समीक्षा

जीवन के रंग में वापसी की प्रेम कहानी है ‘रंगों की रोशनी’

 

बिंज (bynge) पर मनीषा कुलश्रेष्ठ की लम्बी कहानी ‘रंगों की रोशनी में’ प्रकाशित हुई है। इधर स्त्रियों ने जब प्रेम सम्बन्धों पर लिखना शुरू किया है तो विषय और परिवेश दोनों में विविधता आयी है। ‘स्टापू’ जहाँ पौराणिक कथा पर है वहीं ‘वह साल बयालीस था’ 1942 के स्वतन्त्रता आन्दोलन की पृष्ठभूमि पर है। मनीषा कुलश्रेष्ठ की यह कहानी महानगरीय जीवन के परिवेश में बुनी गयी है और विषय चित्रकारी है।

इस कहानी की सार्थकता इसका ‘परिवेश’ है। विषय नया हो या पुराना अगर परिवेश की निर्मिति घटनाओं के घटने में बाधा बनती है तो अच्छी-भली कहानी अपनी वैचारिक नवीनता के बावजूद कमजोर हो जाती है।

इस कहानी का विषय या कहिए विचार है ‘आत्मनिर्भरता’। प्रेमी युगल में किसी कारण से यदि किसी एक के जीवन में कोई आकस्मिक जीवन बदल देने वाली घटना घटती है ,उसी स्थिति में दूसरे का व्यवहार क्या हो इसपर कहानी संवाद करना चाहती है। दो तरीके से हम किसी को आगे बढ़ा सकते हैं। पहला तरीका है कि हम अपने साथी का हर काम करें और उसे एहसास कराएँ कि वह हमेशा उसके साथ है। दूसरा तरीका है कि साथी को नयी परिस्थितियों के अनुकूल ढलने में मदद करें,जरूरत पड़ने पर थोड़ी सख्ती भी बरतें और उसे अपना व्यक्तित्व पुनः निर्मित करने लायक माहौल बनायें। पहला तरीका लुभावना है लेकिन वह ख्याल रखने और सशक्त बनाने के नाम पर ‘निर्भरता’ को ही पोषित करता और अंततः रिश्ते में बोझ बनकर क्लेश ही पैदा करेगा। दूसरा तरीका निश्चित रूप से साथी को आत्मविश्वास और स्वतन्त्र पहचान देगा जो स्वस्थ प्रेम सम्बन्ध के लिए अनिवार्य है। कहानी इसी दूसरे तरीके का समर्थन करती है।

अंबर एक चित्रकार है। उसकी आँखों की रोशनी चली गई है। उसे लगता है कि अब उसका जीवन व्यर्थ हो गया। वह देख ही नहीं पाएगी तो चित्रकारी क्या करेगी? उसका प्रेमी प्रवाल भी चित्रकार है। वह उसे विश्वास दिलाता है कि वह वापस चित्रकारी कर सकेगी। इसके लिए प्रवाल उपर्युक्त दूसरा तरीका अपनाता है। सिर्फ तरीका तय करने से परिस्थिति अनुकूल नहीं हो सकता है। तरीके को कार्यान्वित करने की प्रक्रिया क्या है इसपर प्रेम सम्बन्ध और साथी का पुनर्निर्माण निर्भर करता है। प्रवाल ने इसके लिए ‘इंक्लूसिव सिद्धांत’ की प्रक्रिया अपनाया।

शिक्षाशास्त्र का यह सिद्धांत कहता है कि ‘कक्षा में हर तरह के विद्यार्थियों को शामिल करके पढ़ाया जा सकता है चाहे वह सामान्य विद्यार्थी हो,दिव्यांग हो या अतिरिक्त संवेदनशील विद्यार्थी हो। जरूरी है उचित शिक्षण पद्धति को अपनाने की।’ प्रवाल यही करता है। वह अम्बर जानबूझकर सभी दैनिक क्रियाकलापों में शामिल करता है। वह अतिरिक्त सहानुभूति बिल्कुल नहीं दिखाता बल्कि जरूरत पड़ने पर डाँटता भी है। लेकिन साथ में यह भी ख्याल रखता है कि उसे चोट न पहुँचे। यहाँ तक कि स्टिक का सहारा न लेना पड़े इसके लिए वह अम्बर के पसंद का प्रशिक्षित लैब्राडोर लाता है ताकि उसे एक साथी भी मिल जाए और स्टिक से मुक्ति भी।

यहाँ प्रवाल एक गाइड की भूमिका में है। प्रवाल का चरित्र इस बात को प्रस्तावित करता है कि प्रेम में ‘धैर्य’ ही वह गुण है जिसकी बुनियाद पर बिखरते और टूटते प्रेम सम्बन्ध को पुनर्जीवित किया जा सकता है। जब अंबर प्रवाल के प्रयोग को लापरवाही और जोक समझती है तो वह बहुत बुरा-भला कहती है, चिढ़ती है मन ही मन गाली देती है। उसे लगता है प्रवाल मुझे दुख में देखकर सैडिस्टिक प्लीजर महसूस होता है। ऐसे समय में प्रवाल धैर्यपूर्वक उसकी शिकायत सुनता है और बहस करने के बजाय समझाता है और प्यारा सा चुम्बन देकर उसे शांत करता है। कहानी में यह समावेशी प्रयोग घटनाओं को संप्रेषणीय और नई बनाती है। यह कहानी कोई घोषित ‘वाद’ के ढाँचे के इतर सहज भाव ‘प्रेम और जीवन संघर्ष में साथ बने रहने’ के पक्ष में लिखी गयी है।

कहानी में चित्रकारी का परिवेश है। कहानीकार ने इसके लिए रंगों के विभिन्न मिश्रण और उसके प्रभाव पर शोध किया है जो कहानी पढ़ते हुए लक्षित किया जा सकता है। कहानी शुरू होती है बारिश, संगीत और रंगों की बात से। तब अंबर घर में है और वह देखने में सक्षम है। कहानी जब समाप्त होती है तब भी अंबर संगीत समारोह में है। अंतर इतना है कि समारोह घर से बाहर हो रहा है और अब वह देख नहीं सकती है और साथ में उसका लैब्राडोर है। यहाँ ‘बारिश’ का स्थानापन्न ‘लैब्राडोर’ है। लैब्राडोर अम्बर के लिए आँख की तरह काम करता है। संगीत घर में न होकर बाहर हो रहा है। यह संकेत है कि अंबर का पुनः बाहरी दुनिया मतलब उसके कला की दुनिया में वापस लौटकर आना। कहानीकार ने सोच-समझकर शुरुआत और अंतिम दृश्य की योजना की है। यही वह परिवेश है जिसकी ओर मैं ध्यान दिलाना चाह रहा हूँ।

इस प्रेम कहानी में एक खास बात यह है कि यहाँ अंतरंगता अतिरिक्त रुमानियत और रोमांस के साथ नहीं है जैसा कि प्रायः प्रेम कहानियों में होता है। अंतरंगता और रोमांस दिनचर्या में घुलामिला है और सहज होने वाली क्रिया की तरह है। कोई सेंसेशन और इरोटिक वर्णन नहीं है। प्रेम कहानियों में इस बदलाव की ओर भी पाठक को ध्यान देना चाहिए। प्रेम और रोमांस को अलग-अलग परिवेश में दिखाना अब पुरानी बात हो गयी विशेषकर महानगरीय जीवन की कहानियों में। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि वहाँ अब अपार्टमेंट संस्कृति ने प्रेमी युगलों को साथ रहने का मौका उपलब्ध करवाया है। अब उन्हें रोमांस के लिए खास अवसर निकालकर मिलने की जरूरत नहीं है। छोटे शहरों और गाँवों में प्रेमी युगलों के लिए आज भी स्वतन्त्रता पूर्वक घूमने में अतिरिक्त सावधानी की जरूरत होती है। इसलिए रोमांस उनके लिए उत्तेजना, रोमांच और सेंसेशन है। कहानीकार के दोनों पात्र महानगर के हैं, लिव-इन में हैं। उनके लिए रोमांस सामान्य जीवनचर्या का हिस्सा है।

इस तरह यह कहानी जहाँ प्रेम कहानी में चित्रकारी जैसे विषय को लाकर पाठक को इस पेशे के बारीकी से अवगत कराने का प्रयास करती हैं वहीं प्रेम सम्बन्धों के बदलते आयामों को भी परिवेशगत वर्णन से प्रस्तुत करती हैं

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महेश कुमार

लेखक दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय, गया में स्नातकोत्तर (हिंदी विभाग) छात्र हैं। सम्पर्क +917050869088, manishpratima2599@gmail.com
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