चर्चा में

सुशांत और सरकारें

 

अनेक की आत्मा को ठंडक पहुँची है। जिद जीतने का अहसास हुआ है। जो होता है वही होता है ऐसा हमेशा कहां होता है ! होता है वह जो होता है, मगर दिखता हुआ कुछ और होता है। फिलहाल तो ऐसा होता हुआ दिखा है कि सुशांत के मामले में जो हुआ उससे दूध का दूध और पानी का पानी  होता हुआ दिखेगा। होगा  या नहीं होगा, यह आगे होता हुआ दिखेगा।

धाक है सीबीआई की। सुशांत का मामला सीबीआई के कंधे पर है अब। सीबीआई पर दाग भी कम नहीं हैं। आका के हाथों इस्तेमाल हो ही जाते रहे हैं, इसलिए बेदाग कहां हैं। लेकिन भरोसा भी तो इन्हीं से है। भरोसे को भरोसा देने वाले काम भी इन्होंने ही किए हैं। एक नहीं, अनेक मामले गवाह हैं।

उम्मीद है अब कि सुशांत के चौहत्तर वर्ष के पिता को चौंतीस वर्ष के बेटे सुशांत की मौत की सही सही जानकारी मिलेगी और सुशांत की मौत में अगर अपराध हुआ है तो कानून उनका हिसाब बराबर करेगा। ऐसा हुआ तो कानून का मान बढ़ेगा। कहते भी हैं कि कानून के हाथ लंबे होते हैं। बिल से बाहर निकाल ही लाएगा अपराधी को, अगर है। सीबीआई ने फिलहाल रिया प्लस पाँच लोगों को अपनी जांच के दायरे में ले लिया है। सीबीआई की तत्परता उम्मीद देती है। सीबीआई एक प्रोफेशनल एजेंसी है। इसने एसआईटी भी बना दी है।

मुंबई पुलिस ने पचास दिनों तक इस केस पर काम किया। काम करते हुए आंकड़े भी पेश किए। इसके अलावा कुछ नहीं बताया। बताया कि छप्पन लोगों से पूछताछ की। छप्पन से याद आया। एक फिल्म आई थी ‘अब तक छप्पन’। नाना पाटेकर थे उसमें। एनकाउंटर स्पेशलिस्ट थे और नाम था उनका साधू। उनका एक संवाद था एक क्रिमिनल को जवाब देते हुए। वह था — तुम लोग कचरे हो और हम लोग जमादार, सफाई करने के लिए।

छप्पन से एक बड़बोलेपन वाला जुमला भी याद आ रहा है। लेकिन उसे किसी मुंबइया ने नहीं बोला था। इसलिए वह अप्रसांगिक है इस मामले में। लेकिन यह भी सच है कि सुशांत का मामला अब छप्पन इंच वाले सीने के नीचे है। सीबीआई केन्द्र सरकार का एक महकमा है। यह महकमा उनके पास है जिनके बारे में कहा जाता है कि वे दो देह एक दिमाग हैं। ये चुनोतियां नहीं, मौके गिनते हैं। यह किसी और का नहीं आत्म प्रशंसा में कहा उनका ही आत्म कथन है।

जिस तरह से यह मामला सीबीआई के कंधे तक पहुँचाया गया वह करामाती कौशल  का कमाल है। टीवी चैनल आर भारत और बिहार सरकार टीकी बाँध कर करबला में उतरे थे। दोनों ने मिल कर इतना भांजा और ऐसी मुस्तैदी दिखाई कि, सब चारों खाने चित। कहते हैं, टीवी चैनल का मालिक उस परिवार से है, जिसकी सरकार केन्द्र में है। इस प्रकरण में चिराग पासवान पैगामी कबूतर की भूमिका में रहे हों, तो आश्चर्य नहीं। बिहार से उनका नाल का सम्बन्ध है। केन्द्र सरकार का हिस्सा भी हैं। सुब्रह्मण्यम स्वामी भी इसी प्रोजेक्ट के सिपाही थे।

बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के लिए कोई गुंजाइश ही  नहीं छोड़ी। सिवाय इसके कि वह मुंबई पुलिस से रिपोर्ट मांगे। सो वैसा ही हुआ। दूसरी ओर, ‘पूछता है भारत’ ने चीख चीख कर महाराष्ट्र सरकार की ठेपी ऐसे खोली और गले में इतनी उंगली की कि भक से बोलने लग गए। मुख्यमन्त्री भी बोले और वह भी बोला जिसने याद दिलाया कि वह बाला साहब ठाकरे का पोता है। यह याद दिलाना क्या  कुछ नहीं कहता है? पोता जी का यह ऐसा बयान है जो कान खड़े करता है। बात दूर तलक जा सकती है। अमन शांति का सौदा न हो पाए, इसके लिए महाराष्ट्र सरकार को चौकस रहना है।

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मृत्युंजय श्रीवास्तव

लेखक प्रबुद्ध साहित्यकार, अनुवादक एवं रंगकर्मी हैं। सम्पर्क- +919433076174, mrityunjoy.kolkata@gmail.com
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