केयूर पाठक
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शख्सियत
भारतीयता के लेखक रेणु की प्रासंगिकता
बाजारवाद की आंधी में लेखक आते हैं और जाते हैं, लेकिन कुछ लिखते हैं और जन मानस की चेतना में ऐसे बस जाते हैं कि पूँजी की सम्पूर्ण शक्ति मिलकर भी उन्हें स्थगित नहीं कर पाती। रेणु ऐसे ही…
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सामयिक
दंडकारण्य के द्वन्द
जंगल के बाहर रहकर उसके भीतर की बेचैनी को नहीं समझा जा सकता। जीवन के बनने-बिखड़ने की प्रक्रिया वहाँ भी उतनी ही सामान्य होती है जितना कि तथाकथित सभ्य और विकसित दुनिया में। यह लघु आलेख जंगल में रहने…
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शिक्षा
पास होते बच्चे और फेल होता तन्त्र
मैट्रिक-इन्टर आदि की परीक्षाओं के परिणाम निकलने प्रारम्भ हो गये हैं। उत्साह है, आशा है तो दूसरी तरफ निराशा और हताशा भी है। बच्चे तो बच्चे, इनके माता-पिता की मनोदशाएँ भी घोर चकित करने वाली हैं। इन…
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धर्म
पीरला-पांडुगा: भारतीयता का उत्सव
ताजुद्दीन, केयूर धर्म और संस्कृति के मध्य इतनी पतली रेखा है कि कई बार धार्मिक दुराग्रहों की टकराहट में सांस्कृतिक मूल्यों और धरोहरों का भी गम्भीर नुकसान हो जाता और हम समझ भी नहीं पाते। आजकल यह प्रवृति…
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स्त्रीकाल
प्रतिरोध की चेतना और तेलंगाना की विस्मृत गाथाई स्त्रियाँ
सामाजिक और राजनीतिक न्याय के लिए जन-संघर्षों की कहानियाँ अक्सर इतिहास के अँधेरे कोने में दबा दी जाती है और जो कुछ भी हमारे सामने प्रकट और प्रभावी रूप में आता है वह राजसत्ता के इर्द-गिर्द के लोगों की…
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