लिए लुकाठी हाथ

थैंक्यू की महिमा अपार

 

अमिताभ बच्चन ने , कौन बनेगा करोड़पति में एक किस्सा सुनाया था, दून स्कूल में अपनी पिटाई का। छोटी सी शरारत करने पर भी प्रिंसिपल बड़ी सी छड़ी लेकर आते थे और स्टूडेन्ट के पिछवाड़े पर जोर जोर से प्रहार करते थे। हर चोट के बाद पिटाई खाते हुए छात्र को बोलना पड़ता था–थैंक्यू सर। इस दृश्य को मन ही मन देख कर मेरा मन आनन्द से भर उठा था। लात खा कर भी थैंक्यू कहलवाने की अंग्रेजों की गौरवशाली परम्परा पर मेरा सर श्रद्धा से झुक रहा था। पिटाई से मैं दुखी था। इसलिए नहीं कि पिटाई होती थी, बल्कि इसलिए कि इतनी कम पिटाई क्यों होती थी। ऐसे पीटने का क्या मतलब जब पिटाई के समय थैंक्यू कहने का समय निकाल लिया जाए।

हमारे यहाँ उस जमाने में जब गुरु जी पीटते थे तो पीटते ही थे। शुद्ध कुटाई। लत्तम, जुत्तम, थप्पड़, लप्पड़, धौल का दौर चल पड़ता था और कें, भें के पहले ही अगला पड़ जाता था। अपने इस महान कार्य से उन्हें प्यार होता था। वे पूरी निष्ठा के साथ गीता में बताए निर्लिप्त भाव से कूटते थे। बच्चे की पीठ पर छड़ियों के टूटने से बच्चे सीधे होते हैं, ऐसा अखण्ड विश्वास उन्हें था। एबव सेल्फ! निष्काम कर्म!! बच्चे अगर इसकी चर्चा भूल से घर में कर देते थे तो फिर उसके पिताश्री भी उसे कूटते थे। पिताजी इसी महान परम्परा के शिकार होकर प्राइमरी के बाद पुस्तक में डोरी बाँध चुके होते थे, फिर भी इस विरासत पर उन्हें गर्व रहता था। खानदानी धर्म निभाना ही पड़ता है न!

आभार जताने के वे पुराने स्वर्णिम दिन मुझे याद आए, जब झामू भैया ने सुन्दर काका का भुलाया हुआ चश्मा खोजा था। हाथ में लेते ही पूज्य काका ने भैया की पीठ पर दो भरपूर धौल जमाया था, यह कहते हुए — बज्जात, कब से परेशान हूं, अभी खोज कर दिया…..? काका का थैंक्यू लेकर भैया गंजी में लोर पोछते हुए निकल गये थे। वे दुखी नहीं थे। ऐसे परम्परागत थैंक्यू लेने के वे कोई पहली बार हकदार नहीं बने थे। 

मैं उन्हीं कुछ महान यादों में पड़ा था कि मेरे हाथ से चश्मा कवर गिर गया। पास ही मोबाइल जाप से निवृत्त हो चुके मेरे पोते ने उसे उठा लिया। आश्चर्य कि हमारे टाइम के बच्चों की तरह उसने न तो छुप कर लात मारी और न तोड़ा। एकदम प्लास्टिक जैसी प्रोसेस्ड विनम्रता। उससे अपने हाथ में चश्मा कवर लेते हुए मुझे काका वाली बात याद आई पर मैं जब्त कर गया। लेकिन उधर मेरा पोता नाराज हो गया — ओ ग्रैंड प्पा। बी कर्टियस प्लीज। आप थैंक्यू तो बोलो……मैं अपराध बोध से भर गया! इधर उधर देखा कि किसी ने देखा तो नहीं! लैपटॉप पर बिजी उसकी ममा को हँसी आ गई — जानते हो पापा! थैंक्यू आज कल की कर्टसी है। प्रेस्टिजिएस स्कूल में है न..! अब स्कूल मुझ पर भारी पड़ चुका था। मुझे पता चल गया था कि अब कबाड़ का माल बन चुका हूं। अब मुझे वे सारे सीन याद आने लगे कि कैसे मेरी बहू बच्चे को स्पून टू स्पून लंच मुँह में सर्व करती जाती है और बच्चा कैसे चम्मच टू चम्मच थैंक्यू बोलता जाता है। एक मेरा जमाना था, माँ खाते समय सीधे झापड़ रसीद करती थी और हा फाड़ कर भें करते बच्चे के मुँह में बड़ा कटोरा अनलोड करते हुए जोर से सुनाती थी, आस पास को, कि कुछ खाता ही नहीं है!

वैसे अपने जीवन में केवट को, शकुनी को या कृष्ण को भी थैंक्यू समेटते हमने नहीं सुना।

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इधर सुनने में आया कि मुम्बई में किशन प्रकाश नमक हबी को , जो अब के पी हो चुका है, वाइफ ने गुलदस्ते से बर्थडे विश किया, पर गँवारू विरासत ढोता बेचारा हें हें करता खींसे निपोड़ता रहा, थैंक्यू नहीं बोल पाया। फिर उस गाय को डाइवोर्स नोटिस सर्व हो गई। वो बिना आँखें और हेंकी भिगोये बहुत रोई थी। मुझे तो बड़ी खुशी हुई। भाड़ में जाये प्यार वार, एक मिनीमम कटसी तो आनी चाहिए न। थैंक्यू अवश्य बोला जाना चाहिए शर्त यह है कि चेहरे पर किसी भी तरह का कोई भाव नहीं हो।

मुझे इधर सुनने को मिला है कि एक ऐसा कार्ड बाजार में आ गया है जिसमें बच्चा माता पिता को उस स्वीटेस्ट मोमेंट के लिए मोमेन्टो देता है जिस निमिष उसकी नींव पड़ी। ठीक तो है। यह संस्कार है। भारत में तो सदा से निषेचन, पुंसवन, गर्भाधान आदि सोलह संस्कार रहे हैं। हमारे यहां के कृतघ्न बच्चों ने क्या कभी थैंक्यू दिया, नहीं ! हम आपको चेता रहे हैं कि अपने बाहर रहने वाले बच्चे को आप अपना पूरा पता पिन कोड सहित लिखा दें। कहीं ऐसा न हो कि ऐसा पवित्र कार्ड किसी दूसरे माता पिता के पते पर भेज दिया जाए।

मेरा मानना है कि हरेक बात पर थैंक्यू बोला जाना चाहिए। उस दिन देखा एक बच्ची ने थैंक्यू बोलते हुए छोटे भाई से मोबाइल छीन ली। बड़ा अच्छा लगा।

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वैसे थैंक्यू बोलते ही लगता है कि हमने सफर का किराया चुका दिया। अब कोई एहसान नहीं। सही भी है। थैंक्यू हमें भावनात्मक बोझ ढोते रहने से सीधे बचा लेता है। आज के बच्चे बड़े समझदार हैं। मम्मी पापा को फटाफट थैंक्यू दे डालते हैं। यानी लीजिए आपने मेरे लिए जो किया, उसका मुआवजा। और हां, आगे कभी यह डायलॉग मत बोलिएगा — मैंने इसके लिए क्या क्या नहीं किया और यह बच्चा….! जैसे गया में एकबार पिण्डदान करके लोग पित्रृ ऋण से सदा के लिए मुक्त हो जाते हैं, उसी तरह थैंक्यू बोलकर हर तरह के एहसान से तत्काल मुक्त हुआ जा सकता है।

अपरम्पार है इसकी सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक महिमा! थैंक्यू!!

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निवास चन्द्र ठाकुर

लेखक सृजनशील मीडियाकर्मी तथा जेवियर कॉलेज, राँची में हिन्दी के प्राध्यापक रहे हैं। सम्पर्क +919431178550, thakur.niwas07@gmail.com
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