Tag: निर्मल कुमार शर्मा

सामयिक

किसान आन्दोलन की अद्वितीय उपलब्धियाँ

 

   आज इस देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सीमा के बाहर सड़कों पर इस देश के निरंकुश और तानाशाही स्वभाव के कर्णधारों द्वारा जबरन बैठाए गये अन्नदाताओं को बैठे पूरे 7 महीने से भी ज्यादा दिन हो गये हैं, इन पूरे 7 महीनों में पिछले दिनों पड़ी भयावह ठंड व भारी बारिश के वे कठोरतम् दिन भी रहे हैं, जिस दिन एक सामान्य व्यक्ति अपने घर से बाहर निकलने से भी अक्सर कतराने की कोशिश करता है, उस तरह के कठोरतम् और प्रतिकूल मौसम में भी भारतीय अन्नदाता आखिर खुले आसमान के नीचे, सड़क पर पिछले 7 महीनों से क्यों बैठा है?

मीडिया के अनुसार अब तक लगभग 300 से भी ज्यादा अन्नदाताओं के शहीद हो जाने के बाद भी भारतीय अन्नदाओं में अपनी सुनिश्चित जीत व अपने उत्साह व जज्बे में कहीं कोई भी कमी दिखाई ही नहीं पड़ रही है! पत्रकारों द्वारा इतने लम्बे आन्दोलन के बावजूद सत्तारूढ़ सरकार द्वारा टस से मस न होने मतलब तीनों काले कृषि कानूनों को वापस न करने और किसानों द्वारा उत्पादित फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य मतलब एमएसपी को कानूनी जामा न पहनाने की की एक बेवजह जिद के बाबत प्रश्न पूछने पर लगभग सभी आयु वर्ग के किसानों का एक ही प्रत्युत्तर है कि ‘बिल वापसी नहीं तो हमारी घर वापसी नहीं! ‘आखिर इस बिल से भारत का अन्नदाता इतना खफा क्यों है?

आइए इसका क्रमबद्ध रूप से विश्लेषण करने की कोशिश करते हैं। श्रीमान मोदी जी के इस कथन के बावजूद कि ‘एमएसपी मतलब न्यूनतम समर्थन मूल्य था, है और भविष्य में भी रहेगा ‘की इसी देश की मंडियों में लगभग हर जगह जमकर धज्जियाँ उड़ाई जा रहीं हैं! उदाहरणार्थ श्रीमान मोदी ऐंड कम्पनी की सरकार की तरफ से मक्के की एमएसपी 1850 रूपये प्रति क्विंटल घोषित है, परन्तु उन्हीं की मंडियों के रिश्वतखोर व भ्रष्ट अफसरों व कर्मचारियों तथा दलालों के दुष्ट त्रयी के चक्रव्यूह में फँसकर भारतीय किसानों को झख मारकर,  निराश होकर, हारकर अपने मक्के की फसल को 1000 से लेकर 1150 रूपये प्रतिक्विंटल पर ही बेचकर, निराश होकर अपने घर को लौट जाना पड़ता है!

आजकल मक्के से ही बनाए गये इसके एक उत्पाद जिसे कॉर्नफ्लेक्स कहते हैं, जिसे आजकल का मध्यवर्ग बहुत पसंद करता है, उसे पहले मोहन मिकिन्स सहित तमाम कम्पनियाँ बनातीं थीं, परन्तु इस कारोबार में अब एक तथाकथित स्वदेशी, बाबा और योगगुरु रामदेव भी अपनी कम्पनी पतंजलि के साथ कूद पड़ा है, लूट-खसोट के मामले में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की तो बात छोड़ दीजिए, स्वदेशी के नाम पर यह कथित बाबा और योगगुरु बना रामदेव भारतीय किसानों और यहाँ की आम जनता से कितना लूट-खसोट मचाया है, इसकी एक बानगी देखिए, इस लेख में ऊपर यह बताया जा चुका है कि किसानों से उनका मक्का सरेआम 1000 से 1150 रूपये प्रतिक्विंटल खरीदा जा रहा है।

इसका मतलब हुआ मक्के की खरीद 10 रूपये प्रति किलोग्राम की गयी, अब कथित स्वदेशी बाबा या योगगुरु रामदेव उसे प्रोसेसिंग करके कॉर्नफ्लेक्स बनाकर अपने पतंजलि ब्रांड के नाम से प्रति 200 ग्राम के पैकेट को 140 रूपये में धड़ल्ले से बाजार में बेच रहा है, मतलब 100 ग्राम कॉर्नफ्लेक्स की कीमत 70 रूपये हो गयी!..और 1 किलोग्राम कॉर्नफ्लेक्स की कीमत 700 रूपये हो गयी! खेल देखिए मक्के के उत्पादक भारतीय किसान को उसके 1 किलोग्राम मक्के की कीमत मिली मात्र 10 रूपये उसी को प्रोसेसिंग करके उपभोक्ता मतलब हम, आप सभी को उसका उत्पाद मतलब कॉर्नफ्लेक्स दिया गया 700 रूपये प्रति किलोग्राम में! यह है महालूट का खेल! मतलब लागत मूल्य पर कथित यह महाभ्रष्ट बाबा 7000प्रतिशत मुनाफा कमा रहा है।

ध्यान देने की बात है कि इस खेल में उत्पादक मतलब अन्नदाता और उपभोक्ता मतलब जनता मतलब दोनों बुरी तरह लुट-पिट रहे हैं। मजे में मोदी ऐंड कम्पनी के सबसे प्रिय दलाल और अब एक पूँजीपति बना कथित योगगुरु रामदेव जैसे ट्रेडिंग करने वाले लोग हैं!


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 पिछले दिनों किसान आन्दोलन स्थलों पर किसानों की भीड़ उनकी फसलों की कटाई व बुवाई की वजह से कुछ कम हुई थी, इसलिए आजकल मोदी ऐंड कम्पनी सरकार के चमचे, भाँड़ मीडिया जिन्हें गोदी मीडिया भी कहते हैं, आजकल बड़े जोर-शोर से यह दुष्प्रचारित करने में जुटी हुई है कि अब किसान आन्दोलन कमजोर पड़ रहा है या किसान नेताओं यथा श्री राकेश टिकैत आदि से सामान्य किसानों का मोहभंग होना शुरू हो चुका है या आखिर किसानों को अपने 7 महीनों के इतने लम्बे धरने या आन्दोलन  के बाद भी आखिर क्या उपलब्धि हासिल हुई? मानों वे ताना दे रहे हों और उनका कहना है कि भविष्य में भी किसानों को कुछ नहीं मिलना है!

इस देश के प्रधानमन्त्री जी किसानों के साथ 12 मीटिंग के बाद भी जब तब आकर अपना घिसापिटा यह बयान अभी भी दे देते हैं कि ‘किसान आन्दोलन में विपक्ष द्वारा भटकाए व भ्रमित किए लोग बैठे हैं’ उनके कृषिमन्त्री एक कदम आगे बढ़कर बोल देते हैं कि ‘हमें किसानों को जो देना था, वह दे चुके, हमें अब आगे कुछ नहीं करना है, किसान जितना चाहें, जब तक चाहें बैठे रहें तथा हमें आज तक कोई यह नहीं बताया कि इन तीनों कृषि कानूनों में खामी क्या है? ‘क्या कृषि मन्त्री जी आखिर 12 मिटिंग में गहन निद्रावस्था में थे?  प्रश्न यह भी है कि भारतीय अन्नदाताओं की इस आन्दोलन के पूर्व से ही यह माँग रही है कि ‘इन किसान विरोधी कानूनों की वापसी हो और हमारी फसलों की एमएसपी को कानूनी दर्जा प्रदान किया जाय। क्या कृषि मन्त्री बताने की कृपा करेंगे कि इससे आगे बढ़कर कृषि मन्त्री और यह सरकार किसानों को क्या चीज दे चुके हैं?  

  जहाँ तक इस किसान आन्दोलन की उपलब्धि का सवाल है, इस सरकार के कर्णधारों और उसकी चमची गोदी मीडिया के लाख दुष्प्रचार के बावजूद भी, पिछले 7 महीनों से चले आ रहे इस ऐतिहासिक किसान आन्दोलन से ऐसी-ऐसी अद्भुत और अकथनीय उपलब्धियाँ हासिल हुईं हैं, जिनका विस्तार से विवेचना करना जरूरी है। पहली उपलब्धि तो यही है कि हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान में दर्जनों महारैलियाँ हो चुकीं हैं, जिनमें आई किसानों की लाखों संख्या की अपार जनसमर्थकों की संख्या की तरफ भी सत्ता के कर्णधारों और उनकी चमची मीडिया को अपनी आँखों को केन्द्रित कर लेना चाहिए था।

किसान आन्दोलन ने कई मोर्चों पर जबरदस्त तरीके से अपनी सफलता के झण्डे गाड़ दिया है यथा पहली बात तो यही है कि किसानों ने इस अति अहंकार में डूबी मोदी ऐंड सरकार को घुटनों के बल लाकर खड़ा कर दिया है और यह बात इस सरकार और इसके पतन के बाद आनेवाली किसी भी सरकार को बहुत अच्छे ढंग से समझा दिया है कि किसानों से पंगा लेना उसके लिए कितना आत्मघाती हो सकता है। बीजेपी के वर्तमान समय के सत्ता के अतिशय अहंकार में डूबे कर्णधार भले ही अभी ठीक से न समझ पा रहे हों कि इस समूचे देश में उनकी छवि एक ऐसे महाखलनायक की बन गयी है, जो किसान, मजदूर, आमजन विरोधी की बनकर रह गयी है, किसी भी देश में किसी भी सरकार की यह बुरी छवि बन जाना ही उसके अस्तित्व के लिए बहुत बड़े खतरे से कम नहीं है!

इस चीज को मोदीजी, उनके कृषि मन्त्री और उनका पूरा मन्त्री मण्डल अब तक इस बात को ठीक से समझ गया होगा कि पिछले 7 महीनों का उनका अनुभव इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि आनन-फानन में और बगैर सोचे-समझे तथा धोखाधड़ी से लाए गये किसानों के खिलाफ ये लाए गये तीनों कृषि कानून उनके स्वयं के लिए बहुत घाटे का सौदा बन चुका है। किसान इस देश की पूरी जनसंख्या के 70 प्रतिशत हैं, वर्तमान समय में सत्तारूढ़ सरकार से 70 प्रतिशत लोगों का नाराज हो जाना किसी भी लोकतांत्रिक देश में बहुत बड़े उथल-पुथल का परिचायक है!


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भले ही मोदी और उनके मन्त्रिमण्डल के अन्य मंत्रियों को फिलहाल सत्ता के नशे में ये बात समझ में नहीं आ रही हो, लेकिन इतना तो निश्चित है कि किसान आन्दोलन मोदी के स्थाई जनाधार में जबर्दस्त सेंध लगा चुका है! देश भर में इतने तीव्र और उग्रतम विरोध के बावजूद ईवीएम में बेइमानी करके या हेर-फेर करके सत्ता में बने रहना मोदी या किसी भी सत्ताधारी के लिए किसी भी देश में भी संभव ही नहीं है! किसान आन्दोलन की दूसरी सबसे बड़ी सफलता और उपलब्धि यह रही है कि अब तक धर्म और जाति, हिन्दू-मुस्लिम, मन्दिर-मस्जिद, अगड़े-पिछड़े आदि के नाम पर राजनैतिक रोटी सेंकने की दुर्नीति का अब पूर्णतः पतन हो चुका है, वह दुर्नीति अब धूल फाँक रही है।

इसी के फलस्वरूप हरियाणा के किसानों की संगठित और सशक्त विरोध के चलते हरियाणा में सत्ताधारी बीजेपी के किसी विधायक यहाँ तक कि वहाँ के मुख्यमन्त्री तक की इतनी हैसियत अब नहीं बची है कि वह हरियाणा के गाँवों में भी जाकर, पंचायत करके, सभा करके अपना पक्ष तक वहाँ की जनता या किसानों से कह सकें! किसी भी सत्तारूढ़ राजनैतिक दल के लिए इससे शर्मनाक स्थिति और क्या हो सकती है!

  मोदी की किसानों को धर्म, जाति,  भाषा व क्षेत्र के नाम पर तोड़ने की तिकड़मी चाल को किसानों ने पूरी अब पूरी तरह से विफल कर दिया है, कुछ सालों पूर्व उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में बीजेपी द्वारा दंगे कराकर हिन्दुओं और मुसलमानों में जो बिखराव पैदा किया था या इसी प्रकार आरक्षण के नाम पर राजस्थान में गुर्जरों और मीणाओं में जो मनोमालिन्य पैदा किया गया था, उन सभी घावों व खाइयों को इस किसान आन्दोलन ने मरहम लगाने का, पाटने का काम किया है।

पंजाब और हरियाणा में तो जाति, धर्म आदि समाज के कोढ़ को दरकिनार करते हुए सामाजिक, धार्मिक व जातिगत सौहार्दपूर्ण वातावरण की इतनी सुगंधित बयार चल पड़ी है कि वहाँ हर जाति, हर मजहब के लोग एक-दूसरे से अपनी पिछली कटुताओं व शत्रुता को भूलकर, उनसे गले मिल रहे हैं, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में फौजदारी के मुकदमों की संख्या अप्रत्याशित रूप से कम होने शुरू हो गये हैं!


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किसान आन्दोलन की तीसरी सबसे बड़ी सफलता या उपलब्धि यह हासिल हुई है कि भारत में किसानों की एक दीन-हीन की छवि पूर्णतया ध्वस्त हो चुकी है, जिन किसानों को पिछले कई दशकों से भारतीय परिदृश्य में एक तरह से कूड़ेदान में डाल दिया गया था, वही किसान अब इस देश की दबी-कुचली-असहाय जनता के लिए वर्तमान समय और भविष्य के लिए भी एक नियंता और एक आशा की किरण बनकर उभरे हैं! अब तक विगत सरकारों की दुर्नीतियों की वजह से कृषि में हो रहे लगातार नुकसान से जहाँ पहले किसानों के बेटे कृषि छोड़कर किसी छोटी-मोटी नौकरी के लिए प्रयासरत थे, अब वे अपने शर्ट पर ‘आई लव फार्मर्स’ का बैज लगाकर शान और गर्व से किसान आन्दोलनस्थल के अलावे गाँवों, कस्बों और शहरों में भी घूम रहे हैं।

इस देश के 70 प्रतिशत किसान आबादी और कृषि क्षेत्र में 70 प्रतिशत योगदान देनेवाली ग्रामीण महिलाएं अब अपनी ग्रामीण महिला की परम्परागत चोला को छोड़कर महिला किसान के रूप में दर्प के साथ अपना परिचय दे रहीं हैं! आखिर अब समय इतना परिष्कृत व यथार्थवादी बनता जा रहा है कि अब यह बैनर अक्सर दिखाई देने लगे हैं जिस पर लिखा रहता है कि ‘कौन बनाता हिन्दुस्तान?  भारत का मजदूर-किसान!

‘पिछले दिनों 19 जनवरी और 8 मार्च के दिन महिला किसानों की असंख्य भागीदारी किसान आन्दोलन को निश्चित रूप से एक नई सामाजिक व राजनैतिक तथा वैचारिक क्रान्ति की आगाज के संकेत दे रहे हैं, इन सभी शुभ संकेतों से लग रहा है कि हर हाल में इस देश के 90 करोड़ अन्नदाताओं की जीत अवश्य होगी.. और पूँजीपतियों के चमचों, दलालों और ट्रेडरों की निकट भविष्य में ही हार होनी तय है। अब लग रहा है कि मोदी ऐंड कम्पनी सरकार के ये धोखाधड़ी व चोर दरवाजे से लाए गये तीनों काले कृषि कानून अब निश्चित रूप से मृत अवस्था में हो गये हैं और वे अब वेंटिलेटर पर चले गये हैं, जैसे-तैसे उनकी साँस चल रही है, वेंटिलेटर से ऑक्सीजन की आपूर्ति रूकते ही उनकी मौत की घोषणा कर दी जाएगी। मृत्यु प्रमाणपत्र तो कोई भी डॉक्टर बना ही देगा!

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23May
स्मृति शेष

सुन्दर लाल बहुगुणा : पर्यावरण संरक्षण के अद्वितीय मसीहा 

      ‘सुन्दर लाल बहुगुणा’ एक ऐसा शब्द और व्यक्तित्व नाम है जिसके...