं लिखी है, लेकिन कुछएक टीवी चैनलों ने इस तरफ इशारा जरूर किया है। उन्होंने भी सूत्रों का हवाला दिया है।
पूजा सिंघल प्रकरण में कई ऐसी बातें भी सामने आयी हैं, जो आमतौर पर देखने को नहीं मिलतीं। मसलन ऐसा पहली बार हुआ है कि ईडी की छापोमारी चलने के दौरान ही नोटों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गयीं। फिर मशीनें मंगवाई गयी और जब गिनती शुरू हुईं तो उसकी भी वीडियो बाहर आयी, वह भी छापेमारी की दौरान ही। कई ऐसी बातें जो ईडी ने आधिकारिक तौर पर नहीं कही है, मीडिया को पता चला और इसकी रिपोर्टिंग भी हुई। तस्वीरें और वीडियो वायरल होने का नतीजा यह रहा कि यह मामला आम लोगों तक पहुंचा और मीडिया की दिलचस्पी इसमें बढ़ी। फिर हफ्तों तक यह राज्य का सबसे बड़ा मुद्दा बना रहा। इससे आम लोगों की नजर में सरकार की नकारात्मक छवि बनी, जिसका कि झामुमो भी जिक्र कर रही है।
ईडी की इस रेड का प्रभाव नौकरशाही के बजाय राजनीति पर ज्यादा पड़ा है। क्योंकि पूजा सिंघल वह नाम है जो पूर्व की भाजपा सरकार में भी रघुवर की करीबी थी और आज की गठबंधन सरकार में भी सरकार की करीबी है। 2000 बैच की पूजा सिंघल को लेकर पहले भी कई तरह की चर्चाएं हो चुकी हैं, लेकिन कभी कार्रवाई नहीं हो सकी। इस बार ईडी के छापे का समय भी बड़ा नाजुक है क्योंकि ईडी की कार्यवाही के पहले से ही झारखण्ड में काफी कुछ चल रहा है। मसलन हेमंत सोरेन के ऊपर अपनी ही जमीन पर खनन लीज के आंवंटन का आरोप लगा है। दिलचस्प बात है कि खनन विभाग मुख्यमंत्री की जिम्मे है और इस विभाग की सचिव पूजा सिंघल हैं।
हेमंत के अलावा उनकी पत्नी कल्पना सोरेन, भाई बसंत सोरेन, विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्रा और प्रेस सलाहकार अभिषेक प्रसाद ‘पिंटू’ पर भी ऐसे ही अवैध खनन के आरोप लगे हैं। इन सबके अलावा 300 से अधिक फर्जी कंपनियों के जरिये पैसा खपाने का भी आरोप सीएम पर है, जिसपर सुनवाई करते हुए झारखण्ड उच्च न्यायालय ने रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज और ईडी को जिम्मेवारी सौंपी है। राज्यपाल रमेश बैस ने जब मामले पर चुनाव आयोग से मंतव्य मांगा, तब आयोग की तरफ से सीएम को नोटिस भेजा गया। इसके जवाब में मुख्यमंत्री ने कहा है कि फिलहाल उनके नाम पर कोई खनन पट्टा नहीं है। जिस खनन पट्टे की बात हो रही है, उसे कुछ महीने पहले ही सरेंडर कर दिया गया है और उससे किसी भी प्रकार का लाभ नहीं लिया गया है।
पूजा सिंघल पर ईडी की कार्रवाई को हेमंत ने केंद्र सरकार की गीदड़-भभकी बताया था। इधर भाजपा के कई नेता पहले भी और इस प्रकारण के दौरान भी सरकार गिराने की बात करते रहे हैं। झामुमो की तरफ से भी लगातार प्रेस वार्ताओं में यही कहा गया कि भाजपा राज्य सरकार को अस्थिर करने की नाकाम कोशिश कर रही है। झामुमो का आरोप है कि पूजा सिंघल के घोटालों के तार दरअसल भाजपा सरकार से जुड़े हैं। ऐसे लगभग 4 से अधिक मामलों में पूजा सिंघल के खिलाफ जांच हुई, लेकिन भाजपा सरकार में उन्हें क्लीन चिट दे दिया, या फिर जांच अधूरी रही। अब गठबंधन सरकार की छवि खराब करने के लिए भाजपा इस तरह के हथकंडे अपना रही है।
मतलब साफ है कि पूजा सिंघल प्रकरण के कई पहलू हैं, सबसे बड़ा पहलू राजनीतिक है। ईडी की रेड के बाद सियासी गलियारे में सरकार गिराने और बचाने को लेकर चर्चाएं तेज हो गयी थीं, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। मुख्यमंत्री की विधायकी पर खतरा जरूर है, लेकिन फिलहाल यह जाती हुई नहीं दिख रही है। सनद रहे कि इस बीच भ्रष्टाचार के एक मामले में कांग्रेस विधायक बंधु तिर्की की विधायकी रद्द हो चुकी है। कांग्रेस और झमुमो के कुछ-एक विधायक भाजपा के संपर्क में भी बताए जा रहे हैं। इंतजार शायद हेमंत पर कार्रवाई का है।
दिलचस्प बात है कि इस गहमा-गहमी के माहौल में विधानसभा अध्यक्ष भी दलबदल कानून के तहत सुनवाई को लेकर हरकत में आ गये हैं। ज्ञात हो कि भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी के खिलाफ स्पीकर कोर्ट में सुनवाई लंबित है, जिस वजह से अभी तक विधानसभा में उन्हें भाजपा के विधायक के रूप में स्वीकृति नहीं मिली है और नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी खाली है। बाबूलाल झाविमो से चुनाव जीतने के बाद भाजपा में शामिल हो गये थे। अब यदि स्पीकर कोर्ट ने बाबूलाल की विधायकी रद्द कर दी, तो भाजपा की मुश्किलें भी बढ़ जाएंगी।
दूसरी तरफ राज्य सरकार की रडार पर पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास भी हैं। 2016 में झारखण्ड स्थापना दिवस के मौके पर सुनिधि चौहान के कार्यक्रम में टॉफी और टी-शर्ट घोटाले को लेकर झारखण्ड सरकार की एजेंसी भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो इस मामले पर एफआईआर दर्ज कर चुकी है। मुख्यमंत्री ने मामले की जांच के आदेश भी दे दिये हैं। अनुसंधान चल रहा है। चर्चाएं हैं कि हेमंत रघुवर दास को गिरफ्तार और बाबूलाल की विधायकी रद्द करवा कर भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी करना चाहते हैं। देखना होगा कि इसपर भाजपा का क्या स्टैंड होगा और झारखण्ड की राजनीति किस तरफ जाएगी।
फिलहाल राज्य की सभी पार्टियां राज्यसभा चुनाव की तैयारियों में लगी हैं। कैंडिडेट तय किये जा रहे हैं और उसी हिसाब से समीकरण साधे जा रहे हैं। पूजा सिंघल गिरफ्तार हो चुकी हैं और उनपर उनपर मुकदमा चलेगा। इधर कई अन्य मामलों में ईडी अभी भी सक्रिय है और छापेमारी कर रही है। इन सबके बीच सरकार गिराने और बचाने का खेल चलता रहता है। जब से नयी सरकार बनी है, तब से ही इस तरह की खबरें आती रही हैं। लेकिन सरकार का जो मूल कार्य है, उसकी तरफ जनता का भी ध्यान नहीं है। आज राज्य के तमाम जरूरी मुद्दे गौण हो गये हैं, सभी टकटकी लगा कर मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर अपना आकलन कर रहे हैं। हमें मसाला मिलता है और हम 15 करोड़ कितनी बड़ी रकम है, यह सोंचने में दिमाग खपाते हैं। हम भ्रष्टाचार के खिलाफ वाजिब सवाल नहीं पूछते और राजनीति का रंगीन शो देखने में मशगूल हो जाते हैं।
झारखण्ड में घोटाले का यह पहला प्रकरण नहीं है। लेकिन वर्तमान प्रकरण पर तार्किक विमर्श के बाद यह तो जाहिर हो जाता है कि भ्रष्टाचार का भंडोफोड़ भी एक विकल्प की तरह है। जरूरी नहीं कि सबका भ्रष्टाचार उजागर हो। जबतक राजनीतिक संरक्षण मिलता रहे और परिस्थितियां अनुकूल हों, आप लाल बत्ती की गाड़ी में घूमते रहिए। आपके खिलाफ कार्रवाई तभी होगी, जब आप किसी के राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति करने में मोहरा बनने के योग्य हों।
विवेक आर्यन
लेखक पेशे से पत्रकार और पत्रकारिता के शिक्षक हैं। वर्तमान में आदिवासी विषयों पर शोध भी कर रहे हैं। सम्पर्क +919162455346, aryan.vivek97@gmail.com
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